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संसद पर आतंकी हमले से पहुँचा है देश की मार्यादा को आघात, मंत्री चुप रहें

आंतरिक मामले में हो रहा है तीसरे देश का हस्तक्षेप, लोकसभा में 18 दिसम्बर, 2001 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, मैं इस बहस में हिसा लेने को तैयार नहीं था, अचानक आपने मेरा नाम ले लिया, इसलिए केवल दो-चार मिनट में अपनी बात रखना चाहूँगा। श्री सोमनाथ चटर्जी ने इस बहस को सही पर्सपैक्टिव में रखने का प्रयास किया है। इससे पहले श्री शिवराज पाटिल ने कुछ बिन्दु उठाए। इनमें से दो-चार बातों का जवाब सरकार को देना चाहिए। पहला सवाल यह है कि अगर इनको पहले से ज्ञात था और जैसा इनके भाषण से भी मालूम होता है कि इनको हमले के बारे में मालूम था, तो क्यों कार्यवाही नहीं की गई?

अध्यक्ष जी, वह कार्यवाही न करने के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं? मैं गृह मंत्री जी से बड़ी विनम्रता से कहूँगा कि यदि वे कम बोलें तो ज्यादा अच्छा होगा। मुझे यही निवेदन रक्षा मंत्री जी से भी करना है। गृह मंत्री जी ने घटना के तुरन्त बाद कहा कि संसद का कोई नुकसान नहीं हुआ। हमारे छः लोग मारे गए थे। सारे विश्व में संसद की मर्यादा को आघात पहुंचा था। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि हमें चारों ओर से सहानुभूति मिल रही है। क्या इस सहानुभूति के लिए हम अपने को बड़े मर्यादित समझते हैं? क्या यह हमारे लिए गौरव की बात है।

आज जो नौ लोग शहीद हो गए जिनके परिवार के लोग सारी जिन्दगी इन दुःख को अपनाएंगे और न मालूम उसे कैसे झेलेंगे? उनके लिए हमारे दिल में कोई जगह है या नहीं? यदि कोई एम.पी. नहीं मरा, कोई मंत्री नहीं मरा तो देश के लिए कोई खतरा नहीं हुआ, संसद के लिए कोई खतरा नहीं हुआ। याद रखिए, उन्होंने वीरता दिखाई, उन्होंने धीरज दिखाया, उन्होंने संकल्प दिखाया, उन्होंने त्याग की भावना दिखाई, लेकिन अखबारों के जरिए, जैसे सोमनाथ जी कहते हैं, हमें भी जो खबर मिली है, उससे ऐसा लगता है कि सब कुछ इसलिए बच गया क्योंकि उन्होंने जो तार लगाए हुए थे, वे कार के टकराव से टूट गए और वे एक्सप्लोजन नहीं करा पाए, नहीं तो छह की जगह साठ लोग चले जाते, संसद चली जाती, हममें से कितने सदस्य चले जाते। गृह मंत्री जी, आपको इस बात को ध्यान में रखना चाहिए था। इस सरकार को न मालूम क्या हा ेगया ह।ै एसेा लगता ह ैहर पद का ेअमर्यािदत कर दने ेका इन्हानंे ेसकंल्प कर लिया ह।ै

विरोधी पक्ष के हमारे एक मित्र, जिनकी मैं बड़ी इज्जत करता हूँ, उन्होंने कहा कि श्री बुश ने सारे देश को एक कर दिया। क्या आपको याद है कि जिस समय 11 सितम्बर की घटना हुई, श्री बुश ने देश के सारे लोगों को, चाहे छोटे थे या बड़े थे, सबको न केवल निमंत्रित किया, बल्कि जो लोग विदेश में थे, उनको स्पेशल हवाई जहाज भेजकर बुलाया था। मैं जानता हूँ कि आज सारी बुद्धि, सारा ज्ञान, सार राष्ट्र भक्ति, सारा देश प्रेम हमारे उधर की ओर बैठे हुए साथियों के अंदर है। लेकिन जो दूसरे लोग चुने गए हैं, उनको भी देश के बारे में कुछ मालूम है, उनको भी इस देश के बारे में थोड़ी पीड़ा है। क्या उनकी ओर आपको ध्यान देने का अवसर नहीं मिला? क्या पाँच-छः दिनों में आपको यह अवसर नहीं मिला? मान लीजिए, हमारे जैसे लोग जो किसी पार्टी के नेता नहीं हैं, यहाँ बड़ी पार्टियों के नेता हैं, उनसे भी बात करने का आपको अवसर नहीं मिला-क्यों नहीं मिला? किस कारण नहीं मिला, आपकी कैबिनेट की कौन सी कमेटी बैठती है, कौन से कैबिनेट के लोग बैठते हैं, वे रक्षा मंत्री, जिनको एक दिन आप अकारण इस्तीफा दिलवाते हैं और दूसरे दिन अकारण वापस ले लेते हैं, जिनके नाम पर संसद नहीं चलती, वे देश की सुरक्षा के बारे में बात कर सकते हैं, सोमनाथ चटर्जी उसके बारे में बात नहीं कर सकते, मुलायम सिंह जी बात नहीं कर सकते। अपने शायद येरननायडू को बुलाया होगा, वे राजग के सदस्य हैं।

मैं कभी-कभी भाषण देता हूँ, वह भी अध्यक्ष महोदय ने कहा तो बोल रहा हूँ, लेकिन याद रखिए, इस प्रशस्ति गान से आप लोग कोई इतिहास नहीं बना रहे हैं। इस सरकार की जो कमजोरी है, अनिर्णय की, उसे आप और कमजोर बना रहे हैं, इनके अनिर्णय को मत बढ़ाइये। चापलूसों में और समर्थकों में थोड़ा ही अन्तर होता है, आप समर्थक होने की कोशिश कीजिए। यह स्थिति ऐसी नहीं है। आज मैं बड़े विनम्र शब्दों में कह रहा हूँ कि स्थिति भयंकर है। लड़ाई की बात वे लोग करते हैं, जिन्होंने कभी लड़ाई के बारे में सोचा नहीं। इसी संसद में मैंने अकेले कहा था कि प्रशंसा के शब्द मत कहो। आज अणुबम का देश होने के कारण अणुशक्ति का आपने बड़ा घोष किया था। आज हम और पाकिस्तान दोनों बराबर हैं। हम पहले उनका नाश कर देंगे या वे हमारा पहले नाश कर देंगे, पता नहीं। वीरता कहने में अच्छी लगती है, लेकिन लड़ाई भोगने में बड़ी बुरी होती है। लड़ाई की बातें बन्द कर देनी चाहिए।

विश्व जनमत की बातें बड़े जोर से हमारे विदेश मंत्री करते थे, विश्व जनमत की बातें हमारे लोग करते थे, वह विश्व जनमत कहाँ गया? आज अमेरिका के मंत्री के बयान से आपके सारे हौसले पस्त हो गये। पता नहीं, वह लड़ाई आप कर पाएंगे या नहीं, लड़ाई की बातें आज चलेंगी या नहीं। अमेरिका का एक बड़ा आदमी कहता है कि आज पाकिस्तान आपसे सहयोग करने के लिए तैयार है, आप अपनी सारी सूचना उसके पास दीजिए। मैं नहीं जानता, गृह मंत्री वह सूचना देने वाले हैं या नहीं।

हम तीसरे देश के हस्तक्षेप को कभी स्वीकार करने वाले नहीं थे, लेकिन आज खुलेआम हस्तक्षेप हो रहा है और सरकार उस पर मौन है, चुप है। क्या यह देश की मर्यादा के अनुरूप है, क्या अमेरिका के अखबारों में इस संसद के ऊपर हुए आक्रमण के बारे में कोई चर्चा हुई है? अगर चर्चा हुई है तो कितनी हुई है। जो पीड़ा, जो वेदना और जो सहयोग का उत्साह आपने दिखाया था, क्या उसका शतांश भी अमेरिका की ओर से दिखाया जा रहा है।

मुझे उनसे कोई लडा़ई नही,ं लेकिन सब लोग अपने देश के लिए जीते और मरते हैं, उनको आज हमारे पड़ोसी की मदद चाहिए, जिसको आप अपना दुश्मन कह रहे हैं, क्योंकि उनकी लड़ाई उनके किनारे हो रही है, उनके सहयोग से वे विजय प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। हम आगे-आगे बढ़कर उनको सहयोग की बातें करके अपने को छोटा दिखाने के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं। उनके सामने अपने को छोटा दिखाना, विपक्ष के सामने अपने को बहादुर बताना, देश की जनता को भ्रम में रखना यही सरकार का रुख है। कारगिल की लड़ाई से लेकर आज तक की घटनाएं यही बताती हैं।

अभी हमारे मित्र ने कहा कि भारत शान्ति का देश है और इसीलिए आप लाहौर गये थे। पाँच हजार वर्षों के अपने स्वर्णिम इतिहास में जब दुनिया में भारत सबसे समृद्धशाली और शक्तिशाली देश था, हम कभी अपनी फौजों को लेकर विदेश में नहीं गये। दोस्तों, मैं आपसे निवेदन करना चाहूँगा, सभ्यता और संस्कृति की बात करने वालों, लड़ाई की बात इतनी आसानी से मत करो। लड़ाई खतरनाक खेल होता है। उस खतरनाक खेल को खेलकर आप केवल इस देश का नुकसान करेंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।