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कहाँ कहौं छवि आपकी, भले बने हो नाथ,तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ।

26 प्रतिशत शेयर विदेशी कम्पनियों को देने पर 26 जुलाई 2000 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष जी, पिछले बजट में सरकार ने कहा कि जो सार्वजनिक विभाग के प्रतिष्ठान हैं, उनके शेयर्स को बेच कर 10 हजार करोड़ रुपये हम बजट के लिए लाएंगे। देश को यह नहीं मालूम कि किस आधार पर ये 10 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किए गए। उस समय यह कहा गया कि जो घाटे की कम्पनियाँ हैं, उनके शेयर्स बेचे जाएंगे। आज से चार हफ्ते पहले डिसइन्वैस्टमैंट मिनिस्टर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने यह कहा कि अगर केवल घाटे की कम्पनियाँ बेची जाएंगी तो 10 हजार करोड़ रुपया पूरा नहीं होगा। इसलिए मुनाफे वाली कम्पनियों को भी बेचना होगा। अब मैं यह नहीं समझता कि कोई भी सरकार इस तरह का नीति परिवर्तन अपने भाषणों में किस तरह से कर सकती है। मैं कोई लम्बा भाषण नहीं देना चाहता केवल दो उदाहरण देना चाहूँगा। माडर्न बेकरी बेची गई। सरकार की ओर से 126 करोड़ रुपये में उस प्रतिष्ठान को बेच दिया गया, जबकि उसकी कम्पनी के लोगों ने कहा कि इसकी कीमत 2000 करोड़ रुपये है।

इसे लेकर न वहाँ के अधिकारियों से बात हुई, न वहाँ के कर्मचारियों से कोई बात की गई। मुझे कहते हुए दुःख होता है और लज्जा का अनुभव होता है कि सरकार की रिपोर्ट में लिखा गया है कि उस कम्पनी को बेचते समय वहाँ की भूमि की कीमत को नहीं देखा गया। उसके लिए जो बहाने दिए गए हैं, वे अत्यन्त हास्यास्पद हैं। एयर इंडिया को बेचने के लिए सवाल उठा। अखबारों में कहा गया कि हमारे मित्र श्री शरद यादव, जो उस विभाग के मंत्री हैं, उन्होंने उसका विरोध किया। उनसे और डिसइन्वैस्टमैंट मिनिस्टर से समझौता हुआ कि 25 फीसदी शेयर बेचे जाएँगे लेकिन वहाँ जाकर उसको 26 फीसदी कियागया। इसलिए कि किसी विदेशी कम्पनी को उसका प्रबन्धन दिया जा सके। हमारे विभाग के मंत्री जी विवश होकर चुपचाप वहाँ बैठे रहे। अभी हमारे मित्र ने 6 और कम्पनियों की बात कही है। यह 10 हजार करोड़ रुपया किसने तय किया था और किस आधार पर तय किया है? अब तक घाटे वाली कम्पनी बेचने का था, अब उन कम्पनियों को भी बेचा जा रहा है जो मुनाफा कमाती हैं।

मैं केवल एक और उदाहरण देता हूँ। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने अपने एयर कैरिअर को बेचा हो। अकेला देश श्री लंका हैं, उसने विशेष परिस्थितियों में बेचा था। हिन्दुस्तान पहला देश होगा जो यह कहेगा कि हमारे एयर इंडिया के लोग, जो तिरंगे को दुनिया के 36 देशों में ले जाते थे, उनके शेयर भी बेचे जा रहे हैं। इसी पार्लियामेंट में इससे पहले की सरकार ने कहा था कि प्राइवेटाईजेशन नहीं होगा। एक दूसरी एयरलाइन्स को हमने इजाजत नहीं दी थी और वही एयरलाइन्स एयर इंडिया को लेने की कोशिश कर रही है।

उपाध्यक्ष महोदय, यह क्यों हो रहा है। मैं कोई आलोचना के लिए आलोचना नहीं करता हूँ। इसके लिए दस्तावेज के बाद दस्तावेज बनये जा रहे हैं। ये दस्तावेज यहाँ की सरकार द्वारा जानकारी में बनाए गए हैं। मैं नहीं कहता कि केवल आपकी सरकार ने किया, इसके पहले की सरकारों ने भी इसमें अपने भूमिका अदा की है। मैं बराबर यह सवाल उठाता रहा हूँ। आज स्थिति ऐसी पहुँच गई है कि एक दिन संसद् का अधिवेशन नहीं होगा और संसद के सदस्य यह सोचेंगे कि भारत देश को किसी के हाथों गिरवी रख दिया गया है। संसदीय कार्य मंत्री जी, आप नाराज मत होइएगा, आपके ऊपर यह कलंक का टीका लगने वाला है। हमारे मित्र मुरली मनोहर जोशी जी को हमने अभी सदन शुरू होने के पहले तुलसीदास की एक चैपाई लिखकर भेजी, जो उन्होंने कृष्ण के बारे में लिखी थी-

‘‘कहाँ कहौं छवि आपकी, भले बने हो नाथ। तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ।।’’

पता नहीं, वह धनुष कब उठेगा या वह शिखंडी के जैसे क्लीव बनकर रह जायेगा। उपाध्यक्ष महोदय, देश आज खतरे में हैं और इस खतरे से देश को बचाने की जरूरत है।

अध्यक्ष जी, मुझे इस बहस पर केवल 5-10 मिनट के अन्दर अपनी बात समाप्त करनी है। यहाँ बहुत से भाषण दिये गये लेकिन उन भाषणों से मुझेबहुत निराशा हुई। समस्या की गम्भीरता को परखने में हम असफल रहे हैं। हम लोगों को दो बातें याद रखनी चाहिये कि केन्द्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार है और श्री लाल कृष्ण आडवाणी गृहमंत्री हैं। यही इस समस्या को सुलझाने या उलझाने में मददगार हो सकते हैं या उसे उलझा सकते हैं। श्रीनगर में डाॅ0 फारूख अब्दुल्ला चीफ मिनिस्टर हैं। इन लोगों के आस्तित्व को इनकार करके कोई बात करने का महत्व नहीं रह जायेगा। इसलिये हमने यह कहा कि आर0एस0एस0 की क्या धारणा है या श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने क्या कहा, उससे समस्या नहीं सुलझेगी।

दो-तीन बातों का मुझे दुःख है। हमारे मित्र श्री माधवराव सिंधिया नहीं हैं। उन्होंने इस बात को शुरू किया। उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि कांग्रेस के जमाने में सब कुछ अच्छा था, अचानक यह सब बुराइयाँ इस सरकार ने पैदा कर दी। मैं कोई गुप्त बातें नहीं कह रहा हूँ। जिस समय 1991 से 1996 तक आपकी सरकार थी उस समय कश्मीर को बांटने का प्रस्ताव आया था। वाशिंगटन के पास एक कान्फ्रेन्स हुई थी, जिसे स्टेट डिपार्टमैंट ने स्पान्सर किया था यहाँ सैन्टर फाॅर पालिसी रिसर्च एक संस्था है, उसमें हिन्दुस्तान के कुछ लोग उसके नुमाइन्दे सरकार से सलाह करके गये थे और आजाद कश्मीर के लोग थे, पाकिस्तान के लोग थे और अमरीका के कुछ विद्वान लोग थे। उसमें यह कहा गया कि कश्मीर को तीन हिस्सों में बाँटा जाए। उस समय हमारे एक मित्र थे, जिन्होंने मुझसे कहा कि कश्मीर पर चर्चा करनी है। मैंने कहा वहाँ कौन रहेंगे, उन्होंने एक और मित्र का नाम बताया। मैं जब उनके यहाँ गया तो दो मित्र मौजूद थे।

आडवाणी जी, आपको जानकर हैरत होगी, वे आपकी पार्टी के थे और आज भी वे महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इन तीन लोगों से जब मेरी वार्ता हुई, वह प्रस्ताव सरकार की ओर से रखा गया। प्रियरंजन दास जी जब आपकी सरकार थी तो इन दोनों मित्रों ने उसका तुरन्त अनुमोदन करना शुरू कर दिया। मैंने कहा आप भी इससे सहमत हैं, आप इसका अर्थ जानते हैं। इसका अर्थ होगा सैल्फ डिटरमिनेशन को मानना इसका अर्थ होगा टू नेशन थ्योरी को मानना, इसका अर्थ होगा इस देश से मुसलमानों को हमेशा के लिए बाहर कर देना। फिर वह बात वहीं पर बन्द हो गई। उस समय के मंत्री जी ने हमसे कहा था कि हम आपको रिपोर्ट देंगे। लेकिन आज तक वह रिपोर्ट नहीं मिली। आडवाणी जी बुरा मत मानियेगा आर0एस0एस0 ने अनायास ही इस मांग का समर्थन नहीं किया है। आर0एस0एस0 की एक योजना है, उसकी एक मंजिल है, उसका एक अभीष्ट है और उस तक पहुँचने के लिए उनके लिए जरूरी है कि देश में टू नेशन थ्योरी की बात लोग स्वीकार कर लें। जहाँ टू नेशन थ्योरी की बात स्वीकार करके पाकिस्तान बना वहाँ इस्लामिक स्टेट बन गई। अगर हिन्दुस्तान में टू नेशन थ्योरी नहीं मानी जायेगी तो यहाँ हिन्दू स्टेट नहीं बनेगी।

आपकी धारणा यह नहीं हो सकती है। आप क्षमा करें मैं राजनीतिशास्त्र का एक विद्यार्थी होने के नाते आपसे कहना चाहता हूँ कि आर0एस0एस0 के वरिष्ठ लोगों ने बुद्धिजीवी लोगों ने इस बात का समर्थन किया और वह रिपोर्ट आज दिल्ली में लिमिटेड सर्कुलेशन में है। वह रिपोर्ट छपकर कुछ लोगों के पास बंट रही है। जो लोग रिपोर्ट छाप रहे हैं, मैंने उनसे कहा कि उस रिपोर्ट की एक कापी हमें दे दो कहा गया कि वह रिपोर्ट अंडर प्रिंट है। उए रिपोर्ट को मैंने एक वरिष्ठ मित्र के पास खुद देखा है और उसमें किसी हिन्दुस्तानी का नाम नहीं लिखा हैं, नाम लिखा है-स्टडी गु्रप आॅन कश्मीर और उसमें सारे अमेरिकिन्स का नाम है। वे लोग हिन्दुस्तान आये हैं, आपकी सरकार के लोगों से मिले हैं। फारूख अब्दुल्ला से मिले हैं, कुछ वरिष्ठ लोगों से मिले हैं।

हमारे मित्र श्री मुलायम सिंह ने जो शंका प्रकट की, भाषा उनकी चाहे जितनी आक्षेपपूर्ण रही हो लेकिन वह आंशका अपनी जगह पर अपना अस्तित्व रखती है। गृह मंत्री जी मैं आपसे कहूँगा, आप मेरी बात को अन्यथा न लें, इसको सोच लें, बाद में इसमें फर्क कर लें। आज ऐसी संस्थाओं के बारे में हिन्दुस्तान टाइम्स के एडीटोरियल पेज पर एक आर्टीकल निकली है, मैं उसमें से कुछ नहीं पढूँगा, लेकिन जिसकी हैडिंग है-राइज आॅफ दि राॅबर इंटेलेक्युअल्स। ये राॅबर इटेलेक्टुअल्स लोग इन रिपोर्टों को इस देश में फैला रहे हैं। यह अनायास नहीं हो रहा है। माफ कीजिएगा प्रियरंजन दास जी 1981 में जब आप लिबरेलाइजेशन कर रहे थे, उस समय इसी संसद में मैंने कहा था-आज आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार कर रहे हो, कल राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार करने के लिए तैयार रहो। आज हिन्दुस्तान ऐसी जगह पर पहुँच गया है, जब राजनीतिक मामलों में खुलेआम हस्तक्षेप हो रहा हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं बड़ी अदब से, बड़ी नम्रता से कहूँगा कि अगर इसमें हम विवाद और झगड़े करते रहे तो हम इन शक्तियों के खिलाफ कोई संघर्ष नहींकर सकते, कोई विरोध नहीं कर सकते, बड़े बुरे संकट में हम लोग फंसे हुए हैं। फारूख अब्दुल्ला को मैं जानता हूँ। फारूख अब्दुल्ला को आप लोगों ने विवश किया है। फारूख अब्दुल्ला के रहते हुए हुर्रियत से बात करने का प्रस्ताव बिना उनकी जानकारी में उन्हें छोड़ देना उनसे यह वायदा भी नहीं लेना कि संविधान के अन्दर काम करेंगे यह सही बात नहीं थी। मैं आपके या अटल जी के बयान में कोई दोष नहीं देखता। दोष केवल इतना ही है कि आपको यह कह देना चाहिए था कि जो भी अलगाव की प्रवृत्तियां इस प्रस्ताव में हैं, उनसे हम पूर्णतः असहमत हैं लेकिन आप लोगों ने यह नहीं कहा। मामला पेचीदा है और इस पेचीदा मामले में गृहमंत्री और प्रधानमंत्री का बयान और पेचीदगी पैदा कर सकता है और उससे पेचीदगी पैदा हुई है। मैं यह भी कहूँगा कि कुछ ध्वनि निकली चंडीगढ़ से। वैको साहब माफ करियेगा, कुछ बातें चेन्नई से भी निकलीं असम के गोहाटी से उठीं। सोमनाथ जी यह कहने के लिए क्षमा कीजिएगा कि स्टेट आॅटोनाॅमी के नाम पर, इकोनाॅमिक स्वायत्तता के नाम पर इन प्रवृत्त्यिों को बढ़ावा देना देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

मैं आपसे निवेदन करूँगा। बार-बार कहा जाता है और मैं जानता हूँ इसके लिए मेरी बड़ी आलोचना होगी, कहाँ से फेडरल गवर्नमेंट हो गई ? यह तो यूनीटरी गवर्नमेंट है। यूनियन गवर्नमेंट है। फेडरल गवर्नमेंट वहाँ होती है जहाँ स्टेट आॅटोनाॅमस हों और अपने को फेडेरेशन में जोड़ें। अचानक हमारे बुद्धिजीवियों ने, कुछ राजनीतिक नेताओं ने फेडरेशन की बात कही। रोज फेडरेशन की बातें मैं सुनता रहा हूँ, लेकिन कह रहा हूँ कि आज इन बातों को कहते शब्दों को इस्तेमाल करते समय हमें अधिक सचेत और सजग होना चाहिए। कल ये हमारे गले की फांसी बन सकते हैं, यह बात याद रखिये।

वैंको साहब मैं आपसे सहमत हूँ। राज्यों को अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए वित्तीय मामलों में लेकिन आज राज्य विदेशी सरकारों से धन ले रहे हैं और केन्द्र की सरकार पर रोज दबाव डाल रहे हैं कि इसमें आप काउण्टर गारण्टी दें। काउण्टर गारण्टी आप केन्द्र सरकार से लेंगे और बाहर जाकर पैसा लेने का अधिकार आपको होगा और माँग करेंगे कि देश एक नहीं रह सकता, देश तक नहीं चल सकता। फिर जो गरीब राज्य हैं उनके लिए कहाँ से पैसा आएगा ?

मैं आपसे पूछता हूँ कि तमिलनाडु के गरीब इलाकों के लिए आप प्लानिंग कमीशन के पास जाएंगे तो प्लानिंग कमीशन कहाँ से पैसा देगा ? क्या होगा लेह-लद्दाख का, क्या होगा जैसलमेर, बाड़मेर का? संगमा जी चले गए, वे भी उन्हीं भावनाओं को कह रहे थे और रोज कहते हैं कि नाॅर्थ ईस्टर्न स्टेट्स को अधिक से अधिक पैसा मिलना चाहिए। मैं जानता हूँ बहुत सारी कमजोरियाँ हो सकती हैं ऐडमिनिस्ट्रेशन में। मैं उनमें नहीं जाना चाहता। उसके लिए हम सब लोग अपराधी हैं, लेकिन बहुत सोच-समझकर यह संविधान बना था और बहुत सोच-समझकर संविधान को पचास वर्षों तक लागू किया गया है। कमियों को दूर करने की कोशिश कीजिए। अपने सीमित स्वार्थों के लिए हम संविधान को बदलने की कोशिश न करें, भावनाओं को भड़काने की कोशिश न करें।

एक उदाहरण मैं देता हूँ कहीं मेरे मित्र यह न कह दें कि मैं सरकार का समर्थन कर रहा हूँ। एक बात सरकार ने बहुत पहले कहीं कि नेचुरल कैलैमिटी फंड बनेगा। अगर कहीं भी प्राकृतिक आपदा होगी तो वहाँ केन्द्र सरकार की ओर से पैसा दिया जायेगा। सरकारों ने कहा कि पैसा केन्द्र के पास कैसे रहेगा? वह तो राज्य सरकारें शुरू में ही आपस में बांट लेती हैं और जब नेचुरल कैलामिटी होती है तो वहाँ पर केन्द्र सरकार कहती है कि आप लोन के रूप में पैसा ले जाओ। फिर हल्ला मचता है कि आपदा आई हुयी है, ये तो ऋण दे रहे हैं, मदद नहीं कर रहे हैं एक ओर पैसा बांट लोगे दूसरी ओर केन्द्र से कहेंगे किहमें पेसा नहीं देते, यह देश का चलाने का रास्ता नहीं है, यह देश को बरबादी की ओर से जाने का रास्ता है।

मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि इन सारे भाषणों में एक दो को छोड़कर हर सवाल वह उठाए गए जिनसे हमसें आपसी मतभेद, आपसी दुराव पैदा हों। मैं ऐसा कहता हूँ कि दुःख का समय है, बड़े अंधेरे का समय है, ऐसे समय में अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर काम करना चाहिए। मैं इस बात से जरूर सहमत हूँ कि याद रखिये अगर फारूख अब्दुल्ला से आप बात नहीं करेंगे तो कोई दूसरा बात करने वाला आपको कश्मीर में नहीं मिलेगा। इसलिए जरूरी नहीं कि हम उनसे असहमत हों। अगर आज अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी बात नहीं करंेगे तो मैं चाहते हुए भी सोमनाथ चटर्जी, मुलायम सिंह और दासमुंशी जी को इस काम के लिए नहीं भेज सकता। आज राजनीति वास्तविकताओं पर आधारित है, यथार्थ पर आधारित हैं यथार्थ को भूलकर लंबेभाषणों का समय आज नहीं है। यह अत्यंत दुरभि संयोग है। मैं फिराक के एक शेर से अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँः-

‘‘इन खंडहरों में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए। इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात।।’’

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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।