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विदेशी मुद्रा और कर्ज़ पर निर्भर रहना देश की आत्मनिर्भरता के खिलाफ, पक्ष-विपक्ष दोनों सुने साठे की सलाह

बसन्त साठे द्वारा आमरण अनसन की घोषणा पर 17 सितम्बर, 1999 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, मैं एक चिन्ताजनक स्थिति की ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ। 21वीं सदी हमारे लिए कहीं आर्थिक संकट की सदी न हो जाये, यह चिन्ता हमारे देश के अनेक वर्गों में है। मैं उसकी ओर ध्यान इसलिए दिलाना चाहता हूँ कि लोकसभा के बहुत दिनों तक सदस्य रहे, मंत्रिमण्डल में कई पदों को उन्होंने सुशोभित किया, वसन्त साठे जी ने इस सवाल को बार-बार उठाया है।

पिछले पाँच वर्षों में उन्होंने इस पर कई बार टिप्पणी भी की है। उनका कहना है कि भारत जैसे देश में, जहाँ कहा जाता है कि 30 करोड़ मध्यम वर्ग के हैं, वहाँ केवल एक फीसदी लोग टैक्स देते हैं और नतीजा यह होता है कि सरकारी खजाने में टैक्स कम आता है और हम विदेशी मुद्रा पर, कर्ज के ऊपर निर्भर हैं। कर्ज दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। आज आंकड़ा यह है कि 40 फीसदी उस पर सूद में और उस पर खर्च करने में लग जाता है, इसलिए विदेशी मुद्रा पर निर्भर रहना इस देश में सम्मान के खिलाफ आत्मनिर्भरता के खिलाफ, हमारे पुरुषार्थ के खिलाफ एक बड़ी चिन्ता है।

श्री वसन्त साठे ने जब माननीय नरसिंह राव जी प्रधानमंत्री थे। एक पुस्तक ‘टैक्स विदाउट फियर’ लिखी थी। उसको मनमोहन सिंह जी ने नरसिंह राव जी को दिया था। उसमें उन्होंने कुछ सुझाव दिए थे। वे लगातार लिखते रहे हैं, लोगों से चर्चा करते रहे हैं। आर्थिक विषय के जानकार लोगों से उन्होंने बातचीत की, बीच-बीच में कई बार उन्होंने मुझसे भी बात की। उन्होंने कुछ सुझाव दिए हैं, मैं उनमें नहीं जाना चाहता, कि अगर दस फीसदी लोग भी टैक्सदेने लगें तो हमारी सरकार की आमदनी टैक्स से ही पाँच-छः गुना बढ़ जाएगी। उन्होंने कुछ सुझाव दिये हैं, उन पर वे चर्चा चाहते हैं। जब किसी ने चर्चा नहीं की तो उदास होकर दुःखी होकर उन्होंने कठोर निर्णय लिया है।

वसन्त साठे जी भारत की राजनीति को जानते हैं, अर्थ नीति को जानते हैं। स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों से लेकर कांग्रेस पार्टी के अन्दर मैंने उनको निकट से देखा है। हमारी सांस्कृतिक परम्पराओं के वे जानकर हैं। उन्होंने दुःखी होकर यह निर्णय लिया है कि अगर इस पर चर्चा नहीं हुई, विचार भी नहीं हुआ तो 4 मार्च, 2000 से वे आमरण अनशन करेंगे। ऐसी स्थिति न पैदा हो, उसके लिए केवल यह माँग है कि सरकार के लोग सरकार के अलावा दूसरे उनकी पार्टी के लोग भी इस विषय में कम-से-कम बातचीत करें। उस पर उन्होंने कई लोगों के विचार लिए हैं, उसका स्वागत भी किया गया है।

मैं आपके जरिए सरकार से विशेष रूप से निवेदन करूँगा कि इस विषय पर चर्चा करें। उनकी जो किताब है, उन्होंने सबको भेजी है। आपको भी भेजी है, प्रधानमंत्री जी को भेजी है और नेता विरोधी दल को भी भेजी है। मैं आपसे निवेदन करूँगा इस पर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि देश धीरे-धीरे ऐसे जाल में फंस रहा है, जहाँ केवल विदेशी सहायता के ऊपर 100 करोड़ के देश को चलाना सम्भव नहीं। वह आत्मनिर्भरता की बात, वह पुरुषार्थ की बात, वह संयम की बात अब नहीं रही। इससे उनका दुःखी होना स्वाभाविक है। उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया है। उन्होंने देश के निर्माण में काम किया है। ऐसे व्यक्ति को अगर ऐसा निर्णय लेना पड़े तो हमारे लिए बहुत दुःख की बात है।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कहूँगा कि आप संसदीय कार्यमंत्री से निवेदन करें मैं उनसे भी आपके जरिए निवेदन करता हूँ कि वे प्रधानमंत्री जी से कहें और नेता विरोधी दल, दूसरे दलों के नेताओं और सोमनाथ जी सब मिलकर कम-से कम उनकी बात सुनें उस पर विचार करें और देखें कि उसको करना कितना सम्भव है। बजट बनाने में हमारे वित्तमंत्री जी को कठिनाई होगी। इससे उनको भी सहायता मिलेगी, मैं ऐसा समझता हूँ।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।