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प्रधानमंत्री के बस की नहीं रह गयी है नागालैंड समस्या, सभी दलों से बात कर निकालें हल

लोकसभा में 24जुलाई, 2001को नागालैण्ड की समस्या पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, अभी कुछ माननीय सदस्यों ने मणिपुर के सवाल को उठाया। नागालैण्ड की समस्या के बारे में इस सरकार का जो रुख रहा है वह प्रारम्भ से ही आपत्तिजनक रहा है। नागालैण्ड में शांति होनी चाहिए, इस बात पर किसी के दो मत नहीं हो सकते। नागालैंड के मुख्यमंत्री को मैं वर्षों से जानता हूँ और अभी कुछ दिन पहले वे हमसे मिले भी थे। शायद यह पहली बार होगा कि सरकार वार्ता कर रही हो और वहाँ के मुख्यमंत्री को उसके बारे में इसकी कोई सूचना भी नहीं है।

अध्यक्ष जी, नागालैंड के मुख्यमंत्री में जो भी कमजोरियां हों लेकिन वे 20-25 वर्षों से अकेल व्यक्ति हैं जो कहते रहे हैं कि नागालैंड हिन्दुस्तान का एक हिस्सा है, चाहे वह फिजो का जमाना रहा हो या दूसरा समय रहा हो। मैं उस जमाने में भी नागालैंड में गया था जब माइकल-स्काॅट, जयप्रकाश जी और फिजो से बातचीत चल रही थी। सरकार यदि यह विश्वास करती है कि वहाँ पर एक सरकार है, वहाँ एक मुख्यमंत्री है तो उस मुख्यमंत्री को बिना बताए हुए वार्ता कौन लोग चला रहे हैं।

हमारे मंत्री जी बैठे हैं और जो लोग राज्यों को बहुत महत्व देना चाहते हैं। इसी बात पर सरकार रोज-रोज वक्तव्य भी देती है। मैं उस दूरी तक जाने के लिए उनके साथ तैयार भी नहीं हूँ। जिन व्यक्तियों से ये लोग बात कर रहे हैं वे कौन व्यक्ति हैं? शायद नागालैंड में उनको कम लोग ही जानते हैं। एक उन्माद फैलाने वाले व्यक्ति से बैंकाक में जाकर बात क्यों होती है? भारत की धरती पर बात न होकर भारत से बाहर बात क्यों होती है? इसका मतलब यह है कि बुराई हम जानबूझ कर पैदा कर रहे हैं? अभी हमारे माननीय प्रधानमंत्रीजी ने वक्तव्य दिया। हमारे आचरण से ऐसे तत्वों को बल मिलता है जो कहते हैं कि सरकार पर कहीं भी दबाव डाला जा सकता है। इस दबाव के अंदर जो कुछ किया गया है उसके अंदर मणिपुर के लोगों का उत्तेजित होना स्वाभाविक है।

मैं कहता हूँ कि नागालैंड के लोगों में भी वही प्रवृत्ति पैदा हो गयी है। इस राष्ट्र को सरकार ने ऐसी विषम स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि यदि मणिपुर में सरकार शांति कायम करने की कोशिश करेगी तो नागालैंड में अशांति होगी। मैं इस इस विवाद को बढ़ाना नहीं चाहता हूँ। यहाँ पर माननीय मंत्री जी बैठे हैं। मैं विशेषकर माननीय प्रमोद महाजन जी से कहूँगा कि हर पार्टी के लोगों से जिनका संपर्क वहाँ के लोगों से हो, मिलकर इसका कोई रास्ता निकालें। याद रखिए, आज गृहमंत्री जी और प्रधानमंत्री जी के बस में वहाँ की स्थिति नहीं रह गयी है, स्थिति जनता के हाथों में रह गयी है और उसको संभाल पाना इस सरकार के लिए संभव दिखाई नहीं पड़ता है। मैं बहुत दुःखी मन से यह बात कह रहा हूँ कि इसे लेकर, मणिपुर के लोगों को सांत्वना दीजिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।