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पंजाब में चुनाव हो लेकिन पहले बंद हों हत्याएं, समस्या के पीछे हैं पुरानी गुत्थियाँ

राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाये जाने पर 12 मार्च, 1991 को लोकसभा में प्रधानमंत्री

अध्यक्ष महोदय, पंजाब के बारे में कई बार इस सदन में चर्चा हो चुकी है। आज भी चर्चा हुई, तो हम लोग उन्हीं कठिनाइयों का जिक्र करते रहे। यह दुःख की बात है कि फिर हमें सदन के सामने इसलिए आना पड़ा कि वहाँ पर राष्ट्रपति शासन छः महीने के लिए आगे बढ़ाया जाए। यह सही है कि कोई नहीं चाहता है कि चुनाव टलें, किसी भी इलाके में चुनाव टलें यह बुरी बात है। पंजाब में बहुत दिनों से चुनाव नहीं हुए, इसलिए लोगों के मन में शंका पैदा होना एक स्वाभाविक बात है। पंजाब के जिन मित्रों ने इस चिन्ता को यहाँ पर प्रकट किया, मैं पूरी तरह से उनके साथ हूँ। लेकिन एक बात मैं आपके जरिए इस सदन से कहना चाहूँगा कि यह जो समस्या है, वह कोई आज या कल पैदा नहीं हुई है। समस्या के पीछे पुरानी गुत्थियां और पुरानी कठिनाइयाँ हैं। हम चाहते हैं कि चुनाव हों, लेकिन चुनाव का अर्थ यह नहीं होता कि चुनाव के नाम पर हम जो चाहें सो करा लें और उसी को चुनाव की संज्ञा देकर के यह कहें कि वहाँ जनतन्त्र की हत्या नहीं हो रही है, जनतन्त्र को प्रश्रय मिल रहा है।

मैं केवल दो बातें चाहता था और अगर वे दो बातें पूरी हो जातीं, तो चुनाव के लिए कोई कठिनाई नहीं होती। मैं अपने मित्र, इन्द्रजीत गुप्ता जी, से बड़े विनम्र शब्दों में यह निवेदन करना चाहूँगा, कोई बड़ी शर्त नहीं, यह था कि चुनाव के पहले हत्या बन्द हो। लाॅ-एण्ड-आर्डर का सवाल नहीं, कानून-और -व्यवस्था का सवाल नहीं है, जब वहाँ पर अपने को राजनीतिक तत्व कहने वाले लोग या अपने को उस इलाके के भविष्य के निर्माता करने वाले लोग खुले आम हत्या की बात करते हैं, तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती है और उनके डर से लोगों के मन में भय पैदा हो, तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती है कि हमलोगों को यह आश्वस्त कर सकें कि चुनाव बड़ी आजादी के साथ स्वतन्त्र वातावरण में होगा।

मैं कई माननीय सदस्यों की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि धीरे-धीरे चुनाव न होने के कारण वहाँ पर अलगाव की भावना बढ़ती जा रही है। चुनाव न होने के कारण हमारे माननीय सदस्य न समझते हों, लेकिन पंजाब की जनता अच्छी तरह से समझती है, क्योंकि उन कठिनाइयों में उनको रहना पड़ रहा है, जिस आतंकवाद का सामना वे कर रहे हैं, उसको अच्छी तरह से वे जानते हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं कोई उपलब्धि नहीं कहूँगा, लेकिन यह कहना वास्तविकता को पूरी तरह से झुठलाना है कि पिछले तीन महीनों में पंजाब में परिस्थितियों में अन्तर नहीं आया है, वहाँ कानून और व्यवस्था में थोड़ी अच्छाई आयी है, थोड़ी शान्ति आयी है। मैं नहीं कहता-हत्या बन्द हो गई है, मैं नहीं कहता-आतंकवाद बन्द हो गया है। मैं नहीं कहता-वहाँ पर लोगों के मन में डर नहीं है, लेकिन यह बात कहना जो हमारे मित्र श्री अतिन्दर पाल सिंह और श्री राजदेव सिंह ने कही-मैंने कोई बात कही और मैं उससे मुकर गया- यह बात सहीं नहीं है।

मैं फिर आज दोहराता हूँ, मैंने कहा था-पंजाब की समस्या का हल आपसी बातचीत में है। मैं जब वहाँ के नेता सिमरनजीत सिंह मान से मिला था, तो उनसे मैंने कहा था-बातचीत होनी चाहिए और बातचीत ही का एक रास्ता ऐसा रास्ता है, जिससे समाधान निकलेगा। लेकिन उस समय उस बातचीत में, मैं बहुत बातें नहीं कहना चाहता हूँ, लेकिन प्रचार इस तरह से हो रहा है कि मुझे मजबूरन कहना पड़ता है। उसी समय मैंने सिमरनजीत सिंह मान से कहा था कि आपको भी यह कहना होगा कि जो निर्दोष लोगों की हत्या होती है, वह हत्या बन्द होनी चाहिए। उन्होंने कहा था-हम सब लोग मिल करके कहेंगे, निर्दोष की हत्या बन्द होनी चाहिए।

मैंने यह भी कहा था-उसके बावजूद भी अगर हत्या होती है और उस हत्या के लिए कोई जिम्मेदार है तो बड़े दुःख के साथ और मजबूरी के साथ हुकूमत को उनके खिलाफ कार्यवाही करनी पड़ेगी। हमने कभी नहीं कहा था कि आप एक तरफ से तो हत्या करते जाओ और दूसरी तरफ से बातचीत करते जाओ, यह दोनों चलता रहेगा और सरकार हाथ-पर-हाथ रख कर बैठीरहेगी। कोई भी सरकार, कोई भी समाज, कोई भी राज सत्ता, इस तरह की बातों को स्वीकार नहीं कर सकती। इसलिए मैंने उस समय बड़ी सफाई से कहा था और मुझे आश्चर्य होता है कि अब यह कहा जाता है कि आतंकवादियों को मारा जाता है। हम से तो कहा गया कि आतंकवादी कोई हत्या निर्दोष की नहीं करेंगे, अगर कोई लोग हत्या कर रहे हैं और अगर वे लोग मारे जा रहे हैं, तो यह बड़े दुःख की बात है, लेकिन यह मजबूरी की बात है।

पिछले तीन महीनों के पंजाब के आंकड़े आप उठा लीजिए, हमारे चैधरी साहब कह रहे हैं कि चार महीनों में तो हालत बहुत बिगड़ गई। हमने हर समय कहा है कि अगर कोई आतंकवादी मारा गया है, तो उसका नाम दिया गया है, वह किस केसेज में था, उसमें था और जब आतंकवादी मारे गये हैं तो एक-दो हमारे पुलिस के नौजवान या तो मारे गए हैं या घायल हुए हैं। पिछले दो-तीन महीनों में एक भी घटना ऐसी नहीं होगी सिवाय एक घटना के जिसका जिक्र इन्होंने किया, जिसमें छः (6) निर्दोष लोगों को मारा गया और उसका जिक्र मैंने यहाँ पर भी किया। उस समय भी मैंने कहा था कि अगर निर्दोष लोगों की हत्या होगी तो हमारे सुरक्षा बल के लोग सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए कदम उठाएंगे।

यह कोई बहादुरी की बात नहीं है, कोई बहुत अच्छी बात नहीं है क्योंकि कत्र्तव्य पालन के लिए हम मजबूर हैं और इस काम को करना पड़ा। अभी हमारी एक माननीय सदस्यों ने यह कह दिया कि अगर लोग नाराज हो जाएंगे तो बाहर की ताकतों से भी मदद लेंगे। अगर बाहर की ताकतों से मदद लेंगे बाहर की कोई ताकत हिन्दुस्तान की सीमा में आने की कोशिश करेगी, तो हजार नहीं 10 हजार, लाख लोगों को भी इसके लिए अगर मरना पड़े तो वह भी इसके लिए तैयार रहेंगे।

माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं किसी गुस्से में नहीं, बहुत विनम्र शब्दों में कहना चाहता हूँ कि अगर भारत की एकता को तोड़ने के लिए अन्दर की या बाहर की कोई भी ताकत, इसके लिए कोशिश करेगी तो चाहे हजार या लाख लोगों का बलिदान करना पड़े, यह देश वह बलिदान करेगा और इस भारत की एकता को कायम रखेगा। मैं समझता हूँ कि इस देश की यह परम्परा रही है कि हमारे देश के लोग इसके लिए कुर्बानी करने का ढंग जानते हैं और कभी-कभी राष्ट्र की एकता के लिए लोगों को बड़ी से बड़ी कुर्बानी देनी पड़तीहै। इसके लिए इतिहास में एक नाम अब्राहिम लिंकन का भी हुआ है, जिसने अपने देश में, देश की एकता के लिए सिविल वार का भी सामना किया था। भारत की धरती में भी वह शक्ति है कि देश की एकता को बनाए रखने के लिए हम अपनी पूरी ताकत लगा देंगे।

मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि इस बारे में कोई दुविधा नहीं है। कई बार कहा गया कि मैंने कहा है कि मैं खालिस्तान पर भी बात करूँगा। अध्यक्ष महोदय, सवाल यह नहीं है। मैं प्रेस क्लब में दिल्ली में बोल रहा था, अखबार के एक भाई ने पूछा कि अगर मिलिटेंट्स आएंगे तो आप उनसे बात करेंगे, उनसे हमने कहा कि हम सबसे बात करेंगे। उन्होंने कहा कि वे खालिस्तान की बात करते हैं, तब भी आप उनसे बात करेंगे। मैंने कहा कि हम उनसे भी बात करेंगे, उन्होंने कहा कि जब वे कहेंगे कि हम खालिस्तान चाहते हैं तो हमने कहा कि हम उसी समय जवाब देंगे कि आप बेवकूफी की बात कर रहे हैं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने कहा था कि ये ऐसी गलत बातें हैं जिसके ऊपर बहस नहीं हो सकती। लेकिन मैं पहले से उन पर रोक नहीं लगाऊँगा कि अगर तुम खालिस्तान की बात करोगे तो मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगा। यह मैंने कहा था कि वे आकर कहेंगे तो मैं कहूँगा यह निरर्थक बात है। यह देश की मर्यादा के विरुद्ध बात है।

एक बात हमारे मित्र राजदेव जी ने कही कि मैंने कहा था कि मैं बात करूँगा, पता नहीं उनको किसने कहा, हमने पहले दिन से कहा कि देश के लोगों से जो बात होगी वह देश की सीमा के अन्दर होगी, देश की सीमा के बाहर नहीं होगी। मैंने कभी नहीं कहा था कि ऐसा नहीं है, जो उतावला है हर समय विदेश जाने के लिए, क्योंकि मैं विदेश बहुत कम जाता हूँ। इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विदेश जाने की मेरी कोई इच्छा नहीं है और मैं किसी भी समय पर, कभी भी नहीं कहता कि दुनिया के किसी भी हिस्से में, देश की समस्याओं पर अगर देश के दो या चार नागरिक सरकार से बात करेंगे, तो उनसे देश की सीमाओं के अन्दर ही हम बात करेंगे और आज मैं कोई रहस्योद्घाटन नहीं कर रहा हूँ, उनकी ओर से बात आयी थी कि हम अमृतसर में, स्वर्ण-मन्दिर में बात करना चाहते हैं। हमने कहा कि हम स्वर्ण-मन्दिर में बात करने के लिए तैयार हैं, हमें इसमें कोई ऐतराज नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, और भी बातें कही गई, मैंने जब कहा कि जो आतंकवादीैं, उनसे भी बात की जाएगी तो मेरे मित्र सैफुद्दीन चैधरी ने कहा कि उनको रांग-सिग्नल मिल गया है। मैं जब भी कोई बात कहता हूँ तो सैफुद्दीन चैधरी को हर समय रांग सिग्नल मिलता है, लेकिन सही बात यह है कि कोई उनको रांग सिग्नल नहीं मिला, आज भी वे बात करने को तैयार हैं। आज भी उनसे हमारा सीधा नहीं, लेकिन आज भी वे हमसे संपर्क कर रहे हैं। अब अगर वे सिमरनजीत सिंह मान के जरिए हमसे संपर्क स्थापित नहीं कर रहे हैं और इससे राजदेव जी नाराज हैं तो इसमें मैं क्या करूँ, मैं तो उनको नहीं कह सकता कि आप सिमरनजीत सिंह मान को नेता मानकर मेरे पास आओ। एक नहीं अनेक, जिन-जिन पंथिक कमेटियों के इन्होंने नाम लिए, वे सीधे नहीं, बल्कि उनके लोगों ने संपर्क किया और वे शान्तिपूर्ण ढंग से बात करना चाहते हैं और भारत के संविधान के अन्दर कोई रास्ता निकालना चाहते हैं। मैं यह जरूर कहूँगा कि बातचीत का हर ब्यौरा, हर समय अखबारों में या संसद में देकर कोई बातचीत नहीं हो सकती।

मैं समझता हूँ कि उस बातचीत से कोई गलत सिग्नल नहीं होता। बातचीत करने के लिए लोग तैयार हैं और बातचीत करने के लिए वे लोग कदम उठा रहे हैं और वह नहीं, चाहे पंजाब हो, कश्मीर हो, अध्यक्ष महोदय, आपके जरिए आज मैं इस सदन में कहना चाहूँगा कि पिछले दो महीनों में जितने आतंकवादी गुट हैं, उनके नेताओं ने बातचीत के जरिए मसले को हल करने की इच्छा जाहिर की है। कितनी उसमें कामयाबी मिलेगी, मैं नहीं कह सकता, लेकिन कोशिश जारी रखनी चाहिए, बातचीत जारी रखनी चाहिए।

हम कोई अपनी ओर से उनके ऊपर प्रतिबन्ध नहीं लगा रहे हैं और मैंने उनसे यह भी कहा है कि अगर वे बातचीत करने के लिए कोई सुविधा चाहें तो हर सुविधा हम देने के लिए तैयार हैं, लेकिन विदेश में क्यों बात करेंगे, केवल इस डर से कि अगर वे यहाँ आ जाएंगे तो उनको पकड़ कर हम जेल में डाल देंगे, हम ऐसा नहीं करेंगे। अगर वे इस देश की सीमाओं के बाहर हैं और हमारे कहने पर यहाँ आते हैं, अगर हमारी बात टूट भी जाती है तो उनको फिर से देश की सीमाओं के बाहर भेज देंगे, यह बात हमने उनसे कही थी। कोई अगर मेरे कहने पर आएगा तो उसको जबरदस्ती पकड़ कर जेल में बन्द नहीं किया जाएगा, मैं आज फिर इस बात को इस सदन के जरिए कहता हूँ।

जहाँ तक बाहरी देशों से संपर्क की बात है, संपर्क है, उसमें भी कामयाबीमिली है, मैं यह नहीं कहता कि मेरी वजह से कामयाबी मिली है, लेकिन क्या यह सही नहीं है कि ब्रिटेन की सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवादियों की मदद करना बन्द करे, क्या यह सही नहीं है कि अमरीका की सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान इस चीज को बन्द करे, क्या यह सही नहीं है कि अभी 4 दिन पहले जब कश्मीर में एक दुःखद घटना हो गई, तो पाकिस्तान के रेडियो और टेलीविजन ने कहा कि कश्मीर में आतंकवादी जो कर रहे हैं, वह गलत है, एक महिला को गिरफ्तार करना या पकड़ना बुरी बात है। हम कोशिश कर रहे हैं, हम अचानक जादू से कोई चीज नहीं कर सकते, लेकिन बाहर से भी कोशिश जारी है, लेकिन मैं नहीं मानता कि देश की समस्या बाहर की मदद से हल हो, हम कोशिश कर रहे हैं, बाहर के लोगों को भी समझा रहे हैं कि हमारे देश के अन्दर अगर कोई इस तरह का उत्पाद होगा और उसका आप समर्थन करेंगे तो इसमें आपका हित नहीं है, आपका लाभ नहीं है।

हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार यह हुआ है कि जब ब्रिटेन ने कहा है कि शिमला सम्मेलन के बाद, पहले के जितने समझौते हैं भारत और पाकिस्तान के, वे सब निरर्थक हो चुके हैं, केवल शिमला सम्मेलन में जो प्रस्ताव पास हुआ था, वह सही है। पहली बार अमरीका ने कहा है कि अब पाकिस्तान को कश्मीर में सैल्फडिटर्मिनेशन की बात बन्द करनी चाहिए। पहली बार उन्होंने कहा है कि आतंकवादियों के साथ उनका रिश्ता नहीं होना चाहिए। पहली बार पाकिस्तान ने यह कहा है कि चाहे पंजाब हो, चाहे कश्मीर हो, आतंवादी अगर कोई गड़बड़ी करते हैं तो हम उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए तैयार हैं, उठाएंगे या नहीं, मैं नीयत नहीं बता सकता, लेकि अगर कोई कहता है तो उस पर विश्वास करना मैं अपना कत्र्तव्य, अपना फर्ज मानता हूँ। झगड़ा करके, गुस्सा करके, नाराजगी दिखा कर, चुनौती देकर हम उनका सहयोग नहीं ले सकते।

अध्यक्ष महोदय, मैं फिर आपसे कहता हूँ कि धर्म का सवाल क्यों उठाया जाता है। क्या अब सिक्ख धर्म की मीमांसा हमारे मित्र अतिन्दर पाल जी करेंगे, सिक्ख धर्म की मीमांशा नानक से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह ने की है। ‘‘एक ओंकार सत नाम’’ का पाठ करने वाला आदमी, क्या उसके बन्दे वह कहें कि क्योंकि दिल्ली में ब्राह्मणों का राज है, इसलिए पंजाब उससे अलग रहेगा। गुरुवाणी में एक सन्त के बाद दूसरे सन्त ने राम और कृष्ण की गाथा किसतरह से गयी है, किस तरह से हमारी सभ्यता और संस्कृति की अनेक धाराएं, जो उज्ज्वल धारा है, वैभवपूर्ण धारा है, हमें एक नई दिशा में ले जाती है, उसका बखान गुरुवाणी में किया गया है।

मैं नहीं जाना चाहता सिख धर्म में, क्योंकि मैं उसका ज्ञाता नहीं हूँ। यह ज्ञान तो इनकी है। सिख धर्म की स्थापना हुई थी हिन्दू धर्म पर जो अत्याचार हो रहे थे उसके विरोध में। सिख धर्म हमेशा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध है। गुरु तेग बहादुर अमृतसर से चलकर दिल्ली आए थे, इसलिए कि कश्मीर के पण्डितों के जनेऊ की रक्षा करनी है, उनकी चोटी की रक्षा करनी है। धर्म के मामले में ज्यादा पैठ आडवाणी जी की होगी या अतिन्दर पाल जी की होगी। लेकिन मैं आडवाणी जी से कहना चाहता हूँ कि हिन्दू धर्म ने सबको देश में मिलकर चलना सिखाया। हिन्दू धर्म की यह विशेषता है कि सभी धर्मों को उसने अपने में समाविष्ट किया। किसी को हमने हेय दृष्टि से नहीं देखा, किसी को हमने दुत्कारा नहीं, किसी के साथ हमने भेदभाव नहीं किया। हमारे गुरुद्वारे हमारी सभ्यता और संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक हैं। हम सबको उनके ऊपर अभिमान है।

अध्यक्ष महोदय, इसलिए जब अमृतसर में 1983-84 में जब आपरेशन हुआ था, तब मैंने यह कहा था कि यह हमारी परम्पराओं को तोड़ने का काम हो रहा है। इससे देश का मन टूट जाएगा। उस समय किसी का समर्थन पाने के लिए नहीं, किसी का मत पाने के लिए नहीं कहा था। मैं जानता हूँ देश की उज्ज्वल परम्पराएं जो बनती हैं, अध्यक्ष महोदय, वह करोड़ों लोगों की कुर्बानी से बनती हैं। उस कुर्बानी का अगर आप तिरस्कार करोगे, इतिहास आपको क्षमा नहीं करेगा।

मैं मायावती जी से सहमत हूँ। हिन्दू धर्म में अनेक विकृत्तियां आयीं। विकृत्तियां धर्म नहीं है, जो उसमें अलगाव है, टूटन है, वह धर्म नहीं है। धर्म शाश्वत है। विकृत्तियां समाज में थोड़े समय के लिए एक बिखराव है, भटकाव है। भटकाव को धर्म मत कहिए। जो भटकाव है, उस भटकाव को मिटाना होगा। मैं समझता हूँ कि छुआछूत हिन्दू धर्म की कोई मौलिक मान्यता नहीं है। हमारे देश में आप राम की परम्परा देखें। राम शबरी के झूठे बेर खा सकते हैं।

दुनियां के हर धर्मों में समय-समय पर भटकाव आता है, दुनिया के हर धर्म में डिस्टारशन्ज और विकृत्तियाँ आती हैं। दुनिया का एक भी धर्म नहीं है जो बताए हुए रास्ते पर, ऋषियों के रास्ते पर चलता है। हिन्दू धर्म में भी यह हुआ है। उसको हमें मिटाना चाहिए, बदलना चाहिए। मैं मानता हूँ कि सिखों की अपनी मान्यता है, उसकी परम्परा है, पुरुषार्थ की परम्परा, त्याग की परम्परा। लेकिन उस परम्परा के ऊपर अभिमान न करके यह कहना कि हमारी एक अलग धारा है, आप उसके नाम पर, धर्म के नाम पर भारत से उसको अलग करना चाहते हो क्या आपने कभी सोचा है नन्देड साहिब का क्या होगा, पटना साहिब का क्या होगा? क्या कभी आपने सोचा है कि नानक देश के एक कोने से दूसरे कोने तक घूमे थे, केवल चन्द लोगों के लिए नहीं घूमे थे, इस देश की सभ्यता और संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने के लिए घूमे थे। आज हम उस संस्कृति की एकता को, उस तन्तु को तोड़ने की बात कर रहे हैं। जब हम बातचीत के रास्ते से पंजाब की समस्या का रास्ता निकालना चाहते हैं तो इसलिए कर रहे हैं।

हमारे मित्र इन्द्रजीत जी ने राजनीतिक सवाल उठाया, बहुत सही सवाल था, कि लोकसभा का चुनाव होगा या नहीं? मैं इस समय तुरन्त नहीं कह सकता कि पंजाब में लोकसभा का चुनाव होगा या नहीं। लेकिन लोकसभा का चुनाव हो तो विधानसभा का चुनाव जरूर हो, यह तर्क हमारी समझ में नहीं आया। इसलिए मैं आपको बता दूँ, हमने एक बात और कही थी, एक आश्वासन देना होगा पंजाब के राजनीतिज्ञों को कि संसदीय जनतन्त्र की संस्थाओं को, संसदीय जनतन्त्र से मिटाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। लोकतान्त्रिक संस्थाओं का उपयोग लोकतन्त्र और इस देश की एकता तथा अखंडता को तोड़ने में नहीं किया जायेगा। यह आश्वासन कौन देने को तैयार है? यहाँ पर यह काम आप नहीं कर सकते। विराट देश है और इस देश की विराटता हमारे लिए एक शक्ति है।

अध्यक्ष महोदय, आज मैं खुदकुशी कर लूँ दूसरे जन्म की तमन्ना में तो मैं अक्लमन्द नहीं हूँ। दूसरे जन्म की तमन्ना में खुदकुशी मत कीजिए। मेरी आपसे यही फरियाद है। हम चाहते हैं कि जल्दी चुनाव हो, हम चाहते हैं कि अगले दो महीनों में इस लायक हम हो सकेंगे। मैं शायद यह अनहोनी बात नहीं कहता जैसे हमको संकेत मिल रहे हैं। वह दूसरे संकेत हैं, जो सैफुद्दीन वाले सिगनल नहीं हैं। उन सिग्नल्स से ऐसा लगता है कि अगले दो-तीन महीनों में हम इस लायक हो सकेंगे और कह सकेंगे कि न केवल पंजाब मेऔर न केवल कश्मीर में चुनाव हों, भारत में कोई भी ऐसा राज्य या अंचल नहीं होगा जिसमें चुनाव की व्यवस्था न कर सकें। आज परिस्थितियाँ विकृत हैं। विवशता और दुःख के साथ हमें यह प्रस्ताव रखना पड़ा है। मुझे विश्वास है कि इस प्रस्ताव का आप समर्थन करेंगे।


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राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।