जयललिता के साथ हुआ व्यवहार शर्मनाक न्यायपालिका को बरतना चाहिए शिष्टाचार
सभापति महोदय, मैं यहाँ सुश्री जयललिता के खिलाफ की गई कार्यवाही पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता। लेकिन, जिस तरह इसे पेश किया गया है, जिस तरह से इसे देश के लोगों तथा पूरी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि हम एक असभ्य समाज की ओर जा रहे हैं। यह सब रोज हो रहा है और यह असाधारण मामला है। ऐसी तो एक जांच एजेन्सी की प्रवृत्ति रही है। मुझे कहते हुए दुःख हो रहा है कि न्यायपालिका भी थोड़ा-बहुत संयम से काम लेना आवश्यक नहीं समझती है।
सभापति महोदय, तमिलनाडु में जो घटना हुई है तथा जो व्यवहार सुश्री जयललिता के साथ किया गया है, वह एक शर्मनाक बात है। सरकार द्वारा तथा जो लोग उनकी गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार हैं, उनके द्वारा यह खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया गया है कि उन्हें सोने के लिये केवल एक चादर उपलब्ध कराई गई है। कच्चे पर सोना पड़ा। उन्हें वह खाना दिया गया जो साधारण अपराधियों को दिया गया था जबकि अभियुक्त के रूप में वह अपराधी नहीं हैं। इसे अभी साबित किया जाना है कि उन्होंने कोई गलत काम किया है। इस देश की विधिज्ञता में यह एक नई प्रवृत्ति है कि जब किसी के विरुद्ध कोई शिकायत दर्ज की जाती है, तो उसे न केवल कुछ दिनों और हफ्तों भर के लिए अपितु महीनों तक के लिए जेलों में रखा जाता है और सभी प्रकार के दुष्प्रचार किए जाते हैं।
सभापति महोदय, मैं यह कहने के लिए बाध्य हूँ कि इस देश में अदालती प्रासंगिक उक्ति भी एक आम बात हो गई है। सबको पता है कि इस शहर में भी एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री के साथ क्या हुआ था। मैं नहीं समझता कि इस तरहकी क्या बाध्यता थी कि उन्हें अभियुक्त के कठघरे में खड़ा किया जाता लेकिन ऐसा किया गया। मुझे उस पर कुछ नहीं कहना क्योंकि न्यायाधीश सर्वोच्च हैं और उनके बारे में कोई कुछ भी नहीं कह सकता। लेकिन थोड़ी-बहुत मर्यादा, थोड़ी-बहुत शिष्टाचार तथा थोड़ी-बहुत अच्छे व्यवहार की आशा समाज में सबसे की जाती है- उन लोगों से तो और जो अधिकार प्राप्त हैं और जिनसे किसी विशेष मामले में बुद्धिमतापूर्वक निर्णय दिए जाने की आशा की जाती है।