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चंडीगढ़ में सुधार, लुधियाना, जालन्धर और अमृतसर में भी उठाये गए प्रशासनिक कदम

पंजाब की स्थिति पर 11 जनवरी, 1991 को लोकसभा में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, पंजाब के बारे में जो चिन्ता व्यक्त की गयी है, वह बहुत वास्तविक है। पंजाब की हालत में कोई सुधार नहीं है, मैं मानता हूँ। यह भी सही है कि लोगों के मन में आशंका और डर बना हुआ है। लेकिन स्थिति इतनी भयावह नहीं है कि हम उससे घबराकर के हाथ-पैर छोड़ दें और यह समझें जैसा कि कुछ सदस्यों ने कहा है, कि ऐसा लगता है कि वहाँ खालिस्तान बन गया और कोई कहीं पर पुरसाहाल में नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है कि पिछले कुछ दिनों में कुछ ऐसे आदेश अपने को कहने वाले आतंकवादियों द्वारा जारी किये गये हैं, जिनके जरिये लोगों की वेश-भूषा और जबान पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गयी है। मैं आपसे निवेदन करूँ कि इसका सबसे अधिक असर तब हुआ जब चंडीगढ़ पर चर्चा चलायी और ये आदेश जारी किये और उस आदेशों का पालन भी बहुत से सरकारी विभागों में किया गया वहाँ एक स्थिति ऐसी भी आयी कि आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर जो हिन्दी के बुलेटिन जारी होते हैं, उन्हें रोक दिया गया। हम यह नहीं कहते कि परिस्थिति बहुत बदल गयी लेकिन चंडीगढ़ में वह स्थिति नहीं है। चंडीगढ़ में कुछ कदम उठाये गए। उनके बारे में मैं तफसील में नहीं जाना चाहता हूँ। पिछले दस दिनों से चंडीगढ़ के आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर हिन्दी की बुलेटिन आती है। कोई भी किसी को वस्त्र पहनने के लिए धमकाता नहीं है। जबान बोलने के लिए कोई किसी पर जबरदस्ती जोर नहीं डाल रहा है। पिछले हफ्ते भर से चंडीगढ़ की यह स्थिति है।

यह इस कारण हुआ कि चंडीगढ़ के प्रशासन में जो कमी थी, उस कमी को दूर करने का हमने प्रयास किया। हम ऐसा मानते हैं कि यह सरकार कीजम्मेदारी है कि हर व्यक्ति सुरक्षित महसूस करे।

परन्तु मैं यह तो नहीं कह सकता कि कोई दुर्घटना ही नहीं घटेगी, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से जितनी सुरक्षा बलों की जरूरत थी, जितना लोगों को सांत्वना देने के लिए उनके मनोबल को, उनकी इच्छा शक्ति को बढ़ाने की जरूरत थी, वे कदम सरकार की ओर से उठाये गये हैं और उसके नतीजे भी निकले हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं जानता हूँ कि कुछ बातें कही जाती हैं कि हम घबराए हुए हैं और घबराहट में अपनी ही छाया भूत दिखाई पड़ने लगती है। इससे डरकर हम समस्या का समाधान नहीं कर सकेंगे। इस भूत के पीछे जो ताकतें हैं, उन ताकतों का विरोध करना होगा। अभी हमारे एक मित्र ने, जो धनबाद से संसद सदस्य हैं, उन्होंने सही बात कही कि अगर लोगों को डराया जाता है तो इस डर को मिटाने के लिए उनका मुकाबला करना होगा। मैं इस बात से सहमत हूँ कि सरकार की और हम सब की यह जिम्मेदारी होती है कि यह परिस्थिति पैदा करें कि लोग यह समझें कि उनके पीछे जो खड़ा है, चाहे वह आतंकवाद है, वह कुछ नहीं कर सकता है।

उन्होंने एक सवाल उठाया कि जो पुरुलिया और धनबाद में हुआ, वह दुःखद घटना हुई और सरकार को उस पर चिन्ता भी है लेकिन माननीय सदस्य की जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि जिस दिन यह घटना हुई, उसी दिन उस एस0पी0 के लिए जो सबसे ऊपर पदक है, देने के लिए सरकार ने प्रस्ताव रखा है। यही नहीं उनके परिवार की जो सहायता होगी, वह भी की जायेगी और शायद उनको जानकर संतोष होगा कि हमें अभी खबर मिली है जिन लोगों ने उक्त घटना को पुरूलिया और धनबाद में किया, आज शाम के पहले मर चुके हैं, वे नहीं हैं। उन तीनों में से एक की मौत कल हुई थी और दो की मौत आज हुई हैं।

ऐसा नहीं कि सरकार और प्रशासन ने इस दिशा में कदम नहीं उठाये हैं लेकिन आप जानते हैं कि मर्ज पुराना है, इलाज आसान नहीं, इलाज करवाने की कोशिश करनी पड़ेगी। हमने यहाँ बैठकर कई माननीय सदस्यों के भाषण सुने। यह सही है कि मन में कभी-कभी शंका होती है कि अगर किसी से भी हम बात करते हैं तो उससे गलत संकेत जाते हैं। मैं यह नहीं समझता कि बात करने के रास्ते को रोका कैसे जाय? केवल दमन को दबाने के रास्ते के लिएहमने 6-7 वर्षों तक कोशिश की। अगर कामयाबी नहीं मिली तो बात का रास्ता हिन्दुस्तान की राजनीति में पहली बार भारत की संसद में खोजा गया है। क्या यह सही नहीं है कि एक बार नहीं अनेक बार, मैं उदाहरण नहीं देना चाहता, मैं दृष्टांतों में नहीं जाऊँगा, पूरे इतिहास में नहीं जाऊँगा, नागालैंड हो, मिजोरम हो, तमिलनाडु हो, त्रिपुरा हो, जहाँ-जहाँ पर हमने बातचीत की, बातचीत के नतीजे आये। गुजरात ही नहीं, अनेक जगहों पर ये बात हुई और जब तक लोकशाही है, जनतंत्र है, बातचीत का रास्ता तो नहीं बन्द हो सकता है लेकिन बातचीत के रास्ते में अगर सीमाओं का अतिक्रमण हो, अगर कोई हद पार करके बातचीत हो तो वह गलत बात हो जायेगी।

हमारे मित्र खुराना जी ने अपने भाषण में जो उद्धरण दिया- मैं बैठा सुन रहा था अपने दफ्तर में कि मैंने दिल्ली के प्रेस कांफ्रेंस में क्या कहा। जो कुछ छपा है, वह सही छपा है। मैंने क्या कहा है? किसी अखबार वाले ने कहा कि क्या आप संविधान में संशोधन करने को तैयार होंगे अगर उनकी मांग हो इस बात के लिए? मैंने जवाब दिया अगर समझौता होता हो और संशोधन संसद को स्वीकार हो और संशोधन भारतीय एकता और अखंडता के ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह न लगाता हो तो उस पर विचार करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। इसलिए हर समय संविधान की बात जब हम करते हैं तो वह दूसरा वाक्य खुराना जी ने नहीं पढ़ा, जब मैंने यह कहा था कि देश की एकता और अखंडता के साथ कोई समझौता नहीं होगा।

हमने यह भी कहा है बार-बार, चाहे कोई बात करे या न करे, जो सरकार का मौलिक कर्तव्य है वह कर्तव्य है लोगों की सुरक्षा करना। उस सुरक्षा के सवाल के ऊपर कोई समझौता नहीं हो सकता और माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके जरिए इस देश को और इस सदन को बताना चाहता हूँ कि जो कोई भी हमारे पास बात करने के लिए आया उससे मैंने एक बात जरूर सफाई के साथ कही कि किसी निर्दोष की हत्या को हम सहन नहीं करेंगे और निर्दोष की हत्या अगर होती है तो उसका जवाब देना, उसको सही रास्ते पर लाना सरकार का मौलिक कर्तव्य है और उस कर्तव्य का निर्वाह सरकार हर हालत में करेगी। उसमें कोई अपवाद नहीं है।

मैं यह बात अगर करूँ कि जिन सिमरनजीत सिंह मान का नाम बार-बार लिया जाता है, अगर सिमरनजीत सिंह मान कहते हैं कि निर्दोष की हत्या होतीहै, अगर उनका आप दमन करें तो हम भी आपके साथ हैं तो मैं क्या कहूँ कि नहीं, आप हमारे साथ नहीं है। मैं नहीं जानता क्या परिधियां आप रखना चाहते हैं, क्या सीमाएं रखना चाहते हैं, किस तरह से बातचीत की जाए, इसके लिए कोई आप अगर ऐसा संकेत दें कि बातचीत करने में किन शब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए तो मैं समझता हूँ किसी के लिए भी बात करना मुमकिन नहीं होगा।

परिस्थितियों के बारे में मन की सफाई होनी चाहिए। किस हद तक हम जा सकते हैं इसकी भी सफाई होनी चाहिए।

बातचीत का मतलब यह नहीं है कि कोई आतंकवादी किसी निर्दोष की हत्या करे तो हमारी पुलिस के लोग, हमारी सुरक्षा बल के लोग हाथ पर रखकर बैठे रहे। अगर यह बात होती तो चंडीगढ़ में वह कदम सरकार नहीं उठाती जो कदम पिछले हफ्ते उठाए गए हैं। चंडीगढ़ में ही नहीं, मैंने प्रमुख नेताओं को यह बताया था कि पंजाब के बारे में हमारी क्या योजना है? अब बार-बार यह चर्चा होती है कि आप उसे विस्तार से बताइए। इससे बड़ी मुश्किलाहट होती है। कभी-कभी कुछ बातें नहीं बतायी जा सकतीं, लेकिन इतना मैं जरूर कहना चाहता हूँ कि हमने यह जरूर कहा है कि जिस तरह से चंडीगढ़ को सुरक्षित करने के लिए योजना बनायी गई है, उसी तरह से लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में भी कदम उठाए जाएं ताकि लोग वहाँ सुरक्षा की भावना से रह सकें।

हमने यह भी तय किया है कि 128 गांव हैं जहाँ पर सबसे अधिक आतंकवाद का जोर है। वहाँ पर विशेष सुरक्षा के लिए कदम उठाए गए हैं और पिछले तीन दिनों से वहाँ कार्यवाही शुरू कर दी गई है। उसके लिए हम बातचीत का इंतजार नहीं कर रहे हैं। क्योंकि यह दोनों चीजें अलग हैं। बातचीत अपनी जगह पर और देश में जनता के बीच में सुरक्षा की भावना बनाए रखना एक और बात है। इसलिए सरकारी तौर पर ऐडमिनिस्ट्रेटिव स्टेप जो हैं, प्रशासनिक कदम जो हैं उसको लेने में सरकार ने कोई कोताही नहीं की है।

अध्यक्ष महोदय, आपके जरिए सदन को यह बताना चाहता हूँ कि आवश्यक नहीं कि हर कदम जो उठाया जाए उसका इजहार सरकार अखबारों के जरिए करे। प्रशासन की कुछ अपनी सीमाएं होती हैं, अपनी कठिनाइयां होती हैं लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जीवन की रक्षा के लिए जोभी कदम उठाना आवश्यक होगा, वे कदम उठाए जाएंगे। यह भी मैं आपको बताऊँ कि इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस और सेना तथा जितने वहाँ सुरक्षा बल हैं, उन्हें खुली छूट होगी, जिसके साथ वे चाहें, मर्जी के मुताबिक व्यवहार करें। हमने यह भी कहा है कि पंजाब में अगर किसी को कोई पीड़ा है, दर्द है, शिकायत है, किसी के साथ अत्याचार हुआ है तो वह अपनी बात हमसे कहे। हम चाहते हैं कि किसी निर्दोष को अनावश्यक सताया न जाये, किसी निर्दोष पर अत्याचार न हो, कोई कार्यवाही उसके खिलाफ न हो।

मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि एक भी निर्दोष अनावश्यक रूप से सताया नहीं जायेगा, पीड़ा नहीं पायेगा, सरकार की यह पूरी कोशिश होगी कि निर्दोष को कोई कष्ट न दिया जाये। इसके लिये हमने बड़े अधिकारियों को कहा है, इस काम की जिम्मेदारी दी है कि वे ऐसी शिकायतों को सुनें। सरकार भी यह कोशिश कर रही है कि ऐसी शिकायतों को सुने। इसके लिए यदि कोई विशेष व्यवस्था की जा सके तो जल्दी से हमें उस व्यवस्था को करना होगा।

एक बात और भी मैं कहना चाहूँगा। जहाँ इस तरह की बातें हैं, वहीं अगर हमारा कोई अधिकारी, चाहे सुरक्षा बल का हो, प्रशासनिक अधिकारी हो, उनके मन में कोई डर पैदा होता है कि कल जब चुनाव होंगे, कोई दूसरा मुख्यमंत्री आ जायेगा तो कहीं हमको सजा न मिले। मैं इस सदन के जरिए उन सारे अधिकारियों को यह विश्वास दिलाता हूँ, यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि वे जो भी उत्तरदायित्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के लिए कदम उठायेंगे, उनकी सुरक्षा, उनकी सेवाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार अपने ऊपर लेगी। हम समझते हैं कि इस माने में कोई संदेह उनके मन में नहीं होना चाहिए क्योंकि वहाँ डर का वातावरण बनाने की कोशिश कुछ लोग कर रहे हैं, ऐसी कोशिशें की जा रही हैं।

इसीलिए इस बात को मैं शायद सामान्य रूप से नहीं कहता लेकिन पंजाब में आजकल यह एक प्रवृत्ति, एक जहनियत आगे बढ़ रही है और कुछ लोग कहते हैं कि जब हुकूमत हमारी बनेगी, यदि आज तुम कुछ करोगे तो सोचकर करना। मैं उन अधिकारियों, सुरक्षा बल के जवानों को यह कहना चाहता हूँ कि आपकी जिम्मेदारी इस राष्ट्र के प्रति है, देश के संविधान के प्रति है, उस जिम्मेदारी का आप निर्वाह करें। सारा राष्टआपके पीछे है। आप पर कोई ज्यादती न हो, कोई जुल्म न हो, कोई निर्दयतापूर्ण व्यवहार न हो उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार के लिए भविष्य में आपको कोई किसी तरह का खतरा नहीं होगा। सारा राष्ट्र आपकी इस कर्तव्यपरायणता के साथ होगा।

अब एक सवाल और है। वह सवाल यह है कि कुछ लोगों को बड़ी जलन है या गुस्सा है। मैं नहीं जानता कि जब नवाज शरीफ के साथ मेरी टेलीफोन पर बात होती है तो उन्हें बुरा क्यों लगता है। अध्यक्ष महोदय, टेलीफोन पर मेरी तीन चार बार उनसे बात हुई, तीसरी बार मैंने उन्हें टेलीफोन किया था, वह भी इसलिए कि गल्फ क्राइसेज के सम्बन्ध में पाकिस्तान क्या कर रहा है? वे मिले नहीं थे, इसलिए शाम को उनसे फोन पर बात हुई। मैं नहीं जानता हमारे मित्र गुजराल साहब को इससे क्यों गुस्सा आया? वैसे उनकी मैं बहुत इज्जत करता हूँ। वे विदेश नीति के बारे में ज्यादा जानते हैं, मुझे तो विदेश नीति के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, न ही मैं कभी विदेश गया हूँ। मैं बहुत कम विदेश जाता हूँ। इसलिए विदेश नीति के बारे में बहुत कम जानकारी रखने का दावा करता हूँ।

मैं डिप्लोमैसी में पारंगत हूँ, ऐसा मैं नहीं कहता लेकिन अध्यक्ष महोदय अगर कोई मुझे टेलीफोन करे तो क्या मैं उससे यह कहूँ कि मैं आपसे टेलीफोन पर बात नहीं करूँगा। अगर कोई टेलीफोन पर कहे कि हम आपसे रिश्ता सुधारना चाहते हैं, तो क्या मैं उनसे यह कहूँ कि नहीं हम आपसे रिश्ता सुधारना नहीं चाहते, हम आपसे रिश्ता बिगाड़ना चाहते हैं। अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मुझसे यह कहें कि हमें आपसे रिश्ता सुधारना है तो क्या मैं उनसे यह कहूँ कि नहीं, हमें आपसे रिश्ता नहीं सुधारना है। यह बात दूसरी है कि पाकिस्तान की मंशा क्या है, पाकिस्तान के इरादे क्या हैं, उसकी इंटैन्शन्स क्या है, इसकी चर्चा होती है।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपको बड़ी विनम्रता से याद दिलाना चाहता हूँ कि 1948 में 30 जनवरी को अगर महात्मा गांधी जी की हत्या न हुई होती तो गांधी जी ने सारे राष्ट्र के सामने यह कहा था कि मेरा पहला काम पाकिस्तान जाना होगा क्योंकि हम दो हिस्सों में बंट गये हैं लेकिन एक ही भाई हैं। हमको दोस्ती के रास्ते पर चलना पड़ेगा। पण्डित जवाहरलाल नेहरू 17 वर्षों तक इस देश के प्रधानमंत्री रहे। उनके सामने भी तमाम तरह की कठिनाइयां, अवरोध, दिक्कतें आयीं। उन दिक्कतों के बावजूद भी उन्होंने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की। एक बार नहीं, अनेक बार पाकिस्तान से वार्ता हुई और डिप्लोमैटिक स्तर पर हुई। मुझे उनकी याद नहीं है लेकिन कुछ घटनाएं तो कम से कम आपको जरूर याद होंगी और कुछ हमें भी याद हैं। श्री लाल बहादुर शास्त्री, अध्यक्ष महोदय, क्या सही नहीं है कि 1965 की लड़ाई के बाद ताशकन्द में बात करने के लिए गए थे, जिस शिमला सम्मेलन की रोज चर्चा होती है सदन के अन्दर, क्या सही नहीं है कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो भुट्टो से बात की, उसी बातचीत का परिणाम वह शिमला-सम्मेलन था, शिमला एग्रीमेंट था। अगर बातचीत की परम्परा भारत की राजनीति में 1947 से लेकर 1990 तक रही है, तो 1991 में इस बातचीत से घबराहट क्यों होती है।

अध्यक्ष जी, मेरा मनोबल बहुत बढ़ा है, भाई गुजराल और शरद यादव की सलाह से, लेकिन जहाँ तक सावधानी बरतने का सवाल है, सावधानी केवल भाषा में नहीं बरती जाती है। सावधानी हमारी जो तैयारी होती है, उसमें बरती जाती है। उसमें कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। पाकिस्तान या किसी देश के अगर बुरे इरादे हैं हिन्दुस्तान की ओर और अगर उसको यह गलतफहमी है कि बातचीत के जरिये हमको किसी असावधानी में डाल करके, देश के खिलाफ कोई कुछ कर लेगा, तो यह गलतफहमी बहुत महंगी पड़ेगी। किसी को भी यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्यों से आपके जरिये कहना चाहता हूँ कि बातचीत सावधानी के साथ हो रही है, लेकिन खुले दिल से हो रही है। हम यह नहीं मानते कि राजनीति में, कूटनीति में सावधानी के अर्थ ये रहे हैं कि हम बातचीत दोस्ती के लिए कर रहे हैं और हाथ पीछे इसलिए छिपाये हुए हैं कि कोई दांव लगे, तो दुश्मनी का दांव दिखा दें। हम खुले दिल से पाकिस्तान के साथ दोस्ती करना चाहते हैं। नावज शरीफ यह कहते हैं कि अगर वे दोस्ती चाहते हैं, तो मैं उनकी बात पर यकीन करता हूँ, वे क्या करेंगे, यह उनके ऊपर मुनहस्सर है।

अध्यक्ष महोदय, यहाँ कुछ सदस्यों ने कहा कि पंजाब में कैम्प चल रहे हैं, चल रहे हैं, हमें मालूम है और यह भी मालूम है कि उससे देश में परेशानी है, देश में तनाव पैदा हो रहा है। जब कभी मौका मिलता है, उनसे इस बात काजिक्र किया जाता है, लेकिन मैं अगर जोर-जोर से चिल्लाने लगूँ- यह कहने लगूँ कि कैम्प चल रहे हैं, तो उससे तो कोई फर्क न पाकिस्तान की स्थिति में और न ही हमारी स्थिति में आने वाला है। कैम्प चल रहे हैं, वे अगर प्रशिक्षण दे रहे हैं, तो उसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं।

अध्यक्ष जी, जो बुनियादी कदम हैं, वे उठाये गये हैं और क्या उठाये गये हैं, उनके बारे में यहाँ माननीय सदस्यों ने सवाल उठाया है। मैं आपके माध्यम से उनको बता दूँ कि कई वर्षों से यह बात चर्चा का विषय थी कि यहाँ पर कंटीले तार लगाये जायें। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सरहदों पर कंटीले तार लगाने का काम आज से एक साल पहले 80, 90 या 100 किमी0 में पूरा हो पाया था। पिछले एक साल से कोई काम नहीं हुआ है। अब तक सिर्फ 120-122 किलोमीटर में कंटीले तार लगाये गये हैं। अप्रैल तक पूरे 262 या 255 कि0मी0, जितना भी क्षेत्र सीमा पर बाकी है, उस पर लग जायेंगे। 65 कि0मी0 तक फ्लड लाइट्स लगायी जा चुकी हैं और बाकी लगायी जा रही हैं। जब यह सवाल मेरे सामने आया, तो मैंने बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन को कहा कि अगर जरूरत पड़े, तो आप जाकर वहाँ पर इस काम को पूरा कीजिये।

मैंने वहाँ पर जो ठेकेदार तार लगा रहे हैं, उनको यह कह दिया है कि अगर यह काम अप्रैल के पहले-पहले पूरा नहीं हुआ तो इसके लिये आपको पैनेल्टी देनी पड़ेगी। इसके अलावा सरकार के सामने आपको और तरह से भी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। हमें आश्वासन दिया गया है और मैं कोई वजह नहीं समझता हूँ कि अप्रैल से पहले ही पहले यह काम पूरा न हो, लेकिन उससे समस्या का हल नहीं होगा। अध्यक्ष महोदय, वहाँ पर सीमा का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जहाँ तार नहीं लगाये जा सकते हैं। वहाँ बैरन लैड है, नदियां हैं, नाले हैं। मैं तो उसको नहीं जानता हूँ, लेकिन जो लोग गये हैं, वे जानते हैं कि तार लगाना वहाँ मुमकिन नहीं है। वहाँ पर सीमा की सुरक्षा के लिए जहाँ बार्डर सिक्यूरिटी फोर्स के लोग लगे हैं। उनके पीछे फौज के लोग भी लगे हुए हैं। यह बात कोई छिपकर नहीं कर रहे हैं, फौज अगर सीमा पर भेजते हैं तो पाकिस्तान के लोगों को कह रहे हैं कि सीमा पर हमारे यहाँ लोग अन्दर से आ रहे हैं, उनको रोकने के लिए हम फौज लगाए हुए हैं।

पंजाब के नेता लोग हमसे जो बात करने के लिए आ रहे हैं उनसे भी मैंने कहा कि आप कह रहे हैं, कि ज्यादा गड़बड़ी स्मगलर्स बूटलैगर्स, असामाजिक तत्व कर रहे हैं, अगर उनके खिलाफ सेना या सशस्त्र बल कार्यवाही करे तो आपको कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। उनसे भी, पाकिस्तान के लोगों से, दूसरे लोगों से जिनका कोई दूर का भी रिश्ता है, उनको बताकर सब काम कर रहे हैं, छिपाकर कोई काम नहीं करना चाहिए।

यह जरूर है कि हर कदम उठाने से पहले अखबार वालों को पहले मैं नहीं बुलाता हूँ, यह गलती मुझसे जरूर है। कदम उठे या नहीं, अखबार में मोटे अक्षरों में छप जाए, यह गलती हमसे जरूर हुई है, यह काम हमने नहीं किया है और इसके लिए जितनी शिकायत हो मैं अपने को जिम्मेदार जरूर मानता हूँ। दूसरा सवाल कि वहाँ पर लोगों को कुछ सुविधाएं भी देनी होंगी। वहाँ पर बार्डर सिक्यूरिटी फोर्स में भर्ती के लिए काम शुरू हुआ है। आज से कुछ दिन पहले कोई नहीं आता था, आज लोग आ रहे हैं। फौज में भी उनको भर्ती का विशेष अवसर दिया जा रहा है। यह काम किया जा रहा है। पंजाब में जो मसौदे थे उनको तुरन्त क्रियान्वित करने के लिए सरकार कदम उठा रही है। चारों तरफ जो-जो कदम वहाँ की स्थिति को सामान्य बनाने के लिए उठाये जा सकते हैं, हम उनकी शुरुआत कर रहे हैं।

अध्यक्ष हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि दस वर्षों से जो घाव रिस रहा है, मैं उस घाव के ऊपर कोई ऐसा मलहम लगा दूं कि वह एकदम से सूख जाए और वहाँ से एक राम राज्य आ जाए। यह नहीं हो सकता है। थोड़ा टाइम लगेगा। उसके लिए थोड़े धीरज, संयम, आत्मनियंत्रण की जरूरत है और सबसे ज्यादा आवश्यकता आत्मविश्वास की है। मुझे इस बात को कहने में फख्र का अनुभव होता है कि पंजाब की एक बड़ी भारी आबादी, आबादी का एक बड़ा भारी हिस्सा इस तरह की प्रवृत्तियों के खिलाफ है, इस जहनियत का विरोधी है। तमाम कोशिश के बाद भी कि वहाँ पर साम्प्रदायिक दंगे हों, वह काम नहीं हो रहा है। आज पटियाला में थोड़े से झगड़े हुए हैं जो दुःखद प्रसंग हैं। लेकिन शाम को हमें बताया गया कि परिस्थिति नियन्त्रण में हैं। कोई साम्प्रदायिक दंगों का स्वरूप पंजाब की घटना ने अब तक नहीं लिया है।

मुझे विश्वास है कि पंजाब में बसने वाला हर भाई इस बात की कोशिश करेगा कि इसके पीछे साम्प्रदायिक रूप देने के लिए जो षड्यन्त्र हो, उसषड्यन्त्र को कामयाब न होने दे। हमको यह भी सूचना दी जाती है कि 62 आदमियों की पार्टी कैसे संविधान परिवर्तन कर देगी। मुझे बहुत राजनीति तो नहीं आती है लेकिन इतनी राजनीति तो मुझे भी आती है। मैं जानता हूँ कि 62 आदमियों की पार्टी संविधान परिवर्तन नहीं करेगी, वह तो सबकी सहमति से होगा। ऐसा नहीं है कि मैं किसी को आश्वासन दे दूं कि संविधान में परिवर्तन कर दूंगा। कोरे आश्वासन देने वाले और होंगे, मैं कोरे आश्वासन नहीं देता हूँ। मैं परिधियों के अन्दर काम करना जानता हूँ; क्या हमारी सीमाएं हैं, मैं उससे परिचित हूँ। कोरे आश्वासन के दिन लद गए।

कोई देगा नहीं, ऐसा नहीं है, देना नहीं चाहिए। यह यदि मधुदण्डवते जी कहें तो अच्छा हो। आश्वासन दिए जाते हैं क्योंकि राजनीति का मयार हो गया है कि कुछ भी कह दो चाहे वह पूरा हो या न हो। एक-दो नहीं, अनेक दृष्टांत दिए जा सकते हैं लेकिन उससे समस्या का समाधान नहीं होता है, न हालात बदलते हैं। इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ। दूसरी बात, मैं विरोधी दल के नेता से नम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि जो भी कदम सरकार उठाती है, यह सही है कि उस कदम को उठाने से पहले हम अखबार में नहीं गए, यह सही है कि हम संसद सदस्यों से सलाह नहीं कर सके लेकिन जो नेता लोग हैं उनसे सलाह करने की कोशिश की, उनको थोड़ी-बहुत जानकारी देने की भी कोशिश की। जिस समय यह जानकारी दी जा रही थी हमारे मित्र मधु दण्डवते जी और उनके नेता दोनों मौजूद नहीं थे। इसलिए मैं उनको यह जानकारी नहीं दे सका।

मैं जानता हूँ कि उनकी पार्टी के बहुत सारे नेता हैं, लेकिन मजबूरी यह है कि मैं उन नेताओं को नहीं बुला सका, इसका मुझे दुःख है और इसके लिये मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ लेकिन अगर दंडवते जी हमको यह सूचना दे दें कि किनको बुलाना है तो मैं उनको जरूर बुला लूंगा। मैं यह जरूर कहना चाहता हूँ कि चाहे भारतीय जनता पार्टी के लोग हों, चाहे सी0पी0एम0 और सी0पी0आई0 व कांग्रेस पार्टी के लोग हों उन सबको मैंने विस्तृत रूप से बताया है कि सरकार के इरादे क्या हैं और सरकार क्या करना चाहती है, हमारी मजबूरियां क्या हैं, हमारी कमजोरियां क्या हैं, हमारी कठिनाइयां क्या हैं क्योंकि सरकार की कमजोरी हमारी अकेली नहीं है, ये सबकी है। यह देश की कमजोरी है, राष्ट्र की कमजोरी है और उस कमजोरी को हमने विरासत में पाया है, हम यह नहीं कहते कि किसी एक सरकार से राष्ट्र के जीवन में यह कमजोरी आयी। हम सबको इस पर सोचना चाहिए।

मैं आपसे निवेदन करूँ कि इस सवाल पर गम्भीरता से हम लोगों को फिर बैठकर सोचना चाहिए क्योंकि अगर बातचीत का रास्ता बन्द हो जायेगा तो केवल बन्दूक का रास्ता रह जायेगा और बन्दूक के रास्ते से ऐसी समस्याओं का समाधान करना ज्यादा मुश्किल काम होगा। बातचीत का रास्ता चलता रहे यह हम मानते हैं। कोई एक व्यक्ति या चार व्यक्ति इस बातचीत में शामिल हों और बातचीत करें। हमारे मित्र खुराना जी ने कहा कि जो हमारे अल्पमत के मित्र हैं, उनसे भी बात करनी चाहिए। उनसे मैंने बात की है। सबसे पहले बात उन्हीं लोगों से हुई। उनसे मैंने कहा था कि हम आपकी दिक्कतों को जानते हैं।

हम सारे देश की समस्याओं के बारे में सबसे बात करते हैं। यह अलग बात है कि पंजाब की समस्या पर वहाँ के लोगों से ही मैं बात करूँगा। मैं यह जरूर चाहता हूँ कि हमारे बीच में सहमति होनी चाहिए। हम यह जानते हैं कि हमसे गलतियां हो सकती है, हमारे कदम कभी बिना सोचे-समझे उठ सकते हैं लेकिन किसी भी व्यक्ति या सदस्य के द्वारा जो सुझाव आयेंगे, उन सबका हम स्वागत करेंगे।

पिछले एक साल में जितने सुझाव आये हैं, सरकार के पास, जो गृह मंत्रालय में हैं उन सारे सुझावों और पत्रों को एकत्र करके और संकलित करके योजना बनाते समय हमने उनका पूरा ध्यान रखा है। सब लोगों के जो सुझाव तर्कसंगत हैं और जो व्यावहारिक हैं, उनका समावेश किया गया। पिछले 1-2 महीने में जब से यह सरकार बनी है, तब से प्राप्त सुझावों पर ही नहीं बल्कि पुरानी सरकार जिसका मैं भी हिस्सेदार था उनको प्राप्त हुए सुझावों की भी मैंने तालिका तैयार की। उन सारे सुझावों पर विचार करके हम यह कोशिश कर रहे हैं कि किसी को कोई शिकायत न रहे जाये। अगर कहीं कोई कमी रही उस कमी को दूर किया गया। जब तक वहाँ शांति नहीं आ जाती, जब तक वहाँ अमन नहीं आ जाता तब तक हम इस कमी का अहसास करते हैं।

वह चाहते हैं कि वहाँ चुनाव हो जायें। हम यह भी सोचते हैं कि वहाँ चुनाव न करें लेकिन जो चुनाव कराने के लिए जहाँ सरकार कृतसंकल्प है, वहाँ पंजाब के लोगों को और खास तौर से उन लोगों को जो चुनाव की जोरदार मांग करते हैं, उनको माहौल बनाने की कोशिश करनी होगी। अगर हत्या, आतंक चलतारहेगा, अगर एक-दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे तो कैसे चुनाव होंगे? चुनाव कोई औपचारिकता नहीं है। चुनाव राज को बनाने और चलाने में करोड़ों लोगों का सहभाग होता है। लोकशाही का मतलब यह होता है कि लोग निर्भय होकर और निडर होकर अपनी राय का इजहार करें। अगर भय का माहौल बना रहेगा तो कैसे चुनाव हो सकेंगे।

मैं कोरे आश्वासन नहीं दूंगा। अगर चुनाव कराना चाहते हैं तो भय के वातावरण को मिटाना होगा और जो लोग चुनाव कराना चाहते हैं, यह उनकी बड़ी जिम्मेदारी होती है कि भय के इस वातावरण को मिटायें। मैं उनको यह आश्वासन देता हूँ कि सरकार की ओर से कहीं उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। सरकार खुले दिल से आपसी बातचीत के जरिये, सहमति के सहारे पंजाब की समस्या का समाधान करना चाहती है।

अध्यक्ष महोदय, मैं एक बात कहूँ, अगर नवाज शरीफ रोज युद्ध की बात करेंगे तब भी मैं आखिरी समय तक शान्ति की ही बात करता रहूँगा। उनके युद्ध की बात करने से मैं युद्ध की बात करने वाला नहीं हूँ। युद्ध जब आ जाता है, तब युद्ध किया जाता है। मैंने कल कहा था, तुलसी दास का एक दोहा है, एक चैपाई है।

‘‘सूर समर करनी करें, कही न जनावें आप, विद्यमान रण पाय के, कायर करहिं प्रलाप।’’

तो प्रलाप वाला काम मैं नहीं करूँगा, एक बात तो यह है। हम यह चाहते हैं कि सबको सद्बुद्धि आये कि कोई लड़ाई की बात न करे। अध्यक्ष महोदय, आप ही के द्वारा आज गल्फ की लड़ाई रोकने की हम बात कर रहे हैं तो अपने पड़ोसी से लड़ाई करने की बात मैं नहीं करूँगा।

एक धारणा है, मैंने यह नहीं कहा कि इन तीन जगहों पर काम शुरू होगा। मैंने कहा कि इन तीन शहरों के लिए और 128 गांवों के लिए विशेष रूप से सुरक्षा की व्यवस्था की जायेगी लेकिन चूंकि अब आप हमको मजबूर कर रहे हैं, पंजाब में, यह कहा गया कि अगर उनको 75 कम्पनियां भेजी जायें तो सारे पंजाब में सुरक्षा घेरे को ज्यादा मजबूत कर सकेंगे। अब तक हमने 50 या 60 कम्पनियां भेज दी हैं। अगले दो चार दिनों में 75 कम्पनियां सुरक्षा बलों की भेजी जायेंगी। जरूरत होगी तो सौ कम्पनियां भेजी जायेंगी लेकिन वहाँ के लोगों के मन में सुरक्षा की भावना पैदा की जायेगी। पुलिस को यह जरूर कहागया है, किसी निर्दोष के ऊपर हाथ मत उठाना लेकिन किसी निर्दोष की हत्या हो रही हो तो चुप होकर नहीं बैठना।

तीसरा सवाल मैं भूल गया। हाँ, सिमरन जीत सिंह मान क्या बयान देते हैं, उनके बयानों के ऊपर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। सिमरन जीत सिंह मान हमसे जो बात करते हैं, मेरी जिम्मेदारी बस उतने तक ही है। बयान तो आप लोग भी मेरे बारे में रोज देते हैं, वह भी बहुत बयान देते हैं, इन बयानों से मेरे ऊपर कोई असर होने वाला नहीं है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।