चार साल हो गया, नहीं आया नयी आर्थिक नीतियों से आने वाला खुशियों का वातावरण
आदरणीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं श्री सोमनाथ चटर्जी द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं का समर्थन करता हूँ। देश एक कठिनाई के दौर से गुजर रहा है और खास कर कमजोर वर्ग इससे सर्वाधिक पीड़ित है। आज सुबह बुनकरों का एक शिष्टमंडल मेरे पास आया। देश के अनेक भागों में बुनकरों ने आत्महत्या कर ली है। समस्या तो यही है कि कमजोर वर्ग बुरी तरह से पीड़ित है।
उपाध्यक्ष महोदय, भारत सरकार ने एक नई आर्थिक नीति लागू की है और इस सभा तथा राष्ट्र को आश्वासन दिया गया है कि थोड़े समय में नीति के परिणाम अथवा फल राष्ट्र के सामने आ जाएंगे, राष्ट्र में खुशहाली आ जाएगी, चारों तरफ शान-शौकत का वातावरण हो जाएगा और लोग मजे में हो जाएंगे। इसलिए हमें उस समय तक इंतजार करना चाहिए जबकि मनमोहन सिंह जी का भावी एल्डोराडो राष्ट्र के समक्ष होगा। तब तक हमारा लोगों को यह बताने का काई औचित्य नहीं है कि लोगों को तीन साल तक इंतजार करना चाहिए।
शुक्र है, एक वर्ष पहले भी मनमोहन सिंह ने कहा था कि हमें तीन वर्ष तक इंतजार करना चाहिए। 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमें तीन साल तक इंतजार करना चाहिए। अब चार वर्ष हो गए हैं। हमें इंतजार करना चाहिए। लेकिन यदि जनता से यह कहा जाता है कि धैर्य रखें और सहनशीलता दर्शायें, संसद सदस्यों को और अधिक धैर्य और सहनशीलता का प्रदर्शन करना चाहिये।
मैं अपने साथी श्री गुलाम नबी आजाद से प्रार्थना करता हूँ कि इस विधेयक को सभा में न रखें। उन्हें हर तरह से इस विधेयक को वापिस ले लेना चाहिए। आदरणीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपसे अपील करता हूँ कि हम एक नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। हमें सभा से बाहर लोगों की भावनाओं का अहसास नहीं हैं। वे हमसे घृणा कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश मुझे इन शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है। समूचा संसदीय लोकतन्त्र निष्प्रभ हो रहा है। हमें इसमें कोई भी बात नहीं तोड़नी चाहिए। श्री गुलाम नबी आजाद जी के लिए यही उत्तम होगा कि वह विधेयक को वापिस ले लें।