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महात्मा गांधी की मूर्ति लगाने में देर कर सरकार दे रही है भयावह स्थिति को निमन्त्रण

इंडिया गेट के समीप महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापित करने के संबंध में 31 जुलाई, 1997 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

उपाध्यक्ष जी, मैं एक ऐसे सवाल पर आपके सामने खड़ा हुआ हूँ जिस पर इस सदन में शायद कोई विवाद नहीं होगा। मैंने कल ही अध्यक्ष महोदय से अनुमति ली थी। महात्मा गाँधी की स्टेच्यू इंडिया गेट पर लगाने का सवाल 30 वर्षों से चल रहा है। गत तीन वर्ष पहले श्री नरसिंहराव जी ने वहाँ शिलान्यास किया था कि अगस्त क्रान्ति उद्यान बनेगा और उसमें महात्मा गाँधी की स्टेच्यू लगायी जाएगी। इस देश क ेकुछ विचारक, विद्वान जिनकी साचे सार ेदश्ेा स ेनिराली है, वे लोग अदालत में गये थे और उस अदालत में उन्होंने जो बातें कहीं वे किसी भी व्यक्ति को अपमानजनक लगेंगी।

मैं उन बातों को दोहराना नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि सारे देश में महात्मा गाँधी की जो स्टेच्यू लगी हैं, एक कैरीकेचर दिखायी पड़ती है और इंडिया गेट पर उसको ले जाना एक देश के लिए या कला के लिए अपमान होगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक तरह का ऐस्थेटिक वेन्डालिज्म है। उसके खिलाफ स्वतत्रंता सगं्राम के सगंठन के लोगा ेंने विशेषकर शशिभष्ूाण जी ने अपनी बात कही और 4-5 दिन पहले अदालत ने यह फैसला दिया कि सरकार को वहाँ पर स्टेच्यू लगानी चाहिए। इसलिए 4-5 दिन के अंदर ही उनका फैसला होना चाहिए।

उपाध्यक्ष जी, आप जानते हैं कि वहाँ पर एक छतरी में जाॅर्ज पंचम की मूर्ति लगी थी। राम मनोहर लोहिया जी ने उस मूर्ति को हटाने का निवेदन किया, सरकार ने वह बात नहीं सुनी। फिर 1968 में कुछ युवकों ने जाकर उस मूर्ति को विकृत कर दिया और मजबूर होकर सरकार को उस मूर्ति को हटाना पड़ा। आज लगातार यह बात चल रही है कि वहाँ से उस केनोपी को हटाकर वहाँ शहीद उद्यान बनाया जाए। उसका शिलान्यास श्री नरसिंहराव जी ने किया, लेकिन सरकार उस पर मौन बैठी हुई है। अब अदालत के फैसले के बाद क्या करेगी, कहना मुश्किल है। कहा जाता है विचारकों के जरिये जो इतिहास को अपनी दृष्टि से देखते हैं कि जनता को यह बहुत बुरा लगेगा कि लुटियन साहब ने जो बनाया था उसमें हम हस्तक्षेप कर रहे हैं। शायद उनको इतना भी ज्ञान नहीं है कि वह छतरी लुटियन ने नहीं बनाई थी, बल्कि 1930 में जब गाँधी जी डांडी मार्च करने चले तो यहाँ के कुछ राजाओं ने, जिनका नाम मैं नहीं लेना चाहता, ब्रिटिश साम्राज्यवाद की हिमायत करने के लिए वह छतरी और जाॅर्ज पंचम की तस्वीर वहाँ पर लगायी थी। उस तस्वीर के बारे में मुझे आज कहने से कोई लाभ नहीं है, मैं कहना भी नहीं चाहूँगा। लेकिन मुझे आश्चर्य इस बात पर होता है कि 20-25 और 30 वर्षों से सरकार निर्णय क्यों नहीं कर पाती है।

उपाध्यक्ष जी, मैं पढ़ूंगा नहीं। इन मूर्ति को लगाने के पक्ष में अब तक जिन महानुभावों ने पत्र लिखे हैं उसमें श्री जयपाल रेड्डी जी हैं, शायद उनको अपना पत्र याद होगा। उसमें श्री इन्द्रजीत गुप्त हैं, जो आज हमारे गृहमंत्री हैं। उसमें श्री मधु लिमये हैं जो दुर्भाग्यवश आज हमारे साथ इस दुनिया में नहीं हैं, विश्वनाथ प्रताप सिंह जी हैं, जो इस देश के प्रधानमंत्री रहे हैं, श्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं, जो हमारे विरोधी दल के नेता हैं, श्री सिद्ध राज धद्धा हैं, श्री सत्य प्रकाश मालवीय हैं, हमारे साथ यहाँ बैठने वाले श्री नीतीश कुमार हैं, श्री नवल किशोर शर्मा हैं, श्री सादिक अली हैं जो सबसे बड़े गाँधीवादी हैं और श्री कृष्ण कांत ने गवर्नर की हैसियत से लिखा है जो अब उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। इसके अलावा अन्य बहुत से लोग इसमें शामिल हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि सरकार को इसमें क्या हिचक है?

मैं समझता हूँ कि स्टीयरिंग कमेटी ने जो सर्वसम्मत निर्णय लिया था, जिसके कन्वीनर शायद श्री इन्द्रजीत गुप्त थे, उसके बाद श्री नरसिंह राव जी ने वहाँ एक समारोह किया था जिसमें मैंने भी भाषण किया था लेकिन पिछले तीन वर्षों में कुछ नहीं हुआ। मैं जानना चाहता हूँ कि देश का इतिहास बनाने वाले जो दो-चार लोग हैं, जो इतिहास को अपनी दृष्टि से देखते हैं, जिनकी दृष्टि में भारत की 90 या 95 करोड़ जनता नहीं है, उसकी विदेशों में क्या प्रतिक्रिया होगी, कुछ बुद्धिजीवियों में क्या प्रतिक्रिया होगी, वह है। उसे देखकर यदि हम महात्मा गाँधी की स्टेच्यू को लगाने का काम टालते जाएंगे, तो उचित नहीं है। यहाँ सदन के नेता बैठे हैं, विभिन्न मंत्रीगण हैं, मैं उनसे निवेदन करूंगा कि क्या आप देश में ऐसी स्थिति लाना चाहते हैं कि जिन परिस्थितियों में जार्ज पंचम की मूर्ति हटी थी, उसी स्थिति में वह छतरी भी हटे। वह दिन दूर नहीं, आप यह मत समझिए कि अगर आप लोगों की भावनाओं का इसी तरह निरादर करते जाएंगे तो स्वतंत्रता की इस स्वर्ण जयन्ती के साल में कहीं उस छतरी पर कुछ न हो जाए जिसके कारण देश में कोई भयावह स्थिति पैदा हो जाए।

आप ऐसा भी मत समझिए कि मैं आपको डरा रहा हूँ या कोई चेतावनी दे रहा हूँ लेकिन जो खतरा मुझे दिखाई पड़ता है, बहुत से लोगों के दिल में आग है, उस आग को देखकर यह मत समझिए कि संसद में बैठे हुए हम लोग जो फैसला देते हैं, वही फैसला देश को बनाने वाला है। महात्मा गाँधी की आज जिस तरह से उपेक्षा हो रही है, जिस तरह निरादर हो रहा है, न जाने कितने स्टेच्यू लग रहे हैं, कितने स्मारक बन रहे हैं, मैं उनका जिक्र नहीं करना चाहता लेकिन सरकार महात्मा गाँधी के बारे में चुप है। दिल्ली में जितने स्मारक बन रहे है, जिन लोगों के बन रहे हैं, क्या महात्मा गाँधी के सामने उनकी कोई हैसियत हैं? मैं यहाँ कोई तुलना नहीं करना चाहता लेकिन जो राष्ट्र महात्मा गाँधी जैसे व्यक्ति का सम्मान नहीं कर सकता, जिसमें चंद अपने को बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग रास्ते मे ंरोडा़ डाल सकते है,ं जिनकी बात मानकर सरकार चुप रहती है, वह सरकार एक भयावह स्थिति को निमंत्रण दे रही है। मुझे विश्वास है कि सरकार चेतेगी और इस काम को पूरा करेगी।

सभापति जी, मुझे संक्षेप में केवल यह निवेदन करना है कि कुछ दिन पहले मैंने सवाल उठाया था कि अदालत ने यह फैसला किया है कि गांधी जी का स्टेचू इंडिया गेट पर लगना चाहिए और सरकार इस बारे में 4 अगस्त तक निर्णय ले। आज तक सरकार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। अगस्त क्रान्ति उद्यान बनाने के लिए उद्घाटन श्री नरसिंह राव जी ने किया था और उस दिन सारे सदन ने इस पर सहमति व्यक्त की थी। मुझे दुःख इस बात पर होता है कि सरकार की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया होती ही नहीं, उस सवाल के ऊपर देश के समाचार पत्रों में एक पंक्ति भी नहीं छापी गई। यह तो छापा जा रहा है, प्रकाशित हो रहा है कि गांधी जी को मारना उचित था और एक सज्जन का साक्षात्कार इंटरव्यू बड़े अखबारों में छपा है कि यदि गांधी फिर जिन्दा होंगे तो फिर हम उनको मारेंगे।

उपाध्यक्ष जी, यह प्रकाशन इस देश में स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती पर हो रहा है। मैं सदस्यों से बहुत विनम्र निवेदन करूंगा कि जो हम लोग कर रहे हैं, शेम तो उससे सारे देश में हमारी हो रही है। उसे जरा हम देंखे। सरकार को चाहिए कि वह 15 अगस्त के पहले उस उद्यान के बारे में निर्णय ले ले यह कह दे कि स्वतंत्रता संग्राम की इस स्वर्ण जयन्ती में गांधी का कोई स्थान नहीं है क्यांिेक यहाँ पर कुछ विद्वतजन ह ैंजा ेकहत ेह ैंकि लुटियन की आर्किटक्ेचरल ब्यूटी समाप्त हो जायेगी।

जिस तरह के हाईकोर्ट मे,ं अदालत में दस्तावेज पेश किये गये हैं, कहा गया है, गांधी जी का जहाँ भी स्टेच्यू है, वह केवल कैरीकेचर है। यह कहा गया है कि यह एस्थेटिक वेंडालिज्म होगा, अगर वहाँ पर गांधी जी का स्टेच्यू लग जाएगा। अदालत के लोगों ने फैसला कर दिया है, लेकिन मुझे लगता है कि सरकार का फैसला 15 अगस्त तक हो पाएगा या नहीं। मैं नेता विरोधी दल से कहूँगा, नेता सदन से कहूँगा कि यह मामला अत्यन्त गंभीर है। इसके खिलाफ हमें आवाज उठानी चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।