Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

सरकार कर रही है देश का आत्मसम्मान बेचने की साजिश, होना चाहिए पर्दाफाश

लोकनिधि के दुरुपयोग के मामले पर 8 मई, 1992 को लोकसभा में चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, अभी इन्द्रजीत जी ने या किसी ने कहा कि जिम्मेदारी आपके ऊपर है। मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि देश के लोग किससे जानें कि देश में क्या हो रहा है। जब ये नीतियां बनाईं जा रही थीं, तब हम लोगों ने कहा था कि इसके घातक परिणाम होंगे, तब हमने कहा था कि विदेशी ताकतों के जरिए नीतियां चलाई जा रही हैं, तब हमने कहा था कि आप देश की परिस्थितियों के अनुसार देश को चला नहीं रहे हो। उसके दुष्परिणाम तीन महीने में आ रहे हैं। मैं अटल जी से कहता हूँ, लिबरलाइजेशन का आप जरूर समर्थन कीजिए, लेकिन उस समय जो खतरे बताए गए थे और वे खतरे तीन महीने में इस हद तक पहुँच गए हैं कि हजारों-करोड़ों रुपयों का घोटाला हो रहा है और सरकार कहती है कि उसकी तीन महीने में जांच करेगी।

मैं आपसे जानना चाहता हूँ, इसमें कोई अर्थ-शास्त्री होने की जरूरत नहीं है। किसी बैंक के घोटाले की जांच के लिए तीन महीने क्यों लगेंगे? बैंक के एकाउन्ट्स रोज लिखे जाते हैं और रोज उन एकाउन्ट्स के बारे में जानकारी हो सकती है। यों तो ये कहते हैं कि छह महीने या साल भर से घोटाला हो रहा था और अगर यह शेयर मार्केट तीन महीने में इसका उतार-चढ़ाव हुआ है, घोटाले तीन महीने में हुए हैं और तीन महीने के एकाउन्ट्स को देखने के लिए तीन महीने लगेंगे। मैं कोई इनकी मंशा पर शंका नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन अटल जी, अगर लिबरलाइजेशन का यह मतलब है, तो मुझे दुःख है। वित्तमंत्री जी या प्रधानमंत्री जी, भ्रष्टाचार के उतना खिलाफ नहींे हूँ, जितना कि जार्ज हैं, लेकिन देश को बेचने के मैं खिलाफ हूँ, क्योंकि भ्रष्टाचार में केवल 50, 60 या 100 करोड़ रुपया जाता है। देश जब बिक रहा हो, सब कुछ चला जाता है। इसलिए मैं यह आरोप जानबूझ कर पूरी जिम्मेदारी से लगा रहा हूँ, कि इस सरकार ने इस देश को बेचने की साजिश कर रखी है और आज उस साजिश का पर्दाफाश हो रहा है।

मैं पुनः कहता हूँ कि सरकार देश के हितों को दाँव पर लगाने का षड्यन्त्र रच रही है। अध्यक्ष जी, मैं हिन्दी में ही बोलता हूँ। हिन्दी जिनको, ‘समझ में नहीं आती है, उनको समझाना पड़ेगा, क्योंकि भारत की कोई,’ चीज उनकी समझ में नहीं आती है। अध्यक्ष जी, अगर यह नहीं है, तो ऐसे मामलों में सरकार चुप क्यों है। अगर मेरा आरोप गलत साबित हो, तो मैं माफी मांग लूंगा। हजारों-करोड़ों रुपए का देश में घोटाला हो रहा है, उससे उनको जरा भी पीड़ा नहीं होती है। वित्तमंत्री जी को यहाँ बतलाना चाहिए कि क्यों तीन महीने लगेंगे। सरकार में आप भी बहुत दिन रहे हैं। क्या सरकार को ऐसे मामलों में जानकारी करने के लिए तीन महीने का समय चाहिए? मैं कहता हूँ कि सी.बी.आई. या इकोनोमिक इंटैलिजेंस के लोग चैबीस घण्टे में सारे मामलों की रिपोर्ट दे दें। मैं आपसे कहता हूँ कि इन बाता ंेपर य ेक्या ंेचपु हा ेजात ेह,ंै क्या इसक ेपीछ ेर्काइे साजिश नही ंह?ै इन सारी बातों के पीछे कोई षड्यन्त्र नहीं है तो सरकार पूरे तथ्यों को सामने क्यों नहीं रखती और इन सबके लिए जिम्मेवार व्यक्ति को क्यों नहीं पकड़ती है?

आदरणीय अध्यक्ष महोदय, इसमें व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है। मैं शुरू से ही कहता आया हूँ- मैं अपने साथी श्री चिदम्बरम जी से सहमत हूँ जिनके प्रति मैं काफी आदर रखता हूँ- कि हम लोग विपरीत दिशा की ओर व्यासाभिमुख रहते हैं। वह यह सोचते हैं कि उन्होंने देश को आर्थिक बर्बादी से बचा लिया है। मैं यह सोचता हूँ कि उन्होंने देश को एक ऐसी परिस्थिति में ला खड़ा किया है, जहाँ कि सप्ताह में तीन बार हमें एक बाहरी देश से धमकियां मिलती रहती है,ं जो कि अपने को यह मानता है कि इस देश का भाग्य निर्धारित करना उनके हाथ में है। भारत के इतिहास में ऐसा पहले कभी भी नहीं हुआ और न ही विश्व के किसी भी राष्ट्र के इतिहास मे ंइस तरह की घटना हुई है। अतः देश के हितों को बेचने का यह अभिप्राय नहीं है कि आप संसद भवन के फर्नीचर आदि को बचे रहे हैं। देश को धमकियाँ दी जा रही हैं। जार्ज बुश की ओर से नहीं, और न ही मिस्टर बेकर की आरे से, बल्कि एक अवर-सचिव की ओर से और आप उसका उत्तर देने को तैयार नहीं है।

माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं अपने गुरु श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से यह अनुरोध करूंगा कि उन्हें भी यह समझना चाहिये कि वह महान देश अब कहाँ ह ैजिस पर उन्ह ंेइस बात का गर्व ह ैकि र्काइे भी इस दश्ेा का ेनही ंेबचे सकता।

जब देश बिकते हैं, तो फर्नीचर, परिसंपित्तयाँ अथवा कारखाने आदि को बेचने से नहीं बिकते, बल्कि देश का आत्म-सम्मान बेचा जाता है और मेरे इस साथी की पार्टी और उनकी सरकार ने बड़ी सहजता से यह कर दिखलाया है, जो कि विगत तीन-चार महीनों में आपने अकेले नहीं किया और न ही आपके दल के अन्य किसी सदस्य ने अकेले किया है। यही तो बात है। मैं आर्थिक नीति पर जो मतभेद हैं, उनको समझ सकता हूँ, मैं आपके उदारीकरण को भी समझ सकता हूँ, जो कि देश को एक ऐसी जगह ले जाकर छोड़ेगा जहाँ से कोई भी वापिस नहीं लौट सकता। लेकिन यह प्रश्न सरकारी बैंक द्वारा हजारों करोड़ रुपये की राशि का दुरुपयोग करने से जुड़ा है। इन अधिकारियों को क्यों बख्शा जाये? मुझे नियमों की जानकारी है कि भारतीय रिजर्व बैंक को इस मामले की जाँच करनी चाहिये। यहाँ से किसी के जाने पर ही सी.बी.आई. दल आयेगा।

इसका यह अभिप्राय हुआ कि तब तक हर चीज़ दबा दी जाएगी। मैं अपने साथी श्री चिदम्बरम से यह अनुरोध करूंगा कि उन्हें इस मामले में शीघ्रता बरतनी चाहिये। उन्हें सभी तकनीकियों में ही नहीं उलझे रहने चाहिये। तकनीकियां न तो किसी राष्ट्र का निर्माण करती हैं और न ही किसी राष्ट्र का विनाश करती हैं। आप इस देश की इच्छाशक्ति का दमन कर रहे हैं। चारों तरफ लोगों में भ्रम व्याप्त है यदि आप संसद में इन प्रश्नों के खुलकर उत्तर नहीं देते, तब तक दोषी अधिकारियों का पर्दा-फाश नहीं हो सकता। यदि आप यह कहते हैं कि ये अधिकारी इस सरकार के अंग नहीं हैं तो मैं यह कहूँगा कि सरकार दश्ेा का ेनही ंबचे रही बल्कि य ेअधिकारी ही दश्ेा का ेबचेन ेम ंेलग ेह।ंै

संसदीय लोकतंत्र की मेरी समझ के अनुसार यदि कोई अधिकारी ही देश का ेबचेन ेम ंेलग ेह ंैआरै मत्रंीगण चप्ुपी साध ेह,ंै ता ेम ंैअपनी बात का ेबिल्कलु सही मानगंूा कि सरकार ही दश्ेा का ेबचेन ेम ंेलगी ह।ै इसलिय ेमनंै ेयह कहा ह ैकि मरेी बात का अभिप्राय कोई व्यक्तिगत दोष-रोपण वाली बात नहीं है। मैं तो आपके प्रति अत्यन्त स्नेह और सम्मान रखता हूँ। लेकिन फिर भी मैं यह कहूँगा कि यदि आप ऐसा नहीं करते, तो आप लोग अपने कर्तव्य की अवहेलना ही करेंगे।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।