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दो विश्व युद्धों के लिए जिम्मेदार है नयी अर्थव्यवस्था, लाशों पर चलाती है व्यापार

लोकसभा में 16 जुलाई, 1992 को अविश्वास प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष महोदय, बड़ी आशा और विश्वास से देश ने इस सरकार की ओर देखा था। यह कहने से मुझे कोई संकोच नहीं कि मैंने भी यह समझा था कि वर्तमान प्रधानमंत्री के कार्यकाल में माहौल बदलेगा, काम करने का तरीका बदलेगा। इसका आधार था कि वर्षों से उनको जानता हूँ। राष्ट्रीय आन्दोलन में उन्होंने हिस्सा लिया था। उन्होंने कांग्रेस की उस परम्परा में राजनीति शुरू की थी, जिस परम्परा को गाँधी ने, नेहरू ने, मौलाना आजाद ने शुरू किया था। उन्होंने शुरू में ही कहा था, सबसे विचार करके हम इस सरकार को चलाएंगे। देश में समस्याएं जटिल हैं, उन जटिल समस्याओं के समाधान के लिए सबसे सलाह लेंगे, बातचीत का रास्ता अपनाएंगे।

यह आज मैं नहीं कह रहा हूँ, चाहे मैं चन्द दिनों के लिए सरकार में रहा हूँ, हमारे कुछ मित्रों के हिसाब से वही मेरे सबसे बड़े पाप के दिन थे लेकिन उन दिनों का मैं जिक्र नहीं करना चाहता, क्योंकि, उन दिनों का जिक्र करना बड़ा दुःखद होगा। सारी उत्तेजना के बावजूद भी मैं अपने ऊपर आत्म नियंत्रण रखना ही सही समझता हूँ। मैंने इस पर सोचा और मेेरे गुरूदेव अटल जी ने भी कहा, माहौल जब गर्म है तो गर्म माहौल में और गर्मी लाने की जरूरत नहीं है। मैं समझता हूँ कि गर्मी लाने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन मुझे अत्यन्त दुःख के साथ यह कहना पड़ता है, मैं नहीं जानता देश का मोह भंग हुआ या नहीं, मैं नहीं जानता अन्य सदस्यों का मोह भंग हुआ या नहीं लेकिन मैं इस अविश्वास के प्रस्ताव का समर्थन इसलिए कर रहा हूँ कि हर मुद्दे पर इस सरकार से मेरे जैसे व्यक्ति का मोह भंग हो चुका है।

मैं प्रारम्भिक दिनों की याद दिलाता हूँ, जब हमारे प्रधानमंत्री ने शपथ नहीं ली थी, सभी हमारे मित्र संतोष मोहन देव ने बड़ी कृपापूर्वक कहा कि मैंने असम में सही निर्णय लिया लेकिन क्या वह भूल गए मैंने केवल असम में निर्णय नहीं लिया था। यही निर्णय पंजाब के लिए भी लिया था। हमने कहा था कि दोनों जगह चुनाव सबसे बातचीत करके मैंने कहा था। मैं नहीं जानता किसकी सलाह पर, अध्यक्ष महोदय, मैं जिक्र नहीं करता लेकिन इतिहास में यह एक ऐसी घटना है जिसके बारे में अगर मैं कुछ न कहूँ तो मैं अपने कर्तव्य से पीछे हटूँगा। उस समय के राष्ट्रपति, जो आज भी राष्ट्रपति हैं, उन्होंने कहा था कि पंजाब और असम में चुनाव नहीं किए जाने चाहिए और खुले तौर पर कांग्रेस पार्टी ने उसका समर्थन किया था। हमने उस बात को नहीं माना, हमने कहा कि नहीं, स्थिति ऐसी है कि असम और पंजाब दोनों में चुनाव हो सकता है। संतोष मोहन देव जी शायद यह न जानते हों लेकिन उनकी पार्टी ने असम के चुनाव का भी विरोध किया था।

हमने चुनाव कराए, असम के चुनाव हो गए और उसके ऊपर उपलब्धियों का जिक्र संतोष मोहन देव ने किया है। चुनाव जिन परिस्थितियों में हुए, जिस प्रकार हुए उसके लिए मैं कोई श्रेय नहीं लेना चाहता, लेकिन अध्यक्ष महोदय, बड़ी विनम्रता से मैं संतोष मोहन देव जी को याद दिलाना चाहता हूँ, क्योंकि वह उस अंचल से आते हैं और वहाँ की हालत को जानते हैं। आप चुनाव जीत गए जिस चुनाव के आप विरोधी थे, आपके पक्ष में चुनाव हो गया। आप प्रसन्न हैं लेकिन उस परिणाम के बाद आपने जो सरकार बनाई, मैं उस व्यक्ति का नाम नहीं लेना चाहता जो व्यक्ति वहाँ की समस्याओं को पैदा करने के लिए जिम्मेदार था उसको आपने बना करके किए पर पानी फेरने का काम किया। इससे अधिक में किसी सरकार या किसी मुख्यमंत्री के बारे में नहीं कहना चाहूँगा, क्योंकि जब कठिन समय था उस समय असम में चुनाव शांतिपूर्वक हुए। जब आपकी सरकार है असम में, जितनी उपलब्धियों का आप जिक्र कर लें लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है।

दूसरी बात पंजाब की है। सहमति की सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री ने शपथ लेने के पहले उन चुनावों को स्थगित करने के लिए जोर डाला, चुनाव स्थगित करने के लिए मुझसे कहा गया, मैनंे कहा कि मै ंउन चुनावा ेंको स्थगित नहीं करूँगा। 24 घण्टे चुनाव होने को बाकी थे, आपने चुनाव को टाल दिया और आप मैं नैतिक साहस नहीं है कि आप कहें कि चुनावों को हमने टाल दिया। मैंने तो नहीं कहा था, मैंने तो जिन लोगों से बात की उनसे कहा कि ब्लू स्टार के बाद यह दूसरी बड़ी दुर्घटना होगी, अगर आप चुनाव को टालते हैं। अध्यक्ष महोदय, चुनाव टाले गए, क्या सहमति की सरकार का शुभारम्भ इस तरह से होता है? एक सरकार थी आपकी कृपा से बनी हुई थी, आप उस समय प्रधानमंत्री नहीं थे। प्रधानमंत्री कहने के लिए मैं था। उस प्रधानमंत्री की राय के बिना परवाह किए हुए एक पीछे के रास्ते से निर्णय ले लिया। मैं इसलिए कहता हूँ कि सरकार की बुनियाद तिकड़म पर है, इस सरकार की बुनियाद उन मान्यताओं पर है जो मान्यताएं जनतन्त्र की मान्यताएं नहीं हैं, जो मान्यताएँ पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी की मान्यताएँ नहीं हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं बड़ी गम्भीरतापूर्वक कहता हूँ कि उस दिन मेरे हृदय को धक्का लगा था। क्या यह बात प्रधानमंत्री, जो राष्ट्रीय आन्दोलन की देन हैं, जिन्होंने जनतन्त्र की रक्षा करने का वचन दिया था। मैं कोई व्यक्तिगत रूप से नहीं कह रहा हूँ, कि कहाँ भ्रष्टाचार हुआ? बोफोर्स में किसने पैसा लिया, मैं बार-बार पहले से कह रहा हूँ कि यह भ्रष्टाचार छोटी बात है लेकिन यह देश के साथ, इसके संविधान के साथ, इसकी मर्यादाओं के साथ, मान्यताओं के साथ जो विश्वासघात है, यह सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है जिसके लिए इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा।

चुनाव पंजाब में, जब हम कर रहे थे, जून में, आपने उसका बायकाट किया था। आपको याद होगा, माननीय मित्र अर्जुन सिंह जी यहाँ बैठे हुए हैं, आपने सभाएँ की थीं। आपने जगह-जगह कहा था कि यह समय चुनाव कराने ठीक नहीं हैं, इसको बायकाट करो। ठीक है आपने चुनाव टाल दिए। पिछले साल फरवरी में आपने चुनाव कराए। अकाली दल के लोगों से उस चुनाव का बायकाट कराया, क्या इस सरकार को जरा भी लज्जा नहीं आती, जरा भी अपने दामन में झांकने की कोशिश नहीं करते। अगर श्री राव और अर्जुन सिंह जी चुनाव का बायकाट करें तो यह देशपे्रम है और अगर बादल और टोहरा बायकाट करें तो देशद्रोही हो जाते हैं। यह जनतन्त्र की परिभाषा इस कांग्रेस पार्टी में मैं सीखने के लिए तैयार नहीं हूँ।

मैंने उस समय कहा था कि सोमनाथ जी यह जो कदम है, सिक्खों से हमको और अलग करने का रास्ता है, यह देश की बर्बादी का रास्ता है। मैं भरे हृदय से, बड़ेे दुःख के साथ कहता हूँ कि अटल जी आपने हमारी बात नहीं सुनी, विश्वनाथ जी आपने नहीं सुनी, सोमनाथ जी, इन्द्रजीत गुप्त ने नहीं सुनी और जो चुनाव हुए उस पर आपको अभिमान है। बयान देते हैं अखबारों में, किसको बेवकूफ बना रहे हैं किसको दुनिया में भ्रम में डाल रहे हो, पंजाब की जनता के मन में कोई भ्रम नहीं है, दुनिया की नजर में कोई भ्रम नहीं है, जिस तरह के लोगों ने चुनाव में मत डाले, जिस तरह से चुनाव कराए गए, क्या वह चुनाव कराने का तरीका था, मर्यादाओं से या जिम्मेदारियों से क्या आप कह सकते हैं कि यह सहमति की सरकार है, यह सरकार मान्यताओं और मार्यादाओं को रखने वाली सरकार है, क्या आप कह सकते हैं?

अर्जुन सिंह जी आप प्रधानमंत्री जी की भूरि-भरि प्रशंसा कीजिए, वह आपकी मजबूरी हो सकती है, हमारी भी इच्छा होती है कि हम प्रधानमंत्री जी की प्रशसंा करे,ं दिल से कहता हँू, कोई छिपाकर नही ंकहता, लेकिन जिस दिन उन्होंने पंजाब में यह काम किया, उस दिन हमारे दिल को एक ठेस लगी। इतना ही नहीं, पंजाब को छोड़िए, मैं बहुत ज्यादा समय नहीं लेना चाहता, केवल कुछ बिदुओं पर जो राष्ट्रीय समस्याएँ हैं, उनके बारे में आपके सामने जिक्र करना चाहता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, आज ढिढोरा पीटा जा रहा है नई इकनामिक पालिसी का, कि इससे सोसायटी का री-स्ट्रक्चर किया जा रहा है। मैंने उस समय कहा था कि यह बर्बादी का रास्ता है। जसवन्त सिंह जी को थोड़ी हमदर्दी है उस नीति से, आज भी है, बनाए रखिए हमदर्दी, हमे ंकोई ऐतराज नही ंहै। मैनंे अपने मित्र मनमोहन सिंह जी को कहा था कि यह रास्ता खतरनाक है, इस पर मत जाओ। हमारे मित्र जिक्र कर रहे थे कि दुनिया के दूसरे देशों ने इस रास्ते को अपनाया है, फिलीपींस ने बहुत तरक्की की है, कल ही जिक्र किया था और आज से 10 दिन पहले फिलीपींस में राजनेता का आपने बयान पढ़ा होगा, उन्होंने कहा था कि फिलीपींस में विकास तो हुआ, अर्थ-व्यवस्था बढ़ी, लेकिन फिलीपींस प्रोस्टीट्यूशन का अड्डा बन गया है। जसवन्त सिंह जी, उस संस्कृति को आप यहाँ पर लाना चाहते हैं, मैं जानना चाहता हूँ।

आज बड़े अभिमान के साथ कहा जाता है कि जापान सरकार को हमने कहा है, वह यहाँ पर जेपनीज सिटी बनाए, वे एग्री भी कर रहे हैं। हमारे मित्र रवि राय जी जब सवाल उठाते हैं तो देश के प्रधानमंत्री जी महात्मा गाँधी जी की परम्पराओं में पले हैं, जो सादगी के अवतार हैं, वे उठ कर मजाक करते हैं। मुझे याद आता है सोमनाथ जी वह दिन, ओरोविलो में अरविन्द आश्रम में एक ऐसी ही कालोनी बन रही थी, किसी देश की नहीं, कितना हंगामा मचा था, आप उठा कर पढ़ लीजिए। आज ये मान्यताएँ हमारी कितनी गिर गई हैं, हमारे सोचने के तरीके को क्या हो गया है, हमारी मानसिकता क्या हो गई है, इस पर आप कभी सोचें।

दूसरी बात, बड़े अभिमान के साथ कहा जाता है मनमोहन सिंह जी, 6-7 बिलियन डालर, आंकड़े मुझे नहीं आते हैं, कुछ मनचले नौजवान कंप्यूटर रखते हैं, उन्होंने इस देश को बिगाड़ दिया। मुझे अफसोस हुआ, इस मैगजीन में मैंने देखा। हमारे प्रधानमंत्री जी अपने घर में एक कंप्यूटर रखे हुए हैं, बुढ़ापे में पता नहीं क्या शौक उनको उठा है। ठीक है, मैं कंप्यूटर का विरोधी नहीं हूँ। लेकिन अध्यक्ष महोदय, हम लोगों की उम्र अब वह नहीं है। गाँधी जी जो लकुटी लिए हुए झोंपड़ी में रहने वाले थे, मनमोहन सिंह जी के यहाँ कंप्यूूटर चल सकता है, हमारे मित्र गहलोत जी कंप्यूटर चलाएँ, राजेश पायलट का भी समझ में आता है, शरद पवार चलाएं लेकिन कहीं होड़ में हम पीछे न रह जाएँ, इसलिए प्रधानमंत्री ने अपने घर में कंप्यूटर लगा लिया, दुनिया की अखबारों में फोटो छपा, क्या यह हमारी मानसिकता इस देश को बनाने की है।

मैं मनमोहन सिंह जी से बड़ी नम्रता से कहूँगा कि विश्व अर्थव्यवस्था के साथ आप अपने को जोड़ रहे हैं। जसवन्त सिंह जी, मैं आपसे कहूँगा, आप अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिए कि क्या यह अर्थव्यवस्था अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए दुनिया में संघर्ष नहीं कराती है, क्या हजारों-लाखों लोगों को लड़ाई कराकर उनकी मौत नहीं कराती है, क्या दुनिया का एक भी आदमी इस बात से इन्कार कर सकता है कि जिस अर्थव्यवस्था की हम नकल कर रहे है,ं वह अर्थव्यवस्था दो विश्वयुद्धों के लिए जिम्मेदार है। अनेक छोटे देशों को पदाक्रांत करने के लिए यह अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है, जो लोग करोड़ों गरीबों की लाशों पर अपना व्यापार चलाते हैं, उनकी यह अर्थव्यवस्था है। जिनकी दवाओं का एक्सपेरीमेन्ट डेवलपिंग कंट्रीज में होता है, क्योंकि उनके वहाँ के लोगों की जिन्दगी बेशकीमती है, वहाँ एक्सपेरीमेन्ट नहीं हो सकता और उसी अर्थव्यवस्था का एक नजारा हमने भोपाल में देखा है, मैं नहीं जाऊँगा उस अर्थव्यवस्था पर। कितना मोह, कितनी विडम्बना, कितनी आत्म-प्रवंचना।

अमेरिका की अर्थव्यवस्था अपने कुछ थोड़े से काले लोगों की समस्या को हल नहीं कर सकी, उनको मर्यादा की जिन्दगी नहीं दे सकी, वह हमारे करोड़ों गरीबों को देगी मर्यादा की जिन्दगी? अर्थव्यवस्था को आँकड़ों से सिद्ध न करो। कितनी कीमत घट गयी, कितनी बढ़ गयी, जसवन्त सिंह जी भी बोल रहे थे। मैं आपसे पूछता हूँ कि वी.पी. सिंह की निकम्मी सरकार थी, चन्द्रशेखर की निकम्मी सरकार थी, आज की उजागर सरकार पिछले साल जून में जब आयी, आपने हुकूमत ली, उस समय गरीब को जिस भाव पर आवश्यकता की चीजें मिलती थी, परसेंटेज में न बोलें, आँकड़ों पर मत बोलें, आटा-चावल, तेल का भाव क्या था, यह बोलें। सीधे बोलें कि उस वक्त इस कीमत पर चीजें मिलती थी। आँकड़ों से दुनिया को भ्रम में डालने की साजिश करने वाली सरकार भारत के गरीबों की सरकार नहीं हो सकती।

मैंने उसी दिन कहा था, जब बजट आया, बड़ी प्रशंसा उस वक्त इस तरफ से हुई। हमारे वित्तमंत्री जी ने बहुत चालाकी से काम किया। उन्होंने तीन फीसदी के लिए बेटर किया है, 97 फीसदी लोग उनकी नजरों में हैं ही नहीं। कहाँ गयी स्वर्णिम हाथ मिलाने वाली योजना? 40 वर्ष की उम्र में, सोमनाथ जी, आपने कहा, पैसा दे दो, घर चले जाओ। वे भी आदमी हैं, कम्प्यूटर नहीं हैं, मशीन नहीं हैं, 40 वर्ष की उम्र में जिसको घर भेज दोगे, उससे काम नहीं होगा। वह आपको आसानी से छोड़ेगा नहीं। लेकिन अध्यक्ष महोदय, मुझे इन पर गुस्सा नहीं आता है, तरस आता है। मुझे इतिहास की एक गाथा, एक घटना याद आती है। फ्रांस में एक बार राज परिवर्तन हुआ। एक बाल काटने वाला भी आगे बढ़ गया, नेता हो गया। थोड़े दिनों बाद प्रतिक्रान्ति हुई, वे गिरफ्तार हो गए, जब उनको जेल में ले गए, फांसी की सजा हो गयी। तो अखबारों के लोगों ने पूछा कि कैसा लग रहा है। उसने एक ही वाक्य कहा, मनमोहन सिंह जी याद रखिए। ‘‘अगर मुझे मालूम होता कि राज के मामले इतने पेचीदा है तो में इसमें ऊपरी तौर से दिलचस्पी नहीं लेता।’’ कहीं आपको यह न कहना पड़े।

इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि मुस्कुराहट जो हजारों-करोड़ों की मुस्कुराहट छीनने के लिए आप जिम्मेदार है, यह एक दिन आंसुओं में बदले बिना नहीं रहेगी। आप करोड़ों गरीबों की मुर्दली के ऊपर चलने वाली अर्थनीति हमें समझा रहे हो। उस विश्व अर्थनीति से हमें जोड़ने जा रहे हैं जो विश्व अर्थ-नीति शोषण पर, दोहन पर, आदमी की मौत के रास्ते पर चलने वाली है। हमें वह नहीं चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, जिस देश की धरती ने महात्मा गाँधी पैदा किया, जिसने दुनिया को स्वावलम्बन, स्वेदशी, मितव्ययिता और सादगी का नारा दिया उसी देश का वित्तमंत्री कहता है स्वदेशी और स्वावलम्बन का नारा आत्मप्रवंचना है, राजनीतिक ढोंग है। मैं इस बात को नहीं कहना चाहता, कोई शेम वहाँ नहीं होती, ‘‘लज्जा’’शब्द इनके शब्दकोश से निकल चुका है। इसलिए उस शब्द के इस्तेमाल करने का कोई अर्थ नहीं रह गया है। अब इस पाॅलसी के बारे में और नहीं कहूँगा। समय आएगा, जब ये खुद बोलने लगेंगे उस पाॅलसी के बारे में। गरीब बोलेगा, उसकी भूख बोलेगी, पीड़ा बोलेगी, उसका दर्द बोलेगा। मैं इतना ही कह कर छोड़ देता हूँ।

एक और घटना हुई। हमारे देश के विदेशमंत्री डावोस में जाते हैं, एक कागज देते हैं, मुझे कोई एतराज नहीं, मैं बोफोर्स के बारे में कभी नहीं बोला, जब विरोध में था, सरकार में था, किसी भी समय नहीं बोला। लेकिन कांग्रेस के मित्रों से मैं बोलना चाहता हूँ कि विदेशमंत्री ने कागज दिया दूसरे विदेश मंत्री को, कहा जाता है कोई वकील था, इनको याद नहीं है कि कौन वकील था। जसवन्त सिंह जी ने कुछ पैराग्राफ सुनाए, लेकिन उसकी जरूरत नहीं है। दुनिया में आजकल आतंकवाद की जो हालत है, कहीं भी विश्व में राजनेता इकट्ठे हों, एक-एक कदम पर, एक-एक इंटैलीजेन्स का आदमी बैठा रहता है। क्या कोई वकील घुस जाएगा वहाँ पर?

यही नहीं अर्जुन सिंह जी मैं आपसे निवेदन करूँगा, अध्यक्ष महोदय, आपके जरिए, कलैक्टिव रिसपांैसिबिलिटी की गवर्नमेन्ट है, सामूहिक उत्तरदायित्व की सरकार है, अखबारों में खबर आती है और प्रधानमंत्री अखबारों को कहते हैं कि इस खत से हमारा कोई मतलब नहीं है। विदेशमंत्री का इस्तीफा होता है, जब इधर से शोर मचता है। प्रधानमंत्री इस्तीफे का बयान देने के लिए नहीं आते हैं, हमारे नौजवान मित्र गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि सुना है, विदेशमंत्री ने त्यागपत्र दे दिया और प्रधानमंत्री ने उसको स्वीकार कर लिया है।

जो प्रधानमंत्री अपने विदेशमंत्री के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते तो उस प्रधानमंत्री के हाथों में देश के सम्मान की सुरक्षा कभी नहीं। यह व्यक्ति का सवाल नहीं, यह संस्थाओं, मर्यादाओं, नियमों और परम्पराओं का सवाल है। मुझे श्री माधव सिंह सोंलकी से कुछ लेना-देना नहीं। वही हालत हमारे दूसरे मित्र की हुई जो कल बोल रहे थे। उनके बारे में कुछ नहीं कहूँगा, पता नहीं कितनों की हालत होगी। उनसे हमारा विरोध या दोस्ती नहीं है। देश में ऐसा कभी हुआ है कि एक कैबीनेट स्तर का मंत्री इस्तीफा दे और प्रधानमंत्री यहाँ आकर बोले तक नहीं। एक शब्द तो कह देते कि बड़े अच्छे थे, गलती हो गई, गलतफहमी में काम हो गया। किस तरह का आचरण है। इसकी प्रशंसा हमारे श्री अर्जुन सिंह जी कर रहे थे, जिसकी प्रशंसा करते हुए हमारे मित्र श्री संतोष मोहन देव थकते नही ंथे। मै ंउनके लिए बिना सम्मान के ऊपर, छीटंाकशी किए हुए उनके कर्तव्यों की तालिका की सूची आपके सामने रख रहा हूँ। ठण्डे दिल से इस पर सोचिए। विरोध पक्ष क्या कहता है और क्यों नहीं कहता है, इसको छोड़ दीजिए।

दूसरा सवाल आया कि बैंकों का शेयर घोटाला हुआ। क्या इसके लिए कुछ कहने की जरूरत है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि अखबारों में रोज-रोज नयी खबरें आती है। कल दूसरे सदन के सदस्यों ने कहा कि पिछले साल जुलाई-से घपला हो रहा है। मुझे सही खबर है या नहीं, देश के राष्ट्रपति ने इस सरकार से पूछा कि शेयर इतने बढ़ रहे हैं तो इस पर आपको क्या कहना है। इस सरकार के लोगों ने कहा कि हमारी आर्थिक नीति की यह सफलता है। दुनिया के शेयर मार्किट के द्वारा कहा गया कि हिन्दुस्तान में क्या हो रहा है। जापान के और अमेरिका के लोगों ने कहा लेकिन रूस के लोगों ने नहीं कहा और चिन्ता मत कीजिए। जिनके पदचिन्हों पर आप चल रहे हैं, उन्होंने कहा।

मुझे कहा जाता है रिजर्व बैंक के गवर्नर ने दो महीने पहले कहा कि मुझे लोगों के खिलाफ कदम उठाने दीजिए। लेकिन उन्हें कदम नहीं उठाने दिया गया। हमारे मित्र श्री जसवन्त सिंह जी को उन पर बड़ा रोष है। उनको कुछ बचाया नहीं जा रहा है। अपने को बचानेे के लिए उनके खिलाफ कदम उठाने की ताकत नही ंहै हुकमूत म,ें इसलिए इस सरकार को इन बाता ेंका जवाब देना होगा। इतनी बड़ी घटना हो जाए और हमारे आकंडे़ बढ़ रहे हैं।

एक मंत्री के बाद दूसरा कहता है कि तरक्की हो गई। कर्जा लेकर आते हैं और रिजर्व बैंक में जमा कर दिया और कहते हैं कि हमारी बड़ी उपलब्धि हो गई। कर्जा लेकर कहाँ से दोगे। क्या एक्सपोर्ट बढ़ाया। कर्जा लेना बड़ी भारी उपलब्धि है तो इसको देश के लोग नहीं मानते हैं। घुटने टेक दो, आत्म-समर्पण कर जाओ, जितना चाहों कर्जा ले लो और हमारे मित्र श्री संतोष मोहन देव कह रहे थे कि दुनिया में बड़ी इज्जत बढ़ गई, लेकिन कार्ला हिल्स दिल्ली में आकर धमका जाती है। हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार कोई विदेशी दिल्ली आकर हमारी सरकार को चेतावनी देता है, अखबार में छपा हुआ है। श्री सोमनाथ चटर्जी कह रहे थे कि आई. एम. एफ. और वल्र्ड बैंक के लोग बैठे हुए वित्तमंत्री से जवाब-तलबी कर रहे हैं कि क्या कर रहे हो, क्या-क्या वायदे किए हैं।

वल्र्ड बैंक की एक दूसरी रिपोर्ट आई है। आपके वित्तमंत्री ने क्या-क्या वायदे उनसे किए और आगे क्या करने वाले हैं। देश की आर्थिक व्यवस्था के ऊपर निर्णय दिल्ली में नहीं, वाशिंगटन में होगा। यह मर्यादा है इस देश को बढ़ाने के लिए। हमारे मित्र श्री जसवन्त सिंह ने जस्टिस के बारे में कहा, जो गिल्टी है, रिवर्स ज्युरीसप्रूडेंस, इस पर श्री अर्जुन सिंह जी ने एतराज किया। मै ंलाॅ का विद्यार्थी नही ंहँू और मै ंराजनीति शास्त्र उतना नही ंजानता हँू जितना इधर के पंडित लोग जानते हैं, लेकिन थोड़ा-बहुत भारत के इतिहास और परम्पराओं को मैं जानता हूँ। किस आधार पर श्री जसवन्तसिंह जी ने कहा कि यह रिवर्स ज्युरीसप्रूडेंस है, हमारी सभ्यता, संस्कृति और हमारे अतीत की देन है।

मैं यह कहना चाहता हूँ कि श्री अर्जुनसिंह जी राम मन्दिर से आपको कितना भी विरोध हो और मुझे कितना भी विरोध हो। लेकिन जिस रामराज्य की कल्पना गाँधी करते थे और जिसके नाम पर आप राजनीति चलाते हो, उस राम ने एक धोबी के कहने पर सीता को घर से निकाल दिया, क्योंकि राजा हर सन्देह से ऊपर होना चाहिए। इसलिए मैं सीजर की बात नहीं करता, मैं भारत की बात कहना चाहता हूँ।

अगर रामराज्य की बात अतीत की बात हो, कांग्रेस के मित्रों को याद न हो तो उसी रामराज्य के ऊपर चलने वाले पण्डित जवाहर लाल नेहरू के राज में क्या टी.टी. कृष्णाचारी और केशव देव मालवीय इससे छोटी बातों पर इस्तीफा नहीं दे दिये थे? मैं इस्तीफा नहीं मांगता, लेकिन जिस अधिकार से वित्तमंत्री कहते हैं कि मैं इस्तीफा नहीं दूंगा, मैं जवाब दूंगा जाइंट पार्लियामेन्टरी कमेटी में। क्या शर्म नहीं आती आपको, इस पार्लियामेन्ट पद्धति के ऊपर। मैं इस्तीफ ेकी बात नही ंकहता, लेिकन क्या टी.टी. कृष्णाचारी, कश्ेाव दवे मालवीय इससे बड़े अपराध के अपराधी थे। जो चाहे सो करो, मत नैतिकता की शिक्षा दो। मत कहो कि हम नया देश बनाने की कोशिश कर रहे हैं, मत कहो कि हम गाँधी के रास्ते पर चल रहे हैं, मत कहो कि हम नई परम्परायें डाल रहे हैं, मत कहो कि इस देश में एक अनोखा प्रधानमंत्री पैदा हुआ। जो किसी पर अपनी बोली नहीं बोलता।

चुप रहेंगे, अगर चुप रहना ही सबसे बड़ी बात है तो शायद किसी मौनी बाबा के लिए ठीक हो सकता है, प्रधानमंत्री के लिए नहीं। भेज दो मठ में मौनी बाबा बना रहे, आरती होगी, पूजा चढ़ेगी, लेकिन प्रधानमंत्री के पद पर बैठकर तो बोलना होगा। समस्याओं पर कुछ न कुछ कहना पड़ेगा। आज हर समस्या इसी तरह से चल रही है।

दूसरा सवाल अयोध्या का है। मैं केवल संकेत कर रहा हूँ कुछ सवालों पर। अयोध्या का सवाल आज आया है क्या, पहले भी था। पहली राष्ट्रीय एकता परिषद की मीटिंग हुई। आडवाणी जी और अटलजी दोनों मौजूद हैं विश्वनाथ जी थ।े व ेभी यहाँ मौजदू है।ं उस समय मैनं ेकहा था सुलह-समझौते से कोई रास्ता निकालो। एक प्रस्ताव आया, हमने कहा कि इस प्रस्ताव को दूर रखो, करो काम, एक प्रस्ताव पास करो कि एक साल तक अयोध्या में कुछ नहीं होगा, केवल बातचीत होगी।

मैंने आडवाणी जी से बात की, मैंने अटल जी से बात की और उनसे कहा कि गुरूदेव कुछ करो, देश टूटने जा रहा है, ‘इसको बचाओ। उन्होंने कहा कि मैं बोलने के लिए तैयार हूँ। दो बार मैं उठकर कहता हँू प्रधानमंत्री जी अटलजी को बोलने की इजाजत नहीं देते हैं, सब लोग बोले, अटल जी नहीं बोल पाये। मैं सबके सामने यहाँ यह बात कह रहा हूँ। एक साल के बाद आज आप कह रहे हो इसका रास्ता निकालो। आडवाणी जी से मैंने कहा, उन्होंने हमसे कहा कि ठीक कह रहे हो, लेकिन सरकार जिस रास्ते पर चल रही है मैं क्या करूँ। तुम से बात करना आसान था, इनसे नहीं। इसका क्या अर्थ है।

मैंने कहा, प्रधानमंत्री जी यह प्रस्ताव निरर्थक है, निरर्थक प्रस्ताव राष्ट्रीय एकता परिषद म ंेमत पास कीजिय।े प्रधानमत्रंी जी का ेमैनं ेएक बार तैश म ंेआते हुए देखा है, मैं हँस कर रह गया। यह असहाय हँसी कोई पुरुषार्थ की द्योतक नहीं है पौरुष का प्रतीक नहीं है, चुप रह गया। एक साल तक बैठे रहे। अगर साधु और संत पूछते हैं कि एक साल तक आपने क्या किया कोई है जवाब आपके पास अर्जुन सिंह जी, कोई है जवाब आपके पास कि आपने क्या किया और क्या कदम उठाया।

राम की अनेक व्याख्यायें हैं। राम सबके हैं, राम को कई रूप में देखा है।

जाकी रही भावना जैसी

हरि मूरत देखी तिन तैसी।

हमारे राम एक हो सकते हैं, अटल जी के राम एक हो सकते हैं, आपके राम दूसरे हो सकते हैं, यहाँ कटियार और दीक्षित जी भी हैं, उनके राम दूसरे हो सकते हैं। हमारे भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। हमारे राम वे हैं जो मैथिलीशरण गुप्त ने हमको सिखाया-

माना राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या।

विश्व में रमे हुए सभी कहीं नहीं हो क्या।

तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे।

तुम न रमो तो मन, तुममे रमा करे।।

लेकिन उस राम की उदात्त भावना की अभिव्यक्ति करने वाले बी.जे.पी. में बहुत से लोग हैं। मैं आज नहीं कह रहा हूँ, बार-बार कह चुका हूँ क्या उनसे आपने सम्पर्क किया? आपने उनसे बात नहीं की। बाबरी मस्जिद कमेटी वालों से बात या चर्चा नहीं की। हर समय चुप रहने की बात, वही मौनी बाबा की कहानी, यह मौनी बाबा की कहानी चलने वाली नही ंहै। मै ंमानता हँू कुछ सन्त, कुछ महात्मा जिनके मन में राम की दूसरी धारणा है, वे गलत रास्ते पर जा रहे हैं, मैं उसका विरोध करता हूँ। लेकिन सरकार के नाते आपकी भी कोई जिम्मेदारी होती है। इसीलिए मैं कल आपसे कह रहा था क्षमा कीजिए अध्यक्ष महोदय मैं अपने मित्र अर्जुन सिंह से कह रहा था, आपकी धर्म-निरपेक्षता मैं समझ सकता हूँ, आपकी सरकार और आपकी पार्टी की धर्म-निरपेक्षता मेरी समझ में नहीं आती।

मैं आज भी यह कहता हूँ कि अगर रामजन्म भूमि-बाबरी-मस्जिद विवाद का सम्मानजनक हल निकाल सकें तो देश की मर्यादा बचा सकेंगे, देश की एकता भी बचा सकेंगे। मैं अपने मित्रों से दूसरी तरफ भी कह चुका हूँ फिर कहता हूँ-याद रखो, बाबर आया था, राणा सांगा जैसे दस हजार लोग थे। मैंने अपने मित्र श्री मदन लाल खुराना से कहा-भाई तुम्हारे जैसे बहादुर नहीं होंगे लेकिन उनमें से कुछ तो बहादुर होंगे जिन्होंने उसका विरोध किया होगा, नहीं तो पुरुषार्थ, पराक्रम, पौरुष कम रहा हो लेकिन फिर भी तुम्हारे हिसाब से मन्दिर टूट गया तो आज इन परिस्थितियों में क्यों टूटा? लोग एक-दूसरे से अलग हो गये थे, बिखर गये थे।

आज हिन्दू-मुसलमान का सवाल नहीं है, इस राष्ट्र की एकता का सवाल है। 12-13 करोड़ लोगों के जज्बात जो मस्जिद से जुडे़ हुए हैं, उनको अलग करके आप क्या देश को एक रख सकोगे? क्या देश की प्रभुसत्ता को बचा सकोगे? मैं उस दिन भी कह रहा था कि हमारे कुछ नौजवान गुस्से में आये, मैं गुस्सा नहीं करता लेकिन मैं दर्द और दुःख के साथ कहता हूँ कि उमा भारती ने मुझको लिखा कि आप हमारा उपहास करते हो। मैंने कहा-उमा जी, क्षमा कीजियेगा, मैं उपहास नहीं करता हूँ, मैं आपकी बात को गम्भीरता से लेता हूँ। हमारा दिल शंका से भर जाता है कि आपने जो निश्चय किया है, अगर वह रास्ता चलता रहा तो हमें लगता है कि भयावह परिणाम होंगे और अगर नहीं हो तो मुझे प्रसन्नता होगी लेकिन उस परिणाम को सोचकर मैं दुःखी हो जाता हूँ, परेशान हो जाता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, इसलिए मैं अपनी बात कहता हूँ कि इस पर भी जो सरकार का रवैया रहा है, मैं कौन शब्द इस्तेमाल करूँ, कैसे कहूँ कि सरकार का यह रवैया क्षम्य नहीं है। बड़े जोरों से कहा जाता है कि हम एक साल कुर्सी पर बने रहे। कुर्सी पकड़े रहना आसान है, कुर्सी छोड़ना मुश्किल है संतोष मोहन देव जी। जनतंत्र में कुर्सी पकड़ लेना बड़ी बात नहीं है। मौका आने पर अगर मर्यादा का सवाल हो, देश की राजनीति की संसदीय परम्परा का सवाल हो, तो कुर्सी को छोड़ देना बड़ी भारी मर्यादा और पुरुषार्थ की बात है। चिपके रहो कुर्सी से। अखबारों में लिखते रहो कि रोज 10 मिनिस्टर हैं या 12 मिनिस्टर हैं जो सब देखते रहते हैं कि कल हमारा नाम तो नहीं आ जायेगा? यह मर्यादा नहीं है।

क्या कैबिनेट मिनिस्टर्स खड़े होकर अपने प्रधानमंत्री के पास जाकर नहीं पूछ सकते हैं कि क्यों नहीं इसका फैसला आज या कल कर देते हो? जहाँ देश की कैबिनेट के एक दो नहीं, दर्जनों मिनिस्टर्स पर उंगली रोज उठायी जाती हो, और देश का प्रधानमंत्री चुप हो? अध्यक्ष महोदय, आप इस सदन के गार्जियन हैं, संरक्षक हैं, क्या उस सरकार को एक मिनट भी रहने का अधिकार है? हम समझ सकते हैं कि क्या-क्या स्कैंडल बन रहे हैं? हम समझ सकते हैं कि बैकों की कार्यवाही न हो? मैं समझ सकता हूँ कि इस देश में और काम ठप्प रहें लेकिन मर्यादा-विहीन कैबिनेट के साथ इस देश का संसदीय जनतंत्र नहीं चल सकता है। इन सवालों के ऊपर मैं सरकार के विरुद्ध हूँ, किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं हूँ।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कहना चाहूँगा कि ये जो बुनियादी सवाल हैं, आज भी समय है लेकिन संतोष मोहन देव जी कहते हैं कि हम फिर जीत जायेंगे। जीते हुए तो थे ही, साल भर तो सरकार चलायी है। इतिहास में क्या लिखा जायेगा कि आपने क्या किया? पंजाब, कश्मीर, असम ही नहीं, दूसरी जगहो ंपर भी लोगो ंकी मौत के लिए आप जिम्मेदार है।ं आप लोगो ंकी बरबादी के लिए जिम्मेदार हैं, समाज को तोड़ने के लिए आप जिम्मेदार हैं और आप हमसे कहते हैं। आखिरकार चार महीने की सरकार, 54 लोगों के समर्थन की सरकार और जिसमें आप हर समय अड़ंगा लगाने की कोश्शि करते थे। अगर विश्व-हिन्दू परिषद बाबरी मस्जिद उसको बैठा सकती है तो आज की सबल, प्रबल सरकार जिसकी शान-शौकत दुनिया के सामने घुटने टेक रही है, यह काम क्यों नहीं करती है? दुनिया में आपकी मर्यादा बढ़ रही है लेकिन देश में आप यह छोटा सा काम नहीं कर सके।

मैं नहीं कहता कि दुनिया के और देशों के साथ आपके रिश्ते क्या हैं? वाशिंगटन की सड़कों पर चप्पल चटखाते हुए सूट-बूट पहने हुए हमारे मंत्री भिखारी की हैसियत से घूम रहे हैं, आप अभिमान की बात कहते हैं। करो अभिमान। सोवियत रूस में फेल हो गया, माक्र्स पढ़ रहे हो। माक्र्स को कोई समझा है? माक्र्स ने सरकार नहीं बनाई थी, माक्र्स ने मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति की थी, इन्सान के जज्बातों की बातें की थीं। जब-जब शोषण होगा, गरीबी रहेगी, भूख रहेगी। जब तक आदमी-आदमी का दोहन करता रहेगा, तब तक माक्र्स का सिद्धान्त अमर रहेगा। रूस में माक्र्स की सरकार बरबाद हो सकती है, रूस की राज्य-क्रान्ति में कुरबानी करने वालों की क्रान्तियां गड़बड़ हो गयीं। महात्मा गांधी की एक-एक बात को चिथड़ा उठा कर फेंक दो, यह सरकार महात्मा गांधी को इतिहास में दफनाने की कोशिश करे। लेकिन महात्मा गांधी अमर रहेंगे और इस दूसरे गांधी को कोई पूछेगा नहीं। इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि मत कहो रूस की बात। मैं सोमनाथ चटर्जी और इन्द्रजीत गुप्ता जी से कहूँगा कि इन बातों से मत घबराओ।

समाजवाद एक शाश्वत सिद्धांत है। समाजवाद मानव मर्यादा का सिद्धांत है, समजवाद आदमी को एक नयी जीवनशक्ति देने का सिद्धांत है, नई जीवन-विधा है और मनमोहन सिह जी, इसको समझ नहीं सकते। उसको हमारे मित्र चिदंबरम नहीं समझ सकते। शायद अर्जुन सिंह को कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा, लेकिन कुछ समझ लें तो बोलें। चुप रहने से नहीं चलेगा। याद रखिए, दिनकर ने कहा था कि जब लड़ाई होती है तो जो लड़ाई में हिस्सा लेता है वही दोषी नहीं है, जो अन्याय के पक्ष में चुप रह जाता है, वह भी उतना ही बड़ा दोषी है। आज हमारे मित्र जो इस तरफ बैठे हुए हैं, ये इतिहास के सामने दोषी हैं। यह आज जो राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक अपराध हो रहा है, उसके मूकदर्शक हैं। मैं उनको निवेदन करूँगा कि इस प्रस्ताव का चाहे जो कुछ हो मगर अपने अंदर कुछ पौरुष लाओ, कुछ बोलने की शक्ति लाओ। नया देश बनाना हो तो इस दिशा में चलो और यह सरकार जितनी जल्दी जाए, देश के लिए उतना ही अच्छा है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।