Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

मनमोहन जी आप असहाय हैं, आपकी सरकार असहाय है, लेकिन यह देश नहीं

हर्षद मेहता मामले में लोकसभा में 16 जुलाई, 1992, 3 अगस्त 1992 और 27 अगस्त 1992 को चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, वे कहते हैं कि ऐसा स्टेट बैंक ने किया था। आप भी कहते हैं कि स्टेट बैंक ने किया था तो फिर रिजर्व बैंक ने क्या किया? क्या मैं कम्पनी कानून के सम्बन्ध में मंत्री महोदय से यह जान सकता हूँ कि उन्हें इसके बारे में कुछ सूचना प्राप्त है? श्री मनमोहन सिंह जी, उन मामलों में बचाव करने का प्रयास मत कीजिए, जिनका बचाव आप नहीं कर सकते हैं, जाँच-पड़ताल चल रही है तथ्य आपके सामने हैं।

अध्यक्ष महोदय, ये कार्यवाही करने में असमर्थ हैं, इसलिए इस मामले में देर लगा रहे हैं। मैं राजेश पायलट को इसका एक ही जवाब देना चाहता हूँ, जिन कारणों से मनमोहन सिंह जी इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे हैं, उन्हीं कारणों से वी.पी. सिंह नहीं कर पाये। कारण एक ही है कि जब बड़े लोगों के सम्बन्धी ऐसे मामलों में फंसे होते हैं तो वह अपनी हुकूमत की गद्दी को बचाने के लिये उन चीजों को नजरअन्दाज करते हैं। जो काम बड़े दुःख के साथ मेरे मित्र मनमोहन सिंह कर रहे हैं, वह बड़े उल्लास के साथ वी.पी. सिंह पहले कर रहे थे।

अध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है और मैं उस स्थिति को समझ सकता हूँ जिस स्थिति में माननीय वित्तमंत्री हैं, परन्तु अभी-अभी उन्होंने एक वाक्य कहा है, मेरे विचार से वह वाद विवाद में हैं। इस देश का भविष्य का कोई लेनदार नहीं है, क्या हमारे देश की यह स्थिति है? मैं नहीं समझता कि वित्तमंत्री को इस प्रकार की बात कहनी चाहिए। मेरे प्यारे साथियों, हमारे देश की स्थिति इतनी असहाय नहीं है। आप असहाय हो सकते हैं परन्तु आपकी असहायता देश की असहायता नहीं हो सकती। अध्यक्ष महोदय, इस सदन में यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। सुबह, यह बात हुई थी कि वित्तमंत्री उस श्रीमान् विशेष से मिले थे और माननीय वित्तमंत्री ने कहा था कि वे आकर बताएंगे कि वहाँ पर अफसर उपस्थित थे अथवा नहीं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह विशेष अफसर, जो अपना बचाव नहीं कर सकता, कार्यवाही न करने से अथवा श्री मनमोहन सिंह और श्री नरसिंह राव की चुप्पी से उन पर आरोप लग रहा है।

अध्यक्ष महोदय, अफसरों पर ऐसे ही आरोप लगाना उचित नहीं है और यदि एक व्यक्ति पकड़ा जाता है- एक महोदय, जो अब जीवित नहीं है, किसी बैंक के अध्यक्ष थे- माननीय वित्तमंत्री ने उठकर कहा था कि उसे अन्य सरकार ने नियुक्त किया था। प्रशासन चलाने का यह कोई तरीका नहीं है। किसी भी पध््राानमत्रंी आरै वित्तमत्रंी द्वारा इस पक्रार का वक्तव्य दनेा जिम्मदंेारीपणर््ूा नहीं है। यदि कुछ होता है, तो उसका उत्तरदायित्व वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री को समझना चाहिए और यदि वे अपने अफसरों की गतिविधियों में अपनी कोई जिम्मेवारी नहीं मानते, तो उन्हें सरकार में एक मिनट भी रहने का अधिकार नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, कल श्री वी.पी. सिंह ने यह आरोप लगाया था और उन्होंने कहा था कि वित्त सचिव सदन के समक्ष तथ्यों समेत एक वक्तव्य दें। अध्यक्ष महोदय, समस्या यह है कि यदि कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है, तो वह दोषी है और अन्य व्यक्ति निर्दोष तथा ईमानदार व्यक्ति हैं, आप यह खेल कब तक खेलेंगे और कितने दिनों तक खेलेंगे? इस चरित्र-हनन अभियान के और कितने लोग शिकार होंगे? आज प्रधानमंत्री ने पन्द्रह दिन बाद आकर कहा है कि इसमें कोई मंत्री शामिल नहीं है क्योंकि उनके पास सिवाय इसके कोई जानकारी नहीं है कि स्वयं मन्त्रियों ने कहा है।

मैनंे दस दिन पहले पछूा था कि जब प्रतिदिन प्रेस मे ंएव ंससंद मे ंयह कहा जा रहा है कि वे शंका से घिरे हैं, तो यह सरकार कैसे कार्य कर सकती है। अब यह बात मन्त्रियों तक, अफसरों तक आ गई है, सब इसमें शामिल लगते हैं और प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री इस बारे में चुप हैं। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी-चेयरमैन की रिपोर्ट प्रस्तुत की है। किन्तु सम्पूर्ण रिजर्व बैंक पर शंका की छाया है। आपने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के बारे में कुछ भी क्यों नहीं कहा है? क्योंकि आप उनसे डरते हैं। भारतीय रिवर्ज बैंक के गवर्नर के विरुद्ध कुछ कहने का आपका साहस नहीं है। मैं यह जानबूझकर कह रहा हूँ।

अध्यक्ष महोदय, श्री सोमनाथ चटर्जी के वक्तव्य के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई में एक निर्देश जारी किया था। उस निर्देश का पालन क्यों नहीं किया गया? रिजर्व बैंक के गवर्नर के निर्देश का सब बैंकों द्वारा उल्लंघन क्यों किया गया और जुलाई से लेकर आज तक माननीय वित्तमंत्री क्या करते रहे हैं? मैं यही प्रश्न पूछ रहा हूँ कि वित्त मंत्रालय में इस घोटाले के लिए आँख मूंदने की नीति क्यों अपनायी गयी?

मैं जानना चाहता हूँ कि रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए निर्देश को लागू न करने के लिए कौन जिम्मेदार है और यदि इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया था, तो इन महीनों में वित्त मंत्रालय, वित्त मंत्रालय का बैंकिंग विभाग एवं माननीय वित्तमंत्री क्या कर रहे थे?

अध्यक्ष जी, कल जब यह समाचार छपा तो हम सबको थोड़ी चिन्ता जरूर हुई। मैं समझता हूँ कि सरकार को भी खबर होनी चाहिए। स्टेट्समैन जैसा अखबार कोई समाचार छापे और सरकार को उसको खबर न हो, यह स्वयं एक चिन्ता की बात है। उसके बाद आज जो खबर छपी है, उसका पता भी सरकार को होना चाहिए। अगर कुछ भी नहीं सोचे तो यह बहुत अधिक चिन्ता की बात है। क्योंकि उसमें जिन लोगों का नाम लिया गया है, अटल जी ने नाम नहीं लिया, मैं भी नहीं लेता हूँ, लेकिन वे उच्च पदों पर आसीन लोग हैं, अगर आडवाणी जी की इज्जत बचाने का सवाल नहीं है तो इस व्यवस्था की इज्जत बचाने के लिए उच्च पदों पर जो सरकार द्वारा लोग नियुक्त किये गये हैं, उनकी इज्जत बचाने के लिए कम से कम इस समाचार के बारे में सरकार को कुछ कहना चाहिए। कल नहीं कहा, आज भी नहीं कहेगी कि रणधीर जैन को क्यों सिक्योरिटी दी गई, या नहीं दी गई या दी गई?

आज इस समाचार पत्र ने समाचार छापा है कि जान बूझकर कुछ लोगों ने षड़यंत्र किया है। उससे यह ध्वनि निकलती है कि उसमें सरकार का हाथ है। अगर सरकार यह जरूरी नहीं समझती है कि इस पर सफाई दे तो इससे दुःखद बात और क्या हो सकती है? मैं श्री जसवंत सिंह जी की इस बात से सहमत हूँ कि यह केवल श्री आडवाणी जी का सवाल नहीं है । किसी के बारे में भी इस तरह की बात हो सकती है। मैं स्वयं समझ सकता हूँ कि समाचार-पत्रों में क्या-क्या खबरें छपती रहती हैं, उसकी चिन्ता नहीं है लेकिन इस तरह की खबर फैलाने में सरकार का हाथ हो, इससे बुरी बात और कोई नहीं हो सकती है और वह भी श्री आडवाणी जी जैसे आदमी के बारे में। हमारे उनसे विचारों में मतभेद हो सकता है या हमारे मतभेद चाहे जो भी हो लेकिन इस तरह का समाचार छपे और सरकार कहे कि वह देखेगी, इस पर मुझे यह कहना है कि यह बहुत उचित नहीं है।


अनुक्रमणिका

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।