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देश में ऐसा माहौल न बनाए कि सरकारी अधिकारी भी बंट जाएं धर्म के नाम पर

नदवा के छात्रावास में तलाशी लिए जाने मामले पर 9 दिसम्बर, 1994 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, मैं नहीं समझता कि नदवा में जो कुछ हुआ, वह दुःखद हुआ लेकिन उसके बाद जो हो रहा है, वह अत्यंत लज्जाजनक और दुःखद है क्योंकि नदवा में जो कुछ हुआ, हमारी खुफिया एजेंसी ने कुछ कारणों से वहाँ जाने की बात सोची। वे कहते हैं कि उ.प्र. सरकार को इसकी खबर थी लेकिन उ.प्र. सरकार कहती है कि उनको खबर नहीं थी।

अध्यक्ष जी, मैं एक बात आपके माध्यम से सरकार से कहना चाहूँगा कि आई.बी. के लोग जिन हालात में काम करते हैं, वह सामान्य हालात नहीं होती है। कई जगह तो अपनी जान को खतरे में डालकर देश की रक्षा का काम करते हैं। उनसे गलतियां हो सकती हैं। कई बार गलतियां जानबूझ कर नहीं होती हैं, अनजाने में हो जाती हैं, उनको क्षमा करना चाहिये। अगर कोई गलती जानबूझ कर करे तो उसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिये सरकार को इसका अधिकार है।।

प्रधानमंत्री और होम मिनिस्टर आई.बी. के खिलाफ कार्यवाही करते। अगर उन्होंने किसी आदेश का पालन नहीं किया या निराधार किसी प्रेरणा से प्रेरित होकर, जो उनके उत्तरदायित्व के अंदर नहीं थी, यह काम किया तो हमें उसमें कोई शिकायत न होती लेकिन जिस प्रकार से भारत सरकार और उ.प्र. सरकार ने पत्रों के जरिये खुलेआम यह बात चलायी कि आई.बी. के लोगों ने उनकी मर्जी के खिलाफ यह काम किया है तो यह एक दुःखद घटना है। मैं इससे अधिक नहीं कहना चाहूँगा कि इस प्रकार से सरकारें नहीं चलती हैं और इस प्रकार से राज नहीं चलता है। वोट पाने के लिये किस हद तक जायेंगे तो हम सरकार बना सकते हैं, देश नहीं चला सकते हैं। इसलिये मैं आपसे कहंूगा कि यह अत्यंत दुःखद है। मैं ऐसा समझता हूँ कि गृहमंत्री ने जो बयान दिया है वह निहायत गैर-जिम्मेदाराना बयान है। मैं ऐसा समझता हूँ कि गृहमंत्री का राष्ट्रीय कर्तव्य होता है कि वह सदन के सामने आकर बताये कि किन परिस्थितियों में वे काम हुये थे?

मुझे यह भी मालूम है कि वहाँ के मुख्यमंत्री ने इस मामले को निपटाने के लिए कुछ कोशिश की। उसमें उनको उस समय थोड़ी सफलता भी मिली, लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि सारा मामला निपट जाने के बाद वहाँ के लोगों ने इस मामले को तूल देने की कोशिश क्यों की। अली मियां को मैं जानता हूँ, नदवा को मैं जानता हूँ। में उनकी इज्जत करता हूँ। उस संस्था की परंपरा को और उसकी महत्ता को मैं जानता हूँ लेकिन मैं यह नहीं समझता कि उसके बाद ये बयान देने का क्या औचित्य है कि सारा राष्ट्र इसके लिए माफी मांगे, भारत सरकार माफी मांगे।

मुझसे कहा जाता है कि यह एक महान संस्था है। इस देश की महान संस्थाओं की क्या हालत हो रही है? क्या स्वर्ण मंदिर एक महान संस्था नहीं है? वहाँ पर क्या हुआ? अभी हमारे मित्र चन्द्रजीत जी अयोध्या की बात कह रहे थे। क्या अयोध्या एक महान संस्था नहीं है? वहाँ क्या हुआ? अगर अयोध्या में हो सकता है, स्वर्ण मन्दिर में हो सकता है तो नदवा में नहीं हो सकता है, यह मान लेना हमारे लिए बहुत आश्चर्य की बात है। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ इन सवालों पर मत जाइए।

मै अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से बहुत प्रभावित हुआ लेकिन उनकी तरफ से मैं बहुत अदब के साथ कहता हूँ कि ये मुस्लिम देश वाले नदवा की वजह से हमारे साथ नहीं है। हमारे साथ उनका पुराना रिश्ता है, बहुत सी बातों की वजह से एक-दूसरे के साथ चलते हैं। केवल मुसलमानों की यहाँ की बातों से ये हमारे साथ हो जाते हैं, ऐसी बात नहीं है। मैं जानता हूँ और यह बात कहना ठीक नहीं है कि धार्मिक स्थानों पर ये होगा तो उनके मन में कटुता आ जाएगी। मैं कोई उदाहरण नहीं देना चाहता। मुस्लिम देशों में भी जब उनके देश की इज्जत के ऊपर खतरा आया है तो उन्होंने पूजा की जगहों पर हमले किये हैं और उस बात को मैं नहीं कहना चाहता कि यहाँ पर होना चाहिए। लेकिन ये सब बयान देकर यह कहना जैसे कोई अनहोनी घटना हिन्दुस्तान में हो रही है, यह बात हमें दुनिया की नजरों में गिराती है।

ये दुनिया की नज़रों में गिराने का काम अगर कोई सदस्य करे तो मुझे आश्चर्य नहीं होता। मुझे आश्चर्य होता है कि गृहमंत्री जी जाते हैं, एक दूसरे मंत्री जाते हैं, अखबारों में बयान दिया जाता है कि हम माफी मांगते हैं तो इससे यह मालूम होता है कि कोई गलती हुई है और अगर गलती हुई है तो उसको जानने का अधिकार देश को है। उस गलती को जानने का अधिकार उन बेचारे अधिकारियों को है जो अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। किसी भी अधिकारी की इज्जत आप उतार लें, किसी को भी दुनिया की नज़रों में गिरा दें?

मैं बहुत अदब से अपने मित्र यूनुस सलीम साहब से कहना चाहता हूँ कि ऐसा माहौल न बना दें कि सरकारी अधिकारी भी धर्म के नाम पर बंट जाएं, दूसरे लोग इस कोशिश में हो सकते हैं। उस कोशिश को आप कामयाब मत होने दीजिए। मैं आपसे निवेदन करूंगा कि अगर गुप्तचर विभाग में भी यह बात आ जाएगी, अगर कुछ लोग गलती करें तो उनको सजा दें लेकिन जो काम भारत सरकर ने किया है और जिस तरह से सारे देश में इस मामले को तूल दिया जा रहा है यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके नतीजे बहुत बुरे होंगे।

मैं आपसे निवेदन करूंगा कि इस सरकार को कुछ सद्बुद्धि दीजिए कि यह सरकार सोच-समझ कर बात करे और सोच-समझ कर कदम उठाए। अगर इन्होंने माफी मांगी है तो बताएं, क्योंकि गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि हमने उत्तर प्रदेश सरकार को सूचना दी। गृहमंत्री के बयान को गुप्तचर विभाग के अधिकारी खंडित कर रहे हैं।

गृहमंत्री एक बयान दें, गुप्तचर विभाग का डिप्टी डायरेक्टर दूसरा बयान दे, सरकार चल रही है, देश चल रहा है, इज्जत बढ़ा रहे हैं तीन वर्षों से दुनिया में। इस देश को हम कहाँ ले जाना चाहते हैं? इसलिए जरूरत इस बात की है कि इस पर सफाई होनी चाहिए और यह भावना इस देश में और देश के बाहर नहीं जानी चाहिए कि किसी अल्पमत की संस्था के ऊपर कोई अत्याचार सरकार की ओर से हो रहा है और सरकार की किसी एजेन्सी की ओर से हो रहा है और सरकार उस पर चुप बैठी है। मैं बहुत नम्र निवेदन करूंगा कि इसको हिन्दू-मुसलमान अल्पमत-बहुमत का सवाल मत बनाइए। इस सवाल को इस परिवेश में देखिये जिस परिवेश में देखने से इस मामले का हल निकल सकता है।

अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री द्वारा दिये गये वक्तव्य पर विरोध व्यक्त करता हूँ। हम यहाँ अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर पाने की फिराक में नहीं हैं। हम सरकार से जानकारी चाहते हैं जो लोकसभा का अधिकार है और जो प्रत्येक व्यक्ति का हक है। यह बात नहीं है कि हम चाहते हैं कि माननीय मंत्री से हमारी बात सुनने के लिए अनुग्रह करना चाहिए क्योंकि यह बात उन्हें बताने का हमारा अधिकार है और उनसे जानकारी प्राप्त करने का भी हमारा अधिकार है। यह बात नहीं है कि जो कुछ हमने कहा है, उन्होंने नोट कर लिया है। उन्हें बोलने का अवसर प्राप्त है। वह इस पर विचार करेंगे।

यह उनके लिए विचारणीय नहीं है। वे अंधेरे में हैं। गृहमंत्री को सदन को और देश को स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने इस राज्य की मान-मर्यादा की रक्षा की है जबकि गृहमंत्री ने स्वयं एक व्यापक संस्था की अवमानना करने का प्रयास किया है जहाँ राज्य सरकार और केन्द्र सरकार में काफी फर्क किया गया है। यह माननीय संसदीय कार्यमंत्री के ध्यान देने योग्य मामले नहीं है बल्कि यह मामला समूचे राष्ट्र के हित में है और सरकार को अपने व्यवहार को स्पष्ट करने का कर्तव्य है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।