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नया देश बनाने के लिए हमें ढूढ़नी होगी एकमत होकर नई राह: प्रधानमंत्री

मंत्रिपरिषद में विश्वास के प्रस्ताव पर 16 नवम्बर, 1990 चन्द्रशेखर

मैं प्रस्ताव करता हूँ,

‘‘कि यह सभा मन्त्रिपरिषद म ंेअपना विश्वास अभिव्यक्त करती है।’’ अध्यक्ष महोदय, मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि मन्त्रिमण्डल के न बनने से हमारे कई मित्रों को बड़ा सदमा पहँचुा ह ैआरै उनकी बडी़ इच्छा ह ैकि व ेमन्त्रिमण्डल के सभी सदस्यों के चेहरे जल्दी-से-जल्दी देख लें। मिनिस्टरों की तस्वीर देखते-देखते आदत इतनी बिगड़ गई है कि बिना उन्हें देखे उनको संसद निरर्थक मालूम होती है। उन्होंने हमसे कारण जानना चाहा। कई कारण हैं।

अध्यक्ष महोदय, बड़ी विनम्रता से यह काम हमने संभाला है और हमारे मित्रों ने बार-बार यह आवाज उठायी है कि संसद में हमारा कोई बहुमत नहीं है। मैं उनको इस बात के लिए कोई मौका नहीं देना चाहता था कि उनकी इच्छा के बिना या संसद की इच्छा के बिना मैं बड़े पैमाने पर मंत्रिमण्डल का विस्तार करूँ। इसलिए एक ही कारण था कि संसद से विश्वास प्राप्त करने के बाद तुरन्त मंत्रिमण्डल का विस्तार किया जाएगा। मैं समझता हूँ कि यह कारण उनकी समझ में पहले ही आ जाना चाहिए था। लेकिन यह कारण अगर उनकी समझ में नहीं आता तो जैसे एक खास तरह की चिड़िया होती है, जिसे सूरज की रोशनी में कुछ दिखायी नहीं देता तो इसमें सूरज की रोशनी का कोई दोष नहीं है, चिड़िया की आंख का दोष है। इसलिए अध्यक्ष महोदय, मैं आपके जरिये सदन से निवेदन करना चाहूँगा कि हम आज कठिन परिस्थितियों में से गुजर रहे हैं, देश की हालत बुरी है।

म ंैकिसी पर आरापे नही ंलगाना चाहता आरै म ंैइस समय र्काइे लम्बा-चाडैा़ भाषण भी नहीं देना चाहता, सिर्फ जो दो-एक सवाल उठाए जाते हैं, केवल उन्हीं का जवाब देना चाहता हूँ। सवाल है कि क्या प्यूपिल का मैंन्डेट हमें प्राप्त है या नहीं? लोगों ने जन-समर्थन दिया है या नहीं? यह सवाल अक्सर उठाया जाता है। जब हम पिछले चुनावों में जीते थे, जनता ने हमें सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था, उस समर्थन में हमारे माननीय मित्र आडवाणी जी भी थे, सोमनाथ चटर्जी जी थे, इन्द्रजीत गुप्त जी भी थे, उस समय हमने कहा था कि हम कांग्रेस के विरोध में सरकार बनायेंगे।

उस समय जो घोषणा-पत्र जारी किया गया था आडवाणी जी ने अपने घोषणा-पत्र में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हम धारा 370 के ऊपर कोई समझौता नहीं करेंगे। उसी तरह से आडवाणी जी ने कुछ दूसरे सवाल भी उठाए थे, मैं उनमें जाना नहीं चाहता। हमने भी कहा था कि कुछ सवालों पर हम भी कोई समझौता नहीं करेंगे। हमारी वामपंथी पार्टियों के लोगों ने भी कहा था कि कुछ बिन्दुओं पर हम भी कोई समझौता नहीं करेंगे। उस समय हमने यह भी विश्वास दिलाया था कि हम पाँच वर्ष तक उस सरकार को चलायेंगे। यह भी जनसमर्थन पाने का एक आधार था। मैं अपने मित्रों से यह जानना चाहता ह ँूकि पिछली सरकार का ेगिरान ेम ंेक्या मरेा र्काइे हाथ था?

अध्यक्ष महोदय, अभी हमारे मित्र जार्ज फर्नान्डीज साहब मुझे याद दिला रहे हैं कि हमने सरकार के खिलाफ वोट दिया था, लेकिन हमने उस सरकार के खिलाफ वोट दिया था जो सरकार निष्प्राण थी। उस दिन से वह निष्प्राण हो गई थी जिस दिन से आडवाणी जी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। जनतन्त्र के इतिहास में, संसदीय जनतन्त्र में आप मुझे एक उदाहरण बता दीजिए कि कोई भी प्रधानमंत्री स्पष्ट रूप से बहुमत का समर्थन खोने के बाद सदन में इस तरह से कुर्सी से चिपका रहा हो। यहाँ राजनैतिक नैतिकता का सवाल उठाया जाता है और मुझे कहा जा रहा है कि मैंने उस सरकार को गिराया था।

मैं उस समय के प्रधानमंत्री के विरोध में था, इस बात को मैंने कभी नहीं छिपाया, लेकिन सरकार को गिराने में मेरा कोई हाथ नहीं था। सरकार अगर गिरी तो उन दो मित्रों के आपसी मतभेदों की वजह से गिरी, जो आज साथ-साथ बैठे हुए हैं। यदि पिछली सरकार चल रही थी तो उनके सहयोग की वजह से चल रही थी।

अध्यक्ष महोदय, मैं तो इन सवालों को यहाँ उठाना नहीं चाहता था, अगर हमारे मित्र इन सवालों का जवाब चाहते थे तो सुनने के लिए भी उनको तैयार रहना चाहिए क्योंकि ये सवाल मेरी नजर में बुनियादी नहीं हैं। बुनियादी सवाल है कि देश के सामने चुनौतियाँ क्या हैं? यह देश किस हालत में है? जो लोग बड़े जोरों से वाह-वाह के नारे लगा रहे हैं। उन्होंने किस तरह से इस देश को 11 महीने तक चलाया है? किस हालत में अर्थव्यवस्था को छोड़ा है?

अध्यक्ष महोदय, मैं आज यह कहने के लिए सदन में स्वतन्त्र नहीं हूँ, लेकिन एक बात मैं जरूर चाहूँगा सारी पार्टियों के नेताओं से कि उन सारी परिस्थितियों को मैं आपके सामने रखने के लिए तैयार हूँ जिन परिस्थितियों में देश को छोड़ा गया है। अगर अध्यक्ष महोदय, यह सदन तैयार हो और अगर आपकी अनुमति हो, तो मैं उन सारी परिस्थितियों को सदन के सामने रखने को तैयार हूँ। इन छह दिनों में सरकार की हालत, देश की हालत वहाँ नहीं पहुँची है। हालत हमको विरासत में मिली है। मैं इसके बारे में जिक्र नहीं करना चाहता हूँ। देश की अर्थव्यवस्था को आज विनाश के कगार पर पहुँचा दिया गया है।

अध्यक्ष महोदय, मैं जानता हूँ कि सारी कोशिशों के बावजूद यह देश टूटेगा नहीं। हजारों वर्षों की तहजीबोतमद्दुन का यह देश, हजारों-करोड़ों लोगों की जन-शक्ति है, इस देश को बचाने के लिए, यह देश बचेगा। पिछले 11 महीनों में दुनिया के सामने क्या संकेत दिए गए, क्या नीतियाँ रखी गयीं दुनिया के सामने, इन सबके कारण आज देश के लोगों के ऊपर, देश की अर्थव्यवस्था के ऊपर, देश के स्थायित्व के ऊपर, देश की एकता और अखण्डता के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है और उस प्रश्नचिन्ह को समाप्त करने का एक ही तरीका है-आज देश के करोड़ों लोगों का हम सहयोग लें।

करोड़ों लोगों में तथा भारत की अर्थव्यवस्था में वह ताकत है कि बिगड़ी हुई स्थिति को हम बना सकते हैं। सारे देशवासियों से मैं यह कहना चाहूँगा कि कठिनाई का समय है, चुनौती का समय है, लेकिन हमें उनका सहयोग चाहिए, उनकी शक्ति चाहिए। मैं सारी पार्टियों के नेताओं से आपके जरिये अध्यक्ष महोदय, यह कहना चाहता हूँ कि आप स्वयं देखें-मैं कुछ बातें कहने के लिए स्वतन्त्र हूँ, लेकिन जितनी बातें आपके माध्यम से कही जा सकती हैं, मैं कहने के लिए तैयार हूँ और जो बातें मैं आज कह रहा हूँ, यदि उनमें एक प्रतिशत भी अतिशयाेिक्त हा,े ता ेन कवेल प्रधानमत्रंी क ेपद स,े बल्कि इस सदन की सदस्यता से हटने के लिए तैयार हूँ।

अध्यक्ष महोदय, मुझे बारे में जानकारी थी और इस जानकारी को मैं आज, यहाँ नहीं बता रहा हूँ, आडवाणी जी बैठे हुए हैं, कई महीनों से मैं इनसे कह रहा हूँ-आडवाणी जी, जिस रास्ते पर देश को ले जा रहे हो, वह रास्ता विनाश का रास्ता है। उस समय मैंने वामपंथी पार्टी के बड़े नेताओं से कहा कि हम बरबादी की ओर, विनाश की ओर जा रहे हैं। उसको रोकने के लिए हमने कोशिश की।

अध्यक्ष महोदय, यह सही है कि हमने कांग्रेस के लोगों का समर्थन लिया और मुझे ऐसा करने में कोई ग्लानि नहीं हैं। मैंने समर्थन लिया है और वही समर्थन मैं चाहता हूँ और मित्रों से भी, जो आज यहाँ शेम-शेम कह रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, यह सवाल किसी व्यक्ति के गौरव का नहीं है। यह सवाल किसी व्यक्ति के अभिमान का नहीं है। यह सवाल देश को बचाने का है और इस देश को बचाने के सवाल पर हम सबका एका चाहते हैं, सबकी ताकत चाहते हैं, न केवल सदस्यों से, बल्कि सारे देशवासियों से।

अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से, मैं कहना चाहता हूँ उन लोगों से कि एक दिन इस देश को बचाने के लिए आडवाणी जी आपके लिए देवता थे, आज आडवाणी आपके लिए राक्षस हो गए हैं, तो यह राजनीति आपकी है, मेरी नहीं। आज ये वामपंथी दल के लोग जो ऐसा समझते हैं कि उन्हें सर्टिफिकेट देने का अधिकार मिल गया है-जिसको चाहे प्रगतिशील कह दें, जिसको चाहें प्रतिक्रियावादी कह दें, मुझे इनसे कोई सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं बड़ी नम्रता के साथ यही कहना चाहता हूँ कि मैंने भी इस देश की राजनीति में कुछ समय बिताया है। इन बड़े बहादुरों को मैंने बहुत नजदीक से देखा है। मेरे बारे में कुछ कहने से पहले वे जरा अपने दिल पर हाथ रखकर सोचें और सारे वामपंथी नेताओं खासतौर से उन नेताओं को जिन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में काम किया है, जिनके पीछे, एक इतिहास है, उस इतिहास के नाते मैं, उनका आदर करता हूँ और आज भी मैं समझता हूँ कि उनको शायद परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है।

जिस हालात में आज देश पहुँच गया है, इसकी उनकी जानकारी नहीं है। मैं चाहूँगा कि वे स्वयं जानकारी करें और जानकारी करके यह सोचें कि देश को बचाने के लिए सबके सहयोग और समर्थन की जरूरत है या नहीं? मैं एक बात यह भी कहना चाहूँगा, कई बार कहा जाता है, इधर से नारे लगाए जाते ह ंैकि पध््राानमत्रंी कानै ह?ै आज अभी आपका ेमालमू नही ंह,ै कछु दिना ंेम ंेमालमू हो जाएगा कि पध््राानमत्रंी कानै ह,ै ज्यादा अच्छी तरह स ेमालमू हा ेजाएगा।

प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति का सवाल नहीं है, प्रधानमंत्री वह है, जिसको इस संसद का समर्थन प्राप्त है। प्रधानमंत्री वह है, जिसको संविधान के जरिए देश ने स्वीकार किया है। इसलिए प्रधानमंत्री की चिन्ता मत कीजिए, देश के भविष्य की चिन्ता कीजिए, इस देश की बिगड़ी हुई हालत को बनाने की चिन्ता कीजिए।

मैं एक ही बात कहूँगा कि यद्यपि हालत खराब है लेकिन फिर भी हमारे देश में एक बड़ी शक्ति है। हमारे किसानों-मजदूरों के हाथों के पौरुष से इस देश को फिर से बनाया जा सकता है। हमारे देश के करोड़ों लोगों के मन में आज भी देश के लिए गौरव और राष्ट्रपे्रम है, मैं उनका भी सहयोग चाहूँगा। मैं उन लोगों में से हूँ जो विश्वास करते हैं कि देश बचाने के लिए हमको किसी का सहारा चाहिए, हमें देश के लोगों की शक्ति चाहिए। इसी कारण हमने यह काम शुरू किया है।

मुझे विश्वास है इस बड़े काम में हमें सबका सहयोग और समर्थन मिलेगा। किसी को चुनौती देने के लिए नहीं, केवल वास्तविकता की जानकारी के लिए मैं केवल एक ही बात दोहराना चाहता हूँ कि भाषण देते समय एक बात का ध्यान रखें, कहीं मजबूर होकर मुझे ऐसी बातें न कहनी पड़ें जहाँ फिर आप लोगों के बीच में भाषण देने के लायक न रहें। इसलिए मैं आपसे कहूँगा कि इस पर स्वयं विचार करें। मैं आपके विवेक के ऊपर छोड़ता हूँ। अगर आप चाहते हैं कि देश की वास्तविक स्थिति देश के सामने आए तो आप अपने ऊपर यह जिम्मेदारी लें और देश के प्रधानमंत्री के नाते मैं आपके सामने वे सारे तथ्य रखना चाहता हूँ जिनके आधार पर मैंने इस सरकार का विरोध किया है और जिन तथ्यों के आधार पर मैंने देश की सारी ताकतों के साथ एका किया है,देश को नई शक्ति देने के लिए एक नई प्रेरणा देने के लिए, एक विश्वास और उत्साह देने के लिए।

मुझे विश्वास है कि जिन लोगों को देश का भविष्य प्यारा है, जिन लोगों को देश की असीमता में, गौरव में आज विश्वास है, वे लोग हमारा साथ देंगे। आज जरूरत झगड़े की नहीं है, आपसी सद्भाव की है। भाइर्-र्भाइ का खनू न बहाए, एक-एक आदमी की जिन्दगी प्यारी ह,ै एक आदमी भी यदि मरता ह ैतो हिन्दस्ुतान का र्काइे बटेा या बटेी मरती ह।ै म ंैचाहगँूा आज साम्पद्रायिकता क ेसवाल पर, जाति-बिरादरी क ेसवाल पर, गरीबी के सवाल पर हमको एकमत होकर एक ऐसी राह ढूँढ़नी चाहिए जिससे दुःखी दिलों पर मरहम लगा सकें, एक नई ताकत पैदा कर सकें और नया देश बन सके। इन्हीं शब्दों के साथ मैं चाहता हूँ कि यह सदन मेरे प्रस्ताव का समर्थन करे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।