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6 दिसम्बर को आपने देश को धोखा दिया, आपको शासन में रहने का अधिकार नहीं

लोकसभा में 28 जुलाई, 1993 को मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव पर चन्द्रशेखर

अध्यक्ष जी, फिर एक बार अविश्वास प्रस्ताव पर बोलने का दुःखद प्रसंग उपस्थित हो गया। प्रस्ताव कई बार आ चुके, प्रस्ताव के बाद सरकार बनी रह जाती है और सरकार के लोग इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मान लेते हैं। मानना भी चाहिए, क्योंकि इस देश में एक बात बड़े जोरों से कही जाती है, किसी तरह से सरकार में बने रहो, जितनी लम्बी अवधि खींच जाओगे, उतने ही सफल राजनीतिक नेता आप हो, चाहे वह सफलता पाने के लिए कुछ भी करना पड़े। पिछले दिनों में जो कुछ हुआ है, अविश्वास प्रस्ताव के समय और आज जो हो रहा है, उससे सरकार मत जीत सकती है लेकिन सरकार भारत की सारी परम्पराओं को एक धक्का नीचे की ओर लगा रही है।

हमारी संसदीय परम्परा, हमारी संसदीय मान्यतायें, हमारे राजनीतिक आचरण, हमारी राजनीतिक नैतिकता, सब इसलिए दाँव पर है कि कोई एक व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा रहे। इस सफलता को दिलाने में हमारे कांग्रेस के सारे मित्र एकजुट हैं। होना भी चाहिए, उनकी पार्टी का सवाल है। जिस दिन यह अविश्वास का प्रस्ताव प्रारम्भ हुआ था, उस दिन माननीय अर्जुन सिंह जी ने सवाल उठकर पूछा था, क्या कोई अविश्वास प्रस्ताव के ऊपर शर्त के साथ समर्थन हो सकता है? लेकिन मैं अर्जुन सिंह जी से पूछना चाहता हूँ, कभी उन्होंने अपनी आत्मा को कुरेदा, कभी उनके साथियों ने इस बात को सोचा, विभिन्न विचारों के लोग, क्यों आपसे इतने विमुख हैं? विभिन्न विचारों के लोग जो दूसरों को देखना नहीं चाहते, आपको इस गद्दी से हटाने के लिए क्यों विवश हो रहे हैं। यह कोई व्यक्तिगत द्वेष की भावना नहीं है। यह भी नहीं है कि जो आपको हटाना चाहते हैं, वे तुरन्त गद्दी पर आना चाहते हैं, वह लड़ाई तो आपके अन्दर हो सकती है, विरोध पक्ष की वह लड़ाई नहीं है। लेकिन कुछ पीड़ा है, कुछ दर्द है, कुछ ऐसी बात है, जिससे लोग यह समझते हैं कि न केवल आपके वहाँ रहने से इस देश की समस्याएं जटिल हो रही हैं बल्कि देश की मर्यादा दिन प्रति दिन नीचे गिर रही है।

मैं यह बात किसी आक्षेप के लिए नहीं कह रहा हूँ। कल मैं चिदम्बरम जी का भाषण सुन रहा था, पता नहीं आज वे यहाँ उपस्थित हैं या नहीं। उन्होंने कहा हमने एक सपना देखा था और उस सपने को देखते हुए उन्होंने इन्द्रजीत गुप्त जी और सोमनाथ चटर्जी जी से कहाँ-कहाँ है आपके विचारों की दुनिया, कहाँ है वह सोवियत यूनियन की कल्पना नया समाज बनाने की और कहाँ गया माक्र्सवाद, दुनिया में कौन देश आपके विचारों को लेने वाले हैं। अध्यक्ष जी चिदम्बरम जैसे लोगों को याद नहीं आता है कि इसी देश में महात्मा गांधी ने कुछ विचार दिए थे और दुनिया में उन विचारों का आदर हो रहा है।

अर्जुन सिंह जी, आप वहाँ बैठ कर गांधी के उस विचार की धज्जी उड़ा कर इस सरकार में बने रहने का कुकृत्य कर रहे हैं। क्या हुआ गांधी के सपने का, कहा गया वह भारत, कहाँ गई कल्पना-आप हमें अंग्रेजी में लच्छेदार भाषण दे सकते हो, हमें वल्र्ड बैंक और आई.एम.एफ. का नाम लेकर ताना दे सकते हो और हमको कह सकते हो कि एशियन डेवलपमेंट बैंक हमारा बैंक है। वह सलाह देता है, वह भी आप नहीं मानते। लेकिन मुझे दुःख होता है सीता जैसी परीक्षा देने वाली यह सरकार अग्निपरीक्षा में नहीं जाएगी। अग्निपरीक्षा में जाने वाली सीता 14 वर्ष पहले वनवास में जाती है। यह सीता भी, दो साल के लिए बनवास म ेंजाए, तब अग्निपरीक्षा दे। यह अग्निपरीक्षा ऐसी नहीं है। इसलिए ऐसी सीताओं पर मुझे रहम नहीं आता है, कोई उन पर दया भी नहीं आती है और कोई इज्जत भी नहीं है। मुझे रहम आता है, डा. मनमोहन जैसी सीता पर, जो सोने का मृग ढंूढ रही है। जानते हैं कि सोने का मृग नहीं होता है, लेकिन राम-लक्ष्मण को कह रही है कि ढूंढ़ों मृग हमारे लिए। पता नहीं, इनके लक्ष्मण कौन हैं?

मैं मोन्टेक सिंह अहलुवालिया का नाम नहीं लेना चाहता हूँ। हमारे मित्र हैं, इसलिए मैंने उनका नाम ले लिया। कह रहे हैं कि वल्र्ड बैंक, आई.एम.एफएशियन डेवलपमेंट बैंक, दूसरे देश आएंगे, हमारी मदद करेंगे और इस धरती पर स्वर्ग उतर आयेगा। अनुभव क्या पहला है, हमारे देश का और क्या दुनिया के देशों ने यह काम नहीं किया? जिन देशों का आप नाम लेते हो, मेरे पास समय नहीं कि मैं इस विषय में जाऊं, वल्र्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, हम अमरीका की विदेश नीति को दुनिया में आगे बढ़ाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा है कि जरूरत पड़ी के हमने दुनिया के दूसरे देशों में जाकर दखलन्दाजी की। उन्होंने कहा है, हम जाकर के दूसरे देशों के प्रति क्रांतियां करते हैं। रूस में जो कुछ हुआ, वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। लेनिन-माक्र्स की बात को भुला दो, लेकिन पीड़ा, भूख, दर्द को लेकर आती हुई मानवता को नई दिशा देने के लिए उन्होंने जो कदम उठाया था और वह कदम कैसे सफल हो गया, मैं उसकी विवेचना में नहीं जाना चाहता हूँ। लेकिन जिस अर्थनीति की बात आप कह रहे हो, वह अर्थनीति इस दुनिया में पहली बार नहीं आई है। क्या मनुष्य की पीड़ा पर, शोषण पर आधारित यह अर्थनीति नहीं है? क्या दुनिया में विश्वयुद्धों के लिए जिम्मेवार वह अर्थनीति नहीं है? क्या एक-दूसरे का गला काट करके अपने को बढ़ाने की वह अर्थनीति नहीं है?

इसलिए अटल जी और आडवाणी जी आज कहना चाहता हूँ कि जिस अर्थनीति को आप सब समर्थन दे रहे थे, पता नहीं आज दे रहे हो या नहीं, वह अर्थनीति करुणा की अर्थनीति नहीं है। करुणा और अबाध प्रतियोगिता दोनों साथ नहीं चल सकते। किसी तरह दूसरे को नीचा दिखाओ और अपने को ऊंचा उठाओ, क्या यह अर्थनीति है। कोई आएगा विकास के लिए, मदद देने के लिए, नहीं आएगा, आपसे कुछ लेने के लिए। दुनिया में कौन नहीं जानता कि भारत के बाजार के ऊपर कब्जा करने के लिए दुनिया के औद्योगिक देश आज होड़ लगाये हुए हैं। आप उस होड़ के शिकार बन रहे हो।

कितने सपने आपने 6 महीने, साल भर में दिखाए। क्या इसी सदन में और सदन के बाहर आपने नहीं कहा कि अमरीका हमारा दोस्त हो गया। अमरीका से मेरी कोई लड़ाई नहीं। कहा गया, अमरीका पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने जा रहा है, बड़े जोरों से चर्चा चलाई गई, आतंकवादी देश घोषित करेंगे। जब उन्होंने कहा कि हम नहीं करेंगे तो एक दबी हुई आवाज में आपने कहा कि हमारा भरोसा टूटा है। वह पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित नही ंकरगेा, तब तक, जब तक आप अपन ेका ेहिन्द ूराष्ट्र घाेिषत न कर।ंे आपके कहन ेस ेघाेिषत नही ंकरन ेवाल ेहै,ं अटल जी क ेकहन ेस ेभी नही ंघाेिषत करने वाले है। आडवाणी जी के कहने पर भी नहीं घोषित करने वाले हैं। कोई ऐसा संत-महात्मा जो राजनीति से ऊपर है, जो भगवान से भी ऊपर है वह अगर हिन्दुत्व की परिभाषा नहीं देगा तो उनको इस्लामिक फण्डामेंटलिज्म से लड़ने के लिए एक हिन्दु फण्डामेटलिस्ट स्टेट चाहिए।

यह दुनिया की राजनीति इतनी सीधी नहीं है। इसलिए आप इसके शिकार बन गए। मैं इसलिए इस सरकार के विरोध में हूँ। एक और भ्रष्टाचार कि किसी ने पैसा ले लिया, वह तो जगजाहिर है। लेकिन क्या यह सही नहीं कि आज से 2-3 महीने पहले अमरीका के स्टेट डिपार्टमेंट ने एक मीटिंग बुलाई और आपके हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि गए। मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता। कहा जाता है कि निजी रूप में गये लेकिन आप ही लोगों की सलाह से गए। वहाँ प्रस्ताव रखा गया कि कश्मीर की समस्या का हल निकालने के लिए एक योजना बनाओ। जिस योजना का जिक्र हमारे मित्र चिदम्बरम जी कर रहे थे, पता नहीं 88 में कौन-सी योजना पंजाब की बनाई थी जिसके लिए अपनी पीठ ठोक रहे थे। इस वजह से शांति हो गई।

मैं पंजाब में कुछ नहीं कहना चाहता। क्या है कश्मीर की योजना, राजेश पायलट जी ने उस समय इशारा किया था, योजना है, लेह-लद्दाख को, जम्मू को अलग करो। भारत के साथ मिला लो घाटी में और ज्यादा उनको सुविधा दो। स्वतन्त्रता दो, आटोनोमी दो, देश में शांति आ जाएगी। कश्मीर की समस्या हल हो जायेगी। कहीं छिपे-लुके हमारे कुछ साथी समझते हैं कि चलो जान छूटी, घाटी गई, देश में समस्या का समाधान हो जाएगा।

अटल जी मैंने आपसे भी निवेदन किया था कि यह खतरनाक खेल है। अगर यह योजना कहीं अटक गई तो भारत में आप धर्मनिरपेक्षता नहीं रख सकेंगे। मेंने कुछ दिन पहले यह कहा था कि कश्मीर हमारे लिए टेरेटरी नहीं है, कश्मीर हमारे लिए एक सिद्धांत है, आदर्श है, एक जीवनपद्धति है। हम भूल नहीं सकते 1947 में कश्मीर के लोग पाकिस्तान में नहीं गए थे, महात्मा गांधी के हिन्दुस्तान में आये थे। यह सवाल आज हमारे सामने है, आज उस तस्वीर को हम अपने से अलग करके किसी भी रूप में देश के साथ नहीं रह सकते। मैं उस सवाल पर बाद में आऊंगा। लेकिन पिछले दिनों में क्या हुआ? क्या अर्थनीति का निर्धारण आप कर रहे हो? मैंने पहले दिन यह सवाल उठाया। मैं कम से कम इतना तो कह सकता हूँ कि मनमोहन सिंह जी हमारे मित्र है, आज से नहीं 25 वर्षों से जानता हूँ। उनमें इन्टलेक्चुअल ओनेस्टी है लेकिन मोह उनका भी सीता जैसा हो गया है। पता नहीं इस देश को कहाँ तक ले जाएंगे।

हमारा प्रभाव था जब वे हमारे साथ थे। जब हमारे साथ थे, तब उन्होंने हमको कोई ऐसी सलाह नहीं दी। यह बात मैं इसलिए कहना चाहता हूँ कि अन्याय होगा उनके साथ, हमारा साथ छूटा और मनमोहन सिंह जी बिल्कुल बदल गए। हमारे लिए नहीं बदले, हमारे साथ वही ज्यों का त्यों वही स्नेह, आदर, सद्भावना है, लेकिन नीतियों के सवाल पर वे बदल गए हैं। मनमोहन सिंह जी, इस देश को क्या हो गया है?

अध्यक्ष महोदय, मंैनंे पहली बार कहा कि विश्वबैंक की रिपोर्ट पर भारत की नीतियां बनी हैं। मैंने और जार्ज फर्नांडीज ने भी इसी सदन में कहा था कि एशियन डेवलपमेंट बैंक द्वारा भी एक-दो बातों का जिक्र किया गया था, क्या इनके ऊपर हमारे देश की नीतियां बनेंगी? यही नहीं अध्यक्ष महोदय, कोई भी हमारे देश में विदेश से आएगा और हमको एक सबक सिखाकर चला जाए, हमने कहा कि यह काम मत होने दो, मगर हम जानबूझ कर इस जाल में फंसते चले जा रहे हैं।

हमने बार-बार इस सदन में कहा मनमोहन सिंह जी विदेशी बैकों को बुलाने का लोभ बहुत बड़ा लोभ है। ये बैंक आयेंगे, भ्रष्टाचार फैलाएंगे, आपकी अर्थनीति को तबाह करेंगे। मनमोहन सिंह जी ने सदन में कहा कि हमें इससे परेशानी है। ‘‘स्कैम’’ जो हुआ, हमने इस सवाल को उठाया, मनमोहन सिंह जी ने इसी सदन में कहा कि सात दिन के अन्दर सब रुपया वापिस आ जाएगा, लेकिन कहाँ गया वह रुपया? क्या वह 4 विदेशी बैंकों का जाल नहीं था? ये बैंक इस देश की बड़ी पूंजी को लूट कर ले गए। क्या मनमोहन सिंह जी को आज यह अधिकार हासिल है, क्या उनके अन्दर इतना देह बल है, क्या उनमें इतनी आत्मशक्ति है कि इन बैंकों के खिलाफ कोई कदम उठा सकें? क्यों नहीं इन बैंकों के खिलाफ आप कदम उठाते हैं? आप किस बात का इन्तजाम कर रहे हैं? क्या विश्व बैंक से, आई.एम.एफ. से एक और लोन लेने के बाद यह काम करेंगे? हजारों करोड़ रुपया जो बैंक लूट कर ले गए, भारत सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी हुई है।

अध्यक्ष महोदय, देश अस्मिता पर चलते हैं, आत्म-गौरव पर चलते है मर्यादा पर चलते हैं, आत्म-विश्वास पर चलते हैं। भारत 80 करोड़ का देश है, इस देश को क्या दूसरे लोग उपदेश देंगे? क्या इस देश को दूसरे लोग नीतियां सिखाएंगे? यहाँ पर एक आदमी बाहर से आता है और कुछ भी कह देता है। मैं मानता हूँ कि पाकिस्तान के लोग हमारे देश में दखलंदाजी कर रहे हैं, उसको रोकना चाहिए। रक्षाम़ंत्री जी यहाँ पर इस वक्त नहीं है, मैंने उनसे एक बार कहा था कि जब हमला होगा, सब सबक सिखा देना, रोजाना अखबारों में क्यों सबक सिखाते हो। अखबारों में सबक सिखाकर दूसरों को मौका देते हो कि आप हमारे यहाँ आकर दखलंदाजी करो। मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा था कि पंजाब और कश्मीर में पाकिस्तान की दखलंदाजी रोकने के लिए ऐसी नीति मत बनाओ कि दुनिया के दूसरे देश आपके इस सब-कांटीनेंट में दखलंदाजी करने लगे।

अध्यक्ष महोदय, मैं कोई ग्लूम या अंधेरे की बात नहीं कहता। आज पाकिस्तान में क्या हो रहा है? आज पाकिस्तान में कौन प्रधानमंत्री बना है, कभी आपने सोचा है, मैं नाम नहीं लूंगा, कोई आरोप नहीं लगाऊंगा, पाकिस्तान से अगर कोई प्रधानमंत्री उस तरह का बन सकता है तो याद रखिये हिन्दुस्तान भी उन हालात से दूर नहीं है जिन हालात में आप इस देश को ले जा रहे हैं, मैं नहीं जानता कि क्या होगा? यह तो आप जानें, आप प्रवक्ता है, लेकिन मेरा तो काम है कि समय रहते आपको चेतावनी दंू। यह सही है कि भारत और पाकिस्तान दोनों भाई-भाई हैं। हमारी समस्याएं एक हैं। हमारे ऊपर दबाव एक जैसे हैं। हम आपस में समझौता करके नहीं रहेंगे तो हम जिन्दा नहीं रह सकते। हम यह कहते रहेंगे,चाहे कोई सुने या न सुने, हमारी बातों को सुना नहीं जा रहा है।

मुझे सबसे बड़ा दुःख है, जो आजादी इस देश को शहीदों की कुर्बानी से हासिल हुई है, उस आजादी को आज एक-एक करके गिरवी रखते जा रहे हैं और भाषण ऐसे लच्छेदार सुनाते हो कि जैसे बाकी हम सब जो इस तरफ बैठे हैं, नालायक और निकम्मे लोगों की जमात है, आपने ही सारी समझदारी का भार उठाया हुआ है। यह नहीं चलेगा। हमारे मन में अगर पीड़ा है, दर्द है, तो उसको सुनने की कोशिश कीजिए। हमारे पास वह समझ नहीं हो सकती जो चिदंबरम जी में है, जो मनमोहन सिंह जी में है या बलराम जाखड़ जी में हैं, लेकिन आप सीताराम केसरी की समझ भी थोड़ी ले लीजिए, ये हमारी तरह बिना पढे़-लिखे है।ं इन्होनंे उन जमानो ंको देखा है, जहाँ दर्द से राजनीति पैदा होती है। जहाँ डाक्यूमेंट से राजनीति पैदा नहीं होती है और डाक्यूमेंट से जो राजनीति पैदा होती है, लिखे हुए दस्तावेजों से पैदा हुई राजनीति देश को रसातल पर ले जा रही है और आगे भी ले जायेगी।

हमसे कल कहा गया कि क्या होगा? क्या आप समझते हैं कि कोई इस देश में समझने वाला नहीं है। कल भाषण देते समय चिदम्बरम साहब कह रहे थे कि किसानों को छूट दे दी, सब कुछ एक्सपोर्ट कर सकते हैं, फूल और गुलदस्ते बाहर भेज सकते हैं, पैसा कमा सकते हैं और धन उपार्जित कर सकते है। वह भारत देश जहाँ 88 फीसदी किसान एक हेक्टयेर के नीचे का किसान है तो क्या वह दूसरे देशों में गुलदस्ते बाहर भेजेगा। यह बात इस देश के समझदार मंत्रियों या नेताओं की समझ में नहीं आई, 88 फीसदी एक हेक्टेयर के नीचे के किसान के लिए बात करता हुआ इस देश का समझदार आदमी कहता है कि हम फूल बाहर भेजने की सुविधा देते हैं।

आपको मालूम नहीं होगा लेकिन मनमोहन सिंह जी को मालूम होगा कि 15 वर्ष पहले अफ्रीकी देशों से कहा गया कि गेहूँ और चावल मत पैदा करो। काफी और कोको दुनिया के बाजारों में बहुत कम है उसे पैदा करो। लोगों ने पैदा करना शुरू किया और बहुत मुनाफा कमाया। 12 वर्षों में जो ट्रेडीश्नल एग्रीकल्चर था, वह एक-एक करके टूट गया और बड़ी फैक्ट्रियां लग गई। कोको पैदा हुआ और 12-15 वर्षों पैसा मिलता रहा। जिसके हाथों में वह व्यापार था तो उन्होंने वह काम करके व्यापार को तोड़ दिया और काफी-कोको का एक्सपोर्ट बन्द हो गया।

सभी व्यापारी और खेतीहर चले गए और आज अफ्रीकी देशों में भूखा-नंगा नाच दिखाई पड़ रहा है। क्या भारत को वहीं ले जाना चाहते हैं। हमारे लिए एक नारा और दूसरों के लिए दूसरा नारा और हमारे लिए एक कृषिनीति। क्या वह सही है कि जर्मनी, जापान, फ्रांस, इंगलैंड, अमेरिका और कैनाडा के किसानों को जीवित रखने के लिए दो सौ परसेंट तक सब्सिडी दी जाएगी और जापान से एक किलो चावल इमपोर्ट करने के लिए वर्जित किया जाएगा और हमारे देश का प्रवक्ता कहेगा कि हमने सब कुछ बाहर से मंगाने की इजाजत दे दी हैं जो किसानों की खुशहाली के लिए है। यह कौन सा देश बना रहे हो।

मैंने इसी सदन में विरोध किया था लेकिन आडवाणी जी और अटल जी चुप रह गए। 12-15 वर्षों से जापान के लोग यहाँ पर जापानी सिटी बनाने की कोशिश कर रहे थे। किसी सरकार ने इजाजत नहीं दी। आपके प्रधानमंत्री जाते हैं और एग्रीमेंट करके आते हैं। जापान से कि सिटी बनाओ। उस शहर को बनाने के लिए भैरोसिंह शेखावत, कल्याण सिंह और भजन लाल में होड़ छिड़ती है कि कहाँ वह नगर बसेगा। भजन लाल वह बाजी मार ले जाते हैं। क्या मतलब है जापानी शहर को बसाने का? क्या वे सिर्फ पैसा लेकर आयेंगे और क्या संस्कृति और सभ्यता लेकर नहीं आयेंगे।

यह सब रिकार्ड में उपलब्ध है। मनमोहन सिंह जी ठीक कह रहे हैं कि मैंने उन्हें आई.एम.एफ. के पास जाने को कहा था किन्तु यह सलाह भी दी थी कि वे देश के संसाधनों को भी जुटाएं। सरकार के गठन के दो-तीन सप्ताह के भीतर ही इस देश के उद्योगपतियों पर 1200 करोड़ रुपए मूल्य के कर लगाए गए। मैंने उन्हें देश में ही संसाधन जुटाने की सलाह दी थी और यदि अपरिहार्य हो, तब ही आई.एम.एफ. के पास जाया जाए। समाज के समृद्ध तबके पर कर लगाया गया। अध्यक्ष महोदय, मैं किसी को गद्दारी नहीं सिखाता हूँ। मैं उस कांग्रेस पार्टी में रहा हूँ और मणिशंकर जी कभी उस हैसियत में कांग्रेस पार्टी में नहीं पहुँच सकते जिस हैसियत में मैं कांग्रेस पार्टी में रहा हूँ और इस काम को किया है। कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता ने कभी उसको गद्दारी नहीं सिखाया है, मणिशंकर जैसे छोटे लोग कह सकते हैं, उसके बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे यह निवेदन करना चाहता हूँ कि आज देश के सामने एक बड़ी समस्या है। समस्या है देश के जनतन्त्र को बचाने की। समस्या है देश के संविधान को बचाने की, समस्या है। इस देश की धर्मनिरपेक्षता को बचाने की। आडवाणी जी, मुझे उस दिन दुःख हुआ था जब आपने कहा था कि लाल बहादुर शास्त्री के बाद एक ही यह प्रधानमंत्री पैदा हुआ और इसलिए कहा था कि उस समय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण का सिद्धांत हमारे मित्र मनमोहन सिंह लाए थे। हिन्दुस्तान की आखिरी लड़ाई आर्थिक सवालों पर होगी, हिन्दुस्तान की आखिरी लड़ाई रोटी के लिए होगी, प्यास के लिए होगी, बेरोजगारी के सवाल पर होगी, भूख के सवाल पर होगी।

मुझे डर लगता है आडवाणी जी, कहीं उस दिन आप और नरसिंह राव साथ न हो जाएं। और ये खतरनाक बात है। इसलिए मैं बार-बार उधर के भी नौजवानो ंसे कहना चाहँूगा कि ये धर्म और जाति के नारे आदमी को नशा दिला सकते हैं लेकिन देश की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते। इस देश की समस्याओं का समाधान करना है तो अपने लोगों के पौरुष पर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई थी जब आर.एस.एस. के सरसंचालक ने विदेशी और स्वावलंबन के नारे को लेकर देश में आन्दोलन करने के लिए कहा था। मैंने खुले आम उसका समर्थन किया था। मैंने कहा था कि एक सही काम आर.एस.एस. ने किया है लेकिन वह आवाज बंद हो गई। वह आवाज सुनाई नहीं पड़ती। अगर वह आवाज है तो हम इन्तजार करेंगे। अगर वह आवाज उठे तो मुझे खुशी होगी क्योंकि मैं आपको बताऊं कि संसदीय जनतंत्र में हम किसी को अछूत नहीं मानते, संसदीय जनतन्त्र में हम किसी को हमेशा नफरत से नहीं देखते। अगर कांग्रेस के नौजवानों से उम्मीद है तो भारतीय जनता पार्टी के नौजवानों से भी उम्मीद है, लेकिन वे अपने उस बंधन को तोड़ें जो संकीर्णता का बंधन है, जो धर्म के नाम पर आदमी को आदमी से बांटने का बंधन हैं जो इंसान इंसान में भेद करता है। अध्यक्ष महोदय, आज देश को उस राह पर चलाना है और मैं दुःख के साथ कहता हूँ कि नरसिंह राव जी इस काम को पूरा नहीं कर सके।

हमारे किसी मित्र ने पूछा था कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा? कांगे्रस में 200 से अधिक लोग हैं। इसमें बहुत बुद्धिमान लोग हैं, चतुर लोग हैं। क्या आप अपने में से एक आदमी नहीं पा सकते? कोई आदमी इतिहास का पूर्ण विराम नहीं होता, हर आदमी इतिहास का अर्द्ध विराम होता है। युगपुरुष महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध भी अर्द्ध विराम थे। वह दुनिया से चले गए। उनके जाने के बाद भी देश चला। मैं समझता हूँ कि हमारे और नरसिंह राव के न रहने पर भी यह देश रहेगा। कांग्रेस के लोगों, अपने को इतना बेबस मत समझो, वह हिम्मत मत समझो, कुछ हिम्मत दिखाओ, हटाओ इनको और देश को बचाओ। अध्यक्ष महोदय, अगर यह एप्रूवल मेरे जमाने में हुई है तो मैं सचमुच में इसके लिए शर्मिंदा हूँ। मैं समझता हूँ कि वह गलत है।

श्री मनमोहन सिंह जी उस समय मेरे इकोनोमिक एडवाईजर थे तो मुझे उस समय यह बात बतानी चाहिए थी। मैं आपसे निवेदन करूंगा कि क्या यह इसका उत्तर है। मैं आपसे बता रहा हूँ कि यही स्तर रह गया है यहाँ के मंत्री का।. जो करता हूँ वही कहता हूँ,। जो कहता हूँ वही करता हूँ। अगर मेरे समय में हुआ तो मुझे नहीं मालूम, लेकिन वह गलत काम हुआ। मेरे समय के बहुत से कामों को आपने रोक दिया। इस काम को आपने क्यों नहीं रोका, इस काम को रोकने में आपको परेशानी क्यों हुई। हमने नहीं कहा कि इस काम को मत रोकिए।

मैं पहली बार सुन रहा हूँ कि यह एप्रूवल मेरे जमाने में हुई, शायद मनमोहन सिंह जी ने की होगी, मुझे नहीं मालूम। अगर उस समय भी हुई तो गलत हुई। मैं नहीं कहता कि मुझसे गलती नहीं हो सकती, लेकिन इस गलती से क्या देश के भविष्य के बारे में निर्णय हो, क्या इस गलती के आधार पर आपकी नीतियांे के बारे में निर्णय होगा, क्या इस गलती के आधार पर आपके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं वे साबित नहीं होंगे। मैं कहता हूँ हर क्षेत्र में यह सरकार गलतियां करती जा रही है। जो गलतियां न केवल हमारे आर्थिक और सामाजिक जीवन के लिए अभिशाप है, बल्कि जो गलतियां देश के भविष्य को गिरवी रखने की जिम्मेदार हैं।

आर्थिक क्षेत्र में रोज आंकड़े दिए जाते हैं, रोज कहा जाता है इन्फलेशन कम हो गया है, लेकिन जिस दिन आप सरकार में आए थे उस दिन से क्या कम कीमतों पर मजदूरों को, किसानों को, वेतनभोगी लोगों को जीवनोपयोगी चीजें मिल रही हैं। क्या सामानों की कीमत इस देश में कम हुई है। हर चीज की कीमत बढ़ती जा रही है। आंकड़ों में कमी होती जाती है। आंकड़ों की सादैागरी म ंेआप माहिर ह।ंै इसलिए इस आकंड े़की सादैागरी स ेजन-भावनाआंे को कभी सन्तुष्ट नहीं कर सकते। वह बुनियादी सवाल आज हमारे देश के सामने है। किसके लिए राजनीति, किसके लिए अर्थनीति, केवल कुछ समझदार लोगों के लिए आंकड़े जानने वाले लोगों के जरिए यह देश बर्बादी की ओर जा रहा है। क्या देश की व्यवस्था बनाए रखने में आप कामयाब हुए हैं।

मैं पुराने किस्से नहीं दोहराना चाहता हूँ। दुनिया में कोई प्रधानमंत्री यह कह सकता है कि हमें धोखा हो गया। 6 दिसम्बर को आपको धोखा नहीं हुआ। आपने सारे देश को धोखा दिया, आपने देश की मान्यता को धोखा दिया। यह धोखा किसको नहीं था। सारे लोगों ने कहा कि बाबरी मस्जिद गिरेगी, उसको रोकिए। मान लीजिए उस समय धोखा हुआ, आडवाणी जी की बात से आप चुप रह गए। 12 बजे शुरू हुआ, सात घण्टे तक आप कुछ नहीं कर सके। ऐसी निकम्मी और अपंग सरकार जो भारत का मर्यादा के खिलाफ सात घण्टे तक चुप बैठी रहती है, उसको शासन में रहने का कोई अधिकार नहीं है।

और छोड़ दीजिए, मान लीजिए मस्जिद गिर गई, हमने कहा था कि आप बयान दें कि वहाँ पर मस्जिद बनायें। मस्जिद बनाने का ऐलान करने के बाद शंकराचार्यों के ऊपर जिम्मेदारी डालने की जुर्रत किसने की। सरकार की जिम्मेदारी से अपने को हटाने वाले लोग दूसरे के नाम पर बहाना बनाकर समस्याओं को उलझाने के लिए जिम्मेदार हैं। आपने मस्जिद गिरवाई, आपने नया मन्दिर बनवाया, आपने बयान दिया कि मस्जिद वहीं बनेगी। आज आप कहते हैं कि धर्म गुरूओं पर हम छोड़ रहे हैं। आडवाणी जी ने एक बुद्धिमानी का काम किया कि उन्होंने तुरन्त यहाँ पर भी गुरू को बिठा दिया। अब कम्पीटिशन होता है या नहीं लेकिन आडवाणी जी उनको वहाँ तक पहुँचाने वाले हैं जहाँ तक वे मजबूर होकर यह न कह दें कि हममें और आडवाणी जी में कोई फर्क नहीं है।

इसलिए ये बातें बहुत दिन तक छिपी नहीं रह सकती। इन बातों के आधार पर मैं कह रहा हूँ, मैं भ्रष्टाचार पर बोलना नहीं चाहूँगा। अध्यक्ष जी, मैं एक निवेदन करना चाहता हूँ। दुनिया में जब तानाशाही ताकतें कहीं अधिकार में आई हैं तो उन्होंने उसी समय अपना सिर उठाया है जब शासन में बैठे हुए लोग भ्रष्टाचार की बातों का जवाब नहीं दे पाए। मैं नहीं कहता कि भ्रष्टाचार के आरोप सही हैं या नहीं। मैं किसी के बेटे और दामाद की बात नहीं करूंगा, लेकिन एक आदमी जिसको आप खुद कुक और बदमाश कहते हैं उसने आरोप लगाया। आठ दिन, दस-बारह दिन आपको लगते हैं उस आरोप का खण्डन करने में। आपके सरकारी प्रतिनिधि कहते हैं कि वह डिस्टेब्लाइज करने के लिए लगाया गया आदमी था, जिसको बी.जे.पी. के लोगों ने लगाया।

प्रधानमंत्री हो, मुल्क को डिस्टेब्लाइज करने के लिए कोई कोशिश कर रहा है, आपके हाथ क्या मेहन्दी से रंगे हुए हैं कि आप उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकते। कोई एक आदमी भारत की सर्वोच्च संस्था को डिस्टेब्लाइज करने की कोशिश करे, भारत के संविधान को बर्बाद करने की कोशिश करे और रोज बयान देता रहता है, कल भी बयान दिया और यह सरकार उस आदमी के खिलाफ बात करने की जुर्रत नहीं रखती।

आप समझते हैं कि देश और दुनिया के लोग मानेंगे कि आपका दामन साफ है? यह सवाल देश के अन्दर है। डा. मनमोहन सिंह जी, मैंने आपकी बेबसी देखी है। जब आपने गोल्ड स्टार के बारे में या किसी दूसरे मामले में कहा तो मैंने कोई कमेन्ट नहीं किया। ऐसा नहीं कि आप जानते नहीं है,ऐसा नहीं है कि व्यक्ति की समझदारी नहीं है लेकिन मैं समझता हँू कि आपकी सुविधा है। सच कहें तो गड़बड़ है, असत्य तो बोल नहीं सकते हैं, इसलिए चुप रहना ज्यादा आसान है। ऐसे चुप रहिए, वही आपके लिए ज्यादा अच्छा है। लेकिन गोल्ड स्टार के बारे में मैं नहीं कह रहा हूँ, आपकी ओफिसियल रिपोर्ट में कहा गया है, क्या वह काफी नहीं है।

डा0 मनमोहन सिंह की जो बेबसी है, वह मुझे बहुत खलती है क्योंकि डामनमोहन सिंह स्टोर क्लर्क नहीं हैं कि जे.पी.सी. ने जो मांगा, उसको भेज दें। यही काफी नहीं है। इस तरह के गम्भीर आरोप लग जाते हैं तो सरकार और सरकार के मंत्रियों का यह कत्र्तव्य होता है कि उसके बारे में देश को और संसद को सच्चाई बतायें।

अध्यक्ष महोदय, मैं यही बात कहता हूँ कि जो बेबसी हमारे मंत्रियों की है, वही इस संसद पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देती है और यह बेबसी केवल वित्तमंत्री तक नहीं है, इसी बेबसी का शिकार हमारे प्रधानमंत्री भी हैं। कोई बात कहता रहे, किसी बात का जवाब नहीं है, किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं, किसी बात पर बोलने की हिम्मत नहीं है। ऐसे लोगों से यह देश कब तक चलेगा? और इस देश को आप कहाँ ले जाना चाहते हैं? अध्यक्ष महोदय, अंत में मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आप भी उस परम्परा से जुड़े हुए हैं। कांग्रेस की परम्परा में गांधी और नेहरू को छोड़ दीजिए। सन् 1970, 1974, 1975 में जब कभी हुआ, कुछ लोग उठकर अपनी आवाज उठाते रहे। उनकी आवाज बड़ी बलवती आवाज नहीं थी, फिर भी जब ऐसा सवाल आया, उस सवाल को उठाया परन्तु परसों श्री बूटा सिंह जी बोल रहे थे, मैं उनकी पीड़ा को समझ रहा था। उन्होंने कुछ बातें कही हैं। जब आप ऊंचे-ऊंचे बोलते हैं तो मेरे मन में आता है कि मैं भी कह दूँ कि मेरी आपकी क्या बाते हुई हैं?

गृहमन्त्री की हैसियत से एक बार नहीं, अनेकों बार बार आपने मुझ से बात की है। मैंने कहा कि उठकर संसद में आप कहें, मैं आपका समर्थन करूंगा लेकिन आप साहस नहीं कर सके थे। इसलिए नहीं कर सके कि चारों ओर से बने घरौंदे को तोड़ने की आप में हिम्मत नहीं थी और आज उसी घरौंदे से कांग्रेस का एक-एक सदस्य अपने आपको घिरा हुआ पा रहा है। इसको तोड़े अगर देश बनाना है। यह घरौंदा तोड़ने का मतलब यह नहीं कि मैं कांग्रेस पार्टी को तोड़ने के लिए कहता हूँ। कहिए प्रधानमंत्री से कि अग्नि परीक्ष बाद में देना। 14 वर्ष वनवास के लिए नहीं तो 14 मास के वनवास के लिए निकल पड़ो। शायद देश बच जायेगा। कांग्रेस पार्टी बच जायेगी, संसदीय जनतंत्र बच जायेगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।