उत्तर प्रदेश सरकार का दिमाग कुछ अधिक खराब है, मुझे भी कर सकती है पोटा में बंद
अध्यक्ष जी, मैं इस विषय में कुछ नहीं कहना चाहता था क्योंकि यह अत्यन्त दुःखद सवाल है। यह बात सही है कि श्री जगदीश भाई की मृत्यु सही मायने में 5 तारीख को ही हो गई थी। उस दिन मुझे सायंकाल 4 बजे खबर आई, लेकिन डाक्टरों ने उसकी घोषणा नहीं की। उसके आधार पर प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और मुझे बताया गया और गृह मंत्री महोदय को भी सूचना दी गई। प्रधानमंत्री महोदय ने शोक संदेश भी भेजा। उपराष्ट्रपति महोदय ने भी उनकी मृत्यु पर शोक-संदेश भेजा। अखबार में छपा, गृहमंत्री ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री को कह दिया है कि उनकी अन्त्येष्टि पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ की जाए, लेकिन इस सबके बावजूद 5 तारीख को जब मैं 8.15 बजे वहाँ पहुँचा, तो कोई सरकारी अधिकारी उपस्थित नहीं था।
अध्यक्ष जी, अब तक तो सरकार की कृपा रही है कि मेरे जाने पर सरकारी अधिकारियों को खबर होती है कि मैं आ रहा हूँ। सब को मालूम था कि मैं उस दिन उन्हीं की अंत्येष्टि के लिए आ रहा हूँ, लेकिन साढ़े ग्यारह बजे जब उनकी लाश को लेकर हम घाट पर गए तो वहाँ सरकार का कोई अधिकारी नहीं था। मैं वहाँ मौजूद था और साढ़े 12 बजे से एक बजे तक वहाँ रहा। मैं जब वहाँ से चला आया, जब उनकी चिता जल कर समाप्त हो रही थी तो उस समय वहाँ कोई तहसीलदार रैंक का आदमी फूलों की माला लेकर गया, लेकिन वहाँ बैठे लोगों ने उसे उनके नजदीक नहीं जाने दिया। मेरे लिए कोई भी अधिकारी नहीं आता है, यह तो उत्तर प्रदेश में सामान्य बात है।
मैं देश में जहाँ भी जाता हूँ, वहाँ मेरे साथ लोग जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों को छोड़कर अधिकारियों का जाना कोई जरूरी नहीं है। मैं वहाँ से सीधे जयप्रकाश नगर गया और दिन भर वहाँ रहा। सिवाय वहाँ के थानेदार और सीओ के जो डिप्टी एसपी होते हैं, जो हमारे लिए थे, कोई बलिया का अधिकारी उस जगह पर नहीं गया।
महोदय, मैं जानना चाहता हूँ कि हम राजनीति को कहाँ तक ले जाएंगे। जगदीश भाई जयप्रकाश नारायण जी के केवल सचिव ही नहीं थे, बल्कि वे 1938 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे। जयप्रकाश जी 1942 में जब हजारीबाग जेल से भागे थे, जैसे मुलायम सिंह जी ने कहा, उस समय वे उनकी शैय्या पर सोए हुए थे। उन्होंने पूरी जिन्दगी जेल में बिताई। 1951 में जयप्रकाश जी ने उनसे कहा कि आप हमारा घर बना दीजिए। 1951 से लेकर मृत्युपर्यन्त वे उस गाँव में रहे। सारे गाँव और उस इलाके के लोग आश्चर्य कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश सरकार और अधिकारियों की तरफ से उन्हें कोई सम्मान देने के लिए क्यों नहीं आया?
गृहमंत्री जी इस समय यहाँ नहीं बैठे हैं, मैं जानना चाहूँगा कि क्या गृहमंत्री जी की सूचना पर भी कोई कदम नहीं उठाया जाएगा? ये सारी बातें अखबारों में छपी हैं, ये सब जानने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार की कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किस तरह सरकार चल रही है? क्षमा करेंगे, हमारे जो सरकार चलाने वाले मंत्री यहाँ बैठे हैं, मैं कहना चाहता हूँ कि चुनाव जीतने के लिए कहाँ तक मर्यादा को तोड़ेंगे। चुनाव भले जीत जाएं, आप लोग देश को तोड़ने के लिए जिम्मेदार होंगे।
अध्यक्ष महोदय, उत्तर प्रदेश में यह घटना साधारण नहीं है। मुलायम सिंह जी ने जगदीश भाई को निःस्वार्थ कहा। उन्होंने कभी कुछ नहीं मांगा। वहाँ जो स्मारक है, वे उसके सचिव थे। वहाँ प्रधानमंत्री जी और उप प्रधानमंत्री जी भी गए थे। दो-दो उपराष्ट्रपति वहाँ गए थे। उन्होंने कभी स्टेज पर जाने की कोशिश नहीं की और कभी उनके साथ उनका चित्र नहीं खींचा गया, वे इस तरह के व्यक्ति थे। जहाँ ये रहते थे, मैं भी उस ट्रस्ट का मेम्बर हूँ। वे ट्रस्ट के पैसे से खाना नहीं खाते थे, अपने पेंशन के पैसे से खाते थे। इस तरह के आदमी के साथ ऐसा व्यवहार उत्तर प्रदेश सरकार ने किया।
गृहमंत्री जी, प्रधानमंत्री जी और उप-राष्ट्रपति जी ने इसके लिए संवेदना प्रकट की है। मुझे यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि उत्तर प्रदेश की सरकार का दिमाग कुछ ज्यादा खराब हो गया है, उनका दिमाग ही नहीं खराब हुआ है, बल्कि उन्होंने सारे देश की मर्यादाओं और परम्पराओं को तोड़ने का एक जघन्य काम किया है। मैं जगदीश भाई से बहुत नजदीकी से जुड़ा हुआ था।
अध्यक्ष महोदय, मैं ज्यादा नहीं कहना चाहता, लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि वहाँ जिस तरह प्रशासन चल रहा है, अगर वैसे ही चलता रहा तो मेरे जैसे आदमी को भी कहीं ऐसा कोई कदम न उठाना पड़े कि इसी सदन में, जहाँ हम आज आपको एक साल पूरा करने के लिए बधाई देने वाले हैं, कहीं ऐसा न हो कि मेरे जैसे व्यक्ति को भी पोटा में गिरफ्तार कर दिया जाए और उसकी सूचना आपको न मिले।