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चार्जसीट लगने से पहले त्याग पत्र की माँग बेमानी, सांसद नहीं करें असत्य की व्याख्या

बिहार के चारा घोटाला में सीबीआई लोकसभा में 30 अप्रैल 1997 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, बनातवाला जी ने बहुत बुनियादी सवाल उठाया। जिस तरह का घटनाचक्र देश में चल रहा है, आज से नहीं पिछले कुछ वर्षों से, उससे ऐसा लगता है कि राजनीतिज्ञों की छवि जो खराब हो रही है, उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार राजनीति में काम करने वालों की है। हम मानते हैं कि आजकल बहुत आरोप लग रहे हैं। इस सदन में बार-बार पुरानी परम्पराओं का जिक्र किया गया।

अध्यक्ष जी, मैं भी संसद में पिछले 35 वर्ष से (पांच वर्ष को छोड़कर) हूँ। मैंने बहुत सारे सवाल भी उठाए हैं। जैसा शरद यादव ने कहा, लेकिन मुझे कभी याद नहीं कि हमने सवाल उठाने के पहले सम्बन्धित मंत्री या सम्बन्धित व्यक्ति को इस बात की सूचना न दी हो। हम ऐसा भी मानते हैं कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र, जब तक वह खुला पत्र न हो, अखबारों और लोगों के पास कैसे पहुँच जाता है।

संसदीय मर्यादाओं की बात करते हुए और पुरानी परम्पराओं की याद दिलाते हुए हमें अपने आचरण पर भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। मैं ऐसा मानता हूँ कि जो कुछ हो रहा है, बुरा हो रहा है। लेकिन क्या हम इस देश में ऐसी उत्तेजना फैलाना चाहते हैं जिसके कारण लोग सड़कों पर जाने के लिए मजबूर हों। मैं सड़कों पर जाने की धमकी के खिलाफ हूँ। मैं सड़कों पर जाने से डरता हूँ, क्योंकि मैं पुरुषार्थी, पराक्रमी या बहादुर व्यक्ति नहीं हूँ। साथ ही मैं जानता हूँ किसी को जरूरत से ज्यादा डराओगे, दबाओगे तो वह पीड़ा में सड़कों पर जाने के लिए मजबूर हो जाएगा।

मैं इस सदन की मर्यादाओं की दुहाई करने वाले मित्रों को याद दिलानाचाहूँगा। यहाँ हमारे तीन मित्र बैठे हैं। अंतुले जी पर आरोप लगा। कांगे्रस के हमारे नेता आज उसको अपनी परम्परा का एक बड़ा भारी उत्कृष्ट सबूत मानते हैं। अंतुले जी आपको शायद वह दिन याद होगा, जब आप पर आरोप लगा था तो कांग्रेस का कोई सदस्य आपके घर जाने की हिम्मत नहीं करता था। अकेला चन्द्रशेखर आपके घर पर गया था।

आपको याद होगा कि इस सदन में जब हवाला कांड का जिक्र आया तो मैंने कहा था कि आडवाणी और माधव राव सिंधिया कोई हवाला का रुपया लिए होंगे, ऐसा मुझे नहीं लगता। उसकी भी अखबारों में आलोचना हुई। कहा गया कि मैं संकटमोचन हूँ। जब श्रीमान कल्पनाथ राय को टाडा के अंदर बंद किया गया, मैं उनको विद्यार्थी जीवन से जानता हूँ, मेरे घर से तीन किलोमीटर की दूरी पर उनका घर है, उनके परिवार के लोगों को मैं जानता हूँ, मैं जब जेल में उनसे मिलने गया तब बहुत फब्तियां कसी गईं। क्या भ्रष्टाचार को मिटाने का यह रास्ता है कि हम अपने मानवीय सम्बन्धों को भी तोड़ दें? मैं यह नहीं कहता कि वे निरपराध थे या नहीं थे।

मैंने कई बार कहा है, इस सदन में भी कहा है, जब मैं सरकार चला रहा था, कि हमारा बेटा अपराधी बन जाए तो हम उसे समझाने की कोशिश करते हैं, उसके मित्रों को बुलाकर उसको बताने की कोशिश करते हैं। उस समय हम बातचीत का रिश्ता कायम करना चाहते हैं। भारत माता का बेटा-बेटी कोई गलती कर दे तो उसे बंदूक चलाकर सीधा करने की कोशिश करते हैं, यह कौन-सी नैतिकता है? मैं ऐसा मानता हूँ कि कुछ मर्यादा राजनीतिज्ञों को निभानी चाहिए और वह निभाने के लिए हम सब विवश हैं। हम न भी चाहें तो कानून-व्यवस्था उस मर्यादा को निभाने के लिए हमें मजबूर करेगी। लेकिन चार्जशीट लगी नहीं, मुझे नहीं मालूम कि क्या चार्जशीट लगने वाली है, उससे पहले ही त्यागपत्र की मांग करना कौन सी नैतिकता है। यदि यह राजनीति नहीं है तो संसदीय मर्यादा के अंदर यह बात नहीं आती।

एक सरकार अधिकारी अखबारों में बयान देता है कि चार्जशीट लगाने वाले हैं। किसी को चार्जशीट के बारे में मालूम हो तो मैं नहीं जानता। मैं उस चार्जशीट के बारे में नहीं जानता हूँ। मैं भी संसद का सदस्य हूँ। मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूँ कि इमरजेंसी के दिनों के बाद 1977 में पहली बार उस समय के प्रधानमंत्री ने एक सी.बी.आई. के अधिकारी को मेरे पास किसी वजहसे भेजा था। उसके पहले मैं जानता भी नहीं था कि सी.बी.आई. का आदमी कौन होता है, कैसा होता है, उसका रूप रंग कैसा होता है? आज सी.बी.आईके तीन लोग खुले आम टेलीविजन पर इंटरव्यू दे रहे हैं। मैंने पटना में कह दिया तो मुझे कहा गया कि लालू यादव को बचाने के लिए मैं कह रहा हूँ। अगर जांच करने वाली एजेंसियों की मर्यादा नहीं रहेगी, संसद में बात करने वालों की मर्यादा नहीं रहेगी तो हम अपराध नहीं मिटा सकते हैं।

हमारे एक मित्र हैं, ज्यूरिस्ट हैं, न्याय के बड़े प्रवक्ता हैं। उन्होंने लिखा कि आप अपराधी की मदद क्यों करते हैं? मैंने कहा कि मैं अपराधी की मदद नहीं करता। मेरा विश्वास है कि अपराधी मरने के लिए जन्म लेता है, अपराधी जिन्दा नहीं रह सकता। वह तो स्वयं से मर जाता है। जो लोग सत्ता में बैठे हैं, जिनके हाथों में कानून का डंडा है, अगर वह सीमा को पार कर जाते हैं तो वे लोग समाज को हमेशा के लिए अंधेरे में धकेल देते हैं। आज एक का मामला है, कल दूसरे का मामला होगा। इधर से सुनाई पड़ रहा था कि आज बहुत सारे कांड यहाँ पर उठेंगे। मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आज हम हैं, कल दूसरा होगा, परसों तीसरा होगा। क्या तीन-चार दिन हम इंतजार नहीं कर सकते थे? क्या चार्जशीट का इंतजार करने में कोई आसमान टूट रहा था? क्या सारी राजनैतिक नैतिकता का पारस दो-चार दिनों में हो जाता था?

मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि कौन सी संसदीय परम्परा है? एक सी.बीआई. का डायरेक्टर किसी के खिलाफ एक राय जाहिर करे कि वह चार्जशीट लगाना चाहता है तो हम सब लोग खड़े होकर यह कहने लगें कि आप इस्तीफा दो नहीं तो सारी राजनीति की मर्यादा टूट जाएगी। मैं बोलता नहीं हूँ, लेकिन जब परम्पराओं, मर्यादाओं और संसदीय व्यवस्था के नाम पर असत्य की व्याख्या यहाँ पर की जाती है तो मुझे लगता है कि कहीं हम गलत राह पर चले गए हैं और गलत राह वही है जो सोमनाथ चटर्जी जी ने कही कि अपराधी कोई साबित होगा या नहीं। कल्पनाथ जी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि जिस जज ने उनको जेल भेजा है, उनको कानून का प्रारम्भिक ज्ञान भी नहीं था। कल्पनाथ राय के बारे में जब मैंने इसी सदन में कहा कि मैं उनको अपराधी नहीं मानता हूँ। सोमनाथ चटर्जी और लेफ्ट के ही एक नेता जो बदकिस्मती से आज सदन में नहीं हैं, हमसे उलझ पड़े। मैंने कहा कि जब तक कानून अपराधी नहीं कहता, आप अपराधी क्यों कहते हैं? वह हमसे बिगड़ गए थे। हमको भी अपराधी बनाने की कोशिश की थी। अपराधी बना नहीं पाए हैं,यह दूसरी बात है। अध्यक्ष महोदय, जहाँ पटना में संयम की जरूरत है, वहीं दिल्ली में भी संयम की जरूरत है। दिल्ली में संयम नहीं रहेगा और पटना में हम संयम का उपदेश देंगे तो हमारे उपदेश का कोई असर नहीं होगा। न मैं किसी का समर्थन कर रहा हूँ और न मैं किसी अपराधी को संरक्षण दे रहा हूँ। लेकिन मैं यह जरूर कह रहा हूँ कि मैं इस संसद की मर्यादा को संरक्षण देना अपना कर्तव्य समझता हूँ। मुझे व्यक्ति के संरक्षण के बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं यह कहना चाहूँगा कि इस राष्ट्र की कुछ मर्यादा है। अपने से बड़े जिसने देश की सेवा की है, जब तक वह अपराधी साबित नहीं हो जाता तो उसकी मर्यादा और सम्मान के विरुद्ध एक बात कहना मैं अपने लिए अपमान और घृणित मानता हूँ। यह मेरी मान्यता है।

शायद भारतीय संस्कृति से ही प्रेरित अन्य लोगों की दूसरी मान्यताएं होंगी। हमारी संस्कृति यही है कि जब तक कोई व्यक्ति अपराधी सिद्ध नहीं होगा, मैं उसको अपराधी नहीं मानता हूँ। मैं उसको अपराधी कहकर अपने को कलंकित करने का काम नहीं करूँगा। इसलिए मैं कहूँगा कि आज इस सदन में बहस न होकर अगर बहस उस समय होती जब चार्जशीट लगाई गई होती। उस समय जिन पर चार्जशीट लगी है, वह कोई ऐसा कदम उठाते जो संविधान, मर्यादा या परम्परा के विरुद्ध होता तो शायद हमारी बहस ज्यादा सार्थक होती। संसदीय परम्परा के ज्यादा अनुकूल होती। अध्यक्ष महोदय, क्षमा करेंगे, आज की बहस सारी संसदीय परम्परा के विपरीत है, मान्यताओं के विपरीत है, मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।