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संपूर्ण सरकारी क्षेत्र का निजीकरण चिन्ता का विषय, यह ले जायेगा देश को गुलामी की ओर

सार्वजनिक उपक्रम के निजीकरण पर 14 मार्च, 2000 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

सभापति, माननीय सदस्य ने बहुत गम्भीर मामला उठाया है। यह केवल सलेम स्टील प्लांट का प्रश्न नहीं है। वे जो भी कहते हों, सरकार की योजना पूरे स्टील प्लांट को बेचने की है। केवल एक ही दलील दी गई है कि वे बड़ा मुनाफा नहीं कमा रहे हैं। कृपया इन सरकारी उपक्रमों की शुरुआत का ध्यान करें। बहुत पहले पंडित नेहरू स्टील प्लांट स्थापित करने के लिए मद्द मांगने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका गए थे। संयुक्त राज्य अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने पंडित नेहरू से कहा था कि आप अमरीका से सस्ती दरों पर स्टील प्राप्त कर सकते हैं। आप स्टील प्लांट क्यों स्थापित करना चाहते हैं?

उस समय पंडित नेहरू ने कहा था कि भारत जैसा और संसाधन संपन्न देश मूलभूत सामग्री के लिए विदेशी स्रोतों पर निर्भर नहीं रह सकता। अपनी सम्प्रभुता को बचाये रखने के लिए और भारत को आत्मनिर्भर तथा स्वतंत्र बनाने के लिए हम भारत में स्टील प्लांट स्थापित करेंगे। भले ही इसकी लागत कुछ भी हो और राष्ट्र को कुछ भी भुगतान क्यों न करना पड़े।

मेरे मित्र श्री मुरली मनोहर जोशी जो कि भारत सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं, यहाँ हैं। वे मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। मैं नहीं जानता कि वे चुप क्यों हैं ? श्री बालू, जो कि कैबिनेट के सदस्य हैं और तमिलनाडु के हैं, वे भी चुप हैं। मुझे बताया गया है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने भी सरकार से ऐसा न करने की अपील की है। यह केवल सलेम स्टील का प्रश्न नहीं है। परन्तु सम्पूर्ण सरकारी क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों मेधकेला जा रहा है। हमारा उद्देश्य क्या है ? यही हमारी चिन्ता है।

जिस किसी ने भी ऐसा किया है, चाहे वह कांग्रेस हो अथवा भाजपा हो अथवा मैं स्वयं हूँ अथवा और कोई हो, कम से कम मैं यह कहने को तैयार हूँ कि मैं बिल्कुल प्रारम्भ से ही इसका विरोध कर रहा हूँ। मैं इसके परिणाम जानता हूँ। इससे केवल आर्थिक गुलामी ही नहीं आयेगी बल्कि इस देश में भी गुलामी आ जायेगी। उस समय भी, मैंने चेताया था कि यदि आप आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार करते हैं, तो आपको राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप स्वीकार करना पड़ेगा और यह इबारत आज दीवारों पर लिखी हुई है।

मैं समझता हूँ कि आप सरकार को सलाह देंगे कि वह सभी चीजों को बेचने की जल्दबाजी न करे जो भारत ने पिछले पाँच दशकों के दौरान स्थापित की है। यह हमारे लोगों की कड़ी मेहनत से बनाया गया है। उन्होंने बड़ी कुर्बानियाँ दी हैं। यह इन लोगों के लिए नहीं है, जो राष्ट्र की संपूर्ण सम्पति को बेचने के प्राधिकार के स्थानों पर बैठे हैं, जिसे पिछले पाँच वर्षों के दौरान प्राप्त किया गया है।

मुझे खुशी है कि श्री वैको ने इसे अपना समर्थन दिया है और मुझे आशा है कि वह इस बात का भी समर्थन करेंगे कि सरकार किसी और चीज की आड़ में इस योजना के कार्यान्वयन में सफल न हो जाए। देश की सभी चीजों को बेचने के लिए विनिवेश नामक पवित्र शब्द को हथियार बना लिया गया है। मुझे आशा है कि मेरे मित्र डाॅ. मुरली मनोहर जोशी सुन रहे हैं। कई बार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चुनौतियाँ आती हैं जैसे कि राष्ट्र के समक्ष चुनौतियाँ हैं। अब जबकि राष्ट्र के सामने गम्भीर चुनौतियाँ हैं, उन्हें इसे राष्ट्र के सामने आ रही चुनौती के रूप में नहीं बल्कि उसकी अखण्डता, सम्मान, मर्यादा और शोभा के सामने आ रही चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।