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सामना में प्रकाशित वक्तव्य खतरनाक, जसवन्त सिंह जी, अपनी जीत को राष्ट्र की पराजय में मत बदलिए

सामना में प्रकाशित वक्तव्य खतरनाक जसवन्त सिंह जीए अपनी जीत को राष्ट्र की पराजय में मत बदलिए

अध्यक्ष जी, एक व्यक्ति का बयान जो बम्बई से आया, वह अत्यन्त खतरनाक बयान है। वह बयान पहला नहीं है, जैसा कि शरद जी ने कहा। हमारे कांग्रेस के मित्र और सरकारी पक्ष के लोग यह समझेंगे, मैंने उनसे पहले भी कहा था कि कभी-कभी जो निर्णय होता है, वह देश को खतरनाक गलियों में ढकेल देता है। अगर दो-तीन साल पहले आपने निर्णय लिया होता तो ये बुरे दिन देश को नहीं देखने को मिलते।

मैं इस बयान पर चिंतित हूँ, जैसे सब लोग चिंतित हैं, लेकिन उससे अधिक चिन्ता मुझे तब हुई, जब मैंने श्री राम नाईक जी का वक्तव्य यहाँ सुना और मुझे अत्यंत भयावह स्थिति तब लगी, जब इस विषय पर मैंने जसवंत सिंह जी की बात सुनी। जसवन्त सिंह जी एक समझ-बूझ वाले और सुलझे हुए व्यक्ति हैं और मैं समझता हूँ कि राष्ट्रीय समस्याओं से अवगत व्यक्ति हैं। यदि मैं कहूँ कि सदन में बहुत कम व्यक्ति ऐसे हैं, जिनको समस्याओं की इतनी जानकारी है, जितनी जसवन्त सिंह जी को है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे इस विषय पर बयान दे रहे थे तो जिस तरह से सदन के सामने वह बहस रख रहे थे, ऐसा लगता है कि वह वास्तविकता को सामने रखने के लिए तैयार नहीं है। यही विवशता व्यक्ति की अधिनायकवाद को ले आती है। अधिनायकवाद अचानक नहीं आता।

अध्यक्ष महोदय, जबसभा पक्ष में बैठे लोग सच्चाई का सामना करने से कतराने लगते हैं, जब वास्तविकताओं का सामना करने से आदमी हिचक जाता है और जब बड़े-बड़े लोग उसका सामना नहीं कर पाते तो समाज टूट जाताहै। आदि से आज तक यही मनुष्य जीवन की कहानी रही है। हिटलर अचानक नहीं गया था। जैसा इंद्रजीत जी ने कहा कि जब बुद्धिजीवी लोगों ने, समझदार लोगों ने उन गतिविधियों को रोकने में अपने को असमर्थ मान लिया तो हिटलर जैसी शक्ति पैदा हो गई। इतने लम्बे भाषण की कोई जरूरत नहीं थी। राम नाईक जी बहुत शालीन व्यक्ति हैं। मैं कोई प्रशंसा के लिए नहीं कहता। वह हर समय समझदारी की बात करते हैं। लेकिन मुझे दुःख हुआ जब इन्होंने कहा कि मराठी में ‘‘सामना’’ छपा था, इसलिए लोगों ने उनके वक्तव्य को नहीं समझा। मराठी आपको तो शायद आती होगी। आपने समझा होगा अगर आप समझते हैं लेकिन राम नाईक जी, मुझे यह बताया गया कि मराठी का हिन्दी संस्करण भी छपा है और उसकी प्रति मेरे सामने रखी हुई है, जिसकी हैडलाइन है ‘‘मुझ पर हमला किया तो पूरी कौम नष्ट कर देंगे’’। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या अर्थ आप इसका हमको समझाना चाहते हैं।

जसवन्त सिंह जी, मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि विदेशी नागरिकों के सवाल से इसका क्या सम्बन्ध है। इन दोनों का सम्बन्ध अगर आप मुझे समझा दें तो मैं संतुष्ट हो जाऊँगा। सारी दुनिया में विदेशी नागरिकों के बारे में एक ही राय है। अटल जी आप तो विदेशमंत्री रहे हैं, दुनिया में घूमते रहे हैं। दुनिया के अनेक देश जो हमसे समर्थ देश हैं और जहाँ विदेशी नागरिक हैं वहाँ भी उनको हटाने की कोशिश हो रही है लेकिन किसी ने नहीं कहा कि इन्हें बंदूक की गोली से उड़ा दो। कहीं पर हल्ला नहीं मचा। कुछ विदेशी हैं तो उनका निरीक्षण होना चाहिए।

जसवन्त सिंह जी, आज एक व्यक्ति के बयान के लिए राजीव गाँधी, असम समझौता, इनका जिक्र करने की क्या जरूरत है, यह मेरी समझ में नहीं आता। आज संकट दूसरा है। आपने कहा कि हम जीते हुए हैं। अपनी जीत को राष्ट्र की पराजय में मत बदल दीजिए। आपकी जीत स्थाई जीत नहीं है। राष्ट्र आपके और हमारे बाद भी रहेगा। यह जो बयान है यह राष्ट्र की हार है, पराजय है और इस पराजय का भागीदार आप अपने आपको अनायास ही बना रहे हैं। मुझे आपसे यह अपेक्षा नहीं थी। आपके विचारों का मैं बहुत समर्थक नहीं रहा हूँ पर जब सारे देश ने उनको गलत समझा तब भी मैंने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके विचार रखने वाले लोग कम से कम राष्ट्र पे्रम में किसी से कम नहीं हैं। अगर इसका आप समर्थन करते हों तो आपके राष्ट्र पे्रम पर दुनिया को संदेह हुए बिना नहीं रहेगा। आपके विचार गलत होसकते हैं। उन विचारों का मैं कभी समर्थन नहीं करता। क्या इस तरह की गलती को आप बचाएंगे, केवल इसलिए कि एक राज्य में आपकी सरकार बन गयी है, वहाँ पर आप मुख्यमंत्री बन गए हैं।

अध्यक्ष महोदय, क्या इस सदन में इस पर भी बहस होगी, क्या इस पर भी हम चर्चा करेंगे कि बिहार में 90 लोग मारे गए तो महाराष्ट्र में आपको मारने का अधिकार मिल गया। बंगाल में कुछ लोग मारे गए तो उत्तर प्रदेश में मारने का हक मिल गया। हमारा देश तो करुणा का देश है। हमारी संस्कृति करुणा पर आधारित है और राम नाईक जी आप तो अपनी संस्कृति के पुजारी हैं। हमने तो मानव को इज्जत देना सीखा है। हम जीवन का संदेश लेकर आए हैं मौत का पैगाम लेकर नहीं आए हैं। आपकी यह सरकार मौत का पैगाम लेकर आ रही है, इसको रोकिये।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे क्या निवेदन करूँ, बार-बार लोग कहते हैं कि हमारे मित्र पायलट साहब जवाब दें। तीन साल से मैं पायलट साहब से कह रहा हूँ कि जो रास्ता आपने अपनाया है, वह बर्बादी का रास्ता है। एक बार छूट दोगे, तो ये ताकतें बढ़ती जायेंगी। इनसे प्रार्थना करने से कोई लाभ नहीं है। मैं शरद यादव की एक बात से सहमत हूँ कि अगर देश के लोग और इस संसद में जो लोग भारत के भविष्य के बारे में, मुस्तकबिल के बारे में सोचते हैं, इन ताकतों का मुकाबला करने के लिए तैयार हों। हम नहीं जानते कि कितना मुकाबला कर पायें, लेकिन उसमें अगर असफल भी हो जायेंगे तो शायद कभी इतिहास हमें याद भी करेगा। आज इतिहास की गिरावट का सबूत है कि इस सदन में इस तरह के बयानों के पक्ष में तर्क ढूंढे जा रहे हैं। यह जनतन्त्र के लिए, राष्ट्र के लिए, राष्ट्र की सारी परम्पराओं के लिए, मानव मर्यादाओं के लिए, सभ्यता के लिए, भारतीय इतिहास के लिए सबसे बड़ा कलंक है। मैं अधिक बात नहीं कहना चाहता हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों को रोकने की शक्ति पायलट जी आप में नहीं है। हजारों वर्षों से इस देश ने बहुत दुष्टों को देखा है। वे आते हैं और चले जाते हैं। इस पर एक बात हमें याद आती हैः-

कोई बेलगाम है तो उधर से लगाम है।
कुदरत का इंतजाम भी क्या इंतजाम है।।

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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।