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राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर


17 अप्रैल, 1927 को बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गाँव में जन्म।
पिता रू सदानंद सिंह, माँ रू द्रौपदी देवी। 1945 में द्विजा देवी से विवाह। 1947 में माँ का निधन।
आरंभिक शिक्षा गाँव में। 1949 में बलिया के सतीशचंद्र कॉलेज से बी.ए.। 1951 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र से एम.ए.। इसी वर्ष शोध-कार्य के दौरान आचार्य नरेंद्रदेव के कहने पर बलिया जिला सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री बने। 1955 में प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री। 1962 में राज्यसभा के लिए चुने गये। 1964 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के मंत्री। 1969 से कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य। 1972 में हाईकमान के निर्देश के विरुद्ध लड़कर शिमला अधिवेशन में चुनाव-समिति के सदस्य चुने गये।
26 जून, 1975 को आपात्काल लागू होने पर गिरफ्तारी। 19 महीने जेल में। 1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष, इसी वर्ष बलिया से लोकसभा के लिए चुने गए।
10 जनवरी, 1983 से 25 जून, 1983 तक 4260 किलोमीटर की पदयात्रा (भारत यात्रा)।
10 नवम्बर, 1990 को प्रधानमंत्री बने। मार्च, 1991 में त्यागपत्र। राष्ट्रपति के अनुरोध पर 20 जून, 1991 तक पद पर रहे।
12 दिसम्बर, 1995 को सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार। सत्तर के दशक से ही "यंग इंडियन" का सम्पादन। प्रकाशित कृतियाँ रू "मेरी जेल डायरी", "डायनामिक्स ऑफ सोशल चेंज" ।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर - संसद में दो टूक

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव वाद-विवाद में 20 फरवरी 1963 को राज्यसभा में चन्द्रशेखर

उपसभापति महोदय, मैं राष्ट्रपति जी का संविधान की उन धाराओं की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु आभार व्यक्त करता हूँ, जिनके तहत हमने शपथ ग्रहण की है। हम देश के सामाजिक और राजनैतिक जीवन को उन्नत बनाने के लिए लगातार प्रयत्न करने की शपथ लेते हैं। वास्तव में, यह दर्शाने के लिए कि जब पहली बार मनुष्य के मन में राज्य की संकल्पना आई होगी, तो क्या हुआ होगा, मैं थोड़ा पीछे जाना चाहूँगा। मनुष्य ने अपने अधिकार छोड़ दिए और एक संगठन कासृजन किया, जिसे हम राज्य के रूप में जानते हैं। उन्नीसवीं सदी में राज्य की संकल्पना पुलिस राज्य की थी। उस समय, हर्बर्ट स्पेंसर और अन्य लोगों ने स्पष्ट किया था कि राज्य और सरकार का दायित्व लोगों की आंतरिक उत्पात और बाह्य आक्रमण से सुरक्षा करना था। प्राचीन राज्य में, जब राज्य की संकल्पना अस्तित्व में आई, उस समय राज्य के दो प्रमुख कत्र्तव्य थे। एक यह था कि आंतरिक उत्पात नहीं होना चाहिए और दूसरा बाह्य आक्रमण भी नहीं होने चाहिए। जब देश के साथ ही विश्व में बीसवीं सदी में कल्याणकारी राज्य का मुद्दा आया, तो इन दो मूल संकल्पनाओ को कायम रखते हुए राज्य के कार्यों में वृद्धि कर दी गई थी।

चन्द्रशेखर

कश्मीर जाएगा, तो एक भूखण्ड नहीं जाएगा, हमारी धर्मनिरपेक्षता चली जाएगी, हमारी एकता चली जाएगी, हमारी वे मान्यताएँ चली जाएँगी, जिन मान्यताओं के आधार पर भारत ने आजादी की लड़ाई लड़ी थीए जिन मान्यताओं के आधार पर महात्मा गाँधी ने कहा था कि हम गरीब हो सकते हैं, लेकिन दुनिया को हम आध्यात्मिक नेतृत्व देने की शक्ति रखते हैं।


हर समाज की एक परम्परा होती है। हर राष्ट्र की एक मर्यादा होती है। हर राष्ट्र की अपनी एक मान्यता होती है। जो राष्ट्र अपनी मर्यादा, मान्यता और अपनी परम्पराओं को छोड़ देते हैं, अंजाने में वे राष्ट्र विनष्ट होने के लिए विवश होते हैं और दुनिया की कोई ताकत उसको बचा नहीं सकती है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।