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विनाश की ओर ले जा रही है परमाणु बम विस्फोट की राजनीति, होड़ से बचें

लोकसभा में 27 मई, 1998 को परमाणु बम की राजनीति पर चन्द्रशेखर

सभापति जी, मैं प्रारम्भ में ही कहना चाहता हूँ कि मैं परमाणु बम की राजनीति के विरुद्ध हूँ। व्यक्तिगत तौर से मैं इस बारे में बहुत स्पष्ट हूँ कि परमाणु बम की राजनीति विनाश की राजनीति है, यह मृत्यु की राजनीति है, यह मानवता के संहार की राजनीति है, लेकिन परमाणु बम हमें बनाना चाहिए या नहीं यह अधिकार हमारा है। इसके ऊपर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।

सभापति जी, दुनिया के बड़े राष्ट्र इस पर रोक लगाकर स्वयं परमाणु बम बनाएं, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसी नीति को भारत ने इतने वर्षों तक अपनाया और उसे चलाया भी। हमने कहा कि हम परमाणु शक्ति के बारे में शोध करेंगे, उसको मानवता के विकास के लिए उपयोग में लाएंगे, लेकिन हमने हमेशा कहा कि हम संहार के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे, देश की जरूरत होगी तो उस बारे में अपना विकल्प खुला रखेंगे। हम उस बात से अपने को अलग नहीं कर पाते हैं।

जगमोहन जी के बड़े साहसपूर्ण और उत्साह भरे भाषण से मेरे मन पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि वह भाषण बड़ा बचकाना भाषण था। बचकाना इस मायने में कि उन्होंने कहा कि हर प्रधानमंत्री की टेबल पर वह फाइल गई। दुनिया के लोग इसे सुनकर हसेंगे। जगमोहन जी पढ़े-लिखे आदमी हैं, उनसे मैं अपेक्षा करता था। कौन फाइल, किस प्रधानमंत्री के यहाँ जाती है, इसकी चर्चा तो मैं नहीं करूँगा मगर मैं भी थोड़े दिन प्रधानमंत्री था। मेरे पास प्रधानमंत्री की हैसियत से यह फाइल नहीं आई थी। किसी भी प्रधानमंत्री के पास यह मामला निर्णय के लिए लम्बित नहीं पड़ा था। यह पूर्णतःगलत है। यह गैर-जिम्मेदाराना है। यह इस देश में संपूर्ण सरकारी तन्त्र की निन्दा करना है।

मैं उस फाइल के बारे में नहीं कहता लेकिन आपको याद होगा श्री राजीव गाँधी ने दुनिया के सामने कहा था कि दुनिया अणुशक्ति के हथियारों के बिना हो और जिस दिन दुनिया ने उसे स्वीकार नहीं किया उस दिन से भारत ने अपने विकल्प कभी बन्द नहीं किये। उस दिशा में कदम उठते रहे और कदम चलते रहे। मैं इससे अधिक कुछ नहीं कहना चाहता। क्योंकि आज एक होड़ लग गई है कि हमने बम फोड़ा या किसी और ने उसमें सहायता की। प्रधानमंत्री जी को बधाई दूँ या धन्यवाद दूँ क्योंकि उन्होंने कहा कि दूसरों ने भी कुछ उसमें हिस्सा बंटाया। एक सदस्य ने, शायद इन्होंने ही कहा कि यह उनकी उदारता थी कि दूसरों के बारे में उन्होंने कुछ कह दिया। इस बात को मैं क्यों नहीं कह रहा हूँ जैसा मैंने आपके सामने कहा कि अणुशक्ति को बढ़ावा देना, इसके बदले बम बनाने की बात करना आज दुनिया के सामने एक नासमझी की बात है और वह नासमझी दुनिया स्वीकार कर चुकी है।

आज हमसे बार-बार कहा जाता है कि इससे हमारे देश की सुरक्षा पर जो खतरा है वह कम हो जायेगा। पहले तो मैं कहूँगा कि नटवरसिंह जी ने पता नहीं भूल से या अपनी पुरानी बात याद करके एक सही बात कहने का साहस किया। कांग्रेस पार्टी में, ऐसा साहस शायद, मालूम होता है, पिछले एक महीने तक नहीं था, आज यह साहस आ गया है। मैं इसके लिए उनको बधाई देता हूँ। मैं इसलिए कहना चाहता हूँ कि हमारी सुरक्षा के ऊपर पहले कोई खतरा नहीं था और अगर खतरा था तो पोखरण के विस्फोट से कम नहीं हो गया, वह खतरा अपनी जगह पर है।

क्या आप जानते हैं कि अमरीका के पास दुनिया में सबसे अधिक अणुबम हैं। अमरीका 12 वर्षों तक वियतनाम में लड़ता रहा, बे आॅफ पिग्स में दोनों फौजें आमने-सामने खड़ी रहीं। अमरीका के लोगों ने बम क्यों नहीं चला दिया। रूस के पास दुनिया में दूसरे नम्बर का अणुबम हैं। वह देश टूट गया, बिखर गया, उसके चार-पाँच राज्यों के पास आज अणुबम हैं। बारह हों या ग्यारह हों, हम उसमें नहीं जाते। अणुबम से सुरक्षा नहीं बढ़ती। अणुबम की बात करके, सुरक्षा पर खतरा बन्द करके, आपने देश के लोगों का मनोबल नहीं बढ़ाया है। देश के लोगों के सामने आपने अपना बाहुबल पुजवाने के लिए एक काल्पनिकखतरा पैदा किया है, यह कोई अच्छी बात नहीं हैं।

राजनीति में यह भी कहा गया कि हमने इतिहास पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। इतिहास पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत के इतिहास को विकृत मत कीजिए, यह खतरनाक खेल है। इतिहास बड़ा कूर निर्णायक होता है। इतिहास कोई एक दिन में नहीं लिखा जाता, अखबारों के पन्नों से इतिहास नहीं लिखा जाता, लोगों के प्रशस्ति गानों से इतिहास नहीं लिखा जाता है। मैं जानता हूँ और मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि एक ओर दुनिया के लोगों ने अणुबम के सहारे सुरक्षा की कल्पना को अस्वीकार कर दिया है। शायद आपको यह मालूम नहीं। आप बहुत नोट बनाकर ले आये थे। आज दुनिया यह भी मानती है कि हिरोशिमा पर बम गिराने की जरूरत नहीं थी, उसके पहले जापान आत्मसमर्पण करने को तैयार था। आज अमरीका के लोग भी कहते हैं कि अगर वह बम नहीं गिरता तब भी उस लड़ाई का वही फल होता, जो जापान में हुआ था।

मैं उन बातों को दोहराना नहीं चाहता जिनको नटवर सिंह जी ने कहा लेकिन कौन नहीं जानता पिछले 8-10 वर्षों में हमारे देश के चीन से रिश्ते अच्छे बने हैं। पाकिस्तान के साथ हमने सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया। हमारे मित्र गुजराल साहब आज बहुत दुःखी होंगे क्योंकि उनकी गुजराल डाक्ट्रिन पता नहीं कहाँ चली गई। मैंने तभी कहा था यह डाक्ट्रिन मत बनाइये, यह डाक्ट्रिन बहुत दिन चलने वाली नहीं है।

अटल जी मैं आज आपको भी कहता हूँ कि पुरुषार्थ का यह ढोंग पीटना देश के लिए खतरनाक होगा। यह आपके लिए भी लाभदायक नहीं होने वाला है। क्योंकि यह एक खतरनाक खेल है। दुनिया में अगर यह होड़ लग गई और यह होड़ इस उपमहाद्वीप में लग गई है, जैसा आज दिखायी पड़ता है, तो पता नहीं इस उपमहाद्वीप का क्या होने वाला है? अभी मैंने सुना कि हम दुनिया के इतिहास में अपना एक रोल अदा करेंगे। हम किसी से डरते नहीं, हमने अपना स्थान बना लिया है। किसके सामने ये बातें कह रहे हैं?

आज सारी दुनिया हमारे बारे में जानती है। सभापति जी, मार्च, 1997 में हमारे देश पर 91 बिलियन डालर का कर्ज था। 15 बिलियन डालर का कर्जा हमारे एन.आर. आईज और दूसरे लोगों का था। 102 विलियन डालर का कर्जा लेकर आज हम दुनिया को एक नई राह दिखाने के लिए एक नये संकल्प केसाथ चल रहे हैं। अणुबम से कोई फायदा हो या न हो, जिस दिन से आपने इस अणुबम को फोड़ा है, रुपये की कीमत डालर के मुकाबले में दो रुपये कम हो गई है। 212 बिलियन डालर का कर्जा आज इस देश के ऊपर और बढ़ गया है। क्या यह बात आप देश को बता सकते हो। यह 212 बिलियन डालर भारतीय जनता पार्टी नहीं देगी, समाजवादी पार्टी नहीं देगी, चन्द्रशेखर, गुजराल और शरद पवार नहीं देंगे। यह पैसा देश के गरीब लोगों की पाॅकेट से आयेगा। कहते हैं कि पैसे की कोई कमी नहीं है।

मैं नहीं जानता हमारे मित्र यशवन्त जी कहाँ है। उनके ऊपर क्या गुजर रही होगी। अणुबम की सराहना करते-करते वह कहीं और सोच रहे होंगे कि बजट को कैसे संतुलित बनायें। यह एक समस्या है। आज यह समस्या सुरक्षा की नहीं है। अगर आज यह सुरक्षा की समस्या होती तो हम इस देश के मनोबल को ऊँचा करने की कोशिश करते हैं। हमारे सामने वह एक उदाहरण था। दुनिया के लोगों ने कहा कि अणुबम डिटेरेंट हो या नहीं हो। वियतनाम के लोगों का मनोबल अणुबम का एक डिटेरेंट था, क्या उसकी ओर भी आपने कभी ध्यान दिया है। क्या भारत की जनता के भूखे-प्यासे लोगों की ओर भी आपकी निगाह जाती है। इस संसद में बैठक करके हम इस बात के लिए श्रेय लेना चाहते हैं कि हमारा भी उसमें थोड़ा कंट्रीब्यूशन था। हमने भी अणुबम बनाने में थोड़ा साथ दिया था और मुझे आश्चर्य होता है सरकारी पार्टी उसका श्रेय लेना चाहे तो ले। विरोधी पार्टी के लोग भी इसमें जैसे होड़ में लगे हुए हैं। यह एक खतरनाक खेल है और इस खतरनाक खेल में हम सारे देश को झोंकते जा रहे हैं। इससे हमें लगता है कि हमारा भविष्य एक भयावह संकट की ओर चला जा रहा है।

सभापति जी, मैं आपसे एक बात और कहना चाहूँगा। इस उपमहाद्वीप में हम क्या चाहते हैं क्या हम एक-दूसरे पर बम चलाकर अपने को विजयी घोषित कर सकेंगे। लाहौर पर जो बम गिरेगा तो अमृतसर का क्या होगा। हम कहते हैं कि हमारे मित्र जाॅर्ज फर्नांडीज और हम लोग पुराने समाजवादी हैं। हम बोलने में बड़ा विश्वास रखते हैं और वाणी की स्वतन्त्रता हम लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन हम लोग यह भूल जाते हैं कि कभी-कभी कर्तव्य के लिए वाणी को विश्राम भी देना चाहिए। इसलिए मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। क्योंकि हम लोग उस परम्परा को भूल ही नहीं पाते हैं। वाणी खुली हुई हो, जो चाहे मौके-बेमौके जो बोलना हो बोल दें, चाहे उसकापरिणाम जो भी हो। अटल जी ने एक बड़ा बम बनाया उसके बाद संतुलित हो गये।

मैं उनको बार-बार गुरूदेव कहता हूँ, मुझे प्रसन्नता हुई जब वह संतुलित भाषा में बोले। लेकिन आडवाणी जी को क्या हो गया वह भी ललकारने लगे। जैसे पुरुषार्थ की परम्परा इस देश में फिर से जग गई हो। हमारे मित्र भैरोसिंह शेखावत पोखरण की मिट्टी लेकर घूमने लगे। वह चित्तौड़, हल्दी घाटी भूल गये, वह मीरा को भूल गये, वह अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज को भूल गये और वह राजस्थान की परम्परा भूल गये। इस मिट्टी को लेकर जिस मिट्टी में पता नहीं कोई विषाक्त कण ही पड़े हों, उसको लेकर वह कहाँ जाना चाहते हैं। इस तरह लोगों के मन में जज्बात पैदा करके इस देश में एक गलत होड़ पैदा मत कीजिए। हथियारों की होड़ पैदा करके दुनिया के अनेक देशों ने अनेक क्षेत्रों में बरबादी का माजरा देखा है और क्या इस देश में भी यह काम होने जा रहा है।

क्या हुआ दुनिया के दूसरे गरीब देशों में, इन्हीं बड़े लोगों ने इस प्रकार के उत्साह उन लोगों के मन में जगाये और जगा करके एक-दूसरे को लड़ाकर अपने हथियार बेचे। मैं नहीं जानता कहीं किसी कोने से कहीं कोई हमको भी न उकसा रहा हो। मैं किसी के ऊपर कोई संदेह नहीं करता। लेकिन एक ओर अणुबम विस्फोट होता है और दूसरी ओर सी.टी.बी.टी. पर दस्तखत करने की भी बात चलती है तो मन में यह शंका पैदा होना कोई गलत बात नहीं होगी। सभापति जी याद रखिये अब कोई इच्छा नहीं है कि सी.टी.बी.टी. पर हम दस्तखत करते हैं या नहीं करते हैं।

हम करें या न करें, लेकिन दुनिया हमारे इरादे को जान गई है, ऐसा अभी हमारे एक भाई ने कहा कि जो गुप्त था, जो लोगों की निगाह से छिपा हुआ था, उसको दुनिया के सामने रख दिया। जिसके खिलाफ हम यह काम करने जा रहे हैं, उसको हमने एक बड़ा भारी अवसर दिया है। मैं नहीं जानता कि वही भूल हमारे नवाज शरीफ साहब करेंगे। अगर नवाज शरीफ साहब वह भूल न करें तो आज जैसी स्थिति में वे हैं, उसका जवाब हमारे पास नहीं है। दुनिया के दूसरे देश उनको सारी सुरक्षा दे सकते हैं, उनको सारी सहायता दे सकते हैं, उनको सारा धन दे सकते हैं।

बेअक्ल लोगों की सलाह लेने से प्रधानमंत्री जी कभी-कभी हम खतरे मेपड़ जाते हैं। कभी-कभी अति उत्साह में काम करने से आदमी अपने विनाश की ओर चला जाता है। यह काम हमारे देश में हो रहा है।

मैं चाहता हूँ कि इससे आज ही विरक्त हों। मैं नहीं जानता कि आप कैसे विरक्त हो सकते हैं क्योंकि आपने एक ऐसा कदम उठा लिया है जिससे पीछे हटना शायद आपके लिए संभव नहीं है। मैं जानता हूँ कि ये कदम पुरुषार्थ के बल पर नहीं उठाए गए बल्कि अन्दर से कांपता हुआ दिल और ऊँचे स्वरों में कुछ कहकर दुनिया को लुभाना चाहते हैं, दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि हम असमर्थ नहीं हैं, हम अपंग नहीं हैं, हमारे अन्दर शक्ति है, हमारे अन्दर ताकत है, हमारे अन्दर क्षमता है।

यह प्रलाप, सामथ्र्य का द्योतक नहीं है। यह प्रलाप कमजोरी है, यह मन का डर है। इस मन के डर को अपने मन से निकालिए। हमारे जैसे बड़े देश की सुरक्षा के लिए अलग खतरा है, तो वह खतरा परमाणु बम से दूर होने वाला नहीं है। उस खतरे को दूर करने के लिए देश के एक-एक व्यक्ति को जगाना होगा, देश के लोगों में एक नया आत्मविश्वास पैदा करना होगा। मैंने अभी एक बड़े नेता का भाषण अखबारों में पढ़ा। उसमें उन्होंने कहा कि अच्छा हुआ जो हमारे ऊपर सैंक्शन लग रही हैं। विदेशी लोग हमारे ऊपर सैंक्शन लगा रहे हैं। अगर हमें बाहर से पैसा नहीं मिलेगा, तो हम स्वदेशी और स्वावलंबन का नारा लगाएंगे। मैं कहना चाहता हूँ कि स्वदेशी और स्वावलंबन का नारा कोई विवशता का नारा नहीं है। यह आत्मविश्वास का नारा है। यह लोगों के प्रति श्रद्धा का नारा है। इसको विवशता का नारा मत बनाइए। स्वदेशी का नारा विवश लोग नहीं लगाते। स्वदेशी का नारा गाँधी लगा सकता है। स्वावलंबन का नारा वह लगा सकता है जो आधी धोती पहनकर, गरीबों के साथ एकात्म करके उन करोड़ों लोगों को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़ा कर सकता था। दोनों बातें नहीं चलेंगी। एक तरफ उदारीकरण की नीति को चलने देने की बात कहते हैं और दूसरी ओर आप परमाणु बम विस्फोट की बात कहते हैं।

आप अमेरिका का मुकाबला करेंगे या दुनिया के बड़े देशों का मुकाबला करेंगे और विश्व बैंक को चुनौती देने की बात करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की कोई परवाह नहीं करेंगे, तो कैसे काम चलेगा। एक ओर बम विस्फोट और दूसरी ओर उदारीकरण की नीति, ये दोनों बातें कैसे चलेंगी। यह किसराष्ट्रनायक की भाषा है? दुनिया के लोग सैंक्शन लगाएंगे, तो उदारीकरण की बात छोड़िए। तमाम दुनिया के देशों के सामने अपनी परिस्थितियों को रखें, अपने दृष्टिकोण को रखें, देश के लोगों को तैयार करें।

कौन नहीं जानता, हमारे मित्र नटवर सिंह जी ने अभी बड़े जोरों से कहा था कि अगर परमाणु बम विस्फोट के कारण हमारे देश पर सैंक्शन लगती है, तो हम आपका समर्थन करेंगे, हम खडे़ हो जाएंगे। कहाँ खड़े हो जाएंगे? मुझे मालूम नहीं। श्रीमान उदारीकरण आपकी ही सरकार ने स्वीकार किया था। उसका फल भुगतने के लिए देश तैयार है। वैसे यह देश उसका फल आसानी से भुगतता, लेकिन हमारे नए प्रधानमंत्री महोदय, हमारे गुरूदेव ने बम विस्फोट करके उसके फल भुगतने के लिए वातावरण जल्दी तैयार कर दिया। इस बात से आपको गुरेज नहीं होनी चाहिए। उन्होंने तो आपकी ही सहायता की है।

सभापति महोदय, हम लोग तो चले जाएंगे लेकिन आने वाली पीढ़ियों को हम क्या छोड़कर जाने वाले हैं? इतनी जल्दी-जल्दी काम करके हम लोग स्वयं उसका भुगतान चाहते हैं, यह अच्छी बात है। नहीं, तो इसी भ्रम में देश की जनता रह जाएगी कि शायद उदारीकरण से कोई बड़ी भारी सफलता मिलेगी, बड़ा भारी विकास होगा, बड़ा भारी उत्थान होने वाला है और उस उत्थान के बल पर देश एक नई दिशा की ओर जा रहा है।

सभापति महोदय, में बहुत विनम्र शब्दों में कहूँगा, मैं आलोचना नहीं कर रहा हूँ, मुझे एक भयंकर भविष्य दिखाई पड़ रहा है। मुझे ऐसा लग रहा है कि हम जाने-अनजाने उस दिशा में जा रहे हैं जिसका ज्ञान हमें नहीं है। यदि हमने दुनिया के इतिहास में झांक कर देखा होता, जरा रुक कर अगर हमने सोचा होता, अगर यह सोचा होता कि इन 24 वर्षों तक ये विस्फोट क्यों नहीं किए गए, तो शायद हमें उन्हीं फाइलों के पन्नों में यह मिल जाता है कि विस्फोट करना आसान है, लेकिन उसके परिणाम भुगतना कोई आसान काम नहीं है और उसकी जरूरत क्या है?

क्या वह विस्फोट जरूरी था? क्या अर्थशास्त्र में हमको सामथ्र्य देने के लिए उसकी जरूरत थी। हमारे वैज्ञानिक जो कार्य कर रहे हैं, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। लेकिन आजकल एक और नयी बात चल गयी है कि केवल हमारे प्रधानमंत्री जी वक्तव्य नहीं देते, हमारे रक्षामंत्री ही वक्तव्य नहीं देते बल्कि सरकारी अधिकारी भी वक्तव्य देते हैं। वे अधिकारी इस तरह का वक्तव्यदेते हैं जैसे वे लड़ाई के लिए कल ही तैयार हैं।

हमने श्री आडवाणी जी का भाषण अखबारों में पढ़ा कि वह राष्ट्रपति प्रणाली लागू करना चाहते हैं। पता नहीं राष्ट्रपति प्रणाली कब आयेगी लेकिन अटल जी ने अपने कार्यालय मैं राष्ट्रपति प्रणाली लागू कर दी है। सरकारी ऊँचे पद पर एक पार्टी के सदस्य को बैठाकर उन्होंने एक नयी परम्परा को लागू किया है और उस सदस्य ने शपथ ली हो या न ली हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका जब टी.वी. पर भाषण सुन रहा था तो मैं समझता हूँ कि उस जोश से आडवाणी जी भी नहीं बोल सकते जिस जोश से वे बीजे.पी. की सराहना कर रहे थे और कह रहे थे कि हम दुनिया को दिखा देंगे कि हमारे पास कितनी सामथ्र्य है।

मत कीजिए आप इस काम को। जब संविधान में संशोधन कर लेंगे, तब राष्ट्रपति प्रणाली आ जायेगी, और जब वह सिस्टम इस देश में लागू हो जायेगा तब इन सरकारी कर्मचारियों को अधिक उत्साह के साथ खुलकर बात करने की छूट दीजिए, मुझे कोई एतराज नहीं होगा। मुझे ऐसा लगता है कि इस सिस्टम को नीचे-नीचे आप कुरेद देना चाहते हैं। इस सिस्टम को आप नीचे-नीचे तोड़ देना चाहते हैं। यह खेल अगर बहुत दिनों तक चलता रहा तो इसके परिणाम बुरे होंगे। यह मत समझिये कि हमारे वीरता भरे भाषणों से दुनिया पर कोई प्रभाव पड़ रहा है। दुनिया हमारा मखौल उड़ा रही है, हम पर हँस रही है। जो लोग आपकी तारीफ कर रहे हैं, वह इसलिए कर रहे हैं कि हम इस बर्बादी के रास्ते पर और तेजी से चलें। मैं यहाँ पर यह कहने के लिए आया हूँ ताकि आप अब भी समझिये। बम नहीं बल्कि लोगों का मनोबल बढ़ाने की कोशिश कीजिए। उसी पर भारत का भविष्य निर्भर है। इस रास्ते से जितनी जल्दी आप विरत हों और देश को जितनी जल्दी इन जजबातों की दौड़ से छुटकारा दिला सकें तो हमारे लिए, देश के लिए एक नये भविष्य का सूत्रपात होगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।