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राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर एक नज़र में

image1राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर गरीबों , किसानों , भूमिहीनों तथा कामकाज वर्गों के हितों और उनके विकास के लिए जीवन पर्यंत करते रहे| मानते थे कि समाजवादी रास्ते पर चलकर ही देश की एकता और अखंडता अक्षुण रखी जा सकती है| राजनीति में उनकी रूचि छात्र जीवन से ही पैदा हो गयी थी| उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव के सुझाव और उनके प्रभाव से ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया| उनका संसदीय जीवन राज्यसभा से शुरू हुआ , जहां वह तीन बार संसद सदस्य बने| संसद के नियमों और प्रक्रिया में पूर्ण रूचि रखने और सदन की गरिमा और अनुशासन बनाये रखने के लिए उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरुस्कार से सम्मानित किया गया| सभी दलों ने संसद के उनके सद्व्यवहार , विभिन्न विषयों पर उनकी पकड़ तथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण की सराहना की |

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का राजनैतिक जीवन काफी लंबा था। वह वर्ष 1990 में भारत के प्रधानमंत्री बने। देश के प्रधानमंत्री, एक कद्दावर नेता और एक सच्चे देशभक्त के रूप में उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ी, यद्यपि वह इस पद पर कुछ ही समय रहे। लेकिन जब तक रहे, शान से रहे, स्वभिमान से रहे और देश के प्रति समर्पित रहे। चन्द्रशेखर ने संसद में विभिन्न विषयों पर संसदीय पद्धति और प्रक्रियाओं में निहित विभिन्न उपायों के साथ-साथ अपने स्वयं के लेखों के माध्यम से भी अपने विचार व्यक्त किए।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गांव में हुआ था। उनके पिता सदानंद सिंह कृषक थे। उनकी माता का नाम श्रीमती द्रौपदी देवी था। उनके परिवार ने उन्हें सदैव कठिन परिश्रम करने और पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 1945 में आजमगढ़ में जीवन राम हाई स्कूल से मेट्रिक पास राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर एक नज़र में की। तत्पश्चात्, उन्होंने बलिया में सतीश चन्द्र डिग्री काॅलेज में प्रवेश लिया और 1949 में बी0ए0 पास की। पढ़ाई के दौरान ही 10 जून, 1944 को उनका विवाह द्विजा देवी से हो गया। बाद में, उन्होंने 1951 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एम0ए0 किया।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर छात्र जीवन से ही राजनीति के प्रति आकर्षित थे। उन्हें क्रांतिकारी विचारों वाले जोशीले नेता के रूप में जाना जाता था। निर्भीक होकरछात्र संघ की स्वायत्तता का समर्थन करने और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस में वृद्धि का विरोध करने के कारण वह युवाओं में लोकप्रिय हो गए। वह किसानों, भूमिहीन मजदूरों, सीमांत और दलित वर्गों की समस्याओं के साथ-साथ ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था की जटिलताओं से भी भली-भांति परिचित थे।

वर्ष 1949 में काॅलेज से निकलने के बाद राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर की रुचि राजनीति में और बढ़ गई। उनके मार्गदर्शक आचार्य नरेन्द्र देव ने उन्हें सक्रिय राजनीति से जुड़ने की सलाह दी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रो0 मुकुट बिहारी लाल के अधीन पीएच0डी0 में नामांकन कराया था परंतु इसे बीच में ही छोड़ दिया। वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए और 1951 में बलिया में जिला प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के सचिव चुन लिए गए। बाद में वह 1962 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पदों पर आसीन रहे।

1975 में देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान हुई घटनाओं के कारण राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कांग्रस से नाता तोड़ लिया। आपातकाल के दौरान आंतरिक सुरक्षा अधिनियम, 1975 के अंतर्गत चन्द्रशेखर अन्य कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। पहले उन्हें रोहतक जेल में रखा गया और बाद में चंडीगढ़ जेल भेज दिया गया। उसके बाद उन्हें पटियाला जेल भेज दिया गया। जेल में अपने कारावास के दौरान उन्होंने ‘‘जेल डायरी’’ लिखी जो काफी लोकप्रिय हुई। अपनी गिरफ्तारी और कैद किए जाने पर उन्होंने लिखा-

‘‘इससे मुझे मानसिक शांति मिली। अपने आसपास के घटनाक्रमों से सहमत होना मेरे लिए संभव नहीं था। कोई यह दावा कैसे कर सकता है कि किसी एक व्यक्ति पर देश का भविष्य टिका है। इतनी अधिक चापलूसीऔर ऐसा ओछापन मेरी फितरत नहीं।’’

जेल में अपने प्रवास के दौरान उन्होंने साहित्य से लेकर राजनीति, धर्म, विकास आदि से संबंधित अनेक पुस्तकें पढ़ीं। जेल में बाहर निकलने के बाद 30 दिसम्बर, 1976 को उन्हें नई दिल्ली लाकर नजरबंद कर दिया गया। तदुपरांत, 1977 में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जनता पार्टी में सम्मिलित हो गए और पार्टी के अध्यक्ष बन गए। उसी वर्ष वह छठी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद वह लगातार पार्टी अध्यक्ष के लिए निर्वाचित होते रहे और 1988 तक इस पद पर बने रहे।

जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 6 जनवरी, 1983 से 25 जून, 1983 तक कन्याकुमारी, तमिलनाडु से नई दिल्ली में राजघाट तक 4260 किमी0 की दूरी पद यात्रा करके तय की जिसे बाद में भारत यात्रा के नाम से जाना गया। भारत यात्रा जैसे दुष्कर कार्य करने का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को उजागर करना और विद्यमान सामाजिक असमानताओं और विसंगतियों को दूर करना था। इस अभियान से वह जनता के बीच लोकप्रिय हो गए। इस यात्रा के दौरान चन्द्रशेखर ने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित भारत के विभिन्न भागों में लगभग 15 भारत यात्रा केन्द्रों की स्थापना की।

इस महत्वपूर्ण भारत यात्रा पर राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने टिप्पणी की:

‘‘25 जून, 1983 को दिल्ली पहुंचने तक लगभग छह महीने यह अखंड यात्रा थी ।लोगों के स्वयं शामिल होने के कारण इस यात्रा को अद्भुत सफलता मिली। पहली बार, लोगों को लगा कि कोई तो ऐसा है जो उनकी समस्याओं को समझने के लिए उनके घरों तक आने के लिए तैयार है। जब हमने यात्रा प्रारंभ की तो वह संदेहपूर्ण था कि लोग भारत यात्रा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया करेंगे या इसे एक राजनीतिक नाटक के रूप में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर एक नज़र में लेंगे। परंतु, पूरी यात्रा के दौरान, ग्रामीण लोग, जो निरश्वर थे, अशिक्षित थे, असहाय थे, आने वाले स्वयंसेवकों का स्वागत करने के लिए भारी संख्या में कतार में खड़े थें लगभग सभी गांवों में, जहाँ तक कि गरीब लोग भी याथासंभव अच्छे से अच्छे तरीके से स्वागत की व्यवस्था करते थे। भाषा की कठिनाई तो अवश्य रही होगी परंतु दिल की भाषा, जो अधिक शक्तिशाली थी, भावनाओं की अभिव्यक्ति में सहायक रही। हम स्वयं यह बात समझ गए कि यदि हम उनके पास जाते हैं तो लोग सहयोग करने को इच्छुक रहते हैं। इस संबंध में, महात्मा गांधी ने लोगों की नब्ज को पहचाना था। यह अपने-आप में एक साहसिक कार्य था और यह स्वयं की शिक्षा में साहसिक कार्य था।’’

अपनी लंबी और दुष्कर भारतयात्रा के दौरान, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई से रूबरू हुए। ग्रामीण भारत के बच्चों की दुर्दशा का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। अपनी चिंता व्यक्त करते हुए चन्द्रशेखर ने कहा-

‘‘भारत के हर जगह के बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिल पाता। यहाँ तक कि उन्हंे जीवित रहने का भी अवसर नहीं मिल पाता। पैदा होने वाले हर बच्चे को जीवित रहने का अधिकार है। उनके स्वस्थ शारीरिक विकास हेतु हमें उन्हें स्वच्छ पेयजल, आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करना चाहिए और आज के आधुनिक विश्व में उन्हें प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए। सदियों तक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग उपेक्षित महसूस करते रहे हैं। इस भेदभाव को दूर करने के लिए, हमें पूरी सामाजिक संरचना को अवश्य बदलना चाहिए। महिलाओं को पर्दा प्रथा से बाहर निकालने के प्रयत्न के बावजूद, उन्हें समाज में उनका उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है। वे अभी भी असुरक्षित महसूस करती हैं। हमारे संविधान में इसके लागू होने के 15 वर्षों के भीतर निरक्षरता का उन्मूलन करने का वायदा किया गया था। परंतु, आज भी 60 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति निरक्षर हें।’’

यात्रा को लेकर राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा, कि ग्रामीण लोग उत्तर प्रदेश या केरल में रहते हैं या कि राजस्थान या असम में, पर उनकी समस्याएं समान थीं और वे समान रूप से उपेक्षित थे। उन्होंने महसूस किया कि क्षेत्रवाद की तमाम बातों के बावजूद, एकता का धागा मजबूत है। सभी जगह लोग एक जैसे ही हैं। यह यात्रा 25 जून, 1983 को नई दिल्ली में समाप्त हुई। भारत यात्रा के अंत में, चन्द्रशेखर ने पांच बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करने का निर्णय लिया जो गांवों में रहने वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए तत्काल प्रासंगिक थे। इन मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के अमूर्त रूप में स्वराज को प्रासंगिक बनाना ही नहीं बल्कि उनके दैनिक जीवन में परिवर्तन लाना और दिलों की एकता उत्पन्न करना भी है।

ये पांच बिंदु हैं-

  1. हर गांव के लिए पेयजल;
  2. बच्चों और भावी माताओं हेतु स्वास्थ्य सुविधाएं और उनमें कुपोषण रोकने के उपाय;
  3. सभी के लिए शिक्षा;
  4. आदिवासियों और हरिजनों की समस्याएं, और
  5. साम्प्रदायिक सद्भाव।

भारत यात्रा केन्द्रों के महत्व के बारे में बताते हुए, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा-

‘‘हमने अभी शुरुआत की है और यह शुरुआत जरूरी नहीं कि रोमांचक हो। इस पर मीडिया की नजर नहीं पड़ती है। परंतु, इस पर गांव के लोगों की नजर अवश्य पड़ती है। यह एक ऐसा प्रयास है जिसमें काफी धैर्य और समय की जरूरत पड़ती है। इसका तात्कालिक परिणाम नहीं देखा जा सकता। परंतु लम्बे समय में, यह हमारे लोगों का स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करने और एक नई सामाजिक व्यवस्था हेतु एक शक्तिशाली आंदोलन शुरू करने के लिए प्रयास का एक तरीका है।’’

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सन् 1962 से 1977 तक तीन कार्यकालों के लिए राज्यसभा के सदस्य थे और उसके बाद सन् 1977 में पहली बार छठी लोकसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। इसके पश्चात्, वह सातवीं लोकसभा के सदस्य बने और उसके बाद नौवीं से चैदहवीं लोकसभा तक सदस्य बने रहे। एक सांसद के रूप में चन्द्रशेखर ने दलितों के हितों का सदैव समर्थन किया और त्वरित सामाजिक परिवर्तन हेतु नीतियां बनाने का आग्रह किया। उनके मस्तिष्क में राष्ट्रीय मुद्दों की सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रही और राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर एक नज़र में उन्होंने सदैव इस पर ध्यान आकृष्ट किया।

एक सांसद के रूप में, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का भ्रष्टाचार के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण था। राज्यसभा में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने केन्द्रीय उत्पाद शुल्कों की अपवंचना, भिवानी के प्रौद्योगिकी वस्त्र संस्थान द्वारा कपड़ो के नियंत्रित किस्मों के बारे में गलत घोषणा, वस्त्र के प्रकार और इनके मूल्य के बारे में गलत बयानी जैसी अनियमितताओं के प्रति ध्यान आकर्षित करते हुए प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को एक ज्ञापन भेजा था। उन्होंने ऐस्बेस्टस सीमेंट प्रोडक्ट्स, हैदराबाद ओरिएंट पेपर मिल और सेन्चुरी केमिकल्स के लेनदेन में अनियमितताओं के बारे में बताया। उन्होंने हिन्दुस्तान मोटर्स में हो रही गड़बड़ी के बारे में भ्ी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह भी बताया कि यद्यपि एल्युमिनियम सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित है, तथापि कुछ निजी कंपनियों को सरकार द्वारा लागत मूल्य पर विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति के साथ-साथ संयंत्र स्थापित करने की अनुमति दी गई है।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कुछ भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में कम बीजक बनाने और अधिक बीजक बनाने संबंधी कदाचार का भी उल्लेख किया जिसके परिणामस्वरूप उनके द्वारा गुप्त रूप से विदेशी मुद्रा भंडार एकत्र कर लिया गया। इन रहस्योद्घाटनों से संसद में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हंगामा हुआ। उनका यह दृढ़ मत था कि व्यवस्थित रूप से कर की चोरी और सार्वजनिक रूप से धोखाधड़ी करके खड़े किए गए औद्योगिक साम्राज्यों को बने रहने का कोई अधिकार नहीं है, उनकी मौजूदगी का औचित्य नहीं है और इस संबंध में जाँच आयोग का गठन किए जाने की मांग की। एक सांसद के रूप में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के उल्लेखनीय योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें 12 दिसम्बर, 1995 को संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ0 शंकर दयाल शर्मा द्वारा उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार प्रदान किया।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर समाजवाद के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ के प्रवेश के संबंध में 23 अगस्त, 1968 को राज्यसभा में चर्चा के दौरान इस संबंध में स्पष्ट रूप से अपने विचारों को व्यक्त किया, उन्होंने कहा-

‘‘मैंने, दया, सहिष्णुता, शांति और प्रेम के उच्च आदर्शों की गौरवशाली परंपराओं और कार्ल याक्र्स, लेनिन और रोसा लग्जमबर्ग जैसे महान विचारकों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक सिद्धांतांे का पालन करने वाली हमारी मातृभूमि में गांधी-नेहरू युग में जन्म लिया। आज यहाँ बोलते हुए उन महान व्यक्तियों का स्मरण हो रहा है जिन्होंने मुझे राजनीति में आने और समाज सेवा करने की प्रेरणा दी।’’

एक समाजवादी नेता के रूप में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर तेजी से बढ़ते एकाधिकार, बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा संपत्ति जमा किए जाने, काले धन में वृद्धि, भ्रष्टाचार के विस्तार, वित्तीय संस्थानांे द्वारा निधियों के अपव्यय, आय के छिपाने और अन्य आर्थिक अपराधों को लेकर चिंतित थे। उन्हें ऐसे प्रश्न उठाने में कोई हिचक नहीं होती थी भले ही उनमें कोई भी व्यक्ति संलिप्त हो। उन्होंने इस संबंध में पूरी जांच की मांग की। वह पूरे साक्ष्य होने पर ही आरोप लगाते थे। वह बैंकों के राष्ट्रीयकरण के भी पक्ष में थे। मुद्दे पर वाद-विवाद में भाग लेते हुए उन्होंने कहा ‘‘यह देश केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का ही नहीं है बल्कि, यह देश यहाँ रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का है।’’

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने चीनी मिलों, चाय बागानों, कपड़ा मिलों और पटसन उद्योग के राष्ट्रीयकरण का भी समर्थन किया। परंतु, ऐसा करते समय उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों में नौकरशाही को बढ़ावा देने का कभी समर्थन नहीं किया। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि देश में सार्वजनिक उपक्रमों की सफलता में ही आम जनता का कल्याण निहित है। उन्हें सार्वजनिक उपक्रमों में कुप्रबंधन को देखकर दुःख होता था और वह सार्वजनिक उपक्रमों तथा राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका के संबंध में किसी भी आलोचना का सदा विरोध करते थे। उन्होंने संसद में सार्वजनिक उपक्रमों के कुशल प्रशासन के समर्थन में सदैव अपनी आवाज उठाई ताकि हर पैसे का उचित रूप से खर्च हो। सार्वजनिक उपक्रमों के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहा था-

‘‘भारत में ऐसी कोई औद्योगिक नीति नहीं हो सकती जिसमें देश के सुनियोजित विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका का उल्लेख न हो। सुनियोजित विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को समझे बिना उसकी आलोचना करना एक फैशन बन गया है। यह सत्य है कि भारत में सरकार क्षेत्र के उपक्रमों के समक्ष अनेक समस्याएं हैं। निजीकरण की वकालत करके और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आमंत्रित करके इसके कार्य क्षेत्र को सीमित बनाने का प्रयास करने की बजाय सार्वजनिक उपक्रम के निष्पादन में सुधार लाने और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को मजबूत बनाने की मंशा से कार्य करने की आवश्यकता है। इसके गंभीर आर्थिक प्रभाव होंगे।’’

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर निजी क्षेत्र के विरुद्ध नहीं थे परंतु, वह संपत्ति के हाथों में केन्द्रित हो जाने के घोर आलोचक थे। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का यह कहना था कि विश्व के सभी देश जिन्होंने आर्थिक उदारीकरण स्वीकार किया तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अपने द्वार खोले थे, वे कुछ ही दिनों में कर्ज के जाल में फंस गए, उनकी राजनैतिक व्यवस्था अस्थिर हो गई तथा उनका अंत या तो सैन्य तानाशाही के रूप में हुआ या उनकी पहचान ही समाप्त हो गई। अतः उनका यह कहना था कि भारत को अपनी नीति विकसित करनी होगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियां और बड़े निजी निगम केवल विदेशी मुद्रा की समस्या को और गंभीर बनाएंगे।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने यह भी कहा था कि निजी क्षेत्र उद्योग मालिकों को तुरंत लाभ पहुँचाते हैं और वे लाभ अर्जित करने के लिए अनेक तरह के कदाचारों में भी लिप्त रहते हैं। वे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से कच्चा माल प्राप्त करते हैं तथा कच्चे माल के मूल्यों में वृद्धि होने पर हाय-तौबा मचाते हैं परंतु, वे जिन उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण करते हैं उनका मूल्य एक मामूली से बहाने पर बढ़ाने में जरा भी संकोच नहीं करते। मूल्य निर्धारण समिति उद्योगपतियों के हित में कार्य करती है और उनकी मुख्य समर्थक भी है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र द्वारा की जाने वाली बर्बादी, उनकी अक्षमता और मनमानी की जांच करने के लिए कोई मशीनरी नहीं है। निजी क्षेत्र द्वारा अपने उत्पादों का मूल्य बढ़ाने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति की जांच करने के लिए कोई मशीनरी नहीं है।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर को भारतीय समाज में व्याप्त अशिक्षा और अज्ञानता, निर्धनता, कुपोषण और समृद्ध तथा निर्धन लोगों के बीच बढ़ते अंतर जैसे मुद्दों की काफी जानकारी थी। सुअवसर पर उन्होंने कहा-

‘‘भारतीय समाज एक अनोखा समाज है। यह एक ऐसा लोकतंत्र है जिसकी लगभग आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे या हाशिए पर जीवन यापन कर रही है। लगभग दो-तिहाई भारतीय अशिक्षित हैं। भारत की एक चैथाई से अधिक जनसंख्या भूमिहीन श्रमिकों की है; भारत की जनसंख्या में साठ प्रतिशत लोग अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के हें। शहरी और ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर में अंतर बढ़ता जा रहा है। कृषि क्षेत्र की औसत प्रति व्यक्ति आय में कमी आ रही है। बेरोजगार लोगों की संख्या लगभग बत्तीस मिलियन है और इतने अधिक निष्क्रिय लोगों की संख्या न केवल बढ़ रही है अपितु देशकी सामाजिक और राजनीतिक अखंडता के लिए एक चुनौती भी बनकर उभर रही है।’’

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर तत्कालीन सरकार द्वारा अपनाई जा रही आर्थिक नीतियों के घोर आलोचक थे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्र की आर्थिक नीतियां भारत की सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए। 12 अप्रैल, 1972 को राज्यसभा में चैथी पंचवर्षीय योजना के मध्यावधि मूल्यांकन संबंधी प्रस्ताव में भाग लेते हुए उन्होंने कहा-

‘‘...सभी प्रसंशसनीय आदर्श हैं, सभी अच्छे इरादे हैं और अच्छी भावनाएं व्यक्त की गई हैं। लेकिन इन भावनाओं के बाद भी हमें हमारा लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है। हम सोच सकते हैं कि हमने एकाधिकार खत्म किए बिना और आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण किए बिना गरीबी को दूर कर दिया है। यह एक हास्यास्पद संतुलन है क्योंकि गरीबी मिटाने का अर्थ सारे समाज का पुनर्निर्माण करना है।’’

विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा त्यागपत्र दिए जाने के पश्चात् भारतीय रष्ट्रीय कांग्रेस सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के समर्थन से राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने 10 नवम्बर, 1990 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके पास गृह मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महासागर विकास, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, इलेक्ट्रानिक, अंतरिक्ष, सूचना और प्रसारण, उद्योग, श्रम कल्याण, योजना और कार्यक्रम क्रियान्वयन, विदेश, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, जल संसाधन और भूतल परिवहन जैसे कार्यभार थे।

कांग्रेस द्वारा 6 मार्च, 1991 को समर्थन वापिस ले लिए जाने पर चन्द्रशेखर के नेतृत्व वाला जनता दल (समाजवादी) अल्पमत में आ गया। उन्हें सत्ता के लिए राजनीतिक दलों के साथ जोड़तोड़ करना और समझौता करना पसंद नहीं था। उन्होंने टेलीविजन पर एक राष्ट्रव्यापी संबोधन में अपना त्यागपत्र दिया। लेकिन राष्ट्रपति ने उन्हें दसवीं लोकसभा के चुनाव खत्म होने और अगली सरकार के गठन होने तक पद पर बने रहने को कहा। जब पी0वी0 नरसिंह राव को देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई तो उन्होंने 21 जून, 1991 को प्रधानमंत्री का पद त्याग दिया। तथापि वह 1991 में उत्तरप्रदेश के बलिया निर्वाचन क्षेत्र से दसवीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।

प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने 21 नवम्बर, 1990 को मालदीव की राजधानी माले में आयोजित सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने उप महाद्वीप में शांति हेतु अनुरोध किया। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के पांचवें शिखर सम्मेलन में आए नेताओं से राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने कहा कि सदस्य देशों को शुभकामनाओं का आदान-प्रदान बंद करना चाहिए और क्षेत्र के लोगों को उद्धेलित कर रही समस्याओं पर चर्चा करनी चाहिए। व्यापार घाटों, बढ़ते आंतरिक ऋणों और इसकी सर्विसिंग सहित सार्क देशों के समक्ष उपस्थिति अनेक कठिनाइयों को गिनाते हुए चन्द्रशेखर ने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्र के देशों के बीच इस तरह समन्वय स्थापित किया जाए कि इससे सभी संबंधित देशों के सारे हित अच्छी तरह से पूरे हो सके।

क्षेत्र की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के एक कदम के रूप में उन्होंने क्षेत्रीय परियोजनाओं के लिए आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराने और छोटे स्तर की परियोजनाओं को शुरू करने हेतु भी निवेश उपलब्ध कराने के लिए एक कोष स्थापित करने का सुझाव दिया था। इसे मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने अनुरोध किया कि देशों के राष्ट्रीय विकास बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधकों को मिलना चाहिए और संस्थागत वित्तपोषण उपलब्ध कराने पर विचार करना चाहिए।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर चीन द्वारा तिब्बत के कब्जे के विरुद्ध थे और उन्होंने इसका मुखर विरोध किया। उनका मानना था कि इस कब्जे से भारत के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। उन्होंने नेपाल के राजनीतिक विकास में गहरी रुचि थी। उन्होंने हमेशा नेपाल में एक लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन किया जिसके लिए कई अवसरों पर उन्होंने नेपाली कांग्रेस के नेताओं को समुचित स्थान प्रदान करने के लिए राजा महेन्द्र के साथ बात की।

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर भी बहुत बल दिया तथा कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अधिकतम उपयोग के माध्यम से देश के लोगों की असंख्य समस्याओं का सफलतापूर्वक समाधान किया जा सकता है। इस संदर्भ में, अपनी सरकार की प्राथमिकता के बारे में मीडिया को एक उत्तर में चन्द्रशेखर ने स्पष्ट रूप से कहा: ‘‘मेरी प्राथमिकता सूची में विज्ञान सबसे पहले आता है क्योंकि देश का भविष्य इस पर निर्भर है.......यदि आप किसी युवा महिला वैज्ञानिक को प्रोत्साहित करते हैं, तो आप इस देश की महिलाओं को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण देते हैं। हमारा भविष्य भारत की महिलाओं पर निर्भर है।’’

एक लोकप्रिय राजनेता होने के अलावा राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर लेखन में भी रुचि रखते थे। उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका यंग इंडियन की स्थापना की। वह इसके संपादक थे। आपातकाल के दौरान कुछ समय के लिए इसका प्रकाशन बंद हो गया था परन्तु इसके बाद उसको फिर से प्रकाशित किया गया। आपातकाल में जेल में अपने प्रवास के दौरान उन्होंने अपने विचारों को लेखनीबद्ध किया जो ‘मेरी जेल डायरी’ (हिन्दी में) के रूप में प्रकाशित हुई।

लंबे समय तक कैंसर के साथ संघर्ष करने के पश्चात् 80 वर्ष की आयु में 8 जुलाई, 2007 को नई दिल्ली में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का निधन हो गया। एक जन नेता और लोकप्रिय राजनेता के रूप में उनका राजनीतिक कैरियर कई पीढ़ियों के साथ जुड़ा रहा उन्होंने देशवासियों के हितों के लिए अपने विचारों और सरोकारों की एक छाप छोड़ी। उनके निधन पर मीडिया, आम जनता और पूरे देश ने दुःख व्यक्त किया। उनके अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रीगण, विभिन्न दलों के नेताओं के साथ हजारों की संख्या में उनके चाहने वाले उपस्थित रहें।

लोक सभा, राज्य सभा और राज्य विधान सभाओं में दिवंगत आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने लिखा ‘‘चन्द्रशेखर एक वरिष्ठ सांसद, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी नेता के रूप में अपने सिद्धांतों में दृढ़ निष्ठा रखने के लिए जाने जाते है। राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं को स्मरण रखा जाएगा’’। उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने कहा, ‘‘राष्ट्र ने गरीबों के मसीहा, धर्मनिरपेक्षता की प्रतिमूर्ति और लोकतांत्रिक मूल्यों तथा परंपराओं के एक निर्भीक प्रहरी को खो दिया है’’। प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल में चन्द्रशेखर ने राजनीतिक कौशल और बुद्धिमानी के साथ राष्ट्र और अर्थव्यवस्था को संकट के समय में दिशा प्रदान की’’। पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता, श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘युवा तुर्क’ के निधन से भारतीय राजनीति में संघर्ष का एक युग समाप्त हो गया है और सार्वजनिक जीवन में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर एक नज़र में शून्य पैदा हो गया है’’।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने एक शोक संकल्प में चन्द्रशेखर को एक ऐसा प्रसिद्ध राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और एक कुशल प्रशासक बताया जिसने राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक पहलू पर अपनी छाप छोड़ी। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी थे। वह अपने दृढ़निश्चय, साहस और सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। अपने पूरे जीवन में, उन्होंने स्वयं को वंचितों के हितों के लिए समर्पित कर दिया और त्वरित सामाजिक परिवर्तन हेतु लगातार कार्य किया। उनके निधन से राष्ट्र ने एक प्रसिद्ध पुत्र, एक बुद्धिमान राष्ट्रीय नेता और एक राजनीतिज्ञ खो दिया।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।