प्रधानमंत्री बताएं क्यों टूटा उल्फा से समझौता, मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर विदेश मंत्रालय व मंत्री की चुप्पी ठीक नहीं
असम में सेना तैनात किए जाने की उत्पन्न स्थिति पर लोकसभा में 16सितम्बर, 1991को चन्द्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, असम की घटना जितनी गम्भीर है, उतनी ही दुःखद है। दो बातें ज्यादा गम्भीरता को बढ़ा देती हैं। एक जिसका जिक्र अटल जी ने अभी किया कि असम के मुख्यमन्त्री ने एक बयान दिया। उन्होंने केवल चीन का नाम नहीं लिया, पाकिस्तान और बंगलादेश का नाम भी लिया। मुझे आश्चर्य और दुःख के साथ कहना पड़ता है कि न विदेश मंत्री ने, न विदेश मन्त्रालय ने इस बारे में कुछ कहना उचित समझा। किसी भी सरकार के लिए, जो देश के पड़ोसियों से संबंध बनाये रखना चाहती है, मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य पर चुप रह जाना, कुछ सही बात मुझे नहीं लगती।
अध्यक्ष महोदय, हमारी प्रवृत्तियाँ कुछ उलटी दिशा में जा रही हैं। अपनी समस्याओं को हम हल नहीं कर पाते तो दूसरे की तरफ उंगली उठाकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। पहले केवल पाकिस्तान था और अब बंगलादेश और चीन भी शामिल हो गए। हम नहीं जानते हैं शायद परिस्थितियां बदल गयी होंगी। लेकिन जितनी मेरी जानकारी है, चीन ने हमेशा मित्रता का व्यवहार हमारे साथ रखा है और पूर्वांचल में जो कुछ घटनाएं हुई, उसमें चीन ने कोई हस्तक्षेप पिछले कुछ वर्षों में नहीं किया जो समाचार पत्रों से मालूम हुआ, जो विदेश विभाग की सूचनाएं थीं, वे यही थीं। अचानक एक महीने में चीन हमारा दुश्मन हो गया। यह सैकिया साहब ने कहा। विदेशमन्त्री भी चुप रहे और प्रधानमन्त्री जी ने भी कुछ कहना उचित नहीं समझा।
अध्यक्ष महोदय, इस परिप्रेक्ष्य में सेना का वहाँ भेजना कुछ और रंग लासकता है, यह बात हमको गम्भीरता से सोचनी चाहिए। यह मामला केवल आंतरिक नहीं रह जाएगा अगर इस तरह के अनुत्तरदायित्व और गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य सरकार के उत्तरदायी लोग देते रहेंगे, और भारत सरकार उस पर मौन रहेगी तो परिस्थिति हमारे हाथ से निकल सकती है।
दूसरा सबसे बड़ा सवाल है जो मैं आपके जरिए इस सदन से और विशेष रूप से प्रधानमन्त्री जी से जानना चाहूँगा। आज भी समाचारपत्रों में जो कुछ आया है, उससे ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री जी को मालूम नहीं था कि सेना आ रही है, और ऐसा लगता है कि भारत सरकार कहती है कि उन्होंने बुलाया था। उन्होंने कहा था कि पहले हमने मांग की थी, लेकिन मालूम नहीं था कि सेना कब आएगी? अब अविश्वास का ये माहौल अगर प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री और मुख्यमंत्री में होगा तो कैसे आप असम की जनता में विश्वास पैदा करेंगे? मैं नहीं जानता और मैं इस पर कोई आलोचना नहीं कर सकता। इन प्रश्नों की सफाई होनी चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, आपने कहा कि समस्याओं का समाधान बताइए। कोई समस्या इस देश की ऐसी नहीं है जिसका समाधान न हो। समाधान हो सकता है लेकिन समस्या का ज्ञान पहले होना चाहिए। हम नहीं जानते किन परिस्थितियों में कहा गया कि फौज भेजी जाए। हम नहीं जानते कि किन परिस्थितियों में शांतिपूर्ण चुनाव होने के बाद भी तीन हफ्ते तक आप असम की सरकार नहीं बना सके। हम नहीं जानते किन लोगों के कहने पर उल्फा के लोगों को छोड़ा गया था। क्या उल्फा के लोगों से कोई बातचीत हुई थी या नहीं? मुख्यमंत्री कहते हैं कि केन्द्र ने कहा, छोड़ दो। केन्द्र कहता है कि मुख्यमंत्री ने छोड़ दिया। इन उलझन भरी परिस्थितियों में कोई सलाह दे सके, यह सम्भव नहीं है।
अध्यक्ष महोदय, समस्याएं हल की जा सकती हैं। अगर वही उल्फा के लोग शांतिपूर्ण चुनाव कराने में मदद कर सकते हैं, या चुप रह सकते हैं तो आज कोई कारण नहीं कि उल्फा के लोग अचानक इतने बलशाली हो जाएं कि सारे राष्ट्र को चुनौती देने लगें। कहीं हमको भी अपने अन्दर झांककर देखना चाहिए। कहीं हमारी भी कमजोरी होगी, हमने कोई गलती की होगी। मैं इन पर कुछ नहीं कहना चाहता लेकिन सरकार यदि यह समझती है कि गम्भीर संकट की स्थिति में चुप रहकर, समय बीत जाने से या पार्लियामेंट काअधिवेशन बीत जाने से समस्याओं का समाधान निकल जाएगा, तो हम और अधिक उलझनों में फंस जाएंगे।
.मैं तो इस समस्या पर तब तक कुछ नहीं कहूँगा जब तक प्रधानमन्त्री जी यह बात न बताएं कि किन परिस्थितियों में उनको ज्ञान हुआ कि विदेशी ताकतें हमारे विरोध में काम कर रही हैं। किन परिस्थितियों में उन्होंने उल्फा के साथ जो समझौता हुआ, वह किया। समझौता कराने वाले कौन लोग थे, करने वाले कौन लोग थे? क्यों समझौता टूटा? एक जिन्दगी जो असम में आई थी, अचानक इस तरह भयानक कैसे हो गई। इन परिस्थितियों का अगर निरूपण श्री प्रधानमन्त्री जी या गृहमन्त्री जी या कोई अन्य सम्मानित सदस्य करें तो हम अवश्य समाधान का उपाय उनको बता सकते हैं। आमतौर पर मैं ऐसे मामलों में बोलने के लिए नहीं उठता हूँ। किन्तु इन मामले को इतने हलके तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक अत्यन्त गम्भीर मामला है।