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विश्व बैंक को भेजा गया पत्र सम्प्रभुता से समझौता, चुप नहीं बैठूंगा

विश्व बैंक की रिपोर्ट पर 26 फरवरी, 1992 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, मैं प्रक्रिया संबंधी एक मामला उठाना चाहता हूँ। आज देश के सभी समाचार पत्रों में वित्तमंत्री द्वारा विश्व बैंक को भेद खोलने वाले पत्र लिखे जाने का समाचार है। उस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है। यह बहुत ही गम्भीर मामला है जिसमें देश की संप्रभुता के साथ समझौता किया गया है। या तो सरकार स्पष्ट वक्तव्य दे और यह कहे कि ऐसा कोई भी वक्तव्य या पत्र नहीं है या उक्त पत्र को सभा पटल पर प्रस्तुत करें। मुझे कुछ भी अप्रिय कहने का अवसर न दें। मैं किसी को धमकी नहंी देना चाहता। लेकिन, महोदय, इसमें देश की गरिमा और सम्मान का मामला निहित है। यह किसी दल का प्रश्न नहीं है। अध्यक्ष महोदय, मैं आपको यह बात कहना चाहता हूँ। सदस्यों, यदि हम इस मामले को यहाँ और अभी नहीं उठाते हैं तो सदस्यांे की ओर से अपने कत्र्तव्य के सम्बन्ध में भारी भूल होगी। इस समय अन्य सभी बातें पूरी तरह अप्रासंगिक हैं।

मैं सभा को गुमराह नहीं कर रहा हूँ, ऐसा करने की मेरी आदत नहीं है। मैंने इस तरह के कई उठापटक देखें हैं। मैं चुप नहीं होने जा रहा हूँ। मैं कहना चाहता हूँ कि यह एक ऐसा गम्भीर मसला है, जिसमें वित्तमंत्री जी की साख संदेह के घेरे में है। इस सदन में मेरा भी कुछ अनुभव रहा है, उतना नहीं जितना कि उन्हें है। मेरे पास कुछ अनुभव तो है। मैं ये एक सांसद के नाते अपना कत्र्तव्य निभा रहा हूँ। मैं अपनी सीमाएं जानता हूँ यदि अध्यक्ष महोदय यह कहते हैं कि इस विषय को यहाँ उठाया नहीं जा सकता, यह महत्वपूर्ण नहीं है तो मैं यह नहीं करूंगा। यदि आप चाहते हैं तो एक चिट्ठी मेरे पास है। यहाँ वित्तमंत्री जी द्वारा लिखी गई चिट्ठी भी उपलब्ध है। इस पत्र का जवाब विश्व बैंक द्वारा दिया गया है। मैं आपसे निवेदन करूंगा। इससे पहले कि इससदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाएं विभिन्न ग्रुपों के नेताओं की बैठक बुलाइए और वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री को भी इसमें आमंत्रित करें। प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को यह पत्र देखने दीजिए और वह यह भी स्पष्ट करें कि यह सत्य पर आधारित पत्र नहीं है। आप स्वयं देख सकते हैं कि इस पत्र में समझौता परस्त बयान दिया गया है या नहीं? ऐसा नहीं है कि मैं ऐसा प्रचार करने के लिए कह रहा हूँ। मैं गंभीर रूप से यह महसूस करता हूँ- यह बयान इस पूरे सदन तथा पूरे राष्ट्र की मर्यादा पर एक आघात है। इसलिए उस सरकार को, जो देश की मर्यादा के साथ समझौता तक कर सकती है, उसे इस सदन की कार्यवाही करने का कोई अधिकार नहीं है।

यदि आप चाहते हैं तो मैं एक बात कहूँगा। जब विश्व बैंक की रिपोर्ट को सदन और इस राष्ट्र की जानकारी में लाया गया था, उस समय, तो मैंने इस सदन में एक बयान जारी किया था कि नवम्बर, 1990 में विश्व बैंक रिपोर्ट सरकार की सौंपी गयी थी। मैं जून, 1991 तक प्रधानमंत्री रहा। रिपोर्ट मुझे नहीं दिखाई गई। मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने इसकी पूछताछ की। मुझे मालूम है कि प्रधानमंत्री यह अच्छी तरह जानते हैं कि वह व्यक्ति कौन है जिसने मुझसे यह रिपोर्ट छिपाई थी।

प्रधानमंत्री जी को इतनी सज्जनता भी नहीं आई कि वह जुलाई में मिले हुए मेरे पत्र का जवाब दे सकें। मैंने इतने लम्बे समय तक इंतजार किया। मैंने तब तक नहीं बोला जब तक कि वह रिपोर्ट मेरे पास आ नहीं गई। मैं आपको आश्वस्त करता हूँ और सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों को आश्वस्त करता हूँ कि किसी भी व्यक्ति की छवि खराब करने की मेरी इच्छा नहीं रही है। लेकिन मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि जब न केवल इस सदन बल्कि पूरे राष्ट्र की मर्यादा को दांव पर लगा दिया गया है तो मैं चुप नहीं बैठ सकता।

मैंने सुबह विपक्ष के नेता से बात भी की और कहा, आपको विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री से इस पर बात करनी चाहिए कि इस प्रकार की बैठक वह आयोजित करें। इस समस्या का समाधान चिल्लाने से अथवा एक-दूसरे पर शोर-शराबा करने से यहाँ कुछ नहीं होगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।