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108 संसद सदस्यों के हस्ताक्षर का मतलब है राष्ट्र से संबंधित कोई गंभीर मामला

लोकसभा में 11 मई, 1993 को न्यायमूर्ति रामास्वामी के मामले पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, मुझमें सुनने का धैर्य है, लेकिन यह बिल्कुल असंगत बातें हैं। जो कुछ समिति ने कहा है और जो कुछ न्यायाधीश रामास्वामी ने सभा के समक्ष कहा है, वह सबको है, क्योंकि श्री रामास्वामी का कथन पहले ही सदस्यों को परिचालित किया जा चुका है और समिति का प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया जा चुका है। मैं नहीं जानता कि ऐसा किन प्रावधानों के अन्तर्गत हुआ है। यदि मैं ऐसा कहता हूँ तो अध्यक्ष महोदय कहेंगे कि उनकी ईमानदारी पर शक कर रहा हूँ। अतः मैं ऐसा नहीं कहूँगा लेकिन मैं नहीं जानता कि श्री चटर्जी किन परिस्थितियों में यह कहने के अधिकारी हैं कि न्यायाधीश रामास्वामी ने जो कुछ कहा, वह बिल्कुल मनगढ़न्त है।

मैं कहता हूँ, वह सही है। यदि समिति का प्रतिवेदन और जो प्रतिवेदन सदस्यों को बिना दृष्टि के परिचालित किया गया है, तो किस प्रतिवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी? आप कैसे कह सकते हैं कि वह गलत है और किस नियम के अन्तर्गत? जांच नियमों की प्रक्रिया में ऐसा कही नहीं है कि उनके प्रतिवेदन को सभा में प्रस्तुत किया जाए, तब भी प्रतिवेदन को परिचालित किया गया है। उन्हें जो कुछ भी कहना था, वह समिति के समक्ष कह सकते थे। सभा के सम्मुख कहने के वह अधिकारी नहीं है। नियमों के अनुसार, अध्यक्ष महोदय सर्वशक्तिमान है; मैं जानता हूँ कि वह (अध्यक्ष महोदय) कुछ भी कर सकते हैं।

अध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है, जब कभी भी मैं कोई मुद्दा उठाता हूँ, आप मात्र इतना कहते हैं कि ‘क्या आप मेरी मांग पर शंका कर रहे हैं?’ यहाँ जांच समिति का प्रतिवेदन है। मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि आपने किन प्रावधानों के अन्तर्गत न्यायाधीश रामास्वामी को यह अनुमति प्रदान की कि वह यह सभी तथ्य प्रस्तुत करें, जो कि अप्रामाणिक हैं। इनमें अध्यक्ष महोदय पर आक्षेप किया गया है। न्यायाधीश रामास्वामी के प्रति शिष्टाचार व्यक्त करते हुए सदस्यों ने अध्यक्ष महादेय पर न्यायाधीश रामास्वामी द्वारा लगाए गए आक्षपेा ंेका ेपरिचालित किया है। मैं पुनः कहना चाहता हूँ कि मैं आपको दुविधा में नहीं डालना चाहता, लेकिन आपको सदस्यों की मंशा पर शक नहीं करना चाहिए। बताना चाहिए कि यह रिपोर्ट किस कानून के अधीन न्यायमूर्ति रामास्वामी की टिप्पणी के लिए भेजी गई?

मैं आपके प्राधिकार को चुनौती नहीं दे रहा हूँ। मैं सिर्फ यह जानकारी चाहता हूँ। मैं इस बात को नहीं समझता कि आप हर सवाल को इस तरह से क्यों लेते हैं? क्या मैंने कोई अपमानजनक बात कही है? मैं केवल यह जानना चाहता था कि किस नियम के अधीन इसे न्यायमूर्ति रामास्वामी के पास उनकी टिप्पणी के लिए भेजा गया क्योंकि न्यायाधीश जांच अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। यदि आप उनका पक्ष सुनते हैं तो यह बात समझ में आती है,चाहे आप लिखित रूप में सुनें या मौखिक रूप से। लेकिन जब एक रिपोर्ट समिति ने दे दी है और न्यायाधीश द्वारा दूसरी रिपोर्ट दी जाती है तो इन पर समान दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता।

अध्यक्ष महोदय, माननीय विद्वान वकील अपने न्यायाधीश के बचाव में जो कहना चाहे, वह कहने का उन्हें पूरा अधिकार है। परन्तु उन्हें संसद सदस्यों के विरुद्ध दोषारोपण करने का अधिकार नहीं है। वस्तुतः 108 संसद सदस्यों के हस्ताक्षर कराना कोई मामलूी बात नही ंहै। यदि किसी मामले पर 108 ससंद सदस्य हस्ताक्षर करते हैं तो वह राष्ट्र से सम्बन्धित ऐसा गम्भीर मामला होता है जो पूरे राष्ट्र से सम्बद्ध होता है। लोकसभा के 108 सदस्यों के हस्ताक्षर कोई नहीं करा सकता है। इसके बाद सभा की क्या राय होगी, उसके बारे में मैं कुछ नहीं कहूँगा। भ्रष्टाचार के आरोप का अभिप्राय यह नहीं है कि यदि उसके आधार पर किसी न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग लगाया जाता है तो उसका न्यायपालिका पर विपरीत प्रभाव पडे़गा, वे स्वतन्त्र रूप से निर्णय नहीं कर पायेंगे क्योंकि सांसद उन्हें अपने अनुकूल कार्यवाही करने के लिए मजबूर करेंगे। इस प्रकार की टिप्पणियां नितान्त अवांछनीय हैं। उन्हें इस सभा में जो स्वतन्त्रता प्राप्त है, हम उसका पूरा सम्मान करते हैं। परन्तु उन्हें सभा में ऐसे तुच्छ स्वरूप के वक्तव्य नहीं देने चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, जब माननीय सदस्य बोल रहे थे, तब उन्होंने कुछ टिप्पणी की थी। आपने रिपोर्टरों को उचित ही कहा कि इसे कार्यवाही को वृतान्त में शामिल न करें। इसे प्रचार माध्यमों में नहीं भेजा गया है। मैं उन्हें उस समय टोकना नहीं चाहता था। लेकिन प्रचार माध्यम इससे अनभिज्ञ है। इसलिए इसे कल प्रकाशित किया जाए तो यह उन सदस्यों के लिए अच्छा नहीं होगा। आपने रिपोर्टरों को जो कुछ कहा वह प्रचार माध्यमों को भी बताया जाए।

अध्यक्ष महोदय, पंजाब और हरियाणा में ऐसी धारणा पैदा की जा रही है जैसा कि श्री रामास्वामी के अलावा और कोई मुख्य न्यायाधीश हो ही नहीं सकता। मैं इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन हमारे मित्र बूटा सिंह जी ने जो बात कही है, वह बहुत गम्भीर बात है। उन्होंने कहा है कि गृहमंत्री की हैसियत से मुझे कोई जानकारी है, उस जानकारी को मैं यहाँ पर कहूँ तो निर्णय पर असर पड़ सकता है। पहली बात तो यह है कि वे भूतपूर्व गृहमंत्री हैं, उनको कमेटी को खबर देनी चाहिए थी, अगर उस समय नहीं दी, आज देना चाहते हैं तो आपको उनको गृहमंत्री की हैसियत से जो उनको जानकारी है, देनी है, वह देनी चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री जी उनसे सहमत हैं या नहीं, यह उनसे पूछ लें। क्योंकि पुराने गृहमंत्री और पुराने प्रधानमंत्री, पुरानी जानकारियों के ऊपर वक्तव्य देंगे तो सदन और राष्ट्र को चलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए हम लोग कोई बात सदन में गम्भीरता से कह रहे हैं तो हमें अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। लेकिन मेरी राय जरूर है कि अगर प्रधानमंत्री जी सहमत हैं तो भूतपूर्व गृह मंत्री की सारी बातें सुनकर हमें निर्णय लेना चाहिए।

दूसरी बात यह है कि जो नेता विरोधी दल ने कहा, मैं आपकी आज्ञा से निवेदन करूंगा कि कुछ लोग जैसे उन्नीकृष्णन जी को कुछ कहना है, इधर से भी लोगों को कहना है और उधर से भी कहना है तो कितना समय देना चाहिए, उनको वह देना चाहिए। विरोधी दल के नेता ने बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में जो सहमति प्रकट की है, उससे अपने को हम आबद्ध रखें, हम लोग भाषण न करें। इन्हें भाषण करने दें और उसके बाद एक नई ज्योति देश में जगाने का काम करें। यह सच है। यह मंशा नहीं है। संसदीय राजनीति में केवल परिणाम का ही महत्व होता है।

अध्यक्ष महोदय, इसे आपने शुरू किया है, और मैं इसके लिए तैयार हूँ क्योंकि मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह की भावना नहीं है। न कोई पक्षपात की भावना है। न ही मैं किसी चीज से डरता हूँ। मैं नहीं चाहता था कि ऐसी स्थिति पैदा हो। परन्तु अध्यक्ष महोदय, आपने अपनी टिप्पणी से यह स्थिति उत्पन्न कर दी और मेरे पास आपको उत्तर देने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी बात पर सन्देह व्यक्त नहीं कर रहा हूँ। कृपया एक मिनट के लिए मेरी बात सुन लीजिए। प्रक्रिया यह है कि जब प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जायेगा तो आप उस पर एक विशिष्ट तरीके से विचार करेंगे; और उस तरीके का उल्लेख न्यायाधीश जांच समिति के प्रविेदन में ‘प्रतिवेदन पर विचार तथा न्यायाधीश को हटाये जाने के लिए समावेदन उपस्थापित करने की प्रक्रिया’ शीर्षक के अन्तर्गत विशिष्ट रूप से किया गया है। मैं पृष्ठ 9 पर अन्तिम पैरा से उद्धृत करता हूँ-

‘‘यदि समिति की रिपोर्ट में यह निश्कर्ष हो कि न्यायाधीश किसी कदाचार का दोषी नही ंहै या उसमे ंकोई असमर्थता नही ंहै, तब उस रिपोर्ट के सम्बन्ध में संसद के किसी भी सदन में कोई आगे कार्यवाही नहीं की जाएगी और संसद के सदन या सदनों में लम्बित प्रस्ताव पर कोई भी कार्यवाही नहीं की जाएगी। यदि समिति की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष हो कि न्यायाधीश किसी कदाचार का दोषी है या उसमें कोई असमर्थता है तो समिति की रिपोर्ट सहित धारा 3 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रस्ताव पर, संसद के सदनों द्वारा, जिसमें या जिनमें वह लम्बित हैं, विचार किया जाएगा।’’

केवल समिति के प्रतिवेदन पर भी सभा द्वारा विचार किया जाएगा। यह बात विशिष्ट रूप से सही कही गई है। मैं नहीं जानता कि उचतम न्यायालय ने यह निर्णय कैसे दिया है। मै ंउच्चतम न्यायालय के निर्णय का बहुत सम्मान करता हूँ परन्तु उच्चतम न्यायालय का निर्णय उस प्रावधान को अधिभाषी नहीं करता जिसका विशिष्ट रूप से उल्लेख संसद द्वारा पारित अधिनियम में किया गया है। अथवा महोदय, आपको भले ही कोई परामर्श देता रहा हो चाहे वह महान्यायवादी हो अथवा विधि सचिव; मैं उनके प्रति बहुत सम्मान की भावना रखता हूं। परन्तु इस अधिनियम की अवहेलना किस नियम अथवा किस प्रक्रिया के अधीन की गई है? मेरी आपत्ति यह नहीं है कि हम यह निर्णय नहीं ले सकते।

मेरे माननीय मित्र श्री जार्ज फर्नान्डीज कुछ उद्धृत करने का प्रयास कर रहे थे, आपने उस सभा में कहा था। ऐसे मामले में मत लाइए जो असम्मानजनक हों, क्योंकि आप नहीं चाहते कि ऐसी बातें सभा के कार्यवाही वृत्तांत मे ंशामिल हों। परन्तु आपने समूचे प्रतिवेदन को, न्यायमूर्ति रामास्वामी के तमाम तर्कों को कार्यवाही का हिस्सा बना दिया गया है। यदि यह सब कार्यवाही वृत्तांत का हिस्सा नहीं है तो मैं नहीं जानता कि यह प्रतिवेदन कैसे आया; इसे सभा पटल पर रखा गया है अथवा नहीं। यदि यह एक नया दस्तावेज है तो इसे सभा के सदस्यों के मध्य कैसे वितरित किया गया? मैं नियमों तथा प्रक्रिया से भी अवगत हूं। यदि यह सभा पटल पर रखा गया है तो कल जो टिप्पणी आपने श्री फर्नान्डीज के मंशा के बारे में की थी, वह निराधार सिद्ध होती है क्यांेकि समूचा प्रतिवेदन सभा की कार्यवाही का एक हिस्सा है। भूतपूर्व अध्यक्ष के प्रति तथा समिति के सदस्यों प्रति जो अपशबद कहे गए थे, वे सभा की कार्यवाही का हिस्सा है। अध्यक्ष महोदय, मेरी आपत्ति यह है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।