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मेरे कदम के साथ है मंजिल लगी हुई। मंजिल जहाँ नहीं वहाँ मेरे कदम नहीं।।

भारत सरकार के कार्यक्रम पर 16 नवम्बर, 1990 को लोकसभा में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, मुझे इस सारे वाद-विवाद को सुनकर दुःख हुआ है। मैं अपने मित्र श्री साठे के भाषण के बारे में एक भी शब्द नहीं कहूँगा क्योंकि उन्होंने हमें अपना समर्थन दिया है। मुझे प्रसन्नता है कि सभी रंजिशों और शिकवा के बावजूद मेरे भारतीय साम्यवादी दल (माक्सर्वादी) और भारतीय साम्यवादी दल के मित्रों ने वाद-विवाद का स्तर उठाया है। मैं कटु दोषारोपण पर गौर नहीं करूँगा, न ही मैं उनका उत्तर देना पसंद करूँगा।

अध्यक्ष महोदय, उन्होंने एक बहुत सार्थक प्रश्न किया है। इस सरकार का क्या कार्यक्रम है। या वे कौन से मुद्दे हैं जिनको लेकर हम आने वाले दिनों में राष्ट्र को चलायेंगे? आज सुबह अपने भाषण के आरम्भ में ही मैंने कहा था कि हमें व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करने चाहिए। मैं महसूस करता हूँ कि समय बहुत खराब आ गया है, हम अपने इतिहास के संकटपूर्ण मोड़ पर पहुँच गए हैं। फिर भी मैं निराशा का शिकार नहीं होना चाहता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि अपनी सांस्कृतिक विरासत, सभ्यता और हमारे लोगों की क्षमता से हम मिलजुल कर अपने परिश्रम से सभी परेशानियों से पार पा लेंगे।

अध्यक्ष महोदय, इससे पार पाने के लिए हमें समझौते के क्षेत्रों की तलाश करनी होगी। टकराव और विरोध की बात नहीं करनी है। यह बात उन सभी देशों के मामले में सत्य है जो गरीबी, फटेहाली, दरिद्रता और बीमारी से लड़ रहे हैं। यह बात सम्पूर्ण विश्व के लिए भी सत्य है और इस उप महाद्वीप पर तो खरी उतरती ही है। इसी वजह से मैं कहता हूँ कि इस समय हमें विशेष मुद्दों पर मिलकर काम करने के लिए सहमत होने की कोशिश करनी चाहिए।

मेरे मित्र श्री सोमनाथ चटर्जी ने मुझसे पूछा है कि चुनाव घोषणा पत्र क्या होगा? मैं सभी राजनैतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्रों की बात नहीं करना चाहता हूँ। क्या आज हम तीन, चार या पाँच मुद्दों पर सहमत नहीं हो सकते जिससे हम यह कह सकंे कि हम स्थिति को सुधारने के लिए मिलजुल कर काम करेंगे? उसके लिए इस देश में एक नया राजनैतिक माहौल पैदा करना होगा और इस राजनैतिक माहौल की पहल एक-दूसरे की समस्याओं को समझ कर, एक-दूसरे की आकांक्षाओं को समझ कर की जा सकती है। नाम लेने की कोशिश करने का कोई फायदा नहीं है। मैं जानता हूँ कि कभी-कभी गर्मागर्मी में हम आपे से बाहर हो जाते हैं और दूसरों पर आक्षेप करने लगते हैं। मुझे भी इस बात का खेद है कि इस वाद-विवाद के दौरान मैं भी एक या दो बार आपे से बाहर हुआ। लेकिन, जब यह स्थिति प्रत्येक दिन मेरे सामने आती है तो इस कुर्सी पर बैठकर मैं गुस्सा भी नहीं हो सकता हूँ क्योंकि मुझे प्रत्येक व्यक्ति का सहयोग, समर्थन चाहिए।

श्री सोमनाथ चटर्जी, यदि आप चाहते हैं कि मैं अपने राजनैतिक दर्शन का बखान करूँ तो मैं कहूँगा कि मैं एक प्रगतिशील व्यक्ति नहीं हूँ। मैं एक रूढ़िवादी व्यक्ति हूँ और एक रूढ़िवादी व्यक्ति होने के नाते मैं हर दिन नहीं बदलता हूँ। मेरा दर्शन वही है जो मेरे मित्र श्री चित्त बसु ने मुझे युवा तुर्क सम्बोधित करके कहा है। इस देश के समक्ष और कोई विकल्प नहीं हैं, क्योंकि हमारा समाज सीमित संसाधन वाला है। यदि संसाधन सीमित हैं, तो हमें फैसला करना होगा कि हमें अपने संसाधनों का कैसे इस्तेमाल करना है। हमें आंकलन करना होगा कि हमारी परिसम्पत्ति कितनी है, हमारी ताकत कितनी है।

अध्यक्ष महादेय, प्रकृति ने हमें एक उपजाऊ भूमि दी है, एक अच्छी जलवायु प्रदान की है। इस देश में सभी प्रकार के फल और फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। लगभग सभी खनिज इस भूमि में मिलते हैं। इस देश में 85 करोड़ से ज्यादा लोग हैं जिनके पास वह शक्ति है जिससे इस देश को समृद्धि और उन्नति के मार्ग पर ले जाया जा सकता है। विगत में हमारी क्या खामियाँ रही हैं? हम इन लोगों को, दुर्भाग्यशाली लोगों को जो कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हैं, अधिक उत्पादन करने के लिए, उनकी शक्ति का उपयोग करने हेतु अवसर उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? अध्यक्ष महोदय, एक लोकतान्त्रिक समाज में हम उन्हें कार्य करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते है। हमें उनमें इच्छा शक्ति पैदा करनी है और यह इच्छा शक्ति हम कैसे पैदा करेंगे?

इच्छा शक्ति तो यह आश्वासन देने से ही पैदा या पे्ररित की जा सकती है कि जिस चीज का भी वे उत्पादन करते हैं, वह कुछ ही चुनिन्दा लोगों के वैभवपूर्ण जीवन जीने के लिए ही नहीं होगी, बल्कि हमारे लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए होगी। अतः निवेश उन क्षेत्रों में किया जाना चाहिए जो हमारे लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सके और यह निवेश हमें प्रत्येक व्यक्ति को आधार मान कर करना पड़ेगा। जब मैं व्यक्तिपरक निवेश की बात करता हूँ, तो अध्यक्ष महोदय, मैं मुख्यतः इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि प्रत्येक बच्चा आज की ताकत और कल की आशा है। जो भी बच्चा आज पैदा होता है उसे पूरा अधिकार है कि उसे समाज से स्वच्छ पीन ेका पानी मिल,े स्वस्थ नागरिक बनन ेक ेलिए आवश्यक भाजेन मिल,े प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का लाभ मिले और जब वह 18 वर्ष का वयस्क नागरिक हो जाए तो उससे जात-पात और धर्म का भेदभाव न किया जाए।

यदि आप इन पाँच बातों को हमारा चुनाव घोषणा पत्र मान लें, हमारा ध्येय, लक्ष्य समझें तो क्या इस पर इस सभा में कोई मतभेद है? इसमें कोई मतभेद नहीं हो सकता। आप इस पर अमल क्यों नहीं कर सकते हैं? लेकिन, यदि इन सिद्धान्तों पर काम करते हैं, तो हमें आर्थिक समस्या, सामाजिक समस्या के प्रति अपने रवैये में कई परिवर्तन करने पड़ेेंगे।

अध्यक्ष महोदय, मैं इस बात पर भी जोर दूँगा कि यदि संसाधन कम हैं और यदि देश गरीब है, तो समाज के प्रत्येक वर्ग को इस गरीबी में साझेदार होना पड़ेगा। यह नहीं हो सकता है कि जो पसीना बहाते हैं, हमारे किसान हैं, हमारे खेतों और कारखाने के कामगार हैं, उन्हें हमेशा ही त्याग करने के लिए कहते रहें। पहले 4 दशकों से हमारी आजादी मिलने के बाद से हम उन्हें त्याग करने के लिए कहते आ रहे हैं। ऐसा हम कब तक कहते रहेंगे? उन्हें इस बात का आश्वासन देना पड़ेगा कि इस गरीबी में वे लोग भी भागीदार होंगे, जिन्हें समाज में विशेष दर्जा हासिल है।

इसलिए मैं यह अपील उन लोगों से भी करूँगा जो अमीर हैं, विशेष दर्जा रखते हैं। मेरे मित्र श्री ए.के. राय ने मुझे बताया कि वे मेरे साथ बहुत सहयोग करते हैं। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि यदि वे मेरे साथ सहयोग करना चाहते हैं, तो उन्हें लोगों को, हमारे गरीब वर्ग को प्रसन्न और समृद्ध बनाने के लिए कुछ त्याग करना सीखना चाहिए। यह करना इसके लिए बहुत जरूरी है।

इस सन्दर्भ में हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। श्रीमती गीता मुखर्जी ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या आप औद्योगिक नीति संशोधित कर रहे हैं? क्या पिछली सरकार ने कोई औद्योगिक नीति अपनाई थी? कुछ खुलासा तो किया गया था। मुझे उस पर कुछ आपति थी। सोमनाथ जी, मैं समझता हूँ आपको भी ये आपत्तियाँ थीं। ये आपत्तियाँ किसी व्यक्तिगत पूर्वाग्रह पर आधारित नहीं थीं। मैं इस सम्बन्ध में किसी भी चीज को तरजीह नहीं देता हूँ। मेरा कोई पूर्वाग्रह भी नहीं हैं। मैं समझता हूँ कि इस देश में हम यह आशा नहीं कर सकते कि बाहरी ताकतों से पार पा लेंगे। मैं नहीं कहता कि हमें बाहर से सहायता नहीं लेनी चाहिए। आज के संसार में हमें बाहर की सहायता और समर्थन पर निर्भर रहना ही पडे़गा।

कुछ पेचीदा किस्म के क्षेत्रों में हमें नई प्रौद्योगिकी, आधुनिक प्रौद्योगिकी का सहारा लेना ही पड़ेगा और हमें इन क्षेत्रों को उन चीजों के लिए खोलना पड़ेगा, जो अच्छा मुनाफा दे सकती हैं। लेकिन, हम अपने सारे क्षेत्र अधिक सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएं, आईसक्रीम का उत्पादन करने के लिए खोल रहे हैं? कृपया इस बारे में गौर कीजिए। पिछले अनेक वर्षों के दौरान परस्पर सहयोग के अनुबन्ध हुए। कुछ इन महीनों के दौरान हुए जब हम इस देश पर शासन कर रहे थे। उदारीकरण के प्रति मुझे आपत्ति नहीं है, अगर उदारीकरण से अभिप्राय लाल फीताशाही कम होना है, यदि इसका अर्थ रुकावटों, भ्रष्टाचार का न होना है, नौकरशाही द्वारा हस्तक्षेप न करना है तो यह अत्यन्त उदारीकरण अति आवश्यक है।

अगर उदारता का यह मतलब है कि आडम्बर पूर्ण जीविका के लिए दुर्लभ संसाधनों को अपव्यय किया जाए तो मैं विनयपूर्वक यही अनुरोध करूँगा कि हम यह वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। मुझे आशा है कि हम इन प्रतिबन्धों को समझेंगे। मैं समझता हूँ कि आर्थिक मोर्चे पर जो गरीब हैं और विशेषकर वे वर्ग जो उपेक्षित रहे हैं, अभी भी पीड़ित और शोषित हैं, हमें उन पर विशेष ध्यान देना है। मैं जानता हूँ कि इस सम्बन्ध में अनेक सन्देह और आशंकाएं हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से देश को आश्वस्त करना चाहता हूँ। मैं कोई भी समझौता कर सकता हूँ लेकिन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की प्रतिष्ठा के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा। पिछड़े और शोषित वर्ग द्वारा इस समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन पाने की उनकी इच्छा पर कोई समझौता नहीं होगा।

अध्यक्ष महोदय, जहाँ तक अल्पसंख्यकों का सम्बन्ध है, विश्व भर में अल्पसख्ंयक आशंिकत है।ं जो लोग कहते है ंकि अल्पसख्ंयको ंऔर बहुसख्ंयकों के बीच कोई अन्तर नहीं होना चाहिए, मैं उनसे पूछता हूँ कि हमारे संविधान के निर्माताओं ने अल्पसंख्यक सम्बन्धी खण्ड संविधान में क्यों रखा? धार्मिक अथवा जातीय या भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक विश्व भर में तीव्र प्रतिक्रिया करते हैं क्योंकि उन्हें आशंका और डर होता है। अगर हम उनके कथन का शब्दशः मतलब लें तो हम सदैव एक गलत राजनैतिक निर्णय पर पहुँचेंगे। हमें उनकी आकांक्षाओं को समझना चाहिए, उनकी आशंका को समझना चाहिए, हमें यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि उनका एक मनोविज्ञान है, इस मनः स्थिति के तहत वे यह महसूस करते हैं कि वे अपनी सुरक्षा, समृद्धि और अपने भविष्य के बारे में आश्वस्त नहीं हैं। देश, राज्य और इससे भी अधिक बहुसंख्यक समुदाय का यह दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनमें से यह डर समाप्त हो जाए। हमें यह करना होगा।

मैं कहता हूँ कि धर्म के मामले में हर व्यक्ति स्वतन्त्र है। धर्म-निरपेक्षता का यह अभिप्राय नहीं है कि हम धर्म की उपेक्षा करें। धर्म मानव को भगवान से मिलाने का साधन है। जब तक धर्म का उपयोग मानव और भगवान के मेल के लिए धार्मिक उद्देश्यों के रूप में होता है, हमें इस बारे में झगड़ना नहीं चाहिए। हमें इस देश में अपनी धार्मिक परम्परा पर गर्व होना चाहिए। मैं एक हिन्दू हूँ। मुझे राम, कृष्ण, वेदों और हमारी आर्य सभ्यता पर गर्व है। लेकिन इसके साथ ही मुझे इस देश में आए अन्य धर्मों द्वारा किए गए योगदान पर भी गर्व है। इस सम्बन्ध में हिन्दू धर्म अन्य धर्मों से आगे है क्योंकि हमारे अन्दर स्नेह और सहनशीलता है। अगर यह सहनशीलता और स्नेह समाप्त हो जाते हैं तो हिन्दू धर्म अपनी शक्ति और अन्य सभी धर्मों पर श्रेष्ठता खो देगा।

मैं मन्दिर का निर्माण करने के विरुद्ध नहीं हूँ। मैं किसी विवाद में नहीं जाना चाहता। यह एक भावनात्मक मुद्दा है। इस भवन का निर्माण होना चाहिए। राम के जन्म-स्थान पर एक भव्य,सुन्दर तथा यथासम्भव बड़ा एक मन्दिर होना चाहिए। लेकिन मैं अपने मित्रों से अपील करता हूँ कि वे मन्दिर बनाने के जोश में मस्जिद को गिराने का प्रयास न करें क्योंकि आपकी इच्छानुसार मन्दिर बनाने में कोई रुकावट नहीं आएगी और हम सब इसमें योगदान करेंगे। आडवाणी जी, अगर कुछ मिनटों के बाद मैं प्रधानमंत्री बना रहा तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं मन्दिर-निर्माण में हर तरह से सहयोग दूँगा। लेकिन सिर्फ एक बात है कि आप मुस्लिम समुदाय को आश्वस्त कीजिए कि उनके आत्मगौरव और आत्म-सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाई जाएगी।

अध्यक्ष महोदय, कोई भी भारतीय नागरिक कितने ही गलत रास्ते पर हो, मैं उससे बात करूँगा देश की सार्वभौमिकता, एकता और अखण्डता के बारे में कोई समझौता नहीं होगा। सिर्फ यही एक शर्त है। अगर मेरे परिवार का एक पुत्र अथवा रिश्तेदार गलत काम करता है तो क्या मैं उसे एकदम से त्याग दूँगा? मैं जानता हूँ कि इस सभा तथा दूसरी सभा में सदस्य अनेक बार एक उग्र रुख अपना लेते हैं। लेकिन संसदीय लोकतन्त्र का मतलब है वार्ता, बातचीत और एक-दूसरे को किसी समझातै ेपर पहचँुन ेक ेलिए समझाना। यह ससंदीय लाकेतन्त्र का सार ह।ै

मेरे मित्र सोमनाथ जी ने मुझसे पूछा कि आडवाणी जी अथवा भारतीय जनता पार्टी के साथ मेरा क्या समझौता है। सामने बैठी महिला सदस्या के विरोध के बावजूद मैं पुनः दोहराता हूँ कि केवल यही सहमति हुई है कि मैं आडवाणी जी को एक देशभक्त मानता हूँ। मैं इस देश के सामाजिक और राजनैतिक जीवन पर उनके विचारों से सहमत नहीं हूँ। मैं श्री आडवाणी और उनके साथियों से अपील करता रहूँगा और मैं उनके निवास पर भी गया हूँ और उन्हें बताया है कि देश टकराव और एक-दूसरे से लड़ने में लिप्त नहीं हो सकता। अयोध्या में जो कुछ हुआ उस पर मुझे खेद हैं। कोई भी यह नहीं चाहता कि एक भी आदमी इस प्रकार मरे। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस देश में यदि एक भी पुरुष अथवा महिला की मृत्यु होती है तो मैं महसूस करता हूँ कि भारत माता के एक सपूत अथवा सुपुत्री की मृत्यु हुई है। मृत्ुयु तो मृत्यु ही है चाहे वह दंगाइयों के चाकू से हो अथवा पुलिस की गोली से। मृत्यु में तो कोई अन्तर नहीं है।

इसलिए मैं यह नहीं कह सकता कि दंगों में हुई मृत्यु गलत है और पुलिस के हाथों से हुई मृत्यु सही है। लेकिन कभी-कभी सरकार को वह काम भी करने पड़ते हैं जो अच्छे नहीं होते हैं। मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि श्री मुलायम सिंह को यह कार्य और कड़ाई से करने चाहिए थे। अध्यक्ष महोदय, यदि लाखों जानें बचाने अथवा लाखों व्यक्तियों को सड़कों पर एक-दूसरे को मारने से रोकने के लिए कोई आदेश देने पड़ते हैं अथवा कार्यवाही करनी पड़ती है तो ऐसा दुःख के साथ ही किया जाता है। यदि माननीय महिला सदस्य यह समझती हैं कि मेरे खेद प्रकट करने से कुछ फर्क पड़ता है तो मैं खेद प्रकट करता हूँ कि जो कुछ हुआ उसे रोका जाना चाहिए था। लेकिन यह दायित्व कवेल सरकार का नही ंहै बल्कि सभी सम्बन्धिता ंेका ेभी अपना दायित्व समझना चाहिए। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि इस मुद्दे पर मैं झूठी शान नहीं दिखाना चाहता हूँ। चाहे मैं क, ख, ग किसी से भी मिलूँ, मैं झूठी शान नहीं दिखाना चाहता हूँ। जो भी शान्ति बहाल करने में सहायक हो सकता है, मैं उसकी सहायता लेने के लिए तैयार हूँ।

यदि मुस्लिम समुदाय उस स्थान पर, जहाँ मस्जिद है, मन्दिर बनाने के लिए सहमत हो जाता है तो मुझे खुशी होगी। लेकिन यह आम सहमति से होना चाहिए। यह परस्पर सहमति से होना चाहिए। यह उन पर लादा नहीं जाना चाहिए। मैं मुस्लिम और हिन्दू समुदाय के धार्मिक नेताओं से दुबारा अपील करता हूँ कि वे साथ बैठकर बातचीत करें और इसका समाधान करने का प्रयास करें। हमें इस विषय को राजनीतिक रूप नहीं देना चाहिए। यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है। अपितु यह मानवीय मुद्दा है। यह ऐसा मुद्दा है जिसका लम्बे समय तक इतिहास में सदैव स्थान रहेगा।

अध्यक्ष महोदय, इस मुद्दे पर मेरे विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं। कृपया धर्म के नाम पर एक-दूसरे को नहीं मारिए, यह धर्म के विरुद्ध है चाहे वह इस्लाम धर्म हो, हिन्दू धर्म हो, इसाई धर्म हो अथवा अन्य कोई धर्म हो। इसीलिए मैंने यह कहा है क परम्पराओं का तब तक सम्मान किया जाना चाहिए जब तक यह प्रगति के रास्ते में बाधक न बनें। मेरे मित्र प्रो. मधु दण्डवते ने ‘आॅपरेशन ब्लू स्टार’ के समय मेरे द्वारा अपनाए गए रवैये का उल्लेख किया है। मुझे उस समय बहुत दुःख हुआ था।

मैंने कोई विस्तृत वक्तव्य नहीं दिया था। जब कुछ संवाददाताओं ने मुझसे पूछा तो मैंने केवल यही कहा था, वह वाक्य मुझे अभी भी याद है, कि यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वर्ण मन्दिर में हमें सेना भेजनी पड़ी और शीघ्र इसे वापिस बुलाना बेहतर होगा। मैंने केवल यही कहा था। देश में इस बारे में अनेक टिप्पणियाँ की गई। मेरे विरुद्ध संपादकीय लिखे गए। राजनीतिक नेताओं ने मेरी निन्दा की और न केवल राजीव जी ने जो बाद में प्रधानमंत्री बने बल्कि मेरे अपने दल के नेताओं ने भी मेरी निन्दा की।

श्री दण्डवते जी, हो सकता है श्री राजीव गाँधी ने मेरे विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए कहा हो। भूतपूर्व प्रधानमंत्री, जिन्हें मैंने ग्यारह महीने तक समर्थन दिया, 1984 के चुनावों में जब बलिया गए तो उन्होंने कहा, ‘‘यह आदमी यहाँ से चुनाव क्यों लड़ रहा है? यह बलिया का भिंडरावाले हैं। इसे पंजाब से चुनाव लड़ना चाहिए।’’ जब उन्हें हमने इस देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुना और उनका समर्थन किया तो मैंने इस बात को बहुत महत्व नहीं दिया क्योंकि मैंने सोचा कि व्यक्तिगत मामलों का हमारे राजनीतिक निर्णयों पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। मैंने राजीव जी और कांग्रेस की आलोचना की होगी। उन्होंने भी मेरी आलोचना की होगी। जब देश में संकट है, मेरा यह अनुमान गलत भी हो सकता है, ता ेइस चुनाव करान ेस ेदश्ेा म ंेविपत्ति पैदा हागेी जैसा कि कुछ मित्रांे ने भी कहा है लेकिन भूतपूर्व प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए कामों को मैं पूरा नहीं कर पाऊँगा। मैं इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण नहीं हूँ और न मैं वैसा बनना चाहता हूँ। यदि यह अपराध है तो मैं यह अपराध करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मेरा यह कहना है कि मैं एक व्यक्ति अथवा दल का सहयोग नहीं चाहता हूँ बल्कि सभी का सहयोग चाहता हूँ। अन्य मुद्दों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।

अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मैं श्री सोमनाथ चटर्जी से पूछना चाहता हूँ कि ग्यारह महीने पहले जब हमने यह सरकार गठित की थी तो उन्होंने हमारे घोषणा-पत्र को उद्धृत किया था। क्या उन्होंने वह घोषणा पत्र पढ़ा है? पंजाब में क्या हुआ? क्या वहाँ स्थिति में सुधार हुआ है? कश्मीर में क्या हुआ? जब राजीव गाँधी सत्ता से हटे थे तब। जब राजीव गाँधी सत्ता से हटे थे तब कम से कम 25-30 प्रतिशत लोग खुले रूप से भारत का समर्थन कर रहे थे। जब हमारी सरकार बनी तो मैंने समाचार पत्रों में सबसे पहली बात यही पढी़ कि श्री जगमाहेन का ेराज्यपाल नियक्ुत किया जा रहा ह।ै

मैंने माननीय गृहमंत्री जी को एक पत्र लिखा और कहा कि ‘‘यह अनर्थकारी होगा, कृपया ऐसा मत कीजिए।’’ कामरेड सुरजीत और फारुखी तथा मैंने उनसे अनुरोध किया कि ऐसा मत कीजिए। मैंने ऐसा किन्ही व्यक्तिगत कारणों से नहीं कहा था। मेरे श्री फारुखी के साथ मित्रापूर्ण सम्बन्ध नहीं हैं। मैंने माननीय गृहमंत्री जी को यह समझाने का प्रयास किया था कि हमने पूरे विश्व में यही बताया है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में तानाशाही है और हमारे यहाँ निर्वाचित सरकार है।

मेरी राजीव गाँधी सरकार के बारे में अच्छी राय नहीं थी। जब श्री राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे तब पाँच वर्षों में मैं उनसे कभी नहीं मिला था। लेकिन श्री राजीव गाँधी ने सम्मानपूर्वक अपना पद छोड़ा। अब हम एक-दूसरे के बारे में वह विचार प्रकट नहीं कर सकते हैं जो हमने चुनावों के दौरान प्रकट किए थे। राष्ट्र चलाने का यह कोई तरीका नहीं है कि राजीव गाँधी की इस बात के लिए निन्दा करें कि चुनावों में हेरा-फेरी हुई। जब श्री मुफ्ती गृहमंत्री बने तो उन्हें चुनावों में हुई हेरा-फेरी के बारे में पता था। जब वह कांग्रेस में थे तो उन्हें कभी भी यह बात याद नहीं आई। क्या यह तरीका राष्ट्र चलाने का है?

श्री सोमनाथ चटर्जी बोफोर्स के बारे में मैं आपको यह बताना चाहता हूँ और मैं यह पहली बार नहीं कह रहा हूँ कि यही एक विशिष्ट देश है जहाँ यह कहा जाता है कि प्रधानमंत्री बेइमान है और वित्तमंत्री जिन्होंने उस सौदे की रूपरेखा तैयार की, ईमानदार है।

क्या मैं यह मानूँ कि सौदे की स्वीकृति हो जाने के बाद वित्तमंत्री ने कभी फाइल नहीं देखी अथवा उन्हें फाइल देखने नहीं दी गई? या तो वित्तमंत्री इतने अनभिज्ञ थेे कि उन्हें इसके परिणामों का पता नहीं था अथवा वह पूरे सौदे में सहायक थे। यदि वह अनभिज्ञ थे तो प्रधानमंत्री के रूप में देश उनके हाथ में सुरक्षित नहीं था। बाद में यह सही साबित हो गया कि प्रधानमंत्री के रूप में देश उनके हाथों में सुरक्षित नहीं था। इसमें कोई व्यक्तिगत बात नहीं है बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उस समय मैं सरकार में नहीं था। मैंने गोपनीयता की शपथ नहीं ली हुई थी।

फाइलों के बारे में मत पूछिए। मैं इस सभा में फाइलों के बारे में कभी भी नहीं बताऊँगा। जब तक अध्यक्ष महोदय मुझे निदेश नहीं देंगे अथवा यह सभा नहीं चाहेगी, मैं इस सरकार की गोपनीय बातें नहीं बताऊँगा। लेकिन श्री आडवाणी जी, मैं आपको आश्वासन देना चाहता हूँ कि बोफोर्स अथवा भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। मैं आपको स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूँ कि राजकीय शक्तियाँ व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए नहीं है। किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध व्यक्तिगत कारणों से कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। व्यक्तिगत मित्रता के कारण किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा। मेरे विचार से सरकार को यही रास्ता अपनाना चाहिए।

बोफोर्स के बारे में मैंने काफी कुछ कह दिया है। कश्मीर, असम और तमिलनाडु में क्या स्थिति है? असम, कश्मीर और पंजाब हमें श्री राजीव गाँधी से विरासत में मिले हैं लेकिन असम और तमिलनाडु में ऐसी स्थिति किसने उत्पन्न की? उस पक्ष के एक मित्र ने मुझे कुछ कार्यवाही करने के लिए कहा है। महोदय मैं आपको और पूरे राष्ट्र को आश्वासन देता हूँ कि राष्ट्र की एकता और अखण्डता के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। मैंने असम और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से पहले ही सम्पर्क किया है। मैं उनसे बातचीत करने वाला हूँ। मैं चाहता हूँ कि उन राज्यों में शान्ति और व्यवस्था स्थापित करने के लिए उचित कार्यवाही की जाए।

मैं कोई भी तथ्य छुपाना नहीं चाहता हूँ क्योंकि भारत सरकार इतनी असहाय नहीं है। यदि दिल्ली में केन्द्र सरकार असहाय सी बैठी रहती है तो एक क्षण के लिए भी हमें यहाँ रहने का अधिकार नहीं है। यह प्रतिष्ठा का अथवा किसी को चुनौती देने का प्रश्न नहीं है। यह अपना कत्र्तव्य निभाने का प्रश्न है। मैं इस बारे में और कुछ नहीं कहना चाहता हूँ। मैंने इन सभी पर विचार प्रकट करने का प्रयास किया।

आर्थिक स्थिति के बारे में, अर्थव्यवस्था के कुप्रबन्धन के बारे में-मैं कुछ अधिक नहीं कह सकता। अध्यक्ष महोदय मैं कह सकता हूँ कि हमने अपनी जनता को, अपने उद्योगपतियों को, अपने कर्मचारियों को गलत संकेत दिए हैं। लोग कुण्ठा और हताशा का अनुभव कर रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय यह सोचता है कि भारत की अर्थव्यस्था नष्ट होने के कगार पर है। हमारे नागरिक जो भारत से बाहर हैं, वे सोचते हैं कि भारत के लिए कोई उम्मीद नहीं बची। किन्तु मैं आपको आश्वासन देता हूँ अध्यक्ष महोदय कि आपके सहयोग से और इन लोगों के सहयोग से, इस देश को दुर्दशा की स्थिति से निकाल कर हम इस देश के गौरव को पुनःस्थापित करेंगे। हमें केवल अपने मेहनतकश लोगों का अपने किसानों का, अपने श्रमिकों का सहयोग चाहिए।

हमें भारत के बाहर रहने वाले सभी भारतीयों का समर्थन चाहिए क्योंकि वे भी हमारे समान ही देशभक्त हैं। हम सभी मित्र देशों का सहयोग चाहते हैं, किन्तु अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कहूँगा कि हम अपने खर्च में कमी करके इस संकट से पार पा सकते हैं। इसके लिए संयम आवश्यक है। महात्मा गाँधी द्वारा दिया गया मितव्ययिता का नारा सिर्फ एक नारा ही नहीं था बल्कि यह हमारी आर्थिक नीति का एक अंग था। स्वदेशी और स्वावलबन-आत्मनिर्भरता और स्वदेशी। श्रीमती गीता मुखर्जी ने मुझसे यह प्रश्न पूछा था। स्वदेशी और स्वावलंबन का यथासंभव आश्रय लेने के अतिरिक्त हमारे पास अन्य कोई उपाय नहीं है। किन्तु सवेदनशील क्षेत्रों में हमें देशों से सहयोग लेना होगा।

मोटे तौर पर हमारा यही लक्ष्य है। हम यह प्राप्त करने में सफल होंगे या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा। मैं कोई लम्बे-चैड़े दावे नहीं करना चाहता। मैं इस सरकार की सीमाएं जानता हूँ, किन्तु आडवाणी जी फिर भी मैं कहूँगा, आप मुझे काफी समय से जानते हैं। मैं चाहे कुछ भी हूँ किन्तु एक कठपुतली नहीं हो सकता। मैंने कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो मुझे कठपुतली की तरह प्रयोग कर सके। इस देश में कई बड़े लोगों के साथ मेरा व्यवहार रहा है। यदि अभी तक मैं एक कठपुतली नहीं बना, तो निश्चित रहिए कि, आपके आशीर्वाद और समर्थन से, भविष्य में भी कोई भी कठपुतली की तरह मेरा प्रयोग नहीं कर पाएगा।

मैं उन लोगों की निन्दा नहीं करूँगा जिन्होंने इस संकट की घड़ी में मेरा साथ दिया है, यह संकट सिर्फ मेरा ही नहीं हैं, अपितु देश का भी संकट है और जो लोग मुझे समर्थन देने के लिए खड़े हुए हैं, मैं उनका आभारी हूँ और मैं उनके समर्थन को मानता हूँ। मैं गुप्त रूप से कोई काम नहीं करना चाहता। अगर मैं लोगों से मिलता हूँ, तो उनसे खुले रूप में मिलता हूँ। किसी ने कहा कि मैं गुप्त रूप से मिल रहा था। मैं किसी से गुप्त रूप से क्यों मिलूंगा? राजीव गाँधी को मुझसे मिलने में कुछ संकोच हो सकता है। किन्तु मुझे श्री राजीव गाँधी से मिलने में कभी कोई संकोच नहीं हुआ था।

अगर प्रधानमंत्री बनने के बाद मैं किसी के भी पास जा सकता हूँ, फिर प्रधानमंत्री बनने से पूर्व, किसी के स्थान पर जाने में मुझे क्या हिचकिचाहट हो सकती थी? अगर कोई अवसर आया तो मैं अपने कटु आलोचक के पास भी जाऊँगा। किन्तु मैं आपको आश्वस्त करता हूँ, चाहे आप आलोचक हों या समर्थक मुझे उस मार्ग से हटाने का प्रयास ना करें जो मैंने स्वयं बनाया है। यहाँ मैं एक उर्दू का शेर प्रयोग करना चाहूँगा-

‘‘मेरे कदम के साथ है मंजिल लगी हुई, मंजिल जहाँ नहीं वहाँ मेरे कदम नहीं।’’

आपको शुरूआत करनी चाहिए। मैं अपनी हिचकिचाहट जानता हूँ, मैं अपना उद्देश्य जानता हूँ। अगर मैं उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकता, तो मैं किसी भी मार्ग पर सिर्फ एक एकाकी पथिक के रूप में नहीं चलूँगा।

अध्यक्ष महोदय, जिस अन्तिम मुद्दे पर मैं बात करना चाहूँगा वह है दल-बदल। दल-बदल के बारे में नैतिक सिद्धान्त बनाए गए हैं। कई बातें की गई हैं, मैं उनका उल्लेख नहीं कर रहा। किन्तु अध्यक्ष महोदय, जब दल-बदल विरोधी कानून पारित किया गया था, तो इसमें यह कहा गया था कि अगर एक तिहाई लोग दल से निकलते हैं, तो यह दल-बदल नहीं माना जाएगा। जो लोग दल छोड़ना चाहते थे उनके लिए यह एक रियायत नहीं थी क्योंकि यह दल-बदल नहीं है। लोगों को समझना चाहिए कि एक और शब्द है जिसे ‘विमति और विरोध’ कहा जाता है। अगर विमति और विरोध प्रकट करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो समाज में एक ठहराव आ जाएगा और ठहराव का अर्थ है निश्चित मृत्यु।

जब हम देखते हैं कि बुनियादी तौर पर ही कुछ गलत हो रहा है और सारा देश विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है तो हमारा राष्ट्रीय कत्र्तव्य है कि हम विमति व्यक्त करें। हमें विरोध प्रदर्शित करना चाहिए। मुझे अपने उन मित्रों पर गर्व है जिन्होंने जो कुछ इस समय हो रहा था, उसके प्रति अपना विरोध प्रकट किया। अध्यक्ष महोदय, मैं इसके अधिक विस्तार में नहीं जाऊँगा। मैं चाहता हूँ कि हमारे सभी सदस्य इसमें सम्मिलित हों। इस महान उद्योग के लिए, इस महान कार्य के लिए, जो हमारे सम्मुख हैं, मैं आपका सहयोग चाहता हूँ ताकि इस देश को वह गौरव और सम्मान पुनः प्राप्त हो सके जिसका वह अधिकारी है। मैं आप सब को धन्यवाद देता हूँ।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।