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असाधारण स्थिति में ही सदन के पटल पर नहीं रखी जा सकती ज्ञान प्रकाश समिति की रिपोर्ट

लोकसभा में 15 दिसम्बर, 1994 को प्रतिवेदन पटल पर रखने के मामले में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, माननीय नेता विरोधी दल ने जो सवाल उठाया ह ैउस पर जा ेशरद यादव जी का दृिष्टकाण्ेा है उससे मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। उनकी भाषा दूसरी है वह भाषा मैं इस्तेमाल नहीं कर सकता लेकिन इसमें दो बातें ध्यान देने की हैं। एक तो एंटनी साहब का इस्तीफा, जो उन्होंने अभी यह कहा है, उनके बारे में जो कहा गया है वह सही नहीं है। उन्होंने बार-बार कैबिनेट, मंत्रिमंडल को बताया है कि चीनी की क्या स्थिति है, कितनी कमी है।

दूसरा, पिछली बार जब माननीय कल्पनाथ राय जी ने यहाँ भाषण दिया तब उन्होंने भी यही कहा कि हमने बराबर यह खबर कैबिनेट को दी कि पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के लिए चीनी की कमी होगी और हमें चीनी मंगाने की जरूरत होगी। इसलिए चीनी मंगाई जाए। तीसरा, अभी जो अटल जी ने कहा और कैबिनेट सैक्रेटरी ने यह कहा कि मैंने प्रधानमंत्री जी को बार-बार कहा कि चीनी की कमी होगी, ऐसे तीन बयान हैं। दूसरी तरफ वह रिपोर्ट है जिसमें कहा गया कि कोआॅर्डीनेशन नहीं था, मंत्रिमंडल को मालूम नहीं था तथा प्रधानमंत्री जी को मालूम नहीं था। यह भी कहा गया कि जो कैबिनेट की कमेटी है उसमें इस पर चर्चा हो।

महोदय, हम लोगों को जो थोड़ी-बहुत संसदीय प्रणाली की जानकारी है कि अगर कैबिनेट की कोई कमेटी कोई रपट देती है या कोई विचार करती है तो इस मंत्रिमंडल में सारी कैबिनेट को न बताया जाता हो लेकिन प्रधानमंत्री जी को तो उसकी रिपोर्ट होती ही होगी? यह कहना कि प्रधानमंत्री जी को इसका ज्ञान नहीं था, यह बात कुछ समझ में नहीं आती है। इसीलिए जब यह बात शरद यादव जी ने कही तो वह संदेह ज्यादा गंभीर हो जाता है कि किसी व्यक्ति को, जो इसकी जड़ में है, जो सारी परिस्थिति पर पर्दा डालना चाहता है। उसको इस रिपोर्ट में बचाने की कोशिश की गई। हमारे खुराक मंत्री, सिविल सप्लाई मिनिस्टर है, इन तीनों का बयान है, जो ज्ञान प्रकाश कमेटी की राय है, उससे कुछ भिन्न मालूम पड़ता है। इसलिए आपने सही सवाल उठाया है। उनकी हम आलोचना नहीं करते लेकिन कहीं-कहीं उनके मन में कोई गड़बड़ी है जिसकी वजह से वह सही बात तक नहीं पहुँचते।

महोदय, मै ंआपसे निवेदन करना चाहँूगा कि उस रिपोर्ट के आधार पर इसी सदन में एक मंत्री ने बयान दिया है या प्रश्न का उत्तर दिया है। उस इसलिए उस रिपोर्ट को सदन से छिपाने का क्या औचित्य है। अगर उस रिपोर्ट को छिपाएंगे तो वह कब तक छिपेगी, आज नहीं तो कल कोई मेम्बर लाकर इसी सदन के सामने उस रिपोर्ट को रखना चाहेगा तो सदन कैसे रोक सकता है या उसको कोई ले करके प्रेस में जा करके आॅथेंटिकेट करके, प्रेस कांफ्रेन्स करेगा तो क्या होगा।

मैं अपने मंत्री महोदय, अपने परम मित्र विद्याचरण शुक्ल जी से कहूँगा कि बहुत हो चुका, कितने दिनों तक अपनी दुर्दशा कराओगे और संसदीय प्रणाली की दुर्दशा कराओगे। उस समिति की रिपोर्ट को अगर आप रख देंगे तो कम से कम बहुत से लोगों को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन हाँ, अगर कहीं ऐसा है कि सबको साथ ही इस्तीफा देने का डर हो तो जरूर आप छिपा सकते हैं। एक ही कारण उस रिपोर्ट को इस सदन में नहीं रखने का होगा कि कहीं इशारा उस तरफ न हो जिस तरफ से सारे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ सकता है और मैं जब यह कहता हूँ तो बहुत जिम्मेदारी के साथ यह बात कह रहा हूँ कि प्राइसिस कमेटी की रिपोर्ट के बाद अगर प्रधानमंत्री का सचिवालय कहे और प्रधानमंत्री जी कहें कि उनको ज्ञान नहीं था तो यह बात न दुनिया में कोई मानेगा, न इस देश में कोई मानेगा।

इसलिए महोदय, मामला ज्यादा गंभीर है। इसे गंभीरता को लेते हुए हम उसके अनुसार कार्यवाही करें नहीं तो समिति की रिपोर्ट भी आएगी, पर्दाफाश भी होगा। आप लोगों के मुंह पर और कालिख लगेगी, आपके मुंह पर कालिख लगे, इसकी कोई चिन्ता नहीं है लेकिन संसदीय प्रणाली के ऊपर जो यह गहरा आघात लगने वाला है, अध्यक्ष महोदय, अगर आप इसमें कुछ हमारी मदद कर सकें तो इस आघात को लगने से बचाइए, यह मामला अब छिप नहीं सकता। जैसे इन्द्रजीत जी ने कहा है कि मामले तो अब सामने आने वाले हैं, जितनी देर करेंगे उतनी ही ज्यादा छिछालेदार होगी।

अध्यक्ष महोदय, कृपया नियम 370 को देखें। उसके अनुसारः-

‘‘यदि कोई मंत्री किसी प्रश्न के उत्तर में या वाद-विवाद के दौरान किसी ऐसे परामर्श या राय को प्रकट करे जो उसे सरकार के किसी अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दी गई हो, तो साधारणतया उस राय या परामर्श वाले संगत दस्तावेज या दस्तावेज के भाग या उसके संक्षेप को वह पटल पर रखेगा।’’

यह है नियम 370 जो कि बिल्कुल स्पष्ट है। श्री भुवनेश चतुर्वेदी द्वारा दिया गया उत्तर, श्री ज्ञान प्रकाश द्वारा दी गई रिपोर्ट-जो ज्ञान प्रकाश समिति प्रतिवेदन के नाम से जाना जाता है, पर आधारित थी। नियम के अन्तर्गत मंत्री महोदय को प्रतिवेदन साधारणतया सभा-पटल पर रखना होता है। यदि कोई असाधारण स्थिति हो, तो केवल अध्यक्ष महोदय ही यह कह सकते हैं कि स्थिति असाधारण है जिसके अन्तर्गत मंत्री महोदय रिपोर्ट का रहस्योद्घाटन नहीं कर सकते।

इसलिए अध्यक्ष महोदय निर्णय आपको करना है। मैं नियमों को कभी नहीं पढ़ता। परन्तु मुझे पिछला थोड़ा-बहुत याद है। मैंने सोचा कि कुछ इसी प्रकार का नियम है। अब सामान्यतः मंत्री महोदय को रिपोर्ट सभा को देनी होती है। यदि कोई असाधारण स्थिति हो तो यह पीठासीन अधिकारी, अर्थात् यह कहना आप पर निर्भर करता है कि उससे देश की सुरक्षा या अन्य कोई गंभीर मामला जुड़ा है। परन्तु भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को बचाना कोई तो असाधारण स्थिति नहीं है जिसके अन्तर्गत सरकार इस प्रतिवेदन को सभा में प्रस्तुत करने से इन्कार करे।

अध्यक्ष महोदय, मैंने यह नहीं कहा कि आप मंत्री महोदय को बाध्य करें। स्थिति चाहे सामान्य हो या असामान्य, निर्णय आपको लेना है? सरकार को इस नियम का अनुपालन करने के लिए बाध्य कर सकता है। यदि वे इसका अनुपालन नहीं कर रहे तो वह ऐसी कौन सी असाधारण स्थिति है, जिसके कारण वे इस नियम का पालन नहीं कर रहे यह बताना होगा।

महोदय, मैं आपके माध्यम से पूछ रहा हूँ। मैं सीधे उनसे नहीं पूछ सकता। इसीलिए मैं आपको कह रहा हूँ। इसका कारण यह है कि मैं अपनी सीमाओं को बहुत भलीभांति जानता हूँ। मैं उनसे नहीं पूछ सकता। यदि मेरे पास उन्हें पूछने का अधिकार होता, तो मैंने अभी तक उन्हें बर्खास्त कर दिया होता। यह मेरा प्राधिकार नहीं है। मैं आपके माध्यम से कह रहा हूँ कि यह नियम है।

मैं इसको मजाक में नहीं कह रहा हूँ। यदि कोई नियम है और सरकार द्वारा उसका पालन किया जाना है तो यह उत्तरदायित्व अध्यक्ष का है। आप यह नहीं कह सकते कि ‘‘आपको मंत्री महोदय से पूछना चाहिए।’’


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।