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भूमिका - जो आज भी प्रासंगिक है

image1साठ के दशक में यूरोप के वरिष्ठ पत्रकार तिबोर मेंडे ने कहा है, “भारत के कृषि क्षेत्र की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय है| भारतीय कृषि का मौजूदा आर्थिंक और सामाजिक ढांचा किसानों के हित में पहल को बढ़ावा देने की अपेक्षा उसे हतोत्साहित करता है| भारत की संसद और राज्य विधान सभाओ में अधिकांश जनप्रतिनिधि या तो स्वयं जमींदार और साहूकार हैं अथवा उन्हीं के हितों को मुखरित करने वाले हैं”|

केवल मेंडे नहीं राज्यों की सभी परिषद् की प्रस्तावना लिखते समय श्री एल प्राइज ने लिखा है, “इस परिदृश्य में मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की भारत के किसानों और उद्योगपति के बीच आर्थिक संघर्ष निश्चित है, स्थिति उद्योगपतियों के पक्ष में है क्योंकि कृषि में लगे लोग अपने हितों पर मंडराते खतरों के प्रति जागरूक नहीं है| ऐसी स्थिति लम्बी अवधी तक जरी रही तो भारत में बहुसंख्यक किसानों के अलावा अन्य सभी के पास अपनी स्थिति सुधरने का अवसर होगा”|

अपने विख्यात भाषण “क्रॉस ऑफ़ गोल्ड“ में श्री विलियम जोनिग्स ब्रायन ने कहा, “अपने शहरों को जला डालो और हमारे खेतों को छोड़ दो तो तुम्हारे शहर जादू की तरह दोबारा समृद्ध हो जायेंगे , लेकिन अगर हमारे खेतों को नष्ट करोगे तो तुम्हारे शहरों की गलियों में घास नहीं उगेगी”

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर ने 1963 में राज्यसभा में कहा के ये विचार हैं हमारे प्रति और किसानों के प्रति विश्व के | इसी प्रष्ठभूमि में हम एक नया समाज बनाने जा रहे है | और ,हमारा नजरिया क्या है ? इसी विवाद में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा है कि यदि कोई गरीब किसान 5 रुपये का कर नहीं चुका पाता है तो उसे जेल भेज दिया जाता है | किसानो का चीनी मिलों पर 5 करोड़ रुपये बाकी हैं | उसके बारे में पूछा जाता है तो हमारे खाद्य बताते हैं कि वसूली का प्रयास किया जा रहा है |

एक प्रश्न मेरा है की क्या वर्तमान में यह स्थिति नहीं है? स्थिति और गंभीर है| क़र्ज़ को लेकर किसान ख़ुदकुशी कर रहा है और सरकारें आज भी मिल मालिकों से वसूली के मामले में केवल प्रयास कर रही हैं | यही नहीं लाखो करोड़ों डकारकर एक पूंजीपति आराम से विदेश चला जाता है | उसके मामले में बैंक केवल लकीर पीटते रहते हैं | उसके क़र्ज़ को राईट ऑफ किया जाता है | किसी बैंक के चेयरमैन को इसे लेकर पेट में दर्द नहीं होता है |

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अपने चुनाव सभा में यह ऐलान करते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सर्कार बनी तो लघु और सीमान्त किसानो के क़र्ज़ माफ़ होंगे | उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत होने के साठ ही स्टेट ऑफ़ इंडिया की चेयरपरसन के पेट में किसानों की क़र्ज़ माफ़ी को लेकर दर्द हो जाता है | उनकी तरफ से बताया जाता है कि इस माफ़ी से बैंक को 27420 करोड़ का नुकसान होगा| यह नजरिया है किसानों के प्रति इस देश का |

फिर याद आता है राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर का 1963 का वह कथन जिसमे उन्होंने राज्य सभा में कहा है , “मैं श्री भूपेश गुप्त से सहमत हूँ की बिरला और अन्य पूंजीपति सरकार को नियंत्रित करते हैं” | तब में और आज में फर्क इतना ही है कि बिरला की अडानी और अम्बानी जैसों ने ले ली है | इसलिए मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि संसदीय इतिहास के कागजों में राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर के विचार के रूप में पड़ा पांच दशक पूर्व में विचार आज भी प्रासंगिक है | मुझे ख़ुशी है कि राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर – संसद में दो टूक – पुस्तक के माध्यम से ये विचार देश के लिए सोचने समझने वालों के पास तक जाएगा |

आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश के सामने साम्प्रदायिकता एक विकट समस्या के रूप में कड़ी है | इसे लेकर 1964 में राज्यसभा में राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर ने कहा है , “धर्म भगवान और मनुष्य के बीच ऐक्य का तंत्र है | जैसे ही वह सामाजिक राजनीतिक, जीवन में प्रवेश करता है, यह खतरनाक बन जाता है। इसलिए इस पर सावधानी पूर्वक चर्चा करने की आवश्यकता है।’’ इसी वाद विवाद में आगे चलकर राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा है ‘‘साम्प्रदायिकता की समस्या को सुलझाने का केवल एक ही तरीका है कि सभी पर्सनल लाॅ, सभी सिविल लाॅ, सम्पति का अधिकार सभी भारतीयों को दिया जाना चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। जब तक हिन्दू मुसलमान में अंतर रहेगा, मानसिकता में अंतर बना रहेगा। कोई भी उसे दूर नहीं कर सकता’’।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर-संसद में दो टूक-पुस्तक में उनके राज्यसभा में दिए गए इस वक्तव्य को प्रारम्भ में ही स्थान दिया गया है। इसमें एक जगह राष्ट्रपुरुष ने यह भी पूछा है कि क्या चार मौलवी और हमारे पण्डे, यदि चाहें तो लाखों लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार को उखाड़ कर फेंक देंगे? संथानम की भ्रष्टाचार निरोधक समिति के प्रतिवेदन का हवाला देते हुए राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा है, ‘‘भ्रष्टाचार तभी हो सकता है, जब कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार करना चाहे और इसमें भ्रष्टाचार करने की क्षमता हो। हमें यह कहते हुए खेद है कि भ्रष्टाचार करने की इच्छा और क्षमता दोनों ही औद्योगिक और वाणिज्यिक वर्गों में अधिक पायी जाती है। इन वर्गों के लोग युद्धकाल के सट्टेबाजों और तिकड़मबाजों द्वारा फले फूले हैं। इन लोगों के लिए भ्रष्टाचार न केवल बिना मेहनत किए भारी लाभ कमाने का आसान तरीका है, बल्कि उन्हें अपने धंधों को चलाते रहने की स्थिति में बनाये रखने या उनके अपने प्रतिस्पर्धियों में अपनी स्थिति को बनाये रखने का आवश्यक साधन भी है’’। यह सब पढ़कर लगता है कि इस पुस्तक का नाम-राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर-संसद में दो टूक-क्यों रखा गया है।

नब्बे के दशक जब देश के अधिसंख्य लोगों पर उदारीकरण का भूत चढ़ा था। विश्व बैंक की मर्जी के अनुरूप इस देश की अर्थ नीति तय हो रही थी तो राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने इसका पुरजोर विरोध किया। इसे लेकर जो लोग सुहाने सपने देख रहे थे, उनसे उन्होंने कहा कि दुनियां के जिन देशों में ये नीतियाँ लागू हुई हैं, उन्हें देख लीजिए। वे कर्ज के मकड़जाल में सिसक रहे है। इन नीतियों के माध्यम से आप लोग देश का सम्मान गिरवी रख रहे है। आज आप आर्थिक क्षेत्र में समझौता कर रहे हैं, कल आपको राजनीतिक क्षेत्र में समझौता करने के लिये विवश होना पड़ेगा।

आज देश की स्थिति क्या है? हमारे बाजार विदेशी उत्पादों से भरे पड़े हे। हमारे देशी उद्योग दम तोड़ चके है। कुप्रबंधन और कुनीतियों की वजह से देश नवरत्र कहे जाने वाले सार्वजनिक उपक्रम बीमार हैं। उन्हें बेचने को ही हम अपना पुरुषार्थ मान लिए हैं। जिन क्षेत्रों को राष्ट्रीयकृत करने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी गई है, उनका निजीकरण किया जा रहा है।

2016 में प्रयोग के तौर पर लोकतंत्र सेनानियों ने चीन के उत्पादों के बहिष्कार का आंदोलन चलाया। लोगों का समर्थन भी मिला। इसे लेकर कुछ लोग बेशर्मी से यह तर्क देने लगे कि यह सम्भव नहीं है। इन लोगो को कौन समझाए 125 करोड़ का देश जिस दिन जग जायेगा, उसके लिए सब कुछ सम्भव होगा। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने इसे लेकर जीवन पर्यत कहा कि हम अपने ही देश के हुनर और लोगों के बल पर सोने की चिड़िया थे और हो सकते हैं।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के प्रथम खण्ड में उस अध्यक्ष जी (प्रधानमंत्री होने से पहले यह पद ही राष्ट्रपुरुष का उपनाम था) के जीवन की साहस गाथा है जिन्हें मैं बचपन से जानता हूँ युवा तर्क के रूप में। वह सत्ता पक्ष की मुख्य धारा में रहकर भी जन विरोधी सत्ता प्रवाह का विरोध करते थें राष्ट्रपुरुष को जितना मैं जानता हूँ, उसके अनुसार वह अन्याय और भेदभाव के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने किसी हाल में नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। वह हृदय से सच्चे समाजवादी और युवाओं के पे्ररणा स्रोत थे।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का मानना था कि किसी भी देश की संस्कृति और उसके मूल्य ही, उसकी नींव हैं। अपने निजी जीवन में भी उन्होंने इसका खयाल रखा। सार्वजनिक जीवन में मन्त्र की तरह जीया। चार दशकों से अधिक के अपने संसदीय जीवन में उन्होंने हर पल संसदीय परम्पराओं का सम्मान किया। इसे लेकर उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से नवाजा गया। भीड़ के डर से वह अपना निर्णय नहीं बदलते थे। देश में एक तरह के कानून का सवाल हो या पंजाब का, राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद हो या कश्मीर का सवाल, उन्होंने वही कहा जो देश हित में था, है जिसे उनके न रहने के बाद माना जा रहा है। मुझे खुशी है कि राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर-संसद में दो टूक-पुस्तक में यह सब है। इसके लिए पुस्तक के सम्पादक धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव और प्रकाशक श्री चन्द्रशेखर स्मृति ट्रस्ट के सदस्य बधाई के पात्र हैं।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर-संसद में दो टूक-पाँच खंडों में है। पुस्तक में सब कुछ कहा गया है, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के उन वक्तव्यों के माध्यम से जो उन्होंने समय-समय और लोकसभा में दिए है। इसमें पाँच वे वक्तव्य भी है जो राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने राज्यसभा में दिए हैं। पुस्तक में संसद की कार्यप्रणाली पर भी दो टूक हैं, तो न्यायपालिका पर भी। रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद, कश्मीर की समस्या के साथ पंजाब, तमिलनाडु, आसाम, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात आदि पर दो टूक के साथ ही इस पुस्तक में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर उदारीकरण और निजीकरण से कदम-कदम और जूझते नजर आते हैं। इसे पढ़कर लगेगा कि उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण रखा जा सकता है, नए भारत का निर्माण किया जा सकता है।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर कहते हैं कि इस देश के बेबस निरीह लोगों को महात्मा गांधी ने हौसला दिया था, आत्म विश्वास दिया था, इच्छा शक्ति दी थी। आज सबसे बड़ा राजनीतिक अपराध हो रहा है कि हम इच्छा शक्ति को तोड़ रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर-संसद में दो टूक पुस्तक इस देश के बेबस और निरीह लोगों को गैर बराबरी, उदारीकरण और सम्प्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष की नई इच्छा शक्ति प्रदान करेगी।

यशवंत सिंह
सदस्य विधान परिषद,
उत्तर प्रदेश।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।