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वोट बैंक तैयार करना नहीं, उसके लिए इंसानियत की हत्या करना खतरनाक

हुबली (कर्नाटक) में पुलिस द्वारा गोलीबारी के मामले पर लोकसभा में 22अगस्त, 1994को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, दिल्ली दखल के लिये इतिहास में बहुत खून बहा। पता नहीं कितना खून दिल्ली को दखल करने के लिये आगे बहने वाला है? जब अटल जी ने सवाल उठाया तो मुझे ऐसा लगा कि केवल हम लोग इस बात की चिन्ता कर रहे हैं कि गोली क्यों चली और मासूम लोगों की जान क्यों गई, लेकिन उसके बाद जो बातें कही गईं, शायद आपने उन्हें ध्यान से सुना होगा।

मैं अटल जी से निवेदन करूंगा कि वह उन पहलुओं पर जरा विचार करें। मामला कश्मीर और हुबली तक सीमित नहीं रहा। हिन्दुस्तान में कहाँ-कहाँ पाकिस्तानी झण्डे फहराये गये, मुझे इनकी कोई खबर नहीं है लेकिन जब यह बात इस सदन में कही गई, मैं नहीं जानता सरकार के लोग इसका खंडन करना जरूरी समझते हैं या नहीं लेकिन इससे क्या संदेश देश और दुनिया में जायेगा? हम सदन में बोलते समय अगर थोड़ा इसका ध्यान रखें तो बहुत अच्छा रहेगा।

अभी आडवाणी जी ने वोट बैंक की बात उठायी। कहाँ कौन वोट बैंक तैयार कर रहा है, यह हम नहीं जानते लेकिन वोट बैंक तैयार करना कोई बुरी बात नहीं है। वोट बैंक तैयार करने के लिये इंसानियत की हत्या कर देना खतरनाक बात होती है। अध्यक्ष महोदय, यहाँ 2-3 सवाल हैं। आडवाणी जी ने यहाँ भी कहा कि अंजुमन-ए-इस्लाम के लोगों को कोई एतराज नहीं था। क्या सरकार ने सचमुच यह कहा कि हम किसी को झण्डा फहराने नहीं देंगे? अगर यह बात है तो इसकी सफाई सरकार को देनी चाहिये। तिरंगा झण्डा कहीं पर फहराया जाये तो उसके लिये कोई रोक नहीं होनी चाहिये, बल्कि श्रद्धा के साथ उसफहराया जाना चाहिये। अटल जी ने कहा कि पहली बार श्री मुरली मनोहर जोशी ने ही कश्मीर में तिरंगा झण्डा फहराया। शहाबुद्दीन जी ने कहा कि क्या जरूरत थी सिकन्दर साहब को वहाँ जाने की, अगर यह नहीं हुआ होता तो अखबारों में इतनी चर्चा नहीं होती, इतनी उत्तेजना नहीं फैलती। बहुत सी बातें शरद जी ने कहीं। मैं बुनियादी तौर पर उनसे सहमत हूँ लेकिन उनकी भाषा से सहमत नहीं हूँ। मैं उनसे निवेदन करूंगा कि अटल जी जिस पार्टी का नेतृत्व करते हैं, उसमें जो भाषा बोली जा रही है; वह भाषा न राष्ट्रभक्ति की है और न ही देशहित में है। उस भाषा को अगर बदल दिया जाये तो विचारों का अन्तर तो रहेगा। अभी किसी ने 14 करोड़ लोगों की बात की। 14 करोड़ को बचाना क्या पाप है? ऐसी भाषा इस सदन में बोली जाती है। कोई अगर किसी वर्ग विशेष के संरक्षण की बात करे तो वह राष्ट्रप्रेमी नहीं है, राष्ट्रद्रोही है, यह मैं नहीं समझता।

असलम जी ने अभी एक तकरीर की। मैं समझता था कि उसका कुछ असर लोगों के दिमाग पर होगा लेकिन शहाबुद्दीन जी की जुबान पर उसका कोई असर नहीं हुआ। अगर उधर से उत्तेजना फैलाने की कोशिश हो और दूसरी तरफ से भी फैलाने की वही कोशिश हो तो देश टूट जायेगा, देश मर जायेगा। इन सवालों की जांच जरूर होनी चाहिये। क्या कर्नाटक की सरकार ने तिरंगा झण्डा फहराने देने का कोई संकल्प कर लिया था? अगर कर लिया था तो भारत सरकार को इसकी जानकारी थी या नहीं? अगर जानकारी थी तो क्यों अंजुमन-ए-इस्लामी को या सरकारी अहलकार को वहाँ झण्डा फहराने की अनुमति दी गई? इस बारे में आडवाणी जी ने जो बात कही, वह एक गम्भीर बात है इसका जवाब गृहमंत्री जी को इस सदन के सामने जरूर देना चाहिये।

यह खबर भी फैलायी जा रही है कि पाकिस्तान के झण्डे हिन्दुस्तान में जगह-जगह फहराये गये। इसके बारे में भी सरकार को कुछ आधिकारिक रूप से बयान देना चाहिये। आज जो कुछ इस सदन में उठा है, वह कल अखबारों में छपेगा। दुनिया भर की एजेंसियों से इसका प्रचार होगा। न केवल देश में उत्तेजना फैलेगी बल्कि देश की गरिमा के बारे में, राष्ट्र की शक्ति के बारे में, राष्ट्र की क्षमता के बारे में एक प्रश्नवाचक चिन्ह सारे देश में लगेगा। मैं एक ही निवेदन करना चाहूँगा कि अगर भाषा वही बोली जाये जो अटल जीबोले, असलम साहब बोले तो हम अपनी बात भी कह सकते हैं और देश को टूटने से भी बचा सकते हैं।

अध्यक्ष जी, एक शब्द मैं कहूँगा। जो वक्तव्य मंत्री जी ने दिया है, उसमें एक बात बहुत आपत्तिजनक है कि अगर इनको यह सूचना थी तो कम से कम यह कोशिश क्यों नहीं की गई कि यह विवाद हल हो जाए और कोई सरकारी अधिकारी अगर वहाँ झण्डा फहरा देता तो सब-ज्यूडीस कैसे नहीं होता? क्या यह सचमुच जो हमारे कुछ मित्र इधर से करना चाहते हैं, उनको बढ़ावा देने की आपने कोई नीयत बना रखी है? अगर यह है, अगर कोई मिलीभगत है जैसे नितीश जी ने कहा तो मुझे नहीं मालूम। लेकिन अध्यक्ष जी, यह बहुत गम्भीर मामला है, अगर केन्द्रीय सरकार को यह बात मालूम थी तो केन्द्र सरकार ने वहाँ पर किसी सरकारी अधिकारी के जरिये झण्डा फहराकर इस मामले को शांत क्यों नहीं किया? इनका जवाब क्या है?

अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने एक बहुत गंभीर वक्तव्य दिया है क्योंकि किसी भी न्यायालय को यह स्थगन आदेश देने का अधिकार नहीं है कि किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय झण्डा फहराने से रोका जाये अथवा किसी विशेष स्थान पर राष्ट्रीय झण्डा नहीं फहराया जा सकता। राष्ट्रीय झण्डे को कोई भी फहरा सकता है। संपूर्ण प्रश्न यह है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी को अनुमति नहीं देनी चाहिये थी। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों अथवा जिला न्यायाधीश को राष्ट्रीय झण्डा फहराने के लिए क्यों नहीं कहा, क्योंकि आपने उन्हें ऐसा करने का अवसर दिया। आप यह कहकर कि कुछ ऐसे स्थान हैं, जहाँ राष्ट्रीय झण्डा नहीं फहराया जा सकता, उन्हें ऐसी स्थिति उत्पन्न करने में मदद कर रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, ऐसा कोई भी स्थान नहीं हो सकता और सर्वोच्च न्यायालय को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि अमुक-अमुक स्थान पर राष्ट्रीय झण्डा नहीं फहराया जायेगा। 15 अगस्त अथवा 26 जनवरी को राष्ट्रीय झण्डा फहराया जा सकता है। प्रश्न केवल इतना है कि आपने पूर्वोपाय क्यों नहीं किये ताकि उन्हें अवसर का लाभ उठाने का मौका नहीं मिलता; आपको जिला-न्यायाधीश को वहाँ झण्डा फहराने के लिए कहकर अवसर का लाभ उठाना चाहिये था। ऐसा करने के स्थान पर आपने उन्हें वहाँ त्वरित कार्यबल भेजने के लिए कह दिया ताकि उन्हें सभी प्रकार की प्रचार-सामग्री मिल सके और आप यही कहते रहें कि राष्ट्र को आपकी निष्क्रियता और गुण्डागर्दी का समर्थन करना चाहिये।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।