जो हालत रूस, पोलेंड और साउथ अमेरीकी देशों की हुई है, वही हम लोगों की भी होगी
अध्यक्ष महोदय, जिस दिन आर्थिक नीतियों का इस सदन ने समर्थन कर दिया, उस दिन हमें उसके परिणामों को समझना चाहिए था कि हर ऐक्ट, हर बिल, हर कदम इस सरकार का इसी नाम पर आएगा। चूंकि संसद ने लिबरलाइजेशन को स्वीकार कर लिया है, इसलिए हम इस काम को कर रहे हैं। मैं आपके द्वारा केवल इतना ही निवेदन करता हूँ कि देश की मर्यादा को गिरवी रखने के बाद यह असंभव सा लगता है कि इस संसद की मर्यादा रह सके लेकिन इस संसद की मर्यादा को रखने का कम से कम दिखावा तो होना ही चाहिए।
एक दिन मैं आपसे कह रहा था कि जब सरकार न सुने तो आपके ज़रिए देश की जनता को सुनाना हम लोगों का फर्ज़ होता है। जिस प्रकार से यह विधेयक लाया गया है और जिस तरह से दो कंपनियों को देने की बात है, यह अकेली बात नहीं है। मैं समझता हूँ कि कुछ के लिए बिल लाए गए हैं। मैं आपसे कहूँगा कि आप लाख कोशिश कर लें, जिनको प्रसन्न करने के लिए यह कदम उठाया गया है, वह आपसे प्रसन्न नहीं होंगे। आपने पिछले तीन दिनों में देखा है और अगले तीन महीनों में देखेंगे, आपकी वह हालत होने वाली है जो गोर्बाचोव साहब की हुई, आपकी वही हालत होने वाली है जो पोलैण्ड की हुई, आपकी वही हालत होगी जो साउथ अमेरिकन कंट्रीज की हुई। अध्यक्ष महोदय, देश की मर्यादा को बेचने के बाद इस सरकार को संसद की मर्यादा बेचने का अधिकार आप मत दीजिए, इतना ही मेरा आपसे निवेदन है।
अध्यक्ष महोदय आप क्या बात करते हैं? क्या मंत्री महोदय को सभा के समक्ष बोलने का कोई नैतिक अधिकार है? वह कहते हैं कि यह एक प्रस्तावित कम्पनी है। अब वह कहते हैं कि यह निजीकरण के अंतर्गत पंजीकृत की गइथी। अध्यक्ष महोदय, इस पर मैं आपकी व्यवस्थाएँ मांगना चाहता हूँ।
इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं हैं। मंत्री महोदय को प्रस्ताव वापिस ले लेना चाहिए। उन्हें विधेयक पुरःस्थापित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।