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समिति बनी, रिपोर्ट आ गई, फिर भी नहीं पता चला कहाँ गया पाँच हजार करोड़ रुपया

संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों पर लोकसभा में 27 जुलाई, 1994 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, मैं एक्शन टेकन रिपोर्ट के बारे में कुछ कहना नहीं चाहता था, लेकिन एक निवेदन आपसे करना चाहता हूँ। बार-बार यह कहा जाता है कि विरोधी पक्ष के लोग राजनैतिक भाषण कर रहे हैं। मैं समझता हूँ कि संसद राजनैतिक भाषण के लिए ही बुलाई जाती है। विरोधी पक्ष एक राय वाला है और सरकार पक्ष दूसरी राय वाला है लेकिन दोनों ओर से राजनीतिक बातें ही होती हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं देख रहा हूँ कि आज मंशा कुछ गैर राजनीतिक कार्यवाही करने की दिखाई पड़ रही है। उन मित्रों के जरिये जो बार-बार यह आरोप लगा रहे हैं कि राजनीति से विवश होकर वह कुछ सवाल उठा रहे हैं। यह एक समिति की रिपोर्ट का सवाल नहीं है। रिपोर्ट किस सिलसिले में है। पांच हजार करोड़ रुपया इस देश का कहाँ गया? आज तक इसका पता नहीं चला। इसी सदन में वित्तमंत्री जी ने कहा था कि 15 दिन के अंदर हम पता लगाएंगे और अपराधियों को दंड देंगे। अपराधी नहीं पकड़े गए और पांच हजार करोड़ रुपया कहाँ गया इसका पता नहीं लगा। समिति आपने बनाई, समिति ने रिपोर्ट दी। उस समिति की रिपोर्ट के बाद यदि यही कार्रवाई थी जिसको आज सदन के सामने रखा गया है तो मैं माननीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि अभी हाल के भाषण में उन्होंने आम सहमति की बात की। क्या यह संभव नहीं था कि विरोधी पक्ष के इन नेताओं को यह बता दिया जाता कि इतनी कार्यवाही हम कर सकते हैं और इससे आगे नहीं कर सकते।

अध्यक्ष महोदय, यह सारी संसद की मर्यादा का सवाल बन जाता है, जब सारे अखबारों की सुर्खियां इस बात से भरी हुई हैं जो यह बात दिखाती है कि किस तरह से लीपा-पोती हो रही है। हो रही है या नहीं? मैं उसमें नहीं जाऊँगा, लेकिन सारा जनमानस यह बन रहा है कि हम भ्रष्टाचार को और ऐसे कुकृत्यों को छिपाने की कोशिश करते हैं। यह वातावरण देश के लिए खतरनाक है।

मैं अपने मित्रों से जो सरकार पक्ष में हैं, निवेदन करना चाहूँगा कि 65 करोड़ के मामले को मैंने कभी नहीं उठाया। मैंने कहा इस मामले को दबाकर ही रखें। आज छह-सात वर्ष हो गए, हमारे सिर पर वह तलवार आज भी लटकी हुई है न केवल इस देश में, दुनिया के बाजारों में हमारे देश की और संसद की मर्यादा की खिल्ली उड़ाई जा रही है। पूछना चाहते हैं और हम एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। ऐसे तो पांच हजार करोड़ रुपये के बारे में संसद में केवल भ्रष्टाचार की बात होती रहेगी। फिर रोज यह बात होगी कि कौन निकाला जाए और कौन रखा जाए। किसी को रखिए, किसी को निकालिए, इससे तो देश नहीं बनने, बदलने वाला है।

मैं समझता हूँ कि सरकार की ओर से इसमें भूल हुई। अगर इस तरह की एक्शन टेकन रिपोर्ट देनी थी तो इस पर यह कहने के बजाय कि इस संसद में बहस कर लो, आपस में राय की जानी चाहिए और उस माहौल में जब प्रधानमंत्री जी आम सहमति चाहते हैं। मैं आपको सत्य बताऊँ, मैंने न इस रिपोर्ट को पढ़ा है न उसमें मेरी कोई दिलचस्पी है और न मुझे इससे कोई निराशा हुई है। मैं तो यही उम्मीद करता था कि ऐसा कुछ होगा लेकिन मैं समझता था कि समझदारी होगी तो यह करेंगे, तभी इस प्रपंच से इस संसद को बचाया जा सकता है।

अध्यक्ष महोदय, आज भी अगर इसको आप बचा सकें तो बचाइए अन्यथा आप याद रखिए आप बहुमत से जो निर्णय कर लें यह सवाल चुनावों तक ही नहीं जाएगा, चुनावों के बाद भी जाएगा। हमारे मित्र बूटा सिंह ने एक बड़ा लम्बा भाषण दिया। आप नहीं जानते हैं राजनीति एक बड़ी निर्दयी देवी है। यह निर्णय बहुत देर से करती है लेकिन बिना निर्णय किये रहती नहीं है। चुनाव में जीतने-हारने से निर्णय नहीं होते। बड़े-बड़े चुनाव जीतकर लोग इतिहास की नजरों में गिर जाते हैं। लोग इतिहास की नजरों में गिरे उससे हमें कोई चिन्ता नहीं। अध्यक्ष महोदय, अगर संसद, इसकी गरिमा, इसकी समितियों की रिपोर्ट इन पर की गई कार्यवाहियों के कारण गिरेगी तो इस देश के लिए न केवल एक कलंक होगा बल्कि देश के इतिहास को, देश के भविष्य को बरबाद करने का रास्ता हम अपने हाथों से खोल देंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।