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हवाला मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी से केवल देश में नहीं, विश्व में जाएगा गलत संदेश

लोकसभा में 12 मार्च, 1996 को हवाला मामले से सम्बन्धित आरोपों पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके जरिये प्रधानमंत्री जी से एक ही बात जानना चाहँूगा कि अगर उनको एक वाक्य भी नहीं बोलना था तो आज आये क्यों? यदि वह सदन में आते हैं और उनसे निरन्तर एक प्रश्न पूछा जाता है तो उसका उत्तर देना इस संसद और देश की जनता के प्रति उनका कत्र्तव्य ही नहीं अपितु दायित्व भी बन जाता है। उनकी चुप्पी का न केवल देश में वरन् सम्पूर्ण विश्व में गलत संकेत जायेगा। संसदीय प्रजातन्त्र के इतिहास में यह एक अकेला उदाहरण होगा जब एक प्रधानमंत्री पर बार-बार आरोप लगाये जा रहे हैं और यहाँ पर बैठकर उनमें इतना शिष्टाचार और साहस नहीं है कि वह उठकर एक शब्द कहें।

अध्यक्ष महोदय, मैं यह पिछले पांच वर्षों से सुनता आ रहा हूँ। इन वर्षों में मैंने उसके बारे में एक भी शब्द नहीं कहा है। क्या आप चाहते हैं कि मैं यहाँ पूरी कहानी सुनाऊँ? मैंने यह शपथ ली है कि इस देश के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए मुझे जिन बातों के बारे में पता चला है, उनके बारे में मैं एक भी शब्द नहीं कहूँगा। ऐसा मत कीजिए। मैं दूसरों जैसा नहीं हूँ। मेरे कुछ कहने से आपको काफी असुविधा हो सकती है। अध्यक्ष महोदय, यदि मैं बोलना शुरू करूंगा तो काफी परेशानी होगी।

यदि इस सदन में किसी अधिकारी पर आरोप लगाया गया है और माननीय राज्यमंत्री आज उसका बचाव नहीं करते हैं तो अटलजी द्वारा उनके नाम का उल्लेख किए जाने पर उन्हें इतना भावुक नहीं होना चाहिए। आपने उस समय क्यों आपत्ति नहीं की जब आपकी पार्टी के सदस्य केंन्द्रीय जाँच ब्यूरो के एक अधिकारी विशेष पर भारतीय जनता पार्टी के एक नेता के साथ सम्बन्ध रखने का आरोप लगा रहे थे?. अध्यक्ष महोदय क्या यह उचित है कि सत्ता पक्ष केन्द्रीय जाँच ब्यूरो के अधिकारी पर आगेप लगाए और तत्कालीन मंत्री चुप्पी साधे रहे? उस दिन उन्होंने उस अधिकारी को बचाने की अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी। जब अटलजी आज उस अधिकारी के नाम का जिक्र कर रहे हैं तो वह बहुत भावुक हो रही हैं। वे इस आदर्श का निर्वाह कर रहे हैं।

अध्यक्ष जी, आप और प्रधानमंत्री जी मुझे क्षमा करेंगे, इसीलिए मैंने प्रारम्भ में कहा कि उनको नहीं आना चाहिए था। मेरा उनके प्रति कोई निरादर का भाव नही ंथा, जो जसवन्त सिहं जी कह रहे थे, इस सवाल का जवाब आप यहाँ पर न दें लेकिन जगह-जगह यह सवाल लोगों के मन में उठेगा और इससे मौलिक सवाल यह उठता है, अगर प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि सी.बी.आई. से पूछिये, तो नेता विरोधी दल सी.बी.आई. से कुछ पूछने के अधिकारी नहीं है, मैं कुछ पूछने का अधिकारी नहीं हूँ और इसीलिए सवाल उठता है कि संसद के प्रति सी.बी.आई. के बारे में कौन जवाब देगा। प्रधानमंत्री से मैं इनका उत्तर नहीं चाहता, लेकिन एक विषम परिस्थिति पैदा हुई है, एक बात तो मैं यह कहना चाहूँगा।

दूसरी बात मैं अटल जी से कहना चाहूँगा। अगर मैंने गलत समझा है तो वह मुझे क्षमा करेंगे। उन्होंने जो भाषण दिया, उससे ऐसा लगा कि जिन मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है या जिन पर आरोप लगा है, वह जरूर अपराधी हैं। उन्होंने कहा कि उनके बारे में जाँच की गई या नहीं, उनके चरित्र के बारे में मालूम था या नहीं, जो लोग ऐसे हैं, उन पर जब तक आरोप सिद्ध नहीं होता है, चाहे सरकार के पक्ष में हों, चाहे विरोध के पक्ष में हों, कम से कम उनके बारे में हम तो यही समझते हैं कि वह हमारे मित्र हैं, वह ईमानदार हैं, वह भले लोग हैं। प्रधानमंत्री जी कृपया आप कभी-कभी तो इतना कीजिए कि स्थिति स्पष्ट हो जाए। इसलिए यहाँ आकर के चुप रहना, यह ठीक नहीं था।

अध्यक्ष जी, श्री सोमनाथ चटर्जी ने जो सवाल उठाया, मेरी नजर में वही सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण था। इस संसद की मर्यादा, इस संसद का अधिकार और इस संसद का यह कर्तव्य जो जनता के प्रति है, उसका निर्वाह करने में हम पूरी तरह स्वतन्त्र हैं या नहीं, हमारी वह मर्यादा रही या नहीं, उच्चतम न्यायलय के आदेश के बाद यही बुनियादी सवाल है। अगर उस बुनियादी सवाल का जवाब हम नहीं दे पाते तो एक-दूसरे पर आरोप लगाकर और नैतिकता की बड़ी बातें करके हम न इस संसद की मर्यादा बढ़ायेंगे, न देश की मर्यादा बढ़ाएंगे।

मैं अपने मित्र इन्द्रजीत गुप्त की बहुत बातों से सहमत हूँ लेकिन जिस पर आरोप लगा दिया हो कि वह भ्रष्ट हो या, यह बात में स्वीकार करने को तैयार नहीं हूँ।

जिनके पास बहुत धन है, जिनके पास पैतृक सम्पति है, आश्चर्य है कि उन्होंने पैसा कैसे ले लिया। इसका मतलब यही है कि वे मानते है कि उन्होंने पैसा ले ही लिया। इसलिए रजिस्टर कौन लोग रखते है, कहाँ-कहाँ से रजिस्टरों में किसके नाम लिखे जाते हैं, अगर हम रजिस्टरों पर जाएंगे तो हम में से बहुत लोग मर्यादा की बातें नहीं कर पाएंगे। इसलिए मैं उस पहलू पर कुछ नहीं कहना चाहता। मुझे दुःख केवल इस बात का है कि मुझे प्रधानमंत्री जी के वक्तव्य पर आश्चर्य हुआ।

उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद मैं ऐसा समझता था कि प्रधानमंत्री जी उच्चतम न्यायालय से कहेंगे कि उनको इस तरह के निर्देश की क्या जरूरत पड़ गई। लेकिन आज उन्होंने जो वक्तव्य दिया, उससे ऐसा लगता है कि उनके सालिसिटर जनरल ने भी उस बात को स्वीकार किया और मैं नहीं जानता कि उनको इसकी क्या आवश्यकता पड़ी थी। जब तक कि सालिसिटर जनरल महोदय से उच्चतम न्यायालय ने यह नहीं कहा होगा कि आप इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं या करने का संदेह है, तब तक इस तरह का वक्तव्य देने की उनको जरूरत नहीं थी। अगर सालिसिटर जनरल ने बिना किसी कारण के यह बात कही तो वह सालिसिटर जनरल रहने के लायक नहीं हैं।

अध्यक्ष महोदय, आपने निर्देश दिया उसके बाद मुझे कुछ नहीं कहना है लेकिन मैं नहीं जानता कि मेरे किस वाक्य से हमारे माननीय सदस्य को लगा कि मैं उच्चतम न्यायालय के अधिकार के ऊपर कोई आरोप कर रहा हूँ। हमने यह कहा कि न्याय के मामले में उनका पूरा अधिकार है। मैं किसी न्यायालय का न्यायाधीश तो नहीं रहा, लेकिन संविधान का विद्यार्थी जरूर हूँ। हमारे संविधान में विभिन्न राज्य के, विभिन्न अंगों के अधिकार अलग-अलग सीमित हैं और सब अपने-अपने मामले में स्वतन्त्र है। कुछ स्वतन्त्रता इस संसद को भी दी गई है और कुछ स्वतन्त्रता, जो कार्यपालिका है, जिसके मालिक या जिसके हाकिम या जिसके अधिकारी माननीय प्रधानमंत्री जी हैं, उनको भी है। मैं केवल यही कह रहा था कि अगर न्यायपालिका के उच्चतम न्यायालय के शिखर से किसी तरह ऐसा संकेत मिले, कभी कार्यपालिका के सर्वोच्च अधिकारी के बारे में भी संदेह है तो इससे संविधान को चलाना मुश्किल हो जायेगा। मैं इसलिए कह रहा था कि सरकार को उसी दिन उच्चतम न्यायालय को कहना चाहिए था कि इसका कारण क्या है? क्यों ऐसी टिप्पणी देने की जरूरत पड़ी, जैसा सोमनाथ चटर्जी जी ने भी कहा।

आज मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि प्रधानमंत्री ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि जो न्यायालय ने कहा उसकी सहमति इनके सालिसिटर जनरल की थी। अगर इनके सालिसिटर जनरल और इनकी सरकार की सहमति न्यायालय की एक टिप्पणी से है तो स्थिति बहुत भयंकर हो जाती है। उस स्थिति में इस संसद में इस बहस का कोई मतलब नहीं रहता। संसद में संसद के नेता के ऊपर कोई संकेत हो, उच्चतम न्यायालय से और उस संकेत पर कोई आपत्ति भी संसद के नेता न करे तो मैं नहीं जानता कि नेताविहीन संसद किस मामले में बहस कैसे करेगी?

अध्यक्ष महोदय, मैं आरोप-प्रत्यारोप में नहीं जाना चाहता। मैं किसी का त्याग-पत्र नहीं मांगता, नैतिकता की दुहाई नहीं देता। लेकिन जो लोग कह रहे हैं उनको याद रखना चाहिए कि बाहर की ताकतें देश में अस्थिरता पैदा करना चाहती हैं, आज हम पर कल आप, दूसरे पर आरोप लगाकर भी अस्थिरता पैदा की जा सकती है, इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए। भारत भ्रष्ट देश नहीं है। 80 फीसदी लोग कड़ी मेहनत करके अपनी रोजी कमाते हैं और अपनी रोटी कमाने के लिए खून-पसीना एक करते हैं। बाकी 20 फीसदी लोग जो सरकारी नौकर हैं, फौज के जवान हैं, उनकी जिन्दगी भी इज्जत और ईमानदारी की जिन्दगी है। आपने जो भारत के बारे में कहा, कृपा करके हम अपने भाषणों से यह न करें। मैं आपके जरिये प्रधानमंत्री से कहना चाहूँगा कि उनके अधिकारी जो वक्तव्य लिखकर देते हैं, उसको न पढ़ते तो ज्यादा खिदमत इस देश की और इस संसद की करते।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।