प्रतिभूति घोटाला से सरकार की विश्वसनीयता को लगा है धक्का, प्रधानमंत्री दें स्पष्टीकरण
अध्यक्ष महोदय, प्रतिभूति घोटाला इस सरकार की गरिमा, विश्वसनीयता के लिए धक्का साबित हुआ है। आज जो कुछ समाचार पत्रों में आया है, मेरे विचार में वह स्थिति की चरम सीमा है। मैं श्री माधवन को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूँ। मैं उन्हें जानता हूँ तो एक ऐसे अफसर के नाते, जो अपना काम सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और निपुणता के साथ करता है। उनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर कोई शक नहीं कर सकता।
अध्यक्ष महोदय, अगर ऐसे अधिकारी पद सेवानिवृत्ति के लिए जबकि उनके सेवा के तीन वर्ष बाकी रहते हों, दबाव डाला जाता है और ऊपरी तौर पर सरकार द्वारा उसे पद-त्याग न करने के लिए कहा जाता है, तो यह तो बड़ी विकट स्थिति है। मैं नहीं जानता कि यह सरकार किस प्रकार की है। यह नहीं है कि वे उस अधिकारी को पद-त्याग न करने के लिए उसे आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हों लेकिन वे सार्वजनिक वक्तव्य में कह रहे हैं कि वे उन्हें उनके मित्रों के माध्यम से मना रहे हैं। मैं नहीं मानता कि अधिकारियों को उनके मित्रों के माध्यम से मनाया जाये। अगर उनकी शिकायतें उचित हैं, तो सरकार द्वारा उन्हें दूर किया जाना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, यह सरकार के लिए इतना आसान विषय नहीं है कि इस पर इन्तजार करे।
महोदय, मैं आर्थिक मन्त्रालय अथवा प्रधानमंत्री महोदय के कार्यालय और सम्बन्धित अधिकारियों के बीच हुई व्यक्तिगत बातचीत अथवा समझौता वार्ता का हिस्सा नहीं हूँ। मैं तो सिर्फ आपको और इस सभा को सरकार द्वारा देश के प्रशासन को चलाने के ढंग के बारे में बता रहा हूँ। यदि इस अधिकारी की शिकायत उचित है, तो सरकार उसे दूर क्यों नहीं करती? उनके मुताबिक अगर यह सब केवल पदोन्नति के लिए ही था, तो उन्होंने अधिकारी को निलम्बित क्यों नहीं किया? उन्हें दोनों ही अधिकार हैं। लेकिन, दुर्भाग्य की बात तो यह है कि उन्हें कुछ नग्न सत्य छिपाने हैं।
अध्यक्ष महोदय यह सब उस समय और भी गम्भीर हो गया जब आप संयुक्त संसदीय समिति का गठन कर रहे हैं। इस समिति के सभापति की नियुक्ति करने जा रहे हैं। दुर्भाग्य से आज ही यह समाचारपत्र में आया है कि सत्तारूढ़ दल संयुक्त संसदीय समिति के सभापति के पद पर विपक्ष से कोई व्यक्ति नहीं लेना चाहता। मैं नहीं जानता कि सत्तारूढ़ दल और विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं के बीच क्या चल रहा है, लेकिन ये सभी बातें यदि एक ही समय पर आयें तो मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि यह न केवल सरकार की विश्वसनीयता पर बल्कि संयुक्त संसदीय समिति के कार्यकरण पर भी प्रश्नचिन्ह लगायेंगी।
अध्यक्ष महोदय, यह सरकार और विशेषतौर पर प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि वह इस मामले पर स्पष्टीकरण दें। जब खुले तौर पर यह कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कुछ निर्देश दिये थे, तब क्या यह प्रधानमंत्री का कर्तव्य नहीं है कि वह इसका खण्डन करें? यह काम करने का अनोखा तरीका है। समय-समय पर प्रत्येक मामले पर सरकार के इरादे की, और प्रधानमंत्री के आश्वासन और वायदों की तीन-चार तरह से व्याख्या की जाती है, और प्रधानमंत्री इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। वह यह समझते हैं कि लोग इसे भूल जायेंगे। शायद वह इसमें सफल भी हो रहें हैं, लेकिन, क्या उनकी यह सफलता इस संस्था, जिसमें हम आज बैठे हैं, के लिए लाभदायक है, क्या संसद इस प्रकार कार्य कर सकती है, जहाँ की सदन का नेता या तो चुप रहता हो, या सदन की उन सभी कार्यवाहियों जो या तो गंभीर प्रकृति की हैं या विवादास्पद हैं, से अनुपस्थित रहता हो।
अध्यक्ष महोदय, मुझे संसदीय कार्यवाही का कुछ अनुभव है लेकिन संसदीय कार्यकरण के इतिहास में यह पहली बार है कि इन नाजुक स्थितियों में सदन का नेता अनुपस्थित हो। ऐसा किसी भी अन्य प्रधानमंत्री के कार्यकाल में नहीं हुआ। मैं आज की बात नहीं कर रहा हूँ। आज कल हो जायेगा क्योंकि मैं जानता हूँ कि फिर इस सदन में कुछ नहीं होगा और प्रधानमंत्री को इस बात की प्रसन्नता होगी कि सरकार मजे में चल रही है और सदन में कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। मैं उस प्रणाली को जानता हूँ, जिसका इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि सदन को निरर्थक किया जा सके। अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही खतरनाक तरीका है। मैं सम्पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ यह कहूँगा कि यह संसद को पूर्णतया निरर्थक करने के लिए किया जा रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, जिससे जनता की नजरों में इस महान सदन की प्रतिष्ठा और सम्मान को गिराया जा सके।
अध्यक्ष महोदय, मैं आशा करता हूँ कि आप अपने अधिकारों का प्रयोग सरकार को कम से कम यह आभास दिलाने के लिए करेंगे कि वह आती-जाती रहती है लेकिन, इस संस्था को यहीं रहना है। यदि राष्ट्र को फलना-फूलना है, तो इस सम्बन्ध में मैं यह समझता हूँ कि नौकरशाही के साथ छेड़खानी नहीं की जानी चाहिए। यदि किसी नौकरशाह की कोई सही शिकायत है, तो उसकी बेइज्जती नहीं की जानी चाहिए। सरकार द्वारा चलाये जा रहे अपमानजनक अभियान बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।
अध्यक्ष महोदय, मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि मैंने श्री माधवन को कभी नहीं देखा है। यदि मैंने उन्हें कभी देखा भी होगा, तो भी मुझे नहीं पता। वह मुझसे कभी नहीं मिले लेकिन उनके कार्य से मैं उनको जानता हूँ- हालांकि मेरा अनुभव वैसा नहीं है, जैसा कि और मित्र श्री विद्याचरण शुक्ल और श्री शरद पवार और अन्य का रहा है लेकिन, मैं भी भी कुछ महीने सरकार में रहा हूँ,- और सम्पूर्ण दायित्व के साथ मैं यह कह सकता हूँ कि यह सरकार के कुछ चुनिन्दा अफसरों में से एक हैं और यदि उनकी यह हालत होती है तो मैं नहीं जानता कि इस नौकरशाही का क्या होगा।
अध्यक्ष महोदय जी, विपक्ष कह रहा है कि ‘‘नाम बताया जाए।’’ श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी अपने आप आगे नहीं आए। आपने इस पक्ष को ये कहने से मना नहीं किया था कि उन्हें नाम नहीं पूछना चाहिए। सरकार में ऐसा कोई व्यक्ति होना चाहिए जो ये कह सके कि यदि श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का यह आरोप और सुझाव सही है तो उस अधिकारी को दूसरे ही दिन निकाल दिया जाएगा।
अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य यह कह रहे हैं कि उन्होंने हर बात न्यायालय के फैसले में से उद्धृत की हैं। लेकिन इस फैसले में जो भी उल्लेख किया गया है, उससे सम्बन्धित हर पैराग्राफ में उन्होंने श्री शरद पवार के नाम का उल्लेख किया है। अतः उन्हें इन दोनों के बीच के अन्तर को समझना चाहिए। इस फैसले की व्याख्या अपने ढंग से करना एक बात है और फैसले से उद्धृत करना बिल्कुल अलग बात है क्योंकि यहाँ वह अधिकारी की निन्दा नहीं कर रहे हैं। वह माननीय रक्षामंत्री की निन्दा कर रहे हैं। अतः सिर्फ वही भाग जहाँ माननीय रक्षामंत्री जी की निन्दा की गयी है, को उद्धृत करना चाहिए। मैं इसकी ही अपेक्षा करता हूँ क्योंकि जो भी उन्होंने उद्धृत किया है वह माननीय रक्षामंत्री जी से सम्बन्धित है और इससे भ्रम उत्पन्न होगा।
यदि इस मुद्दे पर मुख्यमंत्रियों की निन्दा की जा सकती है तो मैं नहीं समझता हूँ कि कोई भी मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री अपने पद पर बने रहेंगे।
अध्यक्ष महोदय, मैंने एक व्यवस्था का प्रश्न उठाया है कि क्या इस सम्माननीय सभा में हमें श्री शरद पवार की निन्दा करने का अधिकार प्राप्त है?
हम उनके व्यवहार के बारे में प्रश्न कर सकते हैं। हम उच्च न्यायालय के फैसले पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम अधिकारियों के आचरण की चर्चा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने पूरे फैसले से ही उद्धृत किया है। इससे यह धारणा बनेगी कि श्री शरद पवार के व्यवहार के बारे में न्यायाधीशों ने ऐसा कहा है। मैंने पूरी तरह से इस फैसले का अध्ययन किया है। उसमें केवल यही वाक्य कहा गया है कि श्री शरद पवार ने सोच समझकर अपने विचार व्यक्त नहीं किए। उन्होंने कोई विचार व्यक्त नहीं किया।
इस सन्दर्भ में यह विचार राजस्व सचिव का था, राजस्व मंत्री का था। मुख्यमंत्री जी ने सिर्फ इसकी शुरुआत की थी। उनकी सिर्फ यही गलती थी। इस पर यदि वह उनकी निन्दा करना चाहते हैं तो उन्हें इसका अधिकार प्राप्त है। लेकिन उन्हें इस प्रकार एक गलत विचार प्रकट नहीं करना चाहिए कि पूरा फैसला ही उनके विरुद्ध है।