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पर्सनल ला, सिविल ला और सम्पत्ति का अधिकार कानून हिन्दू-मुसलमान सभी के लिए हो एक जैसा

विनियोग (संख्यांक-2) विधेयक 1964 पर वाद विवाद में 23 अप्रैल 1964 को राज्यसभा में चन्द्रशेखर

उपसभापति महोदय, इस विधेयक पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले, मैं आपका और इस सभा का ध्यान एक प्रश्न की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। अभी-अभी हमारे माननीय मित्र श्री चैरडिया जी बोल रहे थे। उन्होंने वित्तमंत्री के किसी वक्तव्य का उल्लेख किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें पैसा दिया जाए तो वह अच्छी राजनीति दे सकते हैं। माननीय चैरडिया ने यह कहा कि सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। इससे धनराशि प्राप्त होगी। परिणामस्वरूप अच्छी राजनीति दिखाई देगी। माननीय चैरडिया जी ने यह भी कहा कि जो लोग व्यवसाय और उद्योगों में हैं, उन्हें पे्ररणा प्राप्त करनी चाहिए।

मैं यह कहना चाहता हूँ कि किसी देश का निर्माण करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीज स्पष्ट दृष्टिकोण, दृढ़ विश्वास और दृढ़ निश्चय है। किसी देश अथवा समाज का निर्माण एक पेड़ की तरह होता है, चाहे वह देश का कोई कलाकार, कवि अथवा वास्तुकार हो। उसकी जड़ें गहरी पैठी होती हैं और वह समाज से शक्ति प्राप्त करता है। एक तरफ उसे गहरी जमीन से ऊर्जा मिलती है और दूसरी तरफ उसकी पत्तियाँ हवा से ऊर्जा प्राप्त करती हैं। यही बात देश के वास्तुकार के साथ है। उसे जमीन से जुड़ा हुआ होना चाहिए और उसे गरीबों में विश्वास होना चाहिए तथा साथ ही उसे उच्च आदर्शों में दृढ़ विश्वास होना चाहिए। मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इस सरकार को उच्च आदर्शों में कोई विश्वास नहीं है और न तो इसका गरीबों से कोई सरोकार है तथा न इसकी उनके साथ काम करने अथवा उन्हें प्रेरित करने की कोई इच्छाहै। इससे पहले एक सदस्य ने गांवों, गरीबों और पिछड़ों को प्रगति के पथ पर ले जाने के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है और यह मुद्दा सभा में बहुत बार उठाया गया है। मजदूरों और गरीबों को उपेक्षा की गई है। सरकार की घरेलू नीति के पीछे का विचार इसकी विदेश नीति में भी दिखाई देता है। महोदय, सर्वप्रथम, मैं देश की विदेश नीति की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा। जब श्री कृष्ण मेनन संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि थे तो हमारे मस्तिष्क में क्या था? श्री कृष्ण मेनन ऐन्ड्री विसिंस्की के साथ चाय लिया करते थे और इसमें अपना सम्मान समझते थे और उन्होंने विश्व के समक्ष भारत की इस छवि को रखा तथा छोटे देशों को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। मैं माननीय श्री छागला को इस बात के लिए बधाई देना चाहूँगा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, अफ्रीकी देशों से संबंध स्थापित किया और संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन, अमरीका और रूस की परिधि से बाहर निकलकर एशिया के छोटे देशों के साथ भाईचारा बढ़ाया। यू.एन. में भारत के प्रतिनिधि के रूप में, इससे भारत के बाहर और साथ ही विश्व में भारत की नई छवि बनी।

परन्तु, हमें अफ्रीका की स्थिति को अपने मस्तिष्क में रखना चाहिए। यह प्रश्न समाचारपत्रों और विदेशी मामलों से संबंधित पत्रिकाओं में कई बार उठाया जा चुका है। उसमें इस बात का उल्लेख हुआ है कि चीन के प्रति भारत का मामला अफ्रीकी देशों के समक्ष समुचित रूप से नहीं रखा जा सका। मैं एक वर्ष पूर्व का प्रतिवेदन देख रहा था कि चीन ने 50ः अफ्रीकी देशों के समक्ष समुचित ढंग से अपनी बात रखी, परन्तु श्री जवाहर लाल की सरकार अफ्रीकी देशों के समक्ष अपने आरोपों और दावों को नहीं रख सकी। आज, प्रश्नकाल के दौरान, माननीय श्री चैरडिया, ने पूछा कि पिछले छह महीने से म्यांमार में भारत का कोई राजदूत क्यों नहीं है? मुझे यह सुनकर कष्ट हुआ कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने उत्साहित होकर कहा कि उनकी सरकार का कार्य करने का ढंग यही है। यदि इस सरकार के कार्य करने का यही ढंग है तो अत्यंत चिंता का विषय है।

क्या भारत में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसे बर्मा (म्यांमार) के लिए भेजा जा सके। परन्तु बात यह है कि हमारे विदेशी देशों में कार्यरत राजदूत देखते हैं कि कहां समृद्धि और आराम है? उनके अंदर सेवा की कोई भावना नहीं है। लोग अमरीका, रूस और यूरोप जाने के लिए तैयार हैं। वहां जाने केलिए उनके बीच प्रतिस्पद्र्धा होती है। एक आम दूत के रूप में वे विश्व की सैर करने के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं, परन्तु बर्मा, नेपाल, सिलोन और अफ्रीकी देशों में जाने को इच्छुक नहीं हैं। हमारी मानसिकता का इससे बुरा और कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। मैं सरकार से इस पहलू पर विचार करने के लिए निवेदन करता हूँ। मैं एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा।

मुझे पता नहीं है कि यह सरकार माननीय इंदिरा गांधी को विश्व के समक्ष क्यों रखना चाहती है? परन्तु, मुझे इस बात की चिंता है कि माननीय इंदिरा गांधी देश के बाहर जाती हैं और कहती हैं कि उन्हें दो बार विदेश मंत्री का पद दिया गया था परन्तु उन्होंने मना कर दिया था। मैं समझ नहीं पाया कि इससे देश के सम्मान में कैसे वृद्धि होती है? मुझे पता नहीं कि किन व्यक्तियों ने इस पद का प्रस्ताव उन्हें प्रदान किया था? यदि इस प्रकार का प्रस्ताव किया गया था तो एक सभ्य और सम्मानित देश और इसके प्रतिनिधि को दूसरे देश में ऐसा कहना शोभा नहीं देता है। कम से कम एक उत्तरदायी व्यक्ति ऐसा नहीं कह सकता। विदेश मंत्री का पद एक चपरासी या एक अधिकारी का पद नहीं है, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा कम वेतन के कारण मना कर दिया जाए। विदेश मंत्री एक देश के सम्मान का प्रतीक होता है। चाहे कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, चाहे वह माननीय इंदिरा गांधी हों या टी.टी. कृष्णामचारी या स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू ही क्यों न हों, दूसरे देश में उसे यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि उसे विदेश मंत्री के पद का दो बार प्रस्ताव प्रदान किया गया था परन्तु दोनों बार उसने अस्वीकार कर दिया।

दूसरी बात, जो मैं आपको बताना चाहूँगा कि दिल्ली में एक घटना घटित हुई। इज़राइल का राष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए, इज़राइल के काउंसलर ने अशोका होटल में एक पार्टी दी। राजदूत और अन्य लोग उसमें शामिल हुए, परन्तु अचानक यह कहा गया कि भारत सरकार के अनुरोध पर यह पार्टी रद्द कर दी गई।

एक अन्य बात, तो मैं आपके समक्ष रखना चाहता हूँ कि मैं भी अरब देशों के साथ मित्रता करने का इच्छुक हूँ। परन्तु, क्या श्री नासिर साहब या अरब देशों के लोगों ने पूछा था कि जब काहिरा ने चाउ-एन-लाई का भव्य स्वागत किया था तो एक भारतीय के साथ क्या हुआ होगा? श्री चाउ-एन-लाई का काहिरा में स्वागत हो सकता है, परन्तु भारतीय लोकतंत्र में विदेशी राष्ट्र काएक राजदूत/प्रतिनिधि एक होटल में पार्टी नहीं दे सकता है। एक परेशानी पैदा करने का प्रयास करना किसी देश के सम्मान के विरुद्ध है। मैं अरब देशों का विरोधी नहीं हूँ। मैं भारत सरकार से कहना चाहूँगा कि एक अधिक समझदारीपूर्ण और सम्मानित रुख अपनाया जाना चाहिए।

मैं आपके समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा का पहलू रखना चाहता हूँ। हमारे कई दोस्तों ने इसका उल्लेख किया है। आज प्रश्नकाल के दौरान यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या हमारे पास अपेक्षित संख्या में सैनिक हैं अथवा नहीं। यह बताया गया कि हमें काफी सफलता मिली है। किन्तु मैं चाहूँगा कि कोई माननीय सदस्य इस बात पर प्रकाश डाले कि क्या किसी राष्ट्र द्वारा अपने हवाई क्षेत्र का इतनी अधिक बार उल्लंघन किया गया है, जैसा कि भारत के द्वारा किया गया है।

दूसरी बात मैं यह जानना चाहूँगा कि क्या विश्व में ऐसा कोई उदाहरण है, जो यह दर्शाए कि इतनी बड़ी संख्या में सेना अधिकारी युद्ध और दुश्मन के हमले से इतर हवाई दुर्घटना में मारे गए हैं। आपातकाल के बाद भारत सरकार द्वारा यह दो काम किए गए हैं। ठीक हैं, यदि आप केवल भगवान को ही दोषी ठहराना चाहते हैं। किन्तु कइ्र बार हवाई दुर्घटनाएं होती हैं और सेना के उच्च रैंक के अधिकारियों की मृत्यु हो जाती है। मैं जानना चाहता हूँ कि इसकी जांच क्यों नहीं की गई क्योंकि सभी दुर्घटनाएं आपातकाल के बाद घटी हैं। ऐसा लगता है कि इसके पीछे कुछ तो अस्वाभाविक है और इस संबंध में विवेकपूर्ण कदम उठाना चाहिए।

मैं एक और मुद्दे का उल्लेख करना चाहूँगा। जब मैंने सभा में रक्षा मंत्री से पूछा कि क्या कुछ लोगों को राजनैतिक कारणों से आपात आयोग में नहीं लिया गया। जवाब यह था कि ऐसा नहीं है। उस समय मैंने दो लोगों के नामों का उल्लेख किया था और कहा था कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से दो लोगों को आपात आयोग में बुलाया गया था, किन्तु यह कहा गया कि उन्हें सुरक्षा कारणों से नहीं रखा जा सकता है। इस पर माननीय रक्षा मंत्री ने कहा कि एक व्यक्ति को बुलाया गया था और दूसरे को नहीं बुलाया जा सकता। आपके माध्यम से, मैं माननीय मंत्री से पूछना चाहूँगा कि वही व्यक्ति देहरादून अकादमी गया था। उन्होंने वहां छह माह का प्रशिक्षण लिया था, किन्तु आदेश प्राप्त करने से पन्द्रह दिन पहले, उसे यह जानकारी दी गई कि उसे सुरक्षाकारणों से आदेश जारी नहीं किए जा सकते और व्यक्ति को हटा दिया गया था। मुझे समझ नहीं आया कि जब आप सम्पूर्ण राष्ट्र से अन्य लोगों से सहयोग मांगते हैं, तो यह संकीर्ण राजनीति आपको कहां ले जाएगा।

मैं साम्प्रदायिक समस्याओं पर एक अन्य प्रश्न उठाना चाहता हूँ। आज ऐसी बातें कही जाती हैं कि पाकिस्तान में लड़ाई छिड़ गई थी और उसी के कारण भारत प्रभावित हुआ। मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि इसका प्रभाव हो सकता है। किन्तु यहां सरकार की नीति में कोई कमी है। मैं यथा सम्मान इस सभा में कहना चाहूँगा कि जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सभा में हिन्दू संहिता विधेयक को पुरःस्थापित किया था तो उनके दिमाग में स्पष्ट होना चाहिए था कि मुस्लिम पर्सनल लाॅ में संशोधन किया जाएगा, किन्तु यह नहीं किया गया था। हिन्दू संहिता विधेयक को पुरःस्थापित किया गया था। इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। किन्तु जब मुस्लिम पर्सनल लाॅ में संशोधन करने की बात आई, तो पंडित जवाहर लाल नेहरू तैयार नहीं थे।

धर्म निरपेक्ष राज्य का क्या अर्थ है? यदि यह कुरान और हदीस के बारे में कहा गया, तो मैं एक माननीय सदस्य से आग्रह करना चाहूँगा कि कुरान भी कहता है कि सरकार और धर्म को कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। यदि धर्म को सरकार से अलग नहीं किया जा सकता तो मैं अपने मित्र से अनुरोध करना चाहूँगा कि जहां तक सिविल (नागरिक) अधिकारों, संपत्ति अधिकारों का प्रश्न है, धर्म निरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि वह धर्म में हस्तक्षेप नहीं करेगा और यदि वह हस्तक्षेप करता है तो वह माननीय चैरडिया जी को हिन्दुओं के पास जाने और यह कहने का अवसर प्रदान करता है कि वह सरकार हिन्दू कानून में संशोधन करती है किन्तु मुस्लिम पर्सनल लाॅ में नहीं करती है। इसके लिए पंडित नेहरू के पास क्या जवाब है। हमारे पास क्या जवाब है।

मेंरी दृष्टि में धर्म-निरपेक्ष राज्य का आर्थ यही है-

‘‘धर्म मनुष्य और भगवान के बीच ऐक्य का तंत्र है। जैसे ही यह सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन के क्षेत्र में प्रवेश करता है, यह खतरनाक बन जाता है और इस पर सावधानीपूर्वक चर्चा करने की आवश्यकता है।’’

मैं कहना चाहूँगा कि आप शोर-शराबा कर सकते हैं किन्तु जब भारत मेकुरान की आयतों को पढ़ा जाएगा, शंकराचार्य के सूत्रों को भी पढ़ा जाएगा। यदि आपके लिए कुरान पवित्र है तोचैरडिया जी और अटल बिहारी बाजपेयी के लिए यह भी पवित्र है कि यदि वे कहें कि संपूर्ण विश्व के आर्य पन्थ में धर्म परिवर्तन करवा दिया जाए। क्या कोई सरकार इसकी अनुमति देती है? मैं आपको यथा सम्मान कहना चाहता हूँ कि सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं है। साम्प्रदायिकता की समस्या को सुलझाने का केवल एक ही तरीका है कि सभी पर्सनल लाॅ, सभी सिविल लाॅ और सम्पत्ति का अधिकार सभी भारतीयों को एक जैसा दिया जाना चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। जब तक हिन्दू-मुसलमान का अन्तर रहेगा, मानसिकता में अन्तर बना रहेगा। कोई भी इसे दूर नहीं कर सकता। इसी सभा में, मैंने एक बार दुःख के साथ यह कहा था। यह कितना अपमानजनक हो सकता है और यह मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से कितनी समस्यापैदा कर सकता है किन्तु मैंने कहा कि माननीय लाल बहादुर शास्त्री हजरत बल में चोरी होने पर कश्मीर जाते हैं और इस संबंध मंे फोटो सारे विश्व में भेज दी जाती है कि हमने चमत्कार कर दिया किन्तु मैं महसूस करता हूँ और आपसे पूछता हूँ कि हजरत बल में इस चोरी के लिए तीन लाख मुसलमान पन्द्रह दिनों तक कश्मीर की गलियों में घूमते रहे और सम्पूर्ण सिविल प्रशासन पंगु हो गया था।

उपसभापति महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ कि इसका परिणाम क्या होगा? मेरी श्री शम्सुद्दीन की सरकार के प्रति कोई सहानुभूति नहीं हे, परन्तु सदन के अंदर और बाहर ऐसा कहा गया और मैं भी तारिक से सिर्फ वही कह रहा था जो वे कह रहे थे। एक प्रगतिशील व्यक्ति होने के नाते आप इस मुद्दे पर सरकार से इस्तीफा देने के लिए कहिए। मुझे मालूम नहीं है कि कल चैरडिया जी क्या कहेंगे? यदि किसी मंदिर से कोई मूर्ति चोरी हो जाती है तो क्याभारत सरकार को इस्तीफा देना होगा? क्या चार मौलवी और हमारे पण्डे, यदि चाहें तो लाखों लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार को उखाड़ कर फेंक देंगे? चार मौलवी और हमारे पंडे सरकार में कह रहे हैं कि एक मंदिर से एक मूर्ति की चोरी हो गई है क्योंकि चैरडिया जी ने अभी कहा कि हजरत बल से चोरी हुए सामान को लाया गया था परन्तु वे भूल गए कि जम्मू में एक मंदिर में दो मूर्तियां चोरी हुई थीं। मुझे इस पर भी दुःख है। मुझे उनके लिए सहानुभूति है परन्तु इस देश के लिए, देश के लोगों के भविष्य के लिए, इस देश के लोगों के लिए जो यहां एक नागरिक के रूप में रह रहे हैं, अधिक सहानुभूति है।

मैं इस संबंध में एक और बात कहना चाहता हूँ कि पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ घटित हो रहा है उससे हम व्यथित हैं और हमें उनके लिए सहानुभूति है। मुझे गुस्सा आता है, मुझे दुःख होता है परन्तु दूसरी ओर मुझे कुछ चीजें समझ में नहीं आ रही हैं। मैं माननीय दह्याभाई पटेल से सिर्फ यह कह रहा था कि जब श्री गोलवलकर, श्री दऽयाभाई पटेल और मेरी पार्टी के नेता श्री एच0वी0 कामथ दिल्ली में एक अल्पसंख्यक सम्मेलन आयोजित करते है तो हमारा इरादा क्या होगा? जब सभी नागरिक जीवन, सभी नागरिक प्रशासन इस तरीके से गतिहीन जो जाएगा, तो इसका क्या अर्थ होगा? इसका केवल यही अर्थ है कि चाहे हम इसे पसंद करें या नहीं, परन्तु यदि हम ऐसा करते है तो हम इससे ऐसी मानसिकता उत्पन्न करेंगे कि मुसलमानों द्वारा जो कुछ भी पूर्वी पाकिस्तान में किया जा रहा है उसका बदला हम यहां लेना चाहेंगे क्योंकि हम वहां पर जाकर ऐसा कुछ नहीं कर सकते।

भारत का एक आम आदमी पाकिस्तान पर हमला नहीं कर सकता है। नेहरू की सरकार इसके विरुद्ध आर्थिक कार्यवाही करने को तैयार नहीं है। जब कोई व्यक्ति गुस्से में है तो वह पूर्वी पाकिस्तान में नहीं जा सकता है और वह ढाका पर हमला नहीं कर सकता बल्कि वह एक मस्जिद को ध्वस्त करेगा। हमें देश में इन घटनाओ के बारे में सोचना है और निर्णय करना है कि हम कहां जा रहे हैं? यहां एक सम्मेलन आयोजित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जो कुछ भी पूर्वी पाकिस्तान में घटित हो, परन्तु अलपसंख्यक लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रत्येक व्यक्ति पर है और उसके लिए हमें सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए था। परन्तु इसके लिए सम्मेलन नहीं हुआ। इस बात का निश्चय करने के लिए सम्मेलन हुआ कि पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए हम जिम्मेदार हैं। क्या अप्रत्यक्ष रूप से आप यह नहीं कह रहे हैं कि यहां के अलपसंख्यकों के लिए पाकिस्तान के लोग जिम्मेदार हैं? चाहे आप पसंद करें या नहीं यही परिणाम होगा।

मैं एक बात कहना चाहूँगा कि जब हम सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कदम रखते हैं तो हम सोचते हैं कि इसका वांछित परिणाम होगा, परन्तु जब एक बार, घटनाओं की शृंखला, शुरू हो जाती है तो यह अपनी गति से चलती रहती है। इसे पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्री गंगाशरणबाबू और श्री दऽयाभाई पटेल नही रोक सकते। एक बार जब इस प्रकार की भावनाका प्रसार होता है कि वहां रहने वाले अल्पसंख्यको पर होने वाले अत्याचारों के लिए हम लोगउत्तरदायी हैं तो इस गुस्से का परिणाम यह होगा कि देश के अल्पसंख्यक तब सुरक्षित नहीं रहेंगे।

मैंने इसके बारे में आज सुबह ही उल्लेख किया था। चूंकि यह बंगाल और बिहार में घटित हुआ, अतः पिछले तीन महीने से मुसलमान तार भेज रहे हैं और चिट्ठियां लिख रहे हैं कि उन्हें संथालों से भय लगता है। हमारे नेता श्री एस0एम0 जोशी ने इससंबंध में सरकार को लिखा था, परन्तु इसका कोई फायदा नहीं हुआ। इसे सामान्य घटना मान लिया गया। इस प्रकार के विवादों को शुरुआत में ही हल कर लेना चाहिए और मेरे दृष्टिकोण से जिन्हें परेशानी हुई है मैं अपने उन मित्रों से कहना चाहता हूँ कि यदि ऐसी चीजें नहीं रुकती हैं तो देश का सामाजिक ढांचा हमेशा के लिए टूट जाएगा?

अंत में, मैं देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के एक उदाहरण का उल्लेख करना चाहूँगा। यह संथानम की भ्रष्टाचार निरोधक समिति का प्रतिवेदन है। इसके पैरा 214 में यह उल्लेख है-

‘‘भ्रष्टाचार केवल तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार करना चाहे और उसमें भ्रष्टाचार करने की क्षमता हो। हमें यह कहते हुए खेद है कि भ्रष्टाचार करने की इच्छा और क्षमता दोनों ही औद्योगिक और वाणिज्यिक वर्गों में अत्यधिक पायी जाती हें। इन वर्गों के लोग युद्ध काल के सट्टेबाजों और तिकड़मबाजों द्वारा फले-फूले हैं। इन लोगों के लिए भ्रष्टाचार न केवल बिना मेहनत किए भारी लाभ सुनिश्ति करने का आसान तरीका है बल्कि उन्हें अपने धंधों को चलाते रहने की स्थिति में बनाए रखने या उनके अपने प्रतिस्पर्धियों में अपनी स्थिति को बनाए रखने का आवश्यक साधन भी है।’’

माननीय बलिराम भगत जी यहां बैठे हैं। उनके राज्य की सरकार एक घोटाले में संलिप्त थी। इतना बड़ा घोटाला शायद भारत में कभी नहीं हुआ। वहां सोन बैराज का काम चल रहा है। 1.50 करोड़ रुपये का ठेका जारी किया गया था। इसके लिए वैश्विक निविदाएं आमंत्रित की गई थी। एक निविदा आस्ट्रेलिया की वायस्ट कम्पनी की थी। एक दूसरी कम्पनी ‘‘जेस्सोप’’ थी जो पहले मुन्द्रा साहब के स्वामित्व में थी और वर्तमान में भारत सरकार के पास है। जेस्सोप ने भी अपनी निविदा प्रस्तुत की थी और भारत सरकार की दो अन्य कम्पनियों ने अपनी निविदाएं प्रस्तुत की थीं। लेकिन इनमें से कोई निविदा स्वीकृत नहीं की गई।

एक वर्ष के पश्चात् वायस्ट से एक पत्र प्राप्त हुआ। माननीय बिरला जी की ‘‘टेक्समैको’’ नाम की एक कम्पनी है और वायस्ट ने यह लिखा कि टेक्समैकों और वे साथ कार्य कर रहे हैं और एक वर्ष के पश्चात् 1.50 करोड़ का ठेका ‘‘टेक्समैको’’ को दिया गया, जबकि सरकारी कम्पनी ‘‘जेस्सोप’’ की शर्तें टेक्समैको से बेहतर थीं। मैंने माननीय के0एल0 राव को लिखा थ कि इस तरह का ठेका दिया जा रहा है और उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में कुछ करेंगे, लेकिन उन्होंने तीन महीनों तक उत्तर नहीं दिया। तब मैंने एक अनुस्मारक पत्र भेजा लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। तब मैंने 15 दिन पश्चात् एक अनुस्मारक भेजा उन्होंने यह कहते हुए उत्तर दिया कि बिहार की सरकार ने अनुबंध कर लिया है और उन्हें केवल उनकी टिप्पणियां भेजने के लिए कहा गया है।

मैं बिहार सरकार द्वारा दिए गए स्पष्टीकरणों और माननीय के0एल0 राव द्वारा दिए गए उत्तर को देखकर आश्चर्यचकित था। टेक्समैको ने इस तरह के दो काम किए हैं- पहला पंजाब में भाखड़ा नांगल और दूसरा उत्तर प्रदेश में रिहन्द बांध के लिए। उत्तर प्रदेश सरकार ‘‘टेक्समैको’’ के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मुकदमा लड़ रही है और पंजाब सरकार ‘‘टेक्समैको’’ के खिलाफ पंजाब उच्च न्यायालय में एक मुकदमा लड़ रही है। दो राज्यों की सरकारों ने इस कम्पनी को ठेका दिया और दोनों ने ही न्यायालय में परिवाद दायर किया है। इसके बावजूद भी, बिहार की सरकार ठेका देती है। मैंने ‘‘जेस्सोप’’ कम्पनी के खिलाफ लिखा था, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। माननीय गुलजारी लाल नंदा ने आचार समिति का गठन किया है।

माननीय के0एल0 राव साहब इस देश में समाजवाद ला रहे हैं। मैं अपने मित्रों और माननीय भगत जी से कहना चाहता हूँ कि यदि भारत सरकार गंभीरतापूर्वक भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहती है तब इस सौदे की जांच होनी चाहिए और यदि इस सौदे की जांच की जाती है तो मुझे विश्वास है कुछ परिणाम निकलेंगे। इस तरीके से 1.50 करोड़ रुपए का ठेका देकर देश को धोखा देना अच्छी बात नहीं है। मैं एक बात कहकर समाप्त करना चाहता हूँ कि हम सभी को खेती और सामुदायिक विकास के मामलों पर विचार करना चाहिए। मेरा कहना है कि माननीय एस0के0 साहब ने लम्बे समय तक सामुदायिक विकास खंड का खेल खेला है। अब जितनी जल्दी यह खेल खत्महो, उतना ही अच्छा है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस विनियोग विधेयक में पहला मद ‘‘सामुदायिक विकास’’ हैं मैंने सरकार और एस0के0 साहब के आदेश से बहुत से खंडों का भ्रमण किया है। एक सामुदायिक विकास खंड के अधिकारियों ने बस कुछ आंकड़े तैयार कर लिए, जिनका तथ्यों और वास्तविकता से कुछ लेना देना नहीं है। सरकार को अपने इरादों पर विचार करना चाहिए।

अंत में, माननीय दह्याभाई शेख अब्दुला के बारे में स्पष्ट नहीं है। यह आश्चर्यजनक है कि मेरा कोई मित्र हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखता है तो इस पर आपत्ति जताते हैं, लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ था जब बक्शी गुलाम मोहम्मद, शेख साहब की रात 12 बजे रिहाई के बाद उनसे मिले और कहा कि उन्हांने उन्हें गिरफ्तार नहीं करवाया और अब पूरे भारत में यह कहा जा रहा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से परामर्श नहीं किया गया और शेख साहब को गिरफ्तार किया गयाथा। ग्यारह वर्ष के बाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने यह कहने की जरूरत महसूस की कि इसे यह नहीं मालूम कि शेख अब्दुल्ला कैसे गिरफ्तार हुए और अब बक्शी साहब कह रहे हैं कि उन्हें भी नहीं पता है।

मैं उन लोगों में से हूँ जिन्होंने कहा था कि शेख अब्दुल्ला को रिहा किया जाना चाहिए। मेरे दिमाग में एक बात स्पष्ट थी कि संविधान से अनुच्छेद 370 को हटाया जाए। कश्मीर हमारे देश का एक हिस्सा है और दुनिया की कोइर् भी ताकत इसे भारत से अलग नहीं कर सकती। मैं माननीय जयप्रकाश नारायण का सम्मान करता हूँ। उन्होंने कहा कि क्या कश्मीर को दबाव की स्थिति में रखना चाहिए? उनका व्यक्तित्व महान था, लेकिन दुनिया में श्री अब्राह्म लिंकन नामक एक और महान व्यक्ति हुआ है। राष्ट्रीय एकता के अर्थ पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि इसकी सुरक्षा के लिए किसी भी नागरिक को युद्ध छेड़ने अथवा बलिदान देने से हिचकना नहीं चाहिए। मैं सरकार से अनुरोध करता हूँ कि जवाहर लाल नेहरू को शेख अब्दुल्ला के पक्ष में अस्थायी लोकप्रियता से प्रभावित नही होना चाहिए और यह नहीं कहना चाहिए कि वह इससे वाकिफ नहीं थे कि उनकी गिरफ्तारी कैसे हुई। यदि कोई गलती हुई है तो इसे स्वीकार किया जाना चहिए।

देश की नीति को इस दृढ़ निश्चय के साथ लागू किया जाना चाहिए कि कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और सदैव रहेगा। इसके अतिरिक्त,कसी भी अन्य मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है। लेकिन यह मुद्दा विवादों से परे है और मुझे भरोसा है कि माननीय तारिक साहब भारत में रहने का प्रयास करेंगे और शेख अब्दुल्ला को समझायेंगे तथा बिना क्रोधित हुए उन्हें हिन्दू और मुस्लिम के मुद्दे पर इससे ऊपर उठकर एक समाजवादी की तरह सोचना चाहिए। उन्हें उस मुद्दे पर एक ऐसे व्यक्ति की तरह सोचना चाहिए, जो रूढ़िवादिता को एक तरफ रखकर एक नये समाज का निर्माण करना चाहता हो। उस समाज के प्रवक्ता के रूप में मैं अपने सभी मित्रों से इन मुद्दों पर विचार रखने का अनुरोध करता हूँ। मुझे विश्वास है कि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।