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भारत सरकार से ‘‘मूडी’’ के प्रश्न राष्ट्र की प्रभुसत्ता, गरिमा और सम्मान के खिलाफ

भारत की साख की पड़ताल पर लोकसभा में 13 मार्च, 1997 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मैं इस सदन और समस्त राष्ट्र का ध्यान एक समस्या की ओर दिलाना चाहता हूँ जो मेरे विचार से काफी गंभीर है। दिनांक 12 मार्च को बिजनेस स्टेंडर्ड नामक समाचारपत्र में एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसमें यह कहा गया था कि भारत सरकार को एक संगठन ने, जो कि सरकारी संगठन नहीं है जो किसी भी देश की साख के संबंध में अपनी राय देता है, लगभग 46 प्रश्न भारत सरकार से पूछे हैं। यह सभी प्रश्न विनिवेश, निजीकरण, बीमा और सहायता दिए जाने के संबंध में हैं।

समाचार इस प्रकार से है ‘‘टफ मूडीज पोजर्स टु डिसाइड इंडियाज रेटिंग्स’’। इससे पूर्व ‘वल्र्ड बैंक’ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष पूछ रहे थे और अब ‘मूडी’ की बारी है। यह बड़ा समाचार नहीं है। अगर आप चाहें तो मैं इसे पढ़ दूंगा। इसकी भाषा इस प्रकार की है कि कोई भी भारतीय शर्म महसूस करे। मुझे नहीं पता कि सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया है। मेरी जानकारी के अनुसार सरकार इन समस्त प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास कर रही है। इस संबंध में तैयारियां चल रही हैं। इस सभा को यह सब नहीं पता चलेगा। इस देश की जनता को भी यह नहीं पता चलेगा। इस राष्ट्र के लिए ‘साख’ प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए ‘मूडी’ नामक संस्था को नीतिगत मामलों का खुलासा कर दिया जाएगा। यह एक प्राइवेट संस्था है। अध्यक्ष महोदय, आपकी अनुमति से मैं यहाँ पढ़ना चाहूँगा।

‘‘अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साख निर्धारण करने वाली संस्था ‘मूडी’ की निवेशक सेवा द्वारा सरकार से विभिन्न विषयों पर कुछेक मुश्किल सवाल पूछे गए हैं जिनमें तेल पूल के घाटे के केन्द्र के खर्च में मिलाए जाने, सरकारी क्षेत्र के खर्च में गैर-लचीलापन तथा सरकार की सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेशऩ्शेयर बेचे जाना) के निर्धारित कार्यक्रम के पूरा किए जाने में असफल होने जैसे सवाल भी शामिल हैं।

इन प्रश्नों के संबंध में सरकार द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर ‘मूडी’ भारत को ‘साख’ प्रमाणपत्र दिए जाने के संबंध में की जाने वाली निगरानी के संबंध में निर्णय लेगा। बजट के केवल एक सप्ताह बाद इस संस्था ने हमारे देश में पैसा लगाने के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखा था। यह रिपोर्ट बजट प्रस्तुत होने से पहले तैयार की गई थी। इस संस्था की प्रमुख जोखिम एकक ने मार्च के तीसरे सप्ताह में अपने दौरे के दौरान वित्त मंत्रालय से 46 मुद्दों को विचार-विमर्श के लिए चुना है। ‘मूडी’ यह भी चाहता है कि पूँजी की परिवर्तनीयता, बीमा, पेंशन और भविष्य निधि क्षेत्र को खोले जाने के संबंध में एक समय सीमा निर्धारित की जाए। सरकारी मूल्य निर्धारण को समाप्त करने एवं राजसहायता में कमी लाने जैसे दीर्घावधि नीतिगत मामलों की पुनरीक्षा भी यह चाहता है। इसके द्वारा पूछे गए प्रश्न सात शीर्षकों में विभाजित किए गए हैं जो इस प्रकार हैं, वित्तीय नीति, नियंत्रण समाप्त करना, औद्योगिक नीति, देशीय ऋण प्रबंध, विदेशी खाते, वित्तीय और विनियम दरों की नीति और मूल्य एवं विदेशी वाणिज्यिक ऋण। सरकार से यह भी कहा गया है कि वह उनके कारणों का पता लगाए जिनके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के खर्च में लचीलापन नहीं आ सकता है तथा वित्तीय असमानताओं को दूर करने में आने वाली राजनीतिक और आर्थिक बाधाएं कौन सी हैं।

‘मूडी’ ने यह पता लगाने की कोशिश भी की है कि क्या इस क्षेत्र में सुधार लाने के लिए राजनीतिक वातावरण में बदलाव आया है। तेल पूल खाते के संबंध में ‘मूडी’ ने यह जानने की कोशिश की है कि किस प्रकार इसका खर्च केन्द्र सरकार के खर्च में मिलाया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि तेल पूल के घाटे को वित्तीय घाटे का भाग नहीं माना जाता। विनिवेशन के मामले में ‘मूडी’ ने यह पूछा है कि किस कारण से निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं किया गया। ‘मूडी’ ने केन्द्र से यह भी पूछा है कि राज्य और स्थानीय खर्च को नियंत्रित करने के लिए इसके पास क्या साधन हैं। इसने यह भी जानना चाहा है कि राज्यों द्वारा भुगतान नहीं करने तथा क्रमशः आगे चले आ रहे भुगतान की अदायगी के लिय यह क्या करती है? आधारभूत सुविधाओं के लिए ‘मूडी’ ने एक ऐसी दीर्घकालिक नीति के संबंध में जानकारी मांगी है जिससे कि निजी निवेश को प्रोत्साहन मिले तथा इसने इन परियोजनाओं के बारे में सरकार द्वारा गारंटी दिए जाने हेतुइसकी राय जाननी चाही है। घरेलू ऋण प्रबंध पर ‘मूडी’ ने सरकार को आड़े हाथों लिया। क्या वर्तमान सरकार ने विशाल सरकारी ऋण के बोझ को समझा है। मूडी ने इस ऋण के व्यवस्थित करने के उपायों के बारे में जानकारी मांगी है। सरकार से उन वित्तीय उपायों की जानकारी पूछी गई है जिन्हें 1997-98 में घरेलू मांग प्रबंध में उपयोग किया जाएगा।

विदेशों से होने वाले लेन-देन के संबंध में ‘मूडी’ ने यह पूछा है कि राजस्व सुधारों के मद्देनजर शुल्क में कितनी अतिरिक्त रियायत दी जा सकती है। यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है क्योंकि शुल्क में कमी करने से सरकार की आय में कमी आएगी जिसे राजस्व सुधारों से पूरा करना होगा।’’ अगर वे मौजूद भी हैं, तो भी मुझे उनसे कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है। मैं साफ बोलने वाला हूँ। उन पर इसके लिए इतना अधिक दबाव है। केवल यही समाचार नहीं है। इसी पृष्ठ पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भी एक अन्य खबर है। अध्यक्ष महोदय, हम कहाँ जा रहे हैं? मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं नहीं चाहता कि कोई इसका उत्तर दे चूंकि वित्तमंत्री यहाँ आएंगे और अपनी मीठी भाषा में वक्तव्य देकर सबको संतुष्ट कर देंगे। इतने चतुर वित्तमंत्री हमें पहले कभी नहीं मिले।

श्री सोमनाथ चटर्जी इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे, ऐसी मुझे उम्मीद है। मुझे अपने मित्रों से ऐसी आशा है, जो कुछ नीतियों के प्रति वचनबद्ध हैं। अध्यक्ष महोदय, यह केवल आर्थिक नीति का प्रश्न नहीं है। यह इस देश की गरिमा, सम्मान और प्रभुसत्ता की बात है। जो दांव पर लगी है। अध्यक्ष महोदय, मैं सरकार से यह जानना चाहता हूँ कि क्या वह मार्च के तीसरे सप्ताह में इन समस्त मुद्दों को इस सभा के समक्ष लाए बिना ही, इनका प्रत्युत्तर देगी? अध्यक्ष महोदय, यह महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दे हैं और इसीलिए मैंने केवल इस संबंध में आपको सूचना भेजी थी चूंकि शून्यकाल में बोलने की मेरी आदत नहीं है। लेकिन, मेरे विचार से यह मामला इतना महत्वपूर्ण है कि हम इसकी अवहेलना नहीं कर सकते। अध्यक्ष महोदय, मैं यह चाहता हूँ कि आप अपने पद का उपयोग करते हुए इस विषय को देखें ताकि यह सरकार इस राष्ट्र के सम्मान और गरिमा को बचाने की बात समझ सके।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।