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बिहार में चुनाव देर से होने के मामले में प्रधानमंत्री को देना होगा जवाब

बिहार विधान सभा की स्थिति पर 15 मार्च 1995 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, सोमनाथ जी ने एक अच्छी बात कही कि यहाँ पर सारी चीजों पर चर्चा नहीं हो सकती कि चुनाव कैसे होगा, चुनाव आयुक्त कैसे हैं, हालांकि उन्होंने स्वयं उसकी चर्चा की। उस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता, लेकिन एक बात जरूर कहना चाहता हूँ जो चन्द्रजीत जी ने उठाई। उसका जवाब प्रधानमंत्री जी को देना होगा। क्या राज्यपाल महोदय ने आपसे कहा है या नहीं कहा कि बिहार की सरकार उनके साथ इस मामले में सहयोग नहीं कर रही है। क्या यह सही है या नहीं है, कि हमारी बी.एस.एफ., सी.आर.पी.एफऔर दूसरे राज्यों की पुलिस फोर्स के अधिकारियों ने आपको सूचना दी है, कि उनको कोई कार्य नहीं सौंपा जा रहा है? वे बेकार सड़कों पर घूम रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं बड़े विनम्र शब्दों में प्रधानमंत्री से निवेदन करना चाहूँगा कि तुरन्त एक पक्ष के या दूसरे के राजनैतिक लाभ के लिए हम ऐसी स्थिति पैदा न कर दें कि कल पैरा-मिलिटरी आर्गेनाइजेशन के लोग कहीं जाने से इनकार कर दें और जाकर कहें कि हमें वहाँ केवल दर्शक मात्र बनाकर रखा जाता है। यह बात जग-जाहिर है। प्रधानमंत्री जी को भी यह बात मालूम है कि बिहार की स्थिति सभी सीमाओं को पार कर गयी है। मैं यह बात पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ। 6 महीने पहले राज्यपाल महोदय ने और इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोगों ने यह जानकारी दी है। मैं नहीं समझता कि संविधान का इसमें क्या विश्लेषण हो रहा है। लालू प्रसाद पांच दिन के बाद बहुमत से चुनकर आ जायेंगे या पाँच दिन मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे तो देश का क्या बिगड़ जायेगा, यह बात मेरी समझ में नहीं आती है।

बड़े जोरों से कहा जाता है कि निष्पक्ष चुनाव हो रहे हैं, पांच दिन के बाद वे सारी ग्लोरी के साथ आ जायेंगे। फिर व्यर्थ इतनी चिन्ता क्यों की जा रहीहै, अगर सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल चुनाव के लिए नहीं हो रहा है, इसका कोई जवाब देने वाला नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि आज बिहार के सारे अखबारों में, बिहार की एक-दो नहीं दस एजेंसीज ने कहा है कि हमें यहाँ पर व्यर्थ भेजा गया है। क्या यह संसद की जिम्मेदारी नहीं होती कि हम इस बात को देखें कि जिन सुरक्षा बलों के बल पर हम इस देश की सुरक्षा करना चाहते हैं, जिनके दम पर विषम परिस्थितियों का सामना करना चाहते हैं, उनके द्वारा खुले आम सार्वजनिक रूप से कहा जाता है कि हमें वहाँ बेकार रखा गया है। अध्यक्ष महोदय, मैं इन बातों को उठाना नहीं चाहता था लेकिन इन लोगों ने सवाल उठाया है, इसलिये मेरे लिये उत्तर देना जरूरी है। उस सरकार के रहने से वह होगा जिसका जिक्र अभी श्री सोमनाथ जी ने किया कि पूर्णिया में दूसरा कलेक्टर जायेगा। इससे जो नौकरशाही है, जो ब्यूरोक्रेसी है, उसके मनोबल पर क्या असर होगा? उसके रहने से दूसरा असर यह पड़ेगा कि हमारी पैरा-मिलिट्री आर्गनाईजेशन के लोगों के मन में शंका, संदेह और अविश्वास पैदा होगा। इलेक्शन्स क्यों नहीं हुये? अचानक तो यह सब हुआ नहीं। पिछले 6 महीने से यह चर्चा चल रही है कि वहाँ पर चुनाव देर से होंगे। इसका भी जवाब प्रधानमंत्री जी को देना होगा।

हमारे दादा बहुत समझदार व्यक्ति हैं। असल में वही होना चाहिये था जो आप कह रहे हैं, जिसे मैं नहीं कहता। वह समझदारी की बात है। आपको प्रधानमंत्री को बताना चाहिये था। यदि छह महीने पहले यह समझदारी किये होते तो देश में संकट नहीं आता। इसलिये आप सही बात कह रहे हैं। कभी-कभी गलती से सही बात निकल जाती है।

अध्यक्ष महोदय, इसलिये इन बातों को छोड़ दिया जाये तो जो बिहार में आज हो रहा है, चाहे जिस तरह से विवाद उठाया जा रहा है, इसमें श्री लालू प्रसाद यादव का व्यक्तिगत सवाल नहीं है लेकिन जिस तरह से वहाँ शासन चल रहा है और जिस तरह से विवाद को बढ़ाया जा रहा है, उसके परिणाम बहुत ही भयावह होने वाले हैं। चुनाव के बीच में और उसके बाद भी प्रधानमंत्री को पूरा अधिकार है। उनको राज्यपाल ने सलाह दी या इनकी सलाह पर राज्यपाल ने यह बात की लेकिन जो हो रहा है, उससे न केवल बिहार का बल्कि सारे राष्ट्र का अहित होने वाला है।

अध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है दादा ने उनके कथन का गलत अर्थ निकाला है। उन्होंने कहा कि यदि कानून और व्यवस्था की समस्या छह महीने पहलेथी, तो राष्ट्रपति शासन लागू करने का मामला उस समय क्यों नहीं उठाया गया। तब मैंने कहा था कि कभी गलती से आप अपने को वक्तव्य की त्रुटि सुधार लें तो सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए थी। मैंने राष्ट्रपति शासन छह महीने पहले लागू करने का सुझाव नहीं दिया था। मैंने प्रधानमंत्री से कई बातों पर चर्चा की। इस सदन में उन बातों की चर्चा करना मेरे लिए सम्भव नहीं है। इसलिए उन मामलों को न उठाएं।

अध्यक्ष महोदय, मैंने पिछले एक वर्ष में बिहार के बारे में प्रधानमंत्री से तीन बार बात की। पर मैंने इस बारे में कुछ नहीं कहा। आज भी मैं वह नहीं बताऊँगा। परन्तु मैं चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री आज सदन में यह स्पष्ट करें कि मुख्यमंत्री की भूमिका क्या रही और प्रधानमंत्री को क्या रिपोर्ट मिल रही थी। अतः उस सम्बन्ध में मुझे उत्तेजित नहीं कीजिए, मैं उत्तेजित होने वाला नहीं हूँ। अध्यक्ष महोदय, मुझे यह सुनकर खेद हुआ कि किस कानून के तहत निर्वाचन आयोग सुरक्षा बल तैनात कर सकता है। सुरक्षा बल राज्य सरकार, जिला अधिकारियों द्वारा तैनात किए जा रहे हैं। निर्वाचन आयोग को इसका अधिकार नहीं है। सभी अर्थ-सैनिक बल पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर के अधीन हैं। कम से कम जो कानून जानते हैं उन्हें ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। अध्यक्ष महोदय, मेरी व्यक्तिगत जानकारी के अनुसार जो मैंने बिहार के 15 जिलों में घूम कर इकट्ठा की है, अर्ध सैनिक बलों को राज्य प्रशासन अर्थात जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक द्वारा तैनात किया जा रहा है। तकनीकी तौर पर नहीं व्यवहारिक तौर पर मतदान अधिकारी द्वारा नहीं राज्य प्रशासन अर्थात पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर द्वारा जो किसी भी प्रकार मतदान आधिकारी नहीं हैं।

अध्यक्ष महोदय, क्या मैं यह समझूं कि प्रत्येक मतदान अधिकारी को तैनात करने के लिए एक निश्चित संख्या में सुरक्षा बल दिए गए हैं? सरकार इसका उत्तर दे। ऐसा कैसे हो सकता है? केवल जिला प्रशासन ही तैनाती कर रहा है और वहीं समस्या पैदा होती है। इलेक्शन कमिश्नर के खिलाफ होने का मतलब यह नहीं है कि उस पर सब आरोप लगा दें। इलेक्शन कमिश्नर फोर्सेस डेप्लाय नहीं कर सकता, इतनी जानकारी होनी चाहिए, डेप्लायमेन्ट स्टेट के लोग कर रहे हैं और यही शंका है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।