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राज्यसभा में पास पेंटेंट बिल में छूटी बातें राष्ट्रहित में नहीं, लोकसभा में हो विचार

लोकसभा में 12 मार्च, 1999 को पेटेंट (संशोधन) विधेयक पर विधि आयोग की सिफारिशों पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके और इस सदन के समक्ष एक ऐसी गम्भीर बात रखना चाहता हूँ जिसे मैं समझता हूँ कि संसदीय जनतन्त्र में एक अनहोनी बात है। अध्यक्ष महोदय, 26 फरवरी को लाॅ कमीशन ने सरकार को एक रिपोर्ट दी है कि राज्यसभा में जो पेटेंट बिल पास हुआ है, उसमें कुछ ऐसी बातें छोड़ दी गई हैं जो राष्ट्र हित में नहीं हैं। उसमें कहा गया है कि इस बात को टी.आर.आई.पी. कानून के अन्दर कर सकते थे लेकिन यह काम नहीं किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि हमने स्वयं इस विषय को लेकर बहस की है और बहस करने के बाद यह रिपोर्ट आपको भेज रहे हैं। 26 फरवरी को यह रिपोर्ट विधि मंत्रालय को भेजी गयी और जब लोकसभा में प्रस्ताव आए तो इस पर विचार होना चाहिए, नहीं तो इससे राष्ट्र का बड़ा अहित होगा।

मैं समझता हूँ कि विधि आयोग का एक सम्मानित स्थान है। सर्वसम्मति से वह रिपोर्ट दी गई है। उसमें स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि लोकसभा में इस पर बहस होनी चाहिए लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि लोकसभा के स्पीकर को उसकी रिपोर्ट नहीं दी गई। मैं नहीं जानता सरकार ने किस स्तर पर उस पर बातचीत की। मुझे यह कहा गया कि कोई खत लाॅ कमीशन को लिख दिया गया। मैं समझता हूँ कि ऐसा करने में जब लाॅ कमीशन ने यह रिपोर्ट दी थी तो इस रिपोर्ट पर कम से कम कैबिनेट को विचार करना चाहिए था। कैबिनेट ने विचार नहीं किया क्योंकि वे बहुत व्यस्त होंगे, अधिक काम उनके पास होगा और लाॅ कामीशन की रिपोर्ट तथा पेटेण्ट विधेयक पर बात करने के लिए उनके पास समय नहीं होगा, तो कम से कम स्पीकर को उस रिपोर्ट की एक प्रतिजानी चाहिए थी, क्योंकि उसमें स्पष्ट रूप से यह लिखा हुआ है। मैं इस रिपोर्ट को आपके सामने नहीं रखना चाहूँगा, लेकिन इसका जो फाॅरवार्डिंग लेटर है, उसको मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा।

अध्यक्ष महोदय, उपर्युक्त विधेयक में अंतर्विष्ट उपबन्धों की मौलिक महत्ता तथा इस तथ्य के होते हुए कि राज्यसभा द्वारा इसे पहले ही पारित किया जा चुका है, की दृष्टि से विधि आयोग ने स्वतः उपर्युक्त विषय को चर्चा के लिये लिया है। विधेयक में कतिपय महत्वपूर्ण चूक को देखते हुए यह असाधारण कदम उठाया गया जिससे हमारे राष्ट्र हित को गम्भीर खतरा है। इसलिए बजट सत्र के दौरान उपर्युक्त संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान सरकार और संसद द्वारा प्रतिवेदन में अंतर्विष्ट सिफारिशों पर चर्चा की जा सकती है।

यह एक सिफारिश पत्र है। इसके प्रथम पैराग्राफ में कहा गया है कि:

‘‘पेटेंट (संशोधन) विधेयक, 1998 (जिसे 16 दिसम्बर, 1998 को राज्यसभा में पुरःस्थापित किया गया तथा 22 दिसम्बर, 1998 को पारित किया गया था) में अंतर्विष्ट उपबन्धों की मौलिक महत्ता, तथा इस तथ्य के होते हुए कि राज्यसभा द्वारा इसे पहले ही पारित किया जा चुका है, को देखते हुए भारत के विधि आयोग ने स्वतः इस विषय को अध्ययन के लिए लिया है। विधेयक में कतिपय महत्वपूर्ण चूक को देखते हुए यह असाधारण कदम उठाया गया है। उदाहरण के तौर पर व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक संपदा अधिकार से सम्बन्धित करार के अनुच्छेद 27 में सदस्य राज्य को कतिपय छूट का अधिकार दिया गया है जिसे विधेयक में शामिल नहीं किया गया है। विधेयक में इस बात का लोप हमारे राष्ट्र हित को गम्भीर खतरा उत्पन्न करता है। इसी तरह से इसमें अनेक खामियां हैं जिन्हें इस प्रतिवेदन में दर्शाया गया है।

संशोधन विधेयक के उपबन्धों पर गहराई से अध्ययन करने के पश्चात् विधि आयोग यह प्रतिवेदन प्रस्तुत कर रहा है। बजट सत्र के दौरान उपर्युक्त संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान प्रतिवेदन में अंतर्विष्ट सिफारिशों पर सरकार और लोकसभा द्वारा चर्चा की जा सकती है।’’ यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस प्रतिवेदन पर लोकसभा में चर्चा किया जाए। इसे 26 फरवरी को सदन या सरकार को प्रस्तुत किया गया था जबकि हम विगत दो दिन से पेटेंट विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं समझता हूँ कि कोई भी स्टैटुटरी कमीशन अगर एक रिपोर्ट सरकार को देता है और कहता है कि लोकसभा में डिसकस होनी चाहिए तो सरकार का यह फर्ज होता है कि चाहे वह कुछ करती लेकिन लोकसभा के स्पीकर को यह रिपोर्ट भेजी गई होती तो आप इसे मैम्बरों के पास भी भेजते। मैं उन सुझावों को पढ़कर सदन का समय बर्बाद नहीं करना चाहता। एक-एक क्लाज पर डिटेल्ड डिस्कशन किया गया हैं। मैं नहीं जानता कि लाॅ कमीशन के अलावा और कौन उससे बड़े और बुद्धिमान लोग हैं जो कानून के बारे में उससे ज्यादा जानते हैं, जिनकी राय मानना सरकार ने जरूरी समझा। ऐसा करके लाॅ कमीशन की ही उपेक्षा नहीं की गई, बल्कि इस संसद की उपेक्षा की गई हैं, सारे संसदीय आचरण की उपेक्षा की गई है।

अध्यक्ष महोदय, यह एक गम्भीर विषय है इसी कारण मैं इसे उठा रहा हूँ। मैं जानता कि यह रिपोर्ट आपको कब मिलेगी। मैं इसे रखना नहीं चाहता, चूंकि मैं नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहता। लेकिन आपको और सदन को इस मामले को गम्भीरता से लेना चाहिए। मोहन सिंह जी ने इस सवाल को उठाया था, लेकिन उस समय लोगों ने इसे नजरअन्दाज कर दिया।

अध्यक्ष महोदय, मुझे दुःख है कि इस सदन में कोई भी बात व्यक्तिगत बात हो जाती है। मैं अपने मित्र श्री सिकन्दर बख्त से कहता हूँ कि वे गुस्सा मत दिखाएं, गुस्सा मुझे भी बहुत आता है लेकिन यह गुस्से का सवाल नहीं है। किसी व्यक्तिगत बात के लिए मैं आपसे सिफारिश नहीं कर रहा हूँ। आपकी और रेड्डी साहब, जो वहाँ के जज हैं, की व्यक्तिगत बात नहीं हैं। अगर केवल रेड्डी साहब ने खत लिखा होता, तो यह सवाल नहीं उठता। यह सवाल लाॅ कमीशन ने उठाया है और लाॅ कमीशन की रिपोर्ट आप अपने लैवल पर डील नहीं कर सकते।

मैं आपकी क्षमता को जानता हूँ लेकिन मैं ऐसा मानता हूँ कि जितना मुझे पार्लियामेंट का ज्ञान है, कैबिनेट को इस रिपोर्ट के बारे में अपने अन्दर बहस करनी चाहिए थी और बहस करने के बाद यदि वे किसी निर्णय पर पहुँचते तो उस निर्णय को विधि आयोग को बताते। लेकिन जब उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि लोकसभा में इस बात की चर्चा होनी चाहिए तो उस रिपोर्ट की काॅपी स्पीकर साहब को देना आपका अधिकार होता है और आपने यह नहीं किया।

यह सरकार द्वारा कर्तव्य की अवहेलना है और आप मुझे संसदीय प्रक्रियानहीं सिखा सकते हैं। इस बात का स्पष्ट संदेश होता कि जब विधेयक पर चर्चा की जा रही हो तब लोकसभा में इस पर चर्चा की जानी चाहिए, तो यह आपका कर्तव्य होता है कि आप पत्र अग्रसारित करते और अध्यक्ष से यह अनुरोध करते कि इस मुद्दे कोसभा में न उठाया जाए। लेकिन यह कहने का आपका कोई अधिकार नहीं है कि आप लोकसभा अध्यक्ष को इसकी प्रति नहीं देंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।