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संस्कृत भाषा में है प्रगतिशील और उदात्त भावनाएं,प्रसारण को सरकार उठायेगी कदम

सरकार के प्रसारण के सवाल पर लोकसभा में 4 मार्च, 1991 को प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य की बात सही है। जो राष्ट्र अपन ेअतीत क ेगौरव का ेसजंा ेनही ंसकता, वह राष्ट्र नया भविष्य नहीं बना सकता है। हमारे अतीत से संस्कृत का गहरा संबंध है और उसमें हमारे सभ्यता और संस्कृति की अनुपम कृतियां भरी पड़ी हैं। मैं माननीय सदस्य की बात से सहमत हूँ। हम देखेंगे और दूरदर्शन से बात करेंगे। अब उसमें समाचार दिये जायेंगे या नहीं लेकिन संस्कृत के जो हमारे नीति वाक्य हें या जो हमारे नीतिकारों के वाक्य हैं और जो आज के दिन कल्याणकारी और शुभ हैं, उनको दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए हर संभव कदम उठाये जायेंगे।

अध्यक्ष महोदय, हम इस संबंध में माननीय सदस्यों की राय जानना चाहेंगे। संस्कृत भाषा से और हमारी संस्कृति से जिन लोगों का पुराना संबंध है, उनक ेभी सुझाव लगंे।े उन सुझावा ंेक ेआधार पर और दरूदर्शन म ंेक्या सभ्ंाव है, इन दोनों का समन्वय करके इस संबंध में हम नीति निर्णय करेंगे। मैं माननीय सदस्य की केवल एक बात से मैं सहमत नहीं हूँ। चाहे हम लोग चाहें या नहीं चाहें .. संस्कृत भाषा समाप्त नहीं होगी। आज तक नहीं हुआ और आगे भी नहीं होगा और हम लोग नहीं भी करें तो जर्मनी में लोग संस्कृत पढ़ रहे हैं और वे हमसे ज्यादा प्रयास कर रहे हंै।

मैं माननीय सदस्य की इस बात से सहमत हूँ और मैं मानव संसाधन विकास मंत्री जी से कहूँगा कि दूरदर्शन और आकाशवाणी पर इस संबंध में जानकारी करें कि संस्कृत भाषा में जो शुभ और कल्याणकारी पहलू हैं, उसको सजग, सजीव और सचेत करने के लिए कुछ कर सकते हैं? और वह अवश्य ही किया जायेगा। मैं इससे सहमत हूँ कि संस्कृत भाषा का हमारे अतीत से और हमारे भविष्य से हमारा गहरा संबंध है।

अध्यक्ष महोदय, भोगेन्द्र झा जी का अनुभव बहुत लंबा अनुभव है क्योंकि संस्कृत के माध्यम से वह साम्यवाद तक पहुंचे हैं। उनका केवल हम विचार लेंगे, लेकिन मैं इस बात से उन से सहमत हूँ कि संस्कृत में और हमारे पुराने ग्रंथों में बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो हमें साम्यवाद की ओर, समता की ओर ले जाती हंै। साम्यवाद में जो विश्व मानव की कल्पना की गई थी, उसमें हमारे यहाँ लिखा गया है-

‘‘अहं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।’’

इस प्रकार हमारी संस्कृत में बहुत सी प्रगतिशील और उदात्त भावनाएं हैं। उन भावनाओं को हमें समाज के सामने और दुनिया के सामने रखना चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।