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पंजाब में चुनाव स्थगन ब्लूस्टार आपरेशन के बाद दूसरा बड़ा राष्ट्रीय अपराध

पंजाब की समस्या पर लोकसभा में 16सितम्बर, 1991को चन्द्रशेखर

सभापति जी, पंजाब की समस्या पर सदन विचार कर रहा है। कुछ सदस्यों ने ऐसे सवाल उठाए हैं, जिनके बारे में दो शब्द मैं न कहूँ, तो मैं अपने राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं कर पाऊंगा। पंजाब के बारे में मेरी राय आज से नहीं बहुत पुरानी है। मैं ऐसा मानता हूँ कि पंजाब की समस्या का समाधान दमन शक्तियों के सहारे नहीं हो सकता है। मैं भी जानता हूँ कि पंजाब की समस्या को समझने में और उसके समाधान को ढूंढने में प्रारम्भ से ही भयंकर भूल की गई है।

सभापति जी, मुझे दुःख इस बात का है कि वह भूल आज भी दोहराई जा रही है और मुझे दुःख है कि श्री चव्हाण जैसा एक समझा-बूझा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति, जो राजनीति के बारे में और राष्ट्र की समस्याओं के बारे में अच्छी तरह से परिचित है, यह विधेयक लाने के लिए विवश हुआ है। विवशता इस कारण से नहीं कि उनके सामने यही विकल्प था, विवशता इस कारण से है कि चुनाव आयोग ने जिस तरह से चुनाव स्थगित किया, उसके बाद शायद सरकार के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं रह गया।

आज इतने दिनों के बाद मैं कहना चाहता हूँ कि चुनाव के स्थगन का जो निर्णय था, वह ब्लूस्टार के बाद दूसरा सबसे भयंकर राष्ट्रीय अपराध मेरी नजर में है, जिससे हमेशा के लिए पंजाब के लोगों को देश की मुख्य धारा से तोड़ने का काम किया गया है। सभापति जी, मैं आपके जरिए इस सदन और देश को बताना चाहता हूँ कि अन्तिम क्षणों तक मैंने यह कहा कि यह भयंकर भूल नहीं होनी चाहिए। बड़े से बड़े लोगों ने जो सत्ता और राज्य के उच्च पदों पर बैठे हुए हैं, इस बारे में मुझको सलाह देने की कोशिश की, मैंने बड़ी विनम्रता से उनकी सलाह को अस्वीकार किया। 24 घण्टे में जब चुनाव होने वाले थे, तब अचानक यह निर्णय लिया गया। मुझेतोकेवल समाचार-पत्रों से मालूम हुआ और उसके एक दिन पहले मैंने कहा था कि नयी सरकार बन जाने दीजिए, बहुत जल्दी थी तो उसी सरकार को 24 घण्टे पहले शपथ दिला दीजिए और वे ये निर्णय लें।

सभापति जी, मैं इस कारण नहीं कह रहा हूँ, यहाँ अलगाववाद के सवाल को लेकर बड़ी चर्चा होती है, मैं सोचता हूँ कि यह बात सही नहीं होगी कि सरकार यदि कोई कानून बनाना चाहती है या शायद कोई अध्यादेश लाना चाहती है कि जो अलगाववाद की बात करेंगे, उन्हें चुनाव में हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा। मैं समझता हूँ कि यह एक आत्मघाती कदम होगा, एक बुरा कदम उठाया गया, चुनाव को स्थगित करके, दूसरा आत्मघाती कदम यह होगा। चुनाव आयोग के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। मैं और सदस्यों को बोली में बोली नहीं मिलाना चाहूँगा, लेकिन चुनाव आयोग ने जिस तरह से स्थगित किया रात को दो बजे, बिना सरकार को बताए हुए, बिना किसी को बताए हुए और उसकी जिम्मेदारी आज की सरकार को लेनी होगी और कम से कम उनका यह नैतिक कर्तव्य होता है कि इस जिम्मेदारी को ले, क्योंकि अगर 24 घण्टे पहले चुनाव आयोग यह साहस नहीं कर सकता था कि चुनाव स्थगित किया जाए तो अचानक यह साहस उसमें कैसे आ गया।

मैं आपसे विनम्रतापूर्वक निवेदन करूंगा कि राज्यसभा में अटल जी यहाँ मौजूद हैं, एक घण्टे, डेढ़ घण्टे तक अन्नादुरई ने अलगाववाद के ऊपर भाषण दिया और सारे सदन ने मौन होकर के उनकी बातों को सुना। यह बात अलग है कि हमने उनका सबका विरोध किया, यह बात अलग है कि हमने सबसे यह कहा कि उनकी यह नीति, उनके यह कार्यक्रम, उनका यह सोचना देश के हित में नहीं है, लेकिन किसी ने नहीं कहा कि अन्नादुरई को सदन से निकाल दो। किसी ने नहीं कहा कि उनकी नागरिकता के अधिकार को छीन लो। मैं जानना चाहता हूँ कि किसी भी सरकार को यह अधिकार कैसे प्राप्त हो जाता है कि किसी की नागरिकता को वह छीन ले।

हर सदस्य, जो चुनाव लड़ता है, वह नागरिक जो चुनाव लड़ता है, संविधान की शपथ लेता है, तो वह कहता है कि हम संविधान की मर्यादा का पालन करेंगे। हमें संविधान में विश्वास है, अगर कुछ हमारे सदस्य, जो आज सरकार में हैं, वह समझते हैं कि संविधान का उल्लंघन करना इतना बड़ा अपराध है, तो मैं जानना चाहूँगा कि संविधान की कितनी धाराओं का उल्लंघन हम आजभी कर रहे हैं। कहाँ गया 20 वर्षों के अन्दर लोगों को शिक्षा देने का अधिकार, कहाँ गया लोगों को समता का अधिकार, कहाँ गया हमारे देश में हरिजन और आदिवासियों के साथ समानता का व्यवहार। हमारे जो डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स हैं, जो नियमित अंश हैं हमारे संविधान के, उसका निरन्तर उल्लंघन होता है, लेकिन कोई प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं देता, कोई गृहमन्त्री त्यागपत्र नहीं देता, किसी की नागरिकता नहीं छीनी जाती। संविधान का उल्लंघन करते हुए, संविधान की शपथ लेकर अगर हम प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं तो संविधान की शपथ लेकर के चुनाव भी लड़ा जा सकता है, यह एक भयंकर भूल होगी।

सभापति जी, मैं आपके जरिए गृहमन्त्री जी से निवेदन करूंगा, अब भी सोचें कि एक भूल हुई है, उस भूल को और आगे बढ़ाने की कोशिश न करें। अब भी समय है पंजाब में चुनाव कराएं जाए। अभी हमारे एक माननीय सदस्य बोल रहे थे कि अगर पंजाब को आर्थिक मदद दी जाए। आतंकवाद से लड़ना है तो आर्थिक विकास पंजाब का करना है। अगर पंजाब में आर्थिक विकास की कमी के कारण आतंकवाद हो रहा है, तो बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में कभी भी आतंकवाद पैदा हो गया होता। आज पंजाब का आर्थक विकास होना चाहिए। लेकिन समस्याओं के बारे में हमारा इतना ही ज्ञान है, समस्याओं के मूल में हम जाना नहीं चाहते तो सभापति महोदय, हम उनका समाधान नहीं ढूंढ सकते।

नानक देव ने सैकड़ों साल पहले एक बार कहा था- ‘‘एक ओंकार सत नाम’’ वहीं पर आज हिन्दू-सिक्ख की लड़ाई हो रही है, धर्म के नाम पर हो रही है, एक-दूसरे को कत्ल कर रहे हैं। इसके पीछे भावनाओं का सवाल है। इसीलिए अभी अटल जी कह रहे थे कि हिन्दू-सिक्ख नहीं लड़ रहे हैं, भावनाएं ऐसी फैलाई जा रही हैं। मैं अटल जी से निवेदन करूंगा कि वे गहराई से सोचें कि ये भावनाएं क्यों पैदा हो रही हैं। हिन्दू समाज जो सबको एक साथ मिलाकर, एक साथ लेकर चलता था, मैंने कई बार कहा है, यहीं सदन के बाहर लिखा हुआ है ‘‘भगवान तक पहुंचने की मंजिल एक है’’ बहुत से हमारे दार्शनिक तरह-तरह के रास्ते बताते हैं, लेकिन धर्म के नाम पर हमारा समाज जो बिखर रहा है, इस बारे में मैं चर्चा करूंगा।

सभापति महोदय, पंजाब समस्या के समाधान के लिए वहाँ के लोगों के मन को जीतना होगा। वहाँ के लोगों के मन में जो कुंठा है, जो परेशानी है, उसको दूर करना होगा। वहाँ के लोग समझते हैं कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ है,वे समझते हैं कि उनके साथ समता का व्यवहार नहीं हुआ है, मैं नहीं कहता कि सब सच है, बहुत सी बातें शंकाओं पर भी आधारित होंगी, लेकिन यह विधेयक जो आज हम पारित कर रहे हैं, इसके जरिए हम उस शंका को बल देंगे। जो चुनाव स्थगित किया गया, उससे लोगों में शंकाएं बढ़ गई हैं। यदि गलती से सरकार ने दूसरा विधेयक या अध्यादेश पारित किया तो हमेशा के लिए पंजाब के लोगों को हम अपने से अलग कर लेंगे। हम अपने देखते-देखते इस देश को इस तरह से टूटते हुए चुपचाप न देखें।

सभापति महोदय, मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप अपने पद का, अपनी गरिमा का, अपनी शक्ति का, अपने सम्मान का उपयोग करें, ताकि सरकार को सद्बुद्धि आए। इस तरह दुराग्रह की सत्ता की शक्तियों के उपयोग से समाज को नहीं बदला जा सकता। लोगों के मानस को बदलने के लिए उनकी भावनाओं, उनके जजबातों को समझना होगा। जो दिल दुःखे हुए हैं, उन पर मरहम लगाने की कोशिश करनी होगी। बार-बार शक्ति और प्रभाव की बात करके हम नहीं समझते कि हम अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि हम अपने निकम्मेपन की, विवशता की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। आज विवशता नहीं शक्ति के साथ लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करें तो पंजाब समस्या का समाधान निकल सकता है। मैं नहीं कहना चाहता कि देश के लिए यह चुनाव खतरनाक होता या क्या होता।

किसी माननीय सदस्य ने कहा कि सस्ती प्रशंसा पाने के लिए चुनाव कराए गए, लेकिन याद रखिए कि केवल पंजाब में ही नहीं, असम में भी चुनाव कराने का कुछ लोगों ने विरोध किया था और उन्हीं लोगों ने विरोध किया था, जिन लोगों ने पंजाब के चुनावों को स्थगित करवाया था। लेकिन आसाम में चुनाव हुए, शांति से हुए, सफलता से हुए और उसी पार्टी के लोग विजयी होकर आए। कभी बुराई नहीं होती सभापति महोदय, अगर किसी समय अपनी गलती का अहसास करके उसको मान लिया जाए और देश के सामने कहा जाए कि हमने गलती की है। अतीत की गलतियों को दोहराने से नया भविष्य नहीं बनाया जा सकता। सभापति महोदय, आपके नेतृत्व में इस गलती को और दोहराने की शक्ति इस सरकार को नहीं देनी चाहिए, इसलिए मैं इस सदन से कहूँगा कि इस विधेयक को पारित न करें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।