Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

प्रधानमंत्री अटल बिहारी, सामेनाथ चटजीर्, इन्दज्रीत गुप्त और शरद यादव से पहले करें बात

सदन नहीं चलने पर 19 सितम्बर, 1995 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, नौ दिनों से संसद नहीं चल रहा है। आज प्रसन्नता इस बात की है कि आपके हस्तक्षेप से कम से कम हम यहाँ पर बात कर रहे हैं। दुःख इस बात का है कि आपके कक्ष में जो बातें होती हैं, उसकी चर्चा यहाँ पर होती है। आपने एक बार मुझसे उलाहना दिया था, यह गुस्सा दिखाया था कि मैं आपके कक्ष में नहीं जाता। मेरी यही विवशता थी। वहाँ जो बातें होती हैं, उसको यहाँ कहने में मुझे बड़ा संकोच होता है। वह बातें मुझे एक अजीब दुविधा की स्थिति में डाल देती हैं।

अध्यक्ष जी, एक पक्ष से एक बात कही जाती है, दूसरे पक्ष से दूसरी बात कही जाती है और मैं उसका दृष्टा बना रहता हूँ, चुपचाप सुन लेता हूँ, लेकिन यह उचित नहीं है। मैं दोनों बार इसलिए गया कि दो ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी बातों को मैं टाल नहीं सकता। पहली बार आपके कक्ष में गया, माननीय इन्द्रजीत गुप्त जी ने मुझे विवश किया और दूसरी बार अटल जी ने मुझे विवश किया, इस कारण मैं वहाँ पर गया था और मैंने सुझाव रखा।

मैं माननीय विद्याचरण शुक्ल जी से कहूँगा, निवेदन करूंगा कि एक उत्तरदायित्वपूर्ण पद पर रहते हुए आपके कक्ष में जो बातें हों, उनकी चर्चा वह न करें तो ज्यादा अच्छा है और अगर चर्चा करें तो इस तरह से न करें कि हमारे जैसे लोग उन बातों पर दुविधा में पड़ जायें। केवल इतना ही मैं कहना चाहता हूँ। मैं आपसे निवेदन करूंगा कि कितनी ही यहाँ पर बहस हो, उस बहस का कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है, जिस स्थिति में हम पहुँच गये हैं। अटल जी ने, नेता विरोधी पक्ष ने एक बात कही, जिसके ऊपर सोमनाथ जी ने भी कहा, जिसके बारे में कुछ अन्य मित्रों ने भी चर्चा की। नौ दिन पार्लियामेन्ट न चले और सदन के नेता उस पर चुप रहें, यह स्थिति संसदीय जनतत्रं मे ंसोची नही ंजा सकती, क्योंिक प्रधानमत्रंी केवल कागं्रेस पार्टी के नेता नहीं हैं, वह सदन के नेता हैं। अगर किसी हालत में सदन नहीं चलता है तो हम लोग यहाँ पर किसलिए हैं और प्रधानमंत्री किसलिए सदन के नेता हैं? मैं बिना कुछ कहे हुए आपसे आग्रह करूंगा कि इसे मान-सम्मान का सवाल न बनाया जाय।

मुझे आश्चर्य होता है, जब कहा जाता है, आप प्रधानमंत्री से क्या बात करना चाहते हैं। मैं भी बहुत दिनों से इस सदन में हूँ, मैंने भी बहुत से प्रधानमन्त्रियों से बात की है। यह पहली बार मेरे सामने कहा गया कि पहले यह बता दीजिए कि आप प्रधानमंत्री से क्या बात करेंगे, तब प्रधानमंत्री जी आपसे मिलेंगे। यह स्थिति तो हमने कभी नहीं देखी है। अध्यक्ष महोदय, मुझे जीवन का यह पहली बार दुःखद अनुभव हुआ। आप नेताओं को फिर बुलाएंगे, मैं नहीं चाहता कि आपकी उच्च पद की गरिमा को हम लोग यहाँ पर बहस का विषय बनायें, इसलिए आपके द्वारा मैं सदन के नेता श्री पी.वी. नरसिंहराव से विनम्र निवेदन करता हूँ कि वह दूसरे नेताओं को बुलायें, इसके पहले कि आप नेताओं को बुलायें, उसके पहले प्रधानमंत्री जी श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री शरद यादव, श्री सोमनाथ चटर्जी, श्री इन्द्रजीत गुप्त, चार लोगों को निमन्त्रण देकर अपने घर पर, अपने कार्यालय में बुलाने का कष्ट करें। इससे उनके प्रधानमंत्री पद की गरिमा बढ़ेगी, घटेगी नहीं और उनकी बात के बाद ही कोई निर्णय निकल सकता है।

यदि मेरी प्रार्थना का कोई असर हो तो मैं सार्वजनिक रूप से यह निवेदन करना चाहता हूँ कि मेरी प्रार्थना आप प्रधानमंत्री तक पहुँचा दें। इस विषय पर अगर कोई निर्णय लेना है तो इन चार लोगों को बुलाकर प्रधानमंत्री बात करें। प्रधानमंत्री कोई हो, यह लोग भी कल प्रधानमंत्री हो सकते हैं और जो लोग प्रधानमंत्री नहीं हुए हैं, उन लोगों का भी प्रधानमंत्री से कभी-कभी ऊँचा स्थान होता है। हम भी थोड़े दिन प्रधानमंत्री हो गये तो हमको यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि हम सबसे बड़े आदमी पैदा हो गये थे। प्रधानमंत्री अगर बुलाएंगे तो उनका सम्मान बढ़ेगा और इस विषम परिस्थिति से हम निकल सकेंगे। मैं यह नहीं चाहता कि वह सब नेताओं को बुलायें, इन चार नेताओं को आपको कक्ष में बुलाने के बाद और नेताओं को बुलाकर प्रधानमंत्री जी और हमारे परम मित्र श्री विद्याचरण शुक्ल जी अगर बात करें तो कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

अध्यक्ष महोदय, जब मैंने आपसे कहा था, मीटिंग में नहीं कहा था, अलग से कहा था, हमारे कुछ संसद् सदस्य उच्चतम न्यायालय में गये हैं, क्यों गये, मेरी समझ में यह बात नहीं आती। मैं इतना ही कहूँगा और सरकारी पक्ष की ओर से भी यह सोचा जा रहा है कि चलो उच्चतम न्यायालय कोई निर्णय दे देगा, हमारे पक्ष में निर्णय हो जायेगा तो विपक्ष के मुँह पर कालिख लग जायेगी, हम जीत जायेंगे। जनतन्त्र में यह सबसे बड़ी कुत्सित प्रवृत्ति है और यह संसदीय प्रणाली के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जो काम संसद कर सकती है, उसे हम न करके सर्वोच्च न्यायालय ही सही, उसके पास अगर हम भेजते हैं, अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे बड़े विनम्र शब्दों में निवेदन करना चाहता हूँ कि अगर इस संसद की मर्यादा नहीं रहेगी तो इन न्यायालयों की मर्यादा भी नहीं रह सकती। जनतन्त्र के जितने दूसरे अवयव हैं वह सब समाप्त हो जायेंगे। अच्छा होता कि संसद के सदस्य उच्चतम न्यायालय में नहीं गये होते और अच्छा होगा कि हमारे सरकार के लोग उसके निर्णय पर अपनी ख्याति अर्जित करने की कोशिश न करें। कई बार सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिये हैं और जनता ने उस निर्णय के विपरीत निर्णय दिये हैं।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।