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यूपी में भयावह स्थिति, विवाद को ऐसा न बदल दें कि गाँव-गाँव में फैल जाये लखनऊ का झगड़ा

लोकसभा में 3 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, उत्तर प्रदेश की जो स्थिति है, वह अत्यंत भयावह है। यह भयावह स्थिति दो दिनों से नहीं है बल्कि पिछले कुछ सालों से वहाँ हालत बिगड़ रही है। हमारे माननीय सदस्य श्री दीक्षित जी कह रहे थे कि सरकारी अफसर बैठे रहे और सदस्यों को घसीटा जा रहा था लेकिन दीक्षित जी शायद भूल गये कि सरकारी अफसर बैठे रहे और देश की परम्परा घसीटी जा रही थी। उस दिन को हम लोग नहीं भूले हैं।

अध्यक्ष जी, राजनैतिक लोग हर अपराध के लिए नौकरशाही पर अंगुली उठा दें, यह एक सामान्य बात बन गयी है। हम लोगों की यह भी धारणा है कि हम जो पुराने लोग हैं, सारा ज्ञान, सारा शिष्टाचार उन्हीं में है। जो नये अधिकारी आते हैं, वे सब निकम्मे हैं, ऐसी बात नहीं हैं। अधिकारियों को निकम्मा बनाने की बड़ी जिम्मेदारी राजनैतिक लोगों की है।

मैं उस विषय में नहीं जाऊँगा, शायद मैं बोलता भी नहीं लेकिन मुझे आडवाणी जी का भाषण सुनकर दुःख हुआ। जैसे अब वहाँ देव-ऋषियों की सरकार बनने जा रही है। वही सरकार जिस सरकार का आधा हिस्सा डाकू, लुटेरे, गुंडों का था और आधा हिस्से में मीरा का संगीत हो रहा था। वहाँ अब मीरा की सरकार बनेगी और गुंडों की सरकार गिरेगी। हम लोग किस भाषा का इस्तेमाल करना चाहते हैं, हम लोग राजनीति किस धरातल पर ले जाना चाहते हैं? पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की जो स्थिति हुई है, जैसा अभी भारतीय जनता पार्टी के स्वामी जी बोले रहे थे, यह सही है कि उनके साथ गलत व्यवहार हुआ है।

वे जानते हैं कि मैंने उत्तर प्रदेश सरकार से उसके बारे में विरोध किया था। पिछले दिनों जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश सरकार बनी हैं, यदि उस तरह से कोई भी सरकार चले तो किसी को भी क्षोभ होगा, दुःख होगा। आडवाणी जी, यह बात मैं आज नहीं कह रहा हूँ, वे हमारे शिष्य नहीं हैं, सब शिष्य गुरू हो गए हैं और गुरू लोग कहाँ चले गए, कुछ पता नहीं है, मैंने उनसे कहा कि आप जो कर रहे हैं, इससे आप अपने को बर्बाद करेंगे, राज्य को बर्बाद करेंगे, देश को बर्बाद करेंगे।

देश को इस हालत में मत पहुँचाइए लेकिन हमारी कोई सुनता ही नहीं है। हमारे गुरुजी भी अकेले में हमारी बात सुनते हैं, जब बाहर जाते हैं तो नहीं सुनते। मैं यह कहता हूँ कि यदि कोई सरकार गलत कार्य कर रही है तो आपको उस सरकार को हटाने का पूरा नैतिक, राजनैतिक अधिकार है। लेकिन उसको हटाने के लिए अपने मन में इतनी ईष्र्या, इतना द्वेष, इतना क्रोध न लाइए कि बुरे लोगों को उस सरकार में बिठा दें।

मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता लेकिन राजनीति में कुछ मान्यताएं होनी चाहिए, कुछ बातें होनी चाहिए। मुझे किसी व्यक्ति से विरोध नहीं है। राजनीति में व्यक्तियों का राज नहीं बनता, राजनीति में मान्यताओं का राज बनता है और मान्यताओं की सरकार बनती है, परम्पराओं की सरकार बनती है। कोई दलित पैदा करके दलितों की सरकार नहीं बना देता, जो लोग दलित पैदा हुए, वे डाकू भी बने और दलित पैदा होने वाले रविदास संत परम्परा के एक प्रतीक भी बन गए। इसलिए जातियों के नाम पर किसी को किसी पद पर बिठा देने से वह सरकार, वह राज्य उस वर्ग विशेष का समर्थक हो जाता है, पोषक हो जाता है, मैं ऐसा नहीं मानता।

इसलिए मैं आपसे कहूँगा, यदि हम उन नारों को देकर राजनैतिक लाभ उठाना चाहते हैं तो दूसरी बात है लेकिन हम उन नारों के आधार पर देश की परिस्थितियों को, देश के समाज को, मान्यताओं को नहीं बदल सकते। उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है, वह दुःखद है, जो कुछ हुआ वह लज्जाजनक है। यदि सरकार के पास ऐसी सूचना है कि संविधान की धारा का उल्लंघन हुआ है तो मैं उन लोगों में से हूँ जो यह समझते हैं कि किसी सरकार को धारा 356 का उपयोग करने का अधिकार है और होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी मैं यह मानता हूँ कि परिस्थितियाँ ऐसी हो सकती हैं जिनमें केन्द्र में बैठी हुई सरकार अपनी बातें न सर्वोच्च न्यायालय को बता सकती हो औरन सदन के सामने बता सकती हो। ऐसा भी हो सकता है कि वह कोई कदम उठाने के बाद सदन के सामने आए। लेकिन, यह सरकार तो सर्वोच्च न्यायालय से डरी हुई है और आडवाणी जी, यह डर आपने पैदा किया है क्योंकि आपने मुकदमा दायर किया था।

हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री हमारे सामने बराबर उस मुकदमे का चिट्ठा रख देते हैं। कहा जाता है कि कुछ नहीं होना चाहिए नहीं तो गडबड़ी हो जाएगी, पता नहीं सर्वोच्च न्यायालय क्या निर्णय देगा। यदि आपके पास ऐसे आधार हों जिन पर आप कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में जो सरकार चल रही है, वह गुंडों की सरकार है, वह संविधान को तोड़ रही है और आप उस पर कुछ एक्शन लीजिए, यदि ऐसा नहीं है तो जैसा हमारे मित्र चैधरी जी ने कहा, आपको उस बात को मानना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि संविधान आज टूट रहा है।

आडवाणी जी, आप डेढ़ वर्ष तक गुंडों की सरकार बर्दाश्त करते रहे तो 10 दिन और बर्दाश्त कर लीजिए और उसे सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने का अवसर दीजिए। बहुमत नहीं मिलेगा तो सरकार चली जाएगी। इस तरह से ईष्र्यावश 8 जुलाई की बात मैं नहीं करता। यह निर्णय तो वहाँ के राज्यपाल महोदय कर सकते हैं। राज्यपाल को अधिकार है, 8 जुलाई को बुला सकते हैं, 15 जून को बुला सकते हैं, 12 जून को बुला सकते हैं, 20 जून को बुला सकते हैं।

अध्यक्ष जी, उत्तर प्रदेश विधानसभा में क्या परम्परा है, कितने दिन का नोटिस होना चाहिए, मैं नहीं जानता। जितने दिन का नोटिस है, कम से कम उतना नोटिस तो देना ही पड़ेगा। इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ इस सारे विवाद को हम ऐसा न बदल दें कि यदि लखनऊ में झगड़ा सीमित भी हो लेकिन यहाँ के विवाद से वह झगड़ा गाँव-गाँव मैं फैल जाए। मुझे इस बात का डर है कि हम इस विवाद को जिस धरातल पर ले जा रहे हैं, उससे हम इसे सर्वव्यापी बनाना चाहते हैं।

मैं शिष्यों और गुरुओं के व्यक्तिगत सम्बन्धों से प्रभावित होता हूँ। राजनीतिक विचारों में शिष्यों और गुरुओं से कभी-कभी मेरे गहरे मतभेद हो जाते हैं। गुरुओं से तो कुछ शिष्टाचार होता है, मैं शिष्यों से ऐसा शिष्टाचार निभाने के नाते नहीं कह रहा हूँ, मैं राजनैतिक परम्पराओं, मान्यताओं, नैतिकता के नाते यह निवेदन करूँगा कि हम इस विवाद को उस धारा तक न ले जाएँ जहाँ हालत और बिगड़े।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।