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पेटेंट विधेयक: सभा पास कर दे तो भी देश को विदेशी कम्पनियों का बाजार नहीं बनने दें नवयुवक

लोकसभा में 10 मार्च, 1999 को पेटेंट (संशोधन) विधेयक पर चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष जी, जो पेटेंट (संशोधन) विधेयक आया है, मैं केवल कुछ शब्दों में इसका विरोध करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। हमारे मित्र ने अभी जो बात की, जिन भावनाओं का उन्होंने इज़हार किया, उनसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ। आज देश को किस रास्ते पर ले जाने की कोशिश हो रही है, वह हमारे सामने साफ दिखाई पड़ रहा है, लेकिन दुःख इस बात का होता है कि जो पार्टियाँ या पार्टी सरकार में है और जो पार्टी विरोध में है, इस सवाल पर एकमत हैं।

मुझे यह देखकर भी आश्चर्य होता है कि जैसे उन्होंने कहा कि एक समिति बनी थी जिसमें मैं भी कभी-कभी जाता था। हमारे मित्र मुरली मनोहर जोशी जी उसके अध्यक्ष थे, जार्ज फर्नान्डीज सदस्य थे और जयपाल रेड्डी जी बैठे हैं, वह भी प्रमुख सदस्यों में थे। वह विस्तार से भाषण देंगे लेकिन मैं एक बात कांग्रेस के मित्रों को याद दिलाना चाहता हूँ। 1970 में जब पेटेण्ट्स कानून बना था, उस समय दुनिया के जितने पूँजीवादी देश या उद्योगपति देश थे, उन्होंने इसका बड़ा विरोध किया था। उस समय भी यह कहा गया था कि अगर भारत पेटेण्ट्स ऐक्ट 1970 को पास करेगा तो हम इनको सहायता नहीं देंगे, इनके ऊपर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाएंगे। उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था कि दुनिया के धनी देश जो चाहे करें, भारत अपने हितों की रक्षा के लिए जो समझेगा, वह संसद में प्रस्ताव पेश करेगा और उसको स्वीकार करेगा।

हमारे एक मित्र दो दिन पहले मुझे बता रहे थे कि अगर दुनिया में कहीनहीं है तो हम क्या दुनिया को नेतृत्व नहीं दे सकते? उन मित्रों को मैं बहुत अदब से कहूँगा, शायद वह 1970 में कांग्रेस के नजदीक भी नहीं थे। कहीं रहे होंगे तो दूर इलाके में होंगे।

आप उस समय के अखबार उठाकर देख लीजिए, 1970 में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था कि दुनिया की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए हम बड़ा संकट लाने वाली हैं ऐसी स्थिति में अगर पेटेन्ट कानून पारित हो गया तो भारत कृषि के क्षेत्र में और औषधियों के क्षेत्र में बड़ा भुगतान भुगतने वाला है और इसका सबसे बड़ा असर गरीबों पर होगा। सामाजिक न्याय का पाठ वे लोग पढ़ाते हैं जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिए कुछ नहीं किया है। कम से कम हमें तो सीख मत दो। हमने भी बहुत सामाजिक न्याय के आंदोलन देखे हैं। हमने बहुत से सामाजिक न्याय के प्रणेताओं को पदों के लिए अपने सामने ही लुढ़कते हुए देखा है, इसलिए मुझे शिक्षा देने की जरूरत नहीं है। यह व्यक्तिगत सवाल नहीं है, यह राष्ट्र की अस्मिता और राष्ट्र के भविष्य का सवाल है। मैं भाई सिकन्दर बख्त जी से आपके जरिये निवेदन करना चाहता हूँ कि अगर पुरानी यादें आज भी कुछ ताजी हों, अगर आज भी गाँधी जी की याद आती हो। आज भी मोरारजी भाई देसाई की यादें आती हों, आज भी उनकी वे बातें याद आती हों जो हमने और उन्होंने मिलकर साथ-साथ की हैं।

मैं नहीं जानता वे बातें जाॅर्ज फर्नान्डीज को और हमारे मित्र मुरली मनोहर जोशी को याद आती हैं कि नहीं, अकेले में तो मुझसे जब वे कहते हैं, तो वे बातें याद आती हैं, संसद में भले ही वे याद न आती हों। मैं उन्हें यह याद दिलाने के लिए यहाँ खड़ा हुआ हूँ। इस देश से यह कहना चाहता हूँ कि संसद जो भी प्रस्ताव पास करे, वह समय आ गया है जब देश के लोगों को यहाँ से कहना होगा, कि चाहे हमारी, रघुवंश प्रसाद सिंह, मोहन सिंह और जयपाल रेड्डी जैसे लोगों की अकेली आवाज हो कि देश को चलाने की जिम्मेदारी केवल आज की सरकार के ऊपर नहीं है, बल्कि इस देश को चलाने की जिम्मेदारी यहाँ के नवयुवक और नागरिकों के ऊपर है। यदि यह कानून यहाँ से पास होता है, तो इस कानून का उल्लंघन करने के लिए, इस कानून को तोड़ने के लिए देश के नौजवानों को तैयार होना चाहिए। विदेशी का बहिष्कार करना चाहिए। विदेशी कंपनियों को इस देश का बाजार बनाने से रोकने की हर सम्भव कोशिश होनी चाहिए।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके जरिए, देश के नौजवानों और देश के नागरिकों का आह्वान करता हूँ और मैं चाहता हूँ कि इस बिल का, इस प्रस्ताव का, इस विधेयक का, पूरी ताकत से विरोध होना चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।