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सदन में नहीं रहा सरकार का प्रतिनिधि, विदेशमंत्री माँगी सभा से माफी

सदन में 16 दिसम्बर, 1996 को किसी मंत्री के नहीं होने पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, इस मामले को इतना सरल नहीं समझना चाहिए। मेरे विचार में, मेरे पिछले 30 अथवा 34 वर्ष के संसदीय जीवन में, यह पहला अवसर है कि मुझे यह अनुभव हुआ है कि जब सदन में कोई मंत्री ही उपस्थित नहीं है, अपितु सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनकी ओर से उत्तर देने के लिए भी तैयार नहीं है। यह ऐसी बात है जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है।

अध्यक्ष महोदय, संसदीय व्यवहार के सभी मानकों के विरुद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस सभा के प्रति अपने कत्र्तव्य का निर्वहन करने में लापरवाही बरत रही है। यह एक बहुत गम्भीर विषय है। आप इस मामले को गम्भीरता से लें और सरकार की इस चूक के लिए भत्र्सना की जाए। यह कम से कम है जिसकी उम्मीद की जा सकती है और जब तक मंत्री मौजूद नहीं होते हैं, ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप प्रश्न को तब तक स्थगित कर दें जब तक कि सरकार के बचाव के लिए आप अपने प्राधिकार का प्रयोग न करें। अन्यथा कोई छूट नहीं दी जा सकती है।

इसे लेकर लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि मेरे विचार में, सभा ने अपनी बात बहुत स्पष्ट तौर पर कह दी है। मैं भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर से भी सहमत हूँ। इस सभा में संसद सदस्य के रूप में, यह मेरा पांचवाँ कार्यकाल है, मैंने ऐसी स्थिति नहीं देखी है जब कोई मंत्री अनुपस्थित हुआ हो। सामान्यतः ऐसा नहीं होता है। मेरे विचार में, मंत्री यदि कहीं और व्यस्त हैं तो उन्हें या तो सभापित को सूचित करना चाहिए था अथवा किसी और मंत्री को अपना काम सौंपना चाहिए था। मेरे विचार में सरकार को सभा के विचारों को गम्भीरता से लेना चाहिए। जवाब में विदेशमंत्री श्री आई0के0 गुजराल ने कहा, अध्यक्ष महोदय, मैं सचमुच आपसे और माननीय सभा से क्षमा मांगता हूँ। मैं विजय दिवस परेड में फंस गया था। अतः मुझे आशा है कि मेरे माननीय साथी इस बात को समझेंगे।

श्री चन्द्रशेखर ने सवाल पूछा कि माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि विजय दिवस की परेड इतनी महत्वपूर्ण थी तो सभा को दोपहर 12 बजे तक स्थगित क्यों नहीं किया गया? सदस्यों को परेड में उपस्थित होने के लिए क्यों नहीं कहा गया था? वे भी मन्त्रियों अथवा विपक्ष के नेता की तरह समान रूप से देशभक्त हैं। इसीलिए वह समारोह इतना महत्वपूर्ण था तो कम से कम सदस्यों को यह बताया जाना चाहिए था कि प्रत्येक मंत्री उस समारोह में भाग ले रहा है। वैसे चाहे जो भी हो, देश में ऐसा कोई समारोह नहीं है जो इस सभा की कार्यवाही से अधिक महत्वपूर्ण हो क्योंकि यह सर्वोच्च संस्था है। अतः मैं समझता हूँ कि सरकार का यह बहाना नहीं चल सकता है। सभा और सभापति को सरकार की भत्र्सना करनी चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।