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देश के गौरव को नीचा करने वाला काम महाराष्ट्र सरकार रोके इस कुकृत्व को

16 जुलाई, 1998 को लोकसभा में गोडसे को महिमामंडित किए जाने पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, अजीत जोगी जी ने आज एक अहम सवाल उठाया है। पिछले कई दिनों से यह सवाल समाचार पत्रों में उठ रहा है। देश की जनता इसके बारे में बहुत चिन्तित है। मैं इस सवाल पर कुछ कहना नहीं चाहता था लेकिन शिवसेना के नेता हमारे मित्र ने जो भाषण दिया और दूसरे मित्र श्री चैबे जी ने जो भाषण दिया, उसके बाद मैंने समझा कि इस देश की और सदन की मानसिकता कुछ विकृत होती जा रही है। इस मानसिकता को परिष्कृत करने के लिए हमको अपने अन्तःकरण में सोचना चाहिए। यह सवाल सांकृतिक स्वतन्त्रता का नहीं है, यह सवाल देश की बुनियादी मान्यताओं का है। मैं ऐसा समझता था कि अजीत जोगी जी के सवाल उठाने के बाद सारा सदन सर्वसम्मति से इस बात की निन्दा करेगा जिसके कारण अपरोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के चरित्र पर, उनके व्यक्तित्व पर किसी तरह की आंच लग रही है।

अध्यक्ष महोदय, मुझे आश्चर्य है कि इस बात पर हमारे परम मित्र शिवसेना के नेता ने यहाँ यह कहा कि यह राज्य का मामला है और पहले जाँच-पड़ताल होनी चाहिए कि उस नाटक में क्या है? आखिरकार सारे देश के समाचार पत्र लिख रहे हैं। क्या राज्य सरकार का यह कत्र्तव्य नहीं था कि वे इस बारे में जांच करके अपनी तरफ से कोई वक्तव्य देते? क्या भारत सरकार का यह कत्र्तव्य नहीं था, हमारे सूचना विभाग की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे स्वयं उस पर चर्चा करके, बात करके सदन के सामने एक वक्तव्य के द्वारा आए होते? इससे एक भयावह दिशा में संकेत मिल रहा है और भयावह दिशा वह है जिसके बारे में देश के बड़े वर्ग में पहले से चिन्ता है।

मैं अध्यक्ष महोदय से कहूँगा कि यदि इस विवाद को और आगे बढ़ाया गया तो इससे किसी की प्रतिष्ठा बढ़ने वाली नहीं हैं। देश के गौरव को नीचा करने का यह काम हुआ है।

इसे स्वीकार कर इस सदन को सर्वसम्मति से यह निश्चय करना चाहिए, यह बताना चाहिए, नम्र शब्दों में महाराष्ट्र सरकार से यह निवेदन करना चाहिए कि इस कुकृत्य को तुरन्त रोके। इसकी सफाई देने की, इस पर देर करने की कोशिश करना सदन का अपमान है, देश की मान्यताओं और अस्मिताओं का अपमान है। अध्यक्ष महोदय, आप इस अपमान से देश को बचाइए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।