अपने ही वक्तव्य पर प्रधानमंत्री का सात दिन तक चुप रहना निराश करने वाली स्थिति
उपाध्यक्ष जी, मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे बोलने के लिये अवसर दिया। मैंने कल सोचा था कि मैं इस विषय पर न बोलूँ लेकिन ममता जी के भाषण से मुझे आज बोलने की प्रेरणा मिली है। मैं समझता हूँ कि यदि मैं इस विषय पर नहीं बोला तो कहीं कोई गलत अर्थ न लगा लें। मैं सब से पहले ममता जी से यह कहना चाहूँगा कि जो सलाह वे आज प्रधानमंत्री जी को दे रही हैं, यह विवाद न उठा होता यदि यह सलाह उन्हांेने पहले दिन ही दिया होता तो प्रधानमंत्री जी ने अपना वक्तव्य बदल दिया होता।
उपाध्यक्ष जी, मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि मैंने भी अखबारों में लिखा और बयान दिया। प्रधानमंत्री जी को शिकायत है कि मैंने उनके बयान को सही नहीं समझा लेकिन वह बयान केवल एक अखबार में नहीं बल्कि देश के सारे अखबारों में निकला। आज हमें अचानक बताया गया है कि प्रधानमंत्री जी ने यह निर्णय किया है कि वे अब कोई वक्तव्य देंगे तो संसद के अंदर देंगे। तीन दिन तक संसद के बाहर वक्तव्य देने के बाद अचानक प्रधानमंत्री जी को संसद की मर्यादा का ध्यान कैसे आ गया, यह बात मेरी समझ में नहीं आयी। मैं गंभीरता से इस बात को कह रहा हूँ। किसी को प्रसन्न या दुःखी करने के लिये नहीं। मैंने बहुत प्रारम्भ में ही कहा था कि जो बाहर कहा था, यह नहीं कहें कि यह सही नहीं होगा, मैंने कहा था कि तीन मंत्रियों का इस्तीफा मांगने का अवसर आज कैसे आ गया, यह बात मेरी समझ में नहीं आती है।
उपाध्यक्ष महोदय, मुझे आश्चर्य इस बात पर हुआ कि जब अध्यक्ष जी ने कहा कि यह जो प्रस्ताव आना है, वह सब लोगों की सहमति से बना है, खासकर दो पार्टियों के बीच में सहमति हुई होगी जो प्रमुख विरोधी दल और जो सरकारी दल हैं। उसमें प्रधानमंत्री जी के वक्तव्य के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई, केवल मंत्रियों के इस्तीफे के बारे में चर्चा की गई। जब यहाँ यह जोड़ा गया और कहा गया कि हरिन जी से इस्तीफा क्यों लिया गया और इन मंत्रियों का इस्तीफा क्यों नहीं मांगा जा रहा है, तब इस शंका को बल मिला जो चारों ओर से प्रकट की जा रही है। मैंने हरिन जी का आज वक्तव्य देखा। उन्होंने कहा कि उन्होंने स्वेच्छा से वक्तव्य दिया है। इसलिये कभी-कभी पार्टी को बचाने के लिए शायद ऐसा करना पड़ता हो। लेकिन कभी-कभी सच्चाई भी कहनी चाहिये। मैंने हरिन जी के पूरे केस को देखा है। उसमें कोई कारण नहीं था जिसे लेकर उन्हें इतनी आन्तरिक वेदना हुई कि उन्होंने त्याग पत्र दे दिया। उनसे त्यागपत्र लिया गया है, उन्होंने त्यागपत्र नहीं दिया। उपाध्यक्ष जी, मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जिस दिन उनसे त्यागपत्र लिया गया, उसी दिन मैंने अपने मित्रों से कहा था कि और कुछ लोगों से त्यागपत्र मांगा जायेगा।
उपाध्यक्ष जी, ममता जी एन.डी.ए. की सदस्या हैं और केवल उनकी एकता से ही एन.डी.ए. में एकता नहीं होगी, बी.जे.पी. जो प्रमुख दल है, उसमें भी एकता होनी चाहिये। जब अपने अंदर विभेद हो तो एकता नहीं हो सकती और सारे देश को एकता का संदेश दिया जाये, यह बात कुछ सही दिखाई नहीं पड़ती। इससे सारे देश को क्या संदेश गया? इससे यह संदेश गया कि प्रधानमंत्री जी ने अपनी छवि बदल दी है लेकिन क्यों बदली, किस दबाव में बदली? श्री जयपाल जी ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, मैं वह भाषा इस्तेमाल नहीं कर सकता क्योंकि सही मायने में प्रधानमंत्री जी के लिये मेरे मन में आदर है। मैं उनके विचारों से असहमत हूँ लेकिन मैं ऐसा समझता था कि प्रधानमंत्री जी राष्ट्र के भविष्य के बारे में, देश की एकता के बारे में और लोगों की भावनाओं के बारे में समझते हैं कि राष्ट्र की भावनायें एक वर्ग विशेष की भावनाओं से नहीं जुड़ी हुई हैं।
राष्ट्र की भावना समस्त नागरिकों से जुड़ी हुई हैं और यह बात हर कोई स्वीकार करेगा, जिसे जरा भी समझ होगी कि उन्होंने जो वक्तव्य दिया है उससे वर्ग विशेष की भावनाओं को धक्का पहुँचा है और उसके परिणाम भी निकले हैं। सारे देश में तनाव का एक माहौल पैदा हो गया। सारे अखबारों ने सम्पादकीय लिखे और उत्तर प्रदेश में जगह-जगह झगड़े शुरू हो गये। उस समय भी प्रधानमंत्री जी ने यह जरूरी नहीं समझा कि उस वक्तव्य को बदल दें, जो उन्होंने दो-तीन दिन पहले दिया था। ममता जी इस बात में बहुत कुशल हैं। वह सरकार की एकता भी चाहती हैं, अपने विचार भी रखना चाहती हैं और सफलतापूर्वक रखती हैं, संकल्प और निष्ठा के साथ रखती हैं। लेकिन सरकार को चलाने का यह रास्ता नहीं है। सरकार चलाने में कभी-कभी गठबंधन सरकारें चलानी पड़ती हैं, उसमें जो एक कार्यक्रम, एक नीति बनती है उसका पालन किया जाता है। उसमें कोई मतभेद हो तो आपस में बैठकर सुलह-समझौता कर लिया जाता है। लेकिन यहाँ आज से नहीं, जब से यह सरकार बनी है, नित्य-प्रति यही देखने को मिलता है। जो लोग व्यक्तिगत कारणों से नाराज हैं, ममता जी की बात छोड़ दीजिए। कल जयपाल रेड्डी जी उमा भारती पर बहुत नाराज हो रहे थे, लेकिन मंदिर में जाना भी उतना ही अच्छा काम है जितना मंत्री पद पर रहकर देश की सेवा करना अच्छा काम है, मैं इस बात को मानता हूँ।
उपाध्यक्ष महोदय, लेकिन एक बड़ी अजीब बात है कि त्यागपत्र किसी और कारण से दिया जाए, समस्या को उठाया जाए और प्रधानमंत्री उस बात को स्वीकार कर लें। अखबारों में दो-चार दिन चर्चा हो, चाहे जो भी कहिये, प्रधानमंत्री कोई भी हो, कितना भी अच्छा व्यक्तित्व हो, इस तरह के उलट-फेर से प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को नीचे गिराया जाता है और अगर किसी भी प्रधानमंत्री जी के पद की गरिमा को नीचे गिराया जाता है तो यह देश की कोई सेवा नहीं है, चाहे जो भी वैसा करता हो और अगर कोई प्रधानमंत्री अपने पद को बचाने के लिए गरिमा के साथ समझौता करता है तो वह प्रधानमंत्री के पद पर रहने लायक नहीं है। मैं इसीलिए समझता हूँ कि कल जो भाषण का तारतम्य था, मैं उससे भी सहमत नहीं हूँ। इसे लेकर प्रधानमंत्री जी को खुले दिल से यह स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने एक गलती की और उस गलती का परिमार्जन करने के लिए उनके वक्तव्य से लोगों को संतोष हो जाए तो अच्छा है।
उपाध्यक्ष महोदय, कोई इस सरकार को गिराना नहीं चाहता है। खास तौर से कांग्रेस पार्टी इसे गिराना नहीं चाहती है। मैं भी गिराना नहीं चाहता हूँ। कांग्रेस के दोस्त इससे नाराज न हों। आज कोई नहीं चाहता कि हर छः महीने या साल में चुनाव हों। आप सरकार चलाइये, लेकिन हर बात में कोई न कोई सुलह-समझौता, कोई न कोई राह निकालने की बात, फिर कभी-कभी कठोर निर्णय भी लेने पड़ते हैं। लेकिन वे कठोर निर्णय लेने की क्षमता इस सरकार में नहीं है।
यदि मैं यह कहूँ तो प्रमोद महाजन जी बुरा मत मानियेगा, वह वक्तव्य अचानक नहीं हुआ। मैं भी अटल जी को पिछले 35-36 वर्षों से जानता हूँ। मैंने उनके साथ एक दिन नहीं, महीनों संसदीय कमेटियों में देश का भ्रमण किया है। उनके विचारों को, उनके व्यक्तित्व को मैंने परखा है। किसी न किसी दबाव में उन्होंने वक्तव्य दिया है। जब कोई प्रधानमंत्री दबाव में वक्तव्य देता है तो वह प्रधानमंत्री अपने पद की गरिमा का निर्वाह नहीं कर सकता। यह बात म ंैबड े़दःुख क ेसाथ कह रहा ह ँूआरै मझु ेइस बात का ेकहन ेम ंेकष्ट हा ेरहा ह।ै
मैं आज फिर कहूँगा कि चाहे जितनी लीपापोती की जाए, कितना भी लोगों को समझाने की कोशिश की जाए, लेकिन बड़ा भारी नुकसान हुआ है। मैं इनके हिडन एजेण्डा की बात नहीं जानता। कोई बात छिपी हुई नहीं है विनय कटियार जी से बात कीजिए, उनके मन में स्पष्ट बात है कि वह कैसा भारत बनाना चाहते हैं। उमा भारती जी से बात कीजिए वह ज्यादा ढुलमुल हैं क्योंकि कभी उन पर जाॅर्ज फर्नान्डीज का असर है, कभी उनके ऊपर विनय कटियार जी का असर है।
लेकिन इनमें से किसका असर ज्यादा है, यह मुझे पता नहीं है। एक जमाने में वह जाॅर्ज फर्नान्डीज जी की बड़ी प्रशंसक रही हैं, हो सकता है कभी उनका असर पड़ जाता हो और मंदिर चली जाती हों तो विनय कटियार जी का असर पड़ जाता हो। मंत्रिमंडल जाती है तो वह दोनों काम ठीक नीयत से करती हैं, बुरी नीयत से नहीं करती हैं।
उपाध्यक्ष महोदय, इसलिए मैं आपसे निवेदन करूँगा कि मामला बड़ा गंभीर है और देश की स्थिति बहुत खराब है। मैं जो कहना चाहता हूँ, कहने में अपने को असमर्थ पाता हूँ। लेकिन जिस तरह से सरकार चल रही है, यह सरकार चल सकती है, संसद चल सकती है, लेकिन अगर यही हालत इस देश की बनी रही तो यह देश चलने वाला नहीं है।
आज हर सवाल पर, चाहे कोई भी सवाल हो, आर्थिक सवाल हो, देश की सुरक्षा का सवाल हो, देश में समता बनाए रखने का सवाल हो, देश के अल्पमत के लोगों के मन में विश्वास पैदा करने का सवाल हो, हर सवाल पर यह सरकार असफल रही है और हर सवाल का जवाब न देकर उसे टालना इस सरकार की भावना बन गई है।
मैं आपसे निवेदन करूँगा कि एक नेशनल सिक्यूरिटी काउंसिल बनी हुई है। नेशनल सिक्यूरिटी काउंसिल के एक उच्चाधिकारी हैं। उनके बारे में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के एक सदस्य रोज इश्तहार दे रहे हैं। हमारे मित्र रक्षा मंत्री जी बैठे हैं, प्रधानमंत्री जी बैठे हैं और गृहमंत्री जी बैठे हए हैं किसी ने एक शब्द नहीं कहा आज तक उसके विरुद्ध। क्या यह देश को चलाने का रास्ता है? देश की सुरक्षा के सवाल का जो व्यक्ति जिम्मेदार है, उसके बारे में इस तरह का प्रचार रोज-रोज देश में टी.वी. पर हो और उसके बावजूद भी एक वक्तव्य नहीं दिया जाता है। देश की रक्षा के बारे में जो विशेषज्ञ हैं, वे लोग खुले बयानों में उसकी आलोचना करते हैं। मनुष्यों से ममता हो सकती है, संवेदना हो सकती है, दोस्ती हो सकती है लेकिन दोस्ती मत निभाइए देश की कीमत पर। दोस्ती वहीं तक निभाइए जहाँ देश को उसकी बड़ी कीमत न चुकानी पड़े।
प्रमोद जी, इसलिए मैंने परसों कुछ कहा नहीं क्योंकि मेरे मन में भी उतना ही दुःख है जितना आपके मन में होगा। आपके ऊपर जिम्मेदारी है इसलिए ज्यादा जिम्मेदारी से बोल रहे हैं, मैं उससे कम जिम्मेदारी से नहीं बोलता हूँ। जो बातें परसों मैंने कही थी और जो अभी हमारे एक मित्र ने उठाई, वैसी बातें नहीं हैं जिनको शून्यकाल में सुनकर आप कहें कि हम इस पर देखेंगे। वे ऐसी बातें हैं जिनसे देश टूट सकता है, जिनसे देश में आपसी विघटन की प्रवृत्तियां बढ़ सकती हैं। उन प्रवृत्तियों के बारे में अगर सरकार को जानकारी नहीं है तो मैं नहीं जानता सरकार इस देश की रक्षा कहाँ तक कर सकती है और उसी कड़ी में मैं उस घटना को भी मानता हूँ। अगर अनजाने में प्रधानमंत्री ने वक्तव्य दिया, अगर वक्तव्य देने के बाद सात दिन वे चुप रहे तो यह साधारण घटना नहीं है। बड़े घने अंधकार की ओर यह घटना संकेत करती है। मैं इससे अधिक कुछ नहीं कहना चाहता। मैं इतना ही कहूँगा कि प्रधानमंत्री जी ने अपने आचरण से हमारे जैसे लोगों को निराश किया है।
मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि मैंने पहले दिन से यह कहा है कि मेरी समझ में यह नहीं आता कि मंत्रियों का इस्तीफा क्यों मांगा जा रहा है? मैंने यह कहा कि अगर प्रधानमंत्री का वक्तव्य गलत छपा था तो आठ दिन तक प्रधानमंत्री जी ने उसका स्पष्टीकरण क्यों नहीं किया? अगर आप सदन के बाहर तीन वक्तव्य दे सकते थे तो चैथा वक्तव्य स्पष्टीकरण का सदन के बाहर दे सकते थे। आप चाहे जितना भाषण दें लेकिन मैं भी बहुत दिनों से आपके साथ हूँ और आपको जानता हूँ। यदि बाहर बयान दिया जाता तो यह सदन आठ दिन बंद नहीं रहता और हम आपकी बात को काॅन्ट्रडिक्ट नहीं करते। अध्यक्ष महोदय ने बड़ी कृपापूर्वक एक दिन नोटिस भेजा, पार्टियों के नेताओं को बुलाया और कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर जी को भी बुलाया है। नोटिस मेरे पास भी गया और आपके पास भी गया लेकिन आप नहीं आए। यदि उस दिन आते तो सदन चलता।