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संसद के जरिए पावर में आया था हिटलर, असमर्थ सरकार को बर्दाश्त करना राजधर्म के विपरीत

गुजरात नरसंहार पर 30 अप्रैल, 2002 को चन्द्रशेखर

सभापति जी, सदन में जब बहस शुरू हुई तो मुलायम सिंह जी ने कुछ सवाल उठाए। उसके बाद सरकारी पक्ष की ओर से जो पहली वक्ता थीं वह उमा भारती जी थीं। कुमारी उमा भारती जी के भाषण को सुनकर मुझे ऐसा लगा कि हम लोग संसदीय जनतंत्र के अंतिम छोर पर पहुंच गए हैं। मुझे बहुत जानकारी तो नहीं है लेकिन थोड़ी बहुत राजनीति की जानकारी मुझे भी है। मैंने राजनीति-शास्त्र का अध्ययन किया है और 50 वर्षों से देश की राजनीति में हूँ।

सभापति जी, एक जमाने में नाजी लोगों ने इसी तरह से संसद का उपयोग किया था। वही भाषा, वही भावना, वही अभिव्यक्ति आज हमें देखने को मिली। जिस प्रकार का भाषण उन्होंने दिया, शुरू तो उन्होंने इससे किया कि हम किसी पर आक्षेप करना नहीं चाहते, देश में सहमति की राजनीति चाहते हैं और सब मिलकर समस्या की जड़ में जाएं और उसके बाद उन्होंने यह कहा कि कांगे्रस पार्टी ने गड़बड़ी की। कांगे्रस पार्टी ने 1984 में गड़बड़ी की- यह उन्होंने नहीं किया। उन्होंने कहा कि सन् 1920 में गड़बड़ी की जब खिलाफत आंदोलन का उन्होंने विरोध किया और कम्युनलिज्म वहाँ से शुरू हुआ। खिलाफत आंदोलन के नेता महात्मा गाँधी जी थे, शायद उमा जी को मालूम है या नहीं है।

हमको यह मालूम है कि गाँधी जी को मारने वाले कौन थे लेकिन हम उन बातों में पड़ना नहीं चाहते। मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि चाहे गाँधी जी को यह देश भुला दे लेकिन उन्हें आज सारी दुनिया याद कर रही है। जहाँ जनतंत्र है, वहाँ के लोग आज उन्हें याद कर रहे हैं और जहाँ जनतंत्र नहीं है, वहाँ जनतंत्र के लिए लड़ने वाले लोग याद कर रहे हैं। लुई-फिशर नेमहात्मा गाँधी जी पर जो किताब लिखी है, उमा जी, मेरा निवेदन है कि कभी उनके बारे में आप पढ़ लीजिएगा। उसमें लिखा है कि महात्मा गाँधी जी मरे थे तो किस तरह से दुनिया के विभिन्न देशों में प्रतिक्रिया हुई थी, किस तरह से गरीब आदमी रोया था, किस तरह से राजनेता रोये थे। माननीय सोमनाथ जी मुझे माफ करेंगे सिवाय सोवियत यूनियन को छोड़कर दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं था जहाँ का झंडा झुका नहीं था।

पाकिस्तान का आपको ज्यादा मालूम होगा लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना जो पाकिस्तान के निर्माता थे, उन्होंने भी महात्मा गाँधी जी की मृत्यु पर शोक-संवेदना प्रकट की थी और उन्हें दुनिया का महान व्यक्तित्व बताया था। आप उससे ज्यादा जानते हो तो वह इतिहास मुझे मालूम नहीं है। सभापति जी, मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि मैं किसी पर आक्षेप नहीं कर रहा हूँ। मैं बात रहा हूँ कि कहाँ हम लोग पहुँच गये हैं।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं जिन्ना के शब्दों को याद नहीं करता हूँ। जिन्ना और नाथू राम गौडसे के शब्दों को आप ही याद करिए। हमें उमा जी से यह उम्मीद नहीं थी। मैं समझता था कि जिस प्रकार का भाषण उन्होंने शुरू किया, वैसा ही उनका अंत करेंगी लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि उन्होंने उन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जो फासीवाद की जड़ में हैं। वे सिद्धान्त, जिन्होंने जर्मनी को वहाँ तक पहुँचाया था। हम लोग इतिहास को भूल जाते हैं। हिटलर, संसद के जरिये पावर में आया था। उन्होंने इसी प्रकार से संसद का प्रयोग किया था। आज उमा जी भाषण नहीं दे रही थी बल्कि उनके दिमाग में जो हिन्दुत्व बैठा हुआ था, उसका भाषण कर रही थी।

मुझे क्षमा कीजिये, मैं बड़े आदर के साथ माननीय प्रधानमंत्री जी के बारे में कहना चाहूँगा कि मैं उन्हें 40 सालों से जानता हूँ और पहली बार जब मैं 1962 में संसद में आया था, तब से उनके नजदीक रहा हूँ। श्री अटल में और जो कमी हो लेकिन कभी उन्हें अपनी भाषा को बदलते हुये नहीं देखा। उमा जी ने 1970 का जिक्र किया लेकिन 1977 में भी मैं अटल जी के नजदीक रहा हूँ। मुझे यह बहुत अजीब लगता है कि अटल जी जैसे व्यक्ति ने गोआ में किस प्रकार का भाषण दिया। उनके और उमा जी के भाषण को सुनकर मुझे ऐसा लगता है कि जनतंत्र के जरिये इस देश के चलाने में अब हमारा कोई स्थाननहीं है। आर.एस.एस. के प्रवक्ता श्री वैद्य हैं। कल रात टी.वी. पर उनका भाषण सुना। उन्होंने कहा कि एन.डी.ए. का अपना एजेंडा है, डी.एम.के. का अपना एजेंडा है, टी.डी.पी. का अपना एजेंडा है। सब लोग अपना एजेंडा चलाकर कुछ पाना चाहते हैं। सब लोग अपनी बातों को दोहराना चाहते हैं। इसी प्रकार हमारा भी एजेंडा है। उस एजेंडा को चलाने के लिये हम मजबूर हैं। जब यह बात बार-बार सदन के अंदर और बाहर कही जाती है कि सरकार भाजपा की नहीं, एन.डी.ए. की है तो मैं नहीं जानता कि यह सरकार अटल बिहारी वाजपेयी की है या श्री वैद्य की है? इस बात का खुलासा हो जाना चाहिये, मैं आपके जरिये निवेदन करना चाहता हूँ। अब बहुत खून बह चुका है।

हमारे एक मित्र हमारे साथ काफी समय रहे हैं और आज रक्षामंत्री हैं। मैंने कल उनका एक वक्तव्य पढ़ा जिसमें उन्होंने कहा कि जननायक जयप्रकाश ने कहा था कि वे नरेन्द्र मोदी में एक रोशनी देखते हैं। मुझे नहीं पता कि जयप्रकाश जी ने ऐसा कहा या नहीं लेकिन जार्ज साहब को रोशनी दिखाई पड़ रही है। सभापति जी, मैं आपसे निवेदन कर रहा था कि जो कुछ आज इस सदन में हो रहा है, वह इस बात का संकेत है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और मैं ऐसा समझता हूँ कि मेरे जैसे लोगों का इस सदन में कोई स्थान नहीं है।

इसलिए मैं थोड़े से शब्दों में अपनी बात कहना चाहता हूँ। अगर इतना गुस्सा आता है तो उस गुस्से को समझते हुए मैं चुप भी हो सकता हूँ। मैंने कहा कि उमा जी ने खिलाफत मूवमेन्ट का विरोध किया। खिलाफत मूवमेंट से मुस्लिम साम्प्रदायिकता का उदय हुआ। इसका मतलब यह था कि गाँधी जी ने सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया। अगर ऐसी बात है तो देश के इतिहास को फिर से बदलना पड़ेगा।

मैं आपसे निवेदन करूँगा कि जब किसी देश से जनतंत्र मिटाना हो, उसकी सभ्यता और संस्कृति को खत्म करना हो तो उसके प्रतीकों को सबसे पहले खत्म कर देना चाहिए। गाँधी जी इस देश के प्रतीक हैं। गाँधी जी इस देश की सभ्यता, संस्कृति और परम्परा के आदर्शों के उदाहरण हैं। उन्हें समाप्त करना देश की परम्परा को समाप्त करना है। उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज्म तभी रहेगा, जब हिन्दू धर्म रहेगा। हिन्दू धर्म क्या है, उसकी व्याख्या अलग-अलग हो सकती है। हिन्दू धर्म की व्याख्या चार सौ, छः सौ या आठसौ वर्षों की नहीं हैं। हिन्दू धर्म की व्याख्या पाँच हजार वर्षों की है। यह वेदों और उपनिषदों से निकली है। मैं आपके जरिये इस सदन को कहना चाहता हूँ कि वेदों और उपनिषदों के जमाने में कोई मंदिर नहीं थे। उस समय कोई राम और शिव की पूजा नहीं होती थी। यज्ञों के जरिये मंत्रों के जरिये और एक परम्परा के जरिये यह धर्म सारी दुनिया में अपना प्रभाव रखता था। उन्होंने श्लोक दोहराया कि भगवान एक है, उस तक पहुँचने के रास्ते अलग-अलग हैं। कौन राही किस रास्ते से उस मंजिल पर पहुँचेगा, इसके लिए झगड़ा क्यों होना चाहिए। अगर यही हिन्दू धर्म है तो उसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई में कोई अन्तर नहीं है। आज जो कहा जाए, जो पढ़ रहे हैं, अभी सोमनाथ दादा ने पढ़ा, क्या वही हिन्दू धर्म है। क्या यही हिन्दू धर्म है जो आज गुजरात में हो रहा है।

आपने एक दूसरी बात कही कि आजादी के बाद किसी जगह इस तरह से दंगा नहीं रुका, जिस तरह से तीन-चार दिन के अन्दर गुजरात में रुक गया। आज दो महीने हो गये हैं, दंगा आज भी चल रहा है गुजरात की सरकार ने सौ लोगों को गोली से मार दिया तो कोई बड़ी भारी उपलब्धि नहीं है। एक तरफ गरीबों को बढ़ावा दो कि दंगा करो और दूसरी तरफ कामयाबी दिखाने के लिए गरीबों को मार दो, यह बात देश चलाने की नहीं है। सरकार दंगे को रोकने की जिम्मेदार है। आपने कहा कि कोई किसी की रक्षा नहीं करता। व्यक्ति रक्षा नहीं कर सकता, लेकिन सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों की रक्षा करें। जो सरकार नागरिकों की रक्षा नहीं कर पाती, उसको रहने का कोई अधिकार नहीं है, और जो सरकार इस काम में निकम्मी साबित हो गई है, उसको बर्दाश्त करना सबसे अधिक राजधर्म के विपरीत है। प्रधानमंत्री दूसरे को राजधर्म की शिक्षा देना चाहते हैं तो पहले अपने राजधर्म का पालन करना सीखें और राजधर्म यह है कि केन्द्र सरकार अगर कहीं निर्दोष लोगों की हत्या हो रही है, कहीं धर्म के नाम पर लोगों की हत्या की जा रही है तो उसको रोकने के काम करे।

मैं आपसे निवेदन करूँगा कि यह देश एक ऐसे अंधेरे में जा रहा है जहाँ से निकल पाना इसके लिए कठिन होगा। मैं जानता हूँ भाषणों का असर नहींहोने वाला है। चुनावों में जीतना आसान है, सरकार चलाना आसान है लेकिन देश ऐसे नहीं चलेगा। और आज हम ही नहीं, केवल विरोधी पक्ष के लोग नहीं, गुजरात की जनता नहीं, पूरी दुनिया के लोग भारत के बारे में क्या दृष्टि रखते हैं यह हम सबको मिलकर सोचना चाहिए। अभी दो-तीन महीने पहले ही देश के प्रधानमंत्री, देश के विदेश मंत्री, देश के गृहमंत्री कहते थे कि भारत की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ती जा रही है, ऊँची होती जा रही है। जिस अमेरिका, कनाडा और यूरोपियन देशों पर हम अपनी वैदेशिक नीति की प्रखरता का बखान कर रहे थे, आज उनसे क्या ध्वनियां आ रही हैं, क्या टिप्पणियां आ रही हैं? हमें इस सदन में आप चुप करा सकते हैं, लेकिन अभी इतना शक्तिमान देश नहीं हुआ कि बाहर से आने वाली बातों को रोक सकें। यहाँ किसी को चुप करा देना आपके बस में है लेकिन चुप कराने वाले किसी इंसानियत को चुप नहीं करा सकते हैं।

देश में नहीं, दुनिया के इतिहास ने बताया है कि जब कोई आदमी तलवार के बल पर केवल सत्ता को बचाना चाहता है, तिकड़म के बल पर, झूठे व्यवहार पर, एक दूसरे को धोखा देकर, जनता के साथ छल कपट करके अगर कोई सरकार चलाए तो वह कुछ दिन सरकार चला सकता है लेकिन देश नहीं चला सकता।

आज वैसी स्थिति में देश पहुँच गया है और वैसी स्थिति में पहुँचने का आधार यह है कि पहली बार मुझे भी यह अनुभव हो रहा है कि अब मेरे जैसे लोगों को संभलकर बोलना चाहिए कि जो गोधरा में हुआ, जो गुजरात में हुआ, वह कहीं यहाँ भी न होने लगे, इसका भी डर लगने लगा है।

गोधरा में जिस दिन हत्याकांड हुआ, उस दिन मैं हमारे अध्यक्ष जी के पास गया जो अब हमारे बीच नहीं हैं। मैंने उनको कहा कि कम से कम आज तो गोधरा पर सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया जाए। कुंवर अखिलेश और रामजी लाल सुमन ने काम रोको प्रस्ताव रखा था। हमने कहा कि उसी को आधार बनाकर कुछ कहा जाए, लेकिन उस दिन उधर से कम शोर हुआ था, ज्यादा शोर सरकार की तरफ से हुआ था। उस दिन हिन्दुत्व की रक्षा करने के लिए आप लोग ज्यादा प्रखर थे। अगर गोधरा पर उस दिन यह सदन एकमत से राय देता, अगर गोधरा पर उस दिन प्रस्ताव जाता तो शायद कम से कम यह कहने का अवसर नहीं मिलता कि गोधरा के कारण यह सारा हत्याकांड होरहा है। सभापति जी, मैं निवेदन कर रहा था कि भूल हुई। उस भूल को सुधारने का यदि काम नहीं हुआ और हमने एक-दूसरे पर आक्षेप लगाए, तो ठीक नहीं है। जैसा उमा जी ने शुरू में कहा, अच्छा होता, अगर वे इन दंगों के कारण बतातीं कि क्यों ये दंगे हुए। मैं बताता हूँ- दंगे इसलिए हुए कि लोगों के दिलों में अविश्वास है, दिल टूटे हुए हैं। लोग समझते हैं कि उनका जनजीवन सुरक्षित नहीं है। इसका कारण चाहे गोधरा हो या अहमदाबाद। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जगह चाहे कोई भी हो, इस देश में जहाँ कहीं हत्या होती है, जहाँ कहीं हिंसा होती है, उसमें यदि एक मर्द या औरत भी मरती है, तो भारत माँ का एक बेटा या बेटी मरती है। कुछ लोग समझते हैं कि वे ही भारत माता के लाडले और अकेले बेटे हैं। अगर वे यह समझें कि भारत माँ के दूसरे भी बेटे और बेटियां हैं, तो शायद उनके सोचने का तरीका अलग हो सकता है।

महोदय, 1984 के कदम से गुजरात सही हो जाएगा, ऐसा नहीं है। 1984 में कितने लोग गए थे, हमें नहीं मालूम, लेकिन जिस दिन दंगा हो रहा था, मैं 15-20 व्यक्तियों के साथ दिल्ली की सड़कों पर अकेला घूम रहा था। मैं तो देख रहा हूँ। कुछ बोल नहीं रहा हूँ। अगर देखना भी मना है, तो मैं आपकी तरफ नहीं देखँूगा।

मेरा भाषण अच्छा कभी नहीं होता। इसलिए अच्छा नहीं होता क्योंकि मैं आपकी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूँ और मैं समझता हूँ कि वह भाषा इस्तेमाल करूँगा, तो देश के लिए घातक होगा और जो देश के लिए घातक है वह मेरे लिए वर्जित है। जिस तरह की भाषा का यहाँ इस्तेमाल किया गया है और जिस प्रकार के भाषण दिए गए हैं, उनसे गुजरात के दंगे और भड़केंगे।

यह मत समझिए कि आपके डराने से लोग डर जाएंगे। हमारे प्रधानमंत्री भले ही कह दें कि मुसलमान जहाँ रहता है, शांति से नहीं रहता, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि जब इस देश में 10,000 मुसलमान आए थे, उनको हम उस समय अरब सागर में नहीं डुबो सके, तो अब 14 करोड़ मुसलमानों को अरब सागर में डुबोने वाले हम नहीं हैं।

इतिहास को अपने परिवेश में देखना चाहिए। दुनिया को चुनौती मत दीजिए। दुनिया के लोग आज हमारी ओर कुपित दृष्टि से देख रहे हैं। वे पहलेसे ही कोशिश कर रहे हैं। हमारे मित्र श्री येरननायडू जी चले गये हैं। आर्थिक क्षेत्र में हमको दबाने की कोशिश की जा रही है, पीछे धकेलने की कोशिश की जा रही है। आज सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में अगर उनको दखलअंदाजी करने का मौका दिया गया तो यह देश टूटने से नहीं बचेगा। इसको आप याद रखिये कि जो काम अंग्रेजों ने देश को बांटने का किया था, वही काम आज देश की बड़ी ताकतें इस देश में कर रही हैं। इस देश में ही नहीं बल्कि सारे भूखंड में, भारत का, पाकिस्तान का, बंगला देश का, नेपाल का जो भूखंड है, सब जगह अराजकता धीरे-धीरे पनप रही है। वही ताकतें उनको बढ़ावा दे रही हैं। अनजाने में आप उनके हाथों में खेल रहे हैं। यह खेलना बंद कर दीजिए ताकि यह देश बर्बादी की ओर न जाये।

उमा जी, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ क्योंकि आप संन्यासिनी हैं। हमें समझाया गया है कि गेरुआ वस्त्र धारण करने वालों की इज्जत करनी चाहिए इसलिए मैं आपकी इज्जत करता हूँ। आप जानती हैं कि मैं यह कहने के लिए नहीं कह रहा हूँ लेकिन जो भाषण आपने दिया, एक हिन्दू संन्यासिनी का भाषण नहीं है। उसे सुनकर लगा कि किसी नाजी रिजीम के एक वालंटियर का भाषण है। उस भाषण से देश को बचाइये। मैं यह भी कहूँगा कि आप भी जरा यह सोचें और इस तरफ के लोग भी सोचें। इनको और उकसाते रहेंगे और अपने एक नहीं होंगे तो देश की बर्बादी को ओर ले जाने में हमारा भी हाथ रहेगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।