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स्वर्ण जयंती समारोह में आचार्य नरेन्द्र देव, जे0पी0,लोहिया को नहीं याद करना दुखद

अगस्त क्रांति के स्वर्ण जयंती समारोह के मामले पर लोकसभा में11अगस्त, 1992को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, जो सवाल यहाँ राम विलास जी ने उठाया है, मैं नहीं चाहता कि 1942 के आन्दोलन के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर राष्ट्र में कोई विवाद उठे लेकिन यह बात सही है कि जिस तरह से इसकी शुरुआत हुई है, वह बहुत दुःखद है। मैं यह कहने के लिए आपसे क्षमा चाहूँगा कि उस दिन केन्द्रीय कक्ष में भी जो भाषण हुए। जिस भाषण में 1942 की क्रांति की बात हुई, उसमें जयप्रकाश नारायण, डाॅराममनोहर लोहिया और आचार्य नरेन्द्र देव को याद नहीं किया गया।

इण्डिया गेट पर जो फंक्शन हुआ, उसमें एक मंत्री महोदय ने इस तरह कहा- ‘‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष महोदय और प्रधानमंत्री नरसिहं राव जी।’’ और कहा कि अखिल भारतीय कागं्रसे कमटेी क ेसदस्यगण। मेरे जैसे व्यक्ति को, मैं अध्यक्ष महोदय, आपके पास बैठा हुआ था मेरे मन में, उसी समय आया कि मैं उठकर चला जाऊँ। अगर 1942 के शहीदों की मर्यादा का सवाल नहीं होता, तो मैं वहाँ पर नहीं बैठता। आपसे यह निवेदन जरूर करूँगा कि ऐसे बड़े उत्सव के समय पर, इतिहास को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा नहीं जाना चाहिए। जिन लोगों को 1942 की क्रांति का इतिहास नहीं मालूम है, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ कि 1942 के प्रस्ताव को लिखने के लिए जिम्मेदार आचार्य नरेन्द्र देव थे, वे नेता नहीं थे, जिनका नाम आज लिया जाता है। इसलिए आज मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि उन लोगों का नाम लिया जाए।

सौभाग्य की बात यह है कि सुभाष बाबू का नाम यहाँ नहीं लिया गया, लाल किले में लेना मजबूरी थी, इसलिए वहाँ उनका नाम ले लिया गया। इस तरह से मजबूरी में इस पर्व को मनाना, हमारी उस भावना को प्रेरित करता है, जिस भावना में हम संकीर्ण दायरे से निकल नहीं पाते हैं और संकीर्ण दायरे में रहकर इस क्रांति की स्वर्ण-जयन्ती मनाना, उससे अच्छा है, उसको हम नहीं मनाएं।

मैं जानता हूँ कि किस तरह से कार्यक्रम बनाए जाते हैं। मैं भी उस समिति का एक सदस्य हूँ। मैं उसमें नहीं जाना चाहता क्योंकि बहुत से विरोध करने वाले लोग, बहुत जगहों पर पहुँच गए हैं। उस बात को छोड़ दीजिए। मैं उसमें भी नहीं जाना चाहता। उसको मैं नहीं कहूँगा। लेकिन जब सरकार मनाती है और अध्यक्ष महोदय, जब हम लोगों से भी कहा जाता है, उसमें सम्मिलित होइए, तो हम लोगों की बड़ी मर्यादा नहीं है, लेकिन थोड़ी हम लोगों की मर्यादा को भी ध्यान रखना चाहिए। ए.आई.सी.सी. की मीटिंग अटेंड करने के लिए किसी और को बड़ा गर्व हो सकता है, लेकिन मैं ए.आई.सी.सी. की मीटिंग में उस जमाने में था जब आज ए.आई.सी.सी. के बड़े से बड़े ओहदे पर बैठे हुए लोग, उसके नजदीक नहीं पहुँच पाते थे।

इसलिए मुझे यह बात कहने में दुःख होता है कि इस तरह का ट्रीटमेंट जब हम लोगों के साथ होता है, हम राष्ट्रीय पर्व समझकर वहाँ पर जाते हैं और इस तरह का भाषण हमको सुनने को मिलता है, तो हमें वेदना होती है। मैं आपसे कहूँ- 1942 के जो महान योद्धा थे, उनको आप अपने भाषणों से मिटा सकते हैं, इतिहास से नहीं मिटा सकते। मैं आपके जरिए गुलाम नबी आजाद से कहना चाहता हूँ- इतिहास बड़ा निर्दय कठोर निर्णायक होता है। जो इतिहास आज आप बना रहे हैं, वह इतिहास नहीं रहेगा। इतिहास वह है, जो सच्चाई के ऊपर आधारित है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।