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अध्यक्ष दें चेतावनी कि न्यायपालिका भी अपनी हद में रहें

लालू यादव के प्रकरण में 14 अगस्त, 1997 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष महोदय, मैं निवेदन करना चाहूँगा कि पटना हाईकोर्ट ने जो अपनी बात कही है, वह बिल्कुल उसकी सीमा से बाहर है। वह कोई ऐसा इश्यू नहीं है, जिस पर भारत सरकार के गृहमंत्री को बयान देना चाहिए। अगर होना चाहिए तो सदन की ओर से आपको यह चेतावनी देनी चाहिए कि न्यायपालिका को अपनी सीमाओं से बाहर नहीं जाना चाहिए। मैं यह बात बहुत जिम्मेदारी के साथ बता रहा हूँ।

मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जब कभी संविधान तोड़े गए हैं, जब कभी अधिनायकवाद आया है, तब लोग अपनी सीमाओं से बाहर गए हैं। अपराधी जो अपराध करता है, वह अपनी मौत मर जाता है लेकिन अपराध मिटाने के नाम पर सत्ता पाए हुए लोग जब सीमाओं से बाहर जाते हैं तो दुनिया में तानाशाही लाने के लिए वे जिम्मेदार हुए हैं। जो कुछ भी प्रवृत्तियां आज दिखाई पड़ रहीं हैं, वे प्रवृत्तियां इस बात की द्योतक हैं। अगर हम लोगों को थोड़ा भी संसदीय जनतंत्र से मोह है, प्यार है तो इस प्रकार की गतिविधियों को सारे सदन को एकमत से अस्वीकार करना चाहिए तथा इस सदन में बहस के बजाए आपकी ओर से चेतावनी दी जानी चाहिए कि न न्यायपालिका, न कार्यपालिका और न व्यवस्थापिका, कोई ऐसा करेगी क्योंकि सबकी सीमाएं निर्धारित हैं।

हमारे मित्र जसवंत सिंह जी ने जो बात कही है, मैं उनकी हर बात से अधिकतर सहमत होता हूँ लेकिन उन्होंने कहा कि सी.बी.आई. के लोग चारा घोटाले में कुछ कर रहे थे तो और वैसा करना देश को बचाने के लिए जरूरी था। भारत का भविष्य, इतिहास उसी पर अड़ा हुआ है। मैं इस बारे में उनकी कोई आलोचना नहीं करना चाहता लेकिन जिस तरह से सी.बी.आई. की कर्तव्य पालन की परम्परा है, उसी तरह से बिहार में जो प्रशासन चल रहा है, उसप्रशासन की भी परम्परा है। उस प्रशासन के लोगों ने कहा है, चाहे यह सही है या गलत है, कि अगर उस दिन हम लालू प्रसाद यादव जी की गिरफ्तारी करते तो वहाँ पर लाठियां चल जातीं, गोली चल जाती और वहाँ पर लोगों की जानें जातीं। क्या प्रशासन को यह अधिकार नहीं था कि उस गिरफ्तारी को वह बारह घंटों के लिए वह टाल देता? बारह घंटों में कोई देश नहीं टूट रहा था। बारह घंटों में कोई बाहरी फौजें आकर हमला नहीं कर रही थीं। लालू यादव जी ने जब कहा था कि वह दूसरे दिन आत्म-समर्पण कर रहे हैं तो सीबी.आई. को इतनी जल्दबाजी क्या थी?

अभी महाराष्ट्र में क्या हो रहा है, इस बात को भी आप याद रखिए। हमारे मित्र, प्रमोद महाजन जी बैठे हुये हैं। वहाँ भी भारतीय दण्ड संहिता और दण्ड प्रक्रिया संहिता है। वहाँ गिरफ्तार करने में कितने पैर ठन्डे हो रहे हैं, मुझे मालूम है। यह बहादुरी की बातें हमारे सामने मत कीजिए। मैं यह कहना चाहता हूँ कि कभी-कभी पूछा भी जाता है। लोगों की जान बचानी है। अगर देश को और क्षेत्र विशेष को अराजकता से बचाना है, तो प्रशासन को कभी-कभी ऐसे समझौते करने पड़ते हैं। इसमें कोई भूल वहाँ प्रशासन ने नहीं की है। उस प्रशासन ने सही काम किया है। लेकिन अगर हाई कोर्ट ने ऐसा कहा था कि आर्मी बुलाओ और वह भी सी.बी.आई. को कहा, तो इससे जघन्य अपराध और कोई नहीं हो सकता है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि हाईकोर्ट के लोग कह रहे हैं कि हमने कोई ऐसा आदेश नहीं दिया। यह बात सही है तो हाईकोर्ट ने ठीक काम किया है।

उपाध्यक्ष महोदय, सीमायें अब पार हो जायेंगी। जूडिशियल एक्टिविज्म के नाम पर जितनी दूर तक न्यायपालिका जा रही है, उसको रोकना न्यायपालिका का ही काम है। मैं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय से, अगर मेरी बात उन तक पहुँच सके, कहूँगा कि वे भी कुछ करें। हर सवाल संसद के ऊपर न छोड़ दें। न्यायपालिका पर अनुशासन रखना, उन पर नियंत्रण रखना, उनका भी कर्तव्य होता है। हर समय सदस्यों से कहा जाएगा कि न्यायपालिका की रक्षा करो, तो व्यवस्थापिका की रक्षा कौन करेगा। इसलिए, उपाध्यक्ष महोदय, आप और हमारे अध्यक्ष महोदय को भी कुछ ध्यान देना चाहिए। हर बात में अपराधी है सरकार, चाहे वह बिहार की सरकार हो या चाहे केन्द्र की सरकार हो, कहना उचित नहीं है। हमारे मित्र इन्द्रजीत गुप्त काफीहिम्मत के साथ, गृहमंत्री होते हुए भी, विरोध पक्ष का निर्वाह करते हैं, लेकिन उनकी बातों से लोगों को संतोष नहीं है। हमारे मन में इतनी घृणा, द्वेष और आपसी प्रतियोगिता बसी हुई है कि हम किसी बात पर संतोष करने के लिए तैयार नहीं हैं।

मैं जिम्मेदारी के साथ कहता हूँ, यह सदन का कर्तव्य नहीं है कि फलां व्यक्ति को गिरफ्तार करो और दूसरे को न करो। यह सदन का काम केवल तभी हो सकता है, जब देश पर आघात हो रहा हो। यह सदन इसलिए है कि अगर किसी की गिरफ्तारी हो रही हो, तो हम यह कहें कि उसके नागरिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। गिरफ्तारी के लिए यह सदन नहीं है। हम पुलिस इन्सपेक्टर नहीं हैं और हम कोई वह मशीनरी नहीं हैं, जो लोगों को गिरफ्तार करने की बातें करें। पिछले कई महीनों से एक व्यक्ति को गिरफ्तार करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य बन गया है। ये सारे लोग जो गिरफ्तारी के लिए रोज़-रोज़ प्रार्थना यहाँ करते हैं, वे राष्ट्रभक्त हैं, वे ईमानदारी के प्रतीक हैं। उन्हीं के हाथों में देश का भविष्य है और यह मर्यादा का उल्लंघन है। उपाध्यक्ष महोदय, इस परम्परा को तोड़ना होगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।