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सरकार ने देश की पूँजी को विदेशियों के हाथ बेचा, देखकर शर्म से झुक जाती है गरदन

लोकसभा में 6 अगस्त 1997 को प्राधिकरण विधेयक पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, माननीय वित्तमंत्री जी पिछले काफी समय से सभा में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात समझाने का प्रयास कर रहे हैं। संसदीय कार्यमंत्री जी ने कहा कि थोड़ी-बहुत आपसदारी होनी चाहिए। दुर्भाग्य से वे यह नहीं समझते कि पूरा देश उनको समझता है लेकिन कोई भी व्यक्ति उन पर विश्वास नहीं करता। लोग पिछले पांच-छह सालों से यह कह नहीं पा रहे हैं। यह इस राष्ट्र की त्रासदी है। धीरे-धीरे आप अपना सब कुछ बहुराष्ट्रीय और विदेशी पूँजीपतियों को दे रहे हैं। देश को ‘नहीं’ कहना आना चाहिए और मुझे इस बात की खुशी है कि कुछ माननीय सदस्यों को यह बात समझ में आ गई है कि ‘नहीं’ कहने का समय आ गया है कि हमें आपको इस सवाल पर ‘नहीं’ कहना चाहिए।

अध्यक्ष जी, पिछले दो-तीन घंटों से सदन में जो कुछ हुआ है उससे न केवल सदन की मर्यादा घटी है बल्कि देश के सामने एक नया सवाल खड़ा हो गया है कि क्या विदेशी ताकतें हमारे देश की संसद को जिस तरह चाहें उस तरह चला सकती हैं? पिछले छह वर्षों से हम नीतियों के सवाल पर इस देश की दुर्गति देखते रहे हैं लेकिन सदन की दुर्गति आज ही देखने को मिली है। मैं ऐसा समझता हूँ कि जब मतदान हो रहा था, उस समय सरकार हार जाती तो उससे सरकार नहीं गिरती। लेकिन जार्ज फर्नान्डीज साहब ने जो एक बात कही है, वहीं सही लगती है कि किन्हीं लोगों को प्रसन्न करने के लिए बार-बार एक प्रयास किया जा रहा है और मुझे दुःख है कि सदन के विभिन्न वर्गों के लोग उस प्रयास को समझते हुए भी उसमें सहभोगी होने के लिए तैयार बैठे हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं बड़ी कड़ी बात नहीं कहना चाहता। पिछले दिनों में जिस तरह सरकार ने देश की पूँजी को विदेशियों के हाथ में बेचाहै, जिस तरह से हमारे उद्योग उनके हाथ में गये हैं, जिस तरह हमारे देश की पूँजी पर उन्होंने कब्जा किया है, उनके आंकड़े अगर देखे जायें तो किसी भी राष्ट्र की गर्दन शर्म से झुक जायेगी। मैं आपसे निवेदन करूंगा कि बहुत हो चुका, इस मर्यादा का और हनन मत कीजिए चाहे जो कुछ भी हो। प्रस्ताव हटाना चाहें या रोकना चाहे लेकिन सदन में कुछ मर्यादा का निर्वाह होना चाहिए और मैं कहता हूँ कि दो या ढाई घंटे में जो कुछ हुआ है, वह सदन की मर्यादा के विपरीत है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।