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संसदीय परम्परा के अनुसार प्रधानमंत्री को रहना चाहिए सदन में मौजूद

लोकसभा में 30 दिसम्बर 1993 को विशेष सत्र में प्रधानमंत्री के न होने पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, अगर नई संसदीय परम्परा अभी से लागू न हुई हो तो संसदीय परम्परा के अनुसार प्रधानमंत्री जी को यहाँ उपस्थित रहना चाहिए। मेरे लिए उनका रहना या नहीं रहना कोई प्रभाव नहीं डालता। वे यहाँ रहें या नहीं रहें, कोई अंतर नहीं आने वाला है। यह मैं जानता हूँ, लेकिन अगर संसदीय परम्परा थोड़ी भी अवशिष्ट है तो नेता विरोधी दल की सलाह केा उन्हें मानना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, आपकी कृपा होगी अगर आप प्रधानमंत्री को सद्बुद्धि दें कि वे सदन में मौजूद रहें।

अध्यक्ष महोदय, जब तक वित्तमंत्री का त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया गया है, मैं ऐसा मानता हूँ कि वे वित्तमंत्री हैं। इसलिए उनको यहाँ बोलने का अधिकार है। वे राज्यसभा के सदस्य ही नहीं है, बल्कि मंत्रिमंडल के भी एक सदस्य हैं। जहाँ तक इस बहस का सवाल है, बहुत से विभागों की बात कही गई है। विभागों का ही सवाल नहीं है, नीतियों का सवाल है। यह अनावश्यक रूप से कल से यहाँ चर्चा हो रही है, जिसमें मनमोहन सिंह के ऊपर दोषारोपण किया जा रहा है। बेचारे मनमोहन सिंह ने कुछ किया ही नहीं है।

मैं हँसी में नहीं कहता हूँ। ये जो नीतियां बनी हैं, केवल भारत के लिए नहीं बनी हैं, बल्कि सारी दुनिया के लिए बनी हैं और लागू कर दी गई हैं, इस देश में। वित्तमंत्री जी ने इस देश में लागू की हैं और प्रधानमंत्री ने उनको संरक्षण दिया है। उनको राजनैतिक संरक्षण देने का काम प्रधानमंत्री जी ने किया है। वित्तमंत्री जी ने वही किया है जो दुनिया के अनेक अविकसित देश कर रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर दबाव है। उनकी मजबूरियां हैं, उनकी परेशानियां हैं। इसलिए उचित यही होता कि वित्तमंत्री जी अपनी बात कहें और प्रधानमंत्री भी अपने मुखारविन्द से कुछ दो शब्द उच्चारण करें।

मैंने शुरू में कहा था, लेकिन लोगों ने गुस्सा किया था। कभी-कभी भूलकर के प्रधानमंत्री जी अगर बोलें तो उनके पद की भी प्रतिष्ठा रहेगी और भारत की गरिमा, जो डूबती जा रही है, थोड़ा बचाने में ज्यादा सहयोग मिल सकेगा। इसलिए अध्यक्ष महोदय आपने जब कहा कि वे आने वाले हैं,तो हमें आशा हुई।

आप रूल की किताब मत दिखाइए। नियमों के अनुसार आप जो कहेंगे वह अंतिम बात है और मैं ऐसा मानता हूँ कि आपकी बात शिरोधार्य होनी चाहिए। आप कहेंगे कि प्रधानमंत्री नहीं आना चाहेंगे, नहीं आएंगे, तो हम वही मान लेंगे, क्योंकि परिवर्तनशील जगत में यहाँ क्षण-क्षण विचार बदलते रहते हैं, लेकिन अध्यक्ष महोदय, आपके विचार इतनी जल्दी नहीं बदलने चाहिए। उधर के विचार बदल जाएं, मुझे कोई परेशानी नहीं है। आपको खबर दी गई कि प्रधानमंत्री जी आना चाहते हैं, लेकिन हमारे मंत्री जी श्री शुक्ला ने कहा कि अब वे नहीं आ सकते। वे तो बदल जाएं, लेकिन आप उनसे कहें कि वे आपको बदलने के लिए मजबूर न करें।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।